religion,धर्म-कर्म और दर्शन -55
religion and philosophy- 55
🏵️दुर्गम वाममार्ग केवल जितेन्द्रिय ही पात्र है 🏵️
डॉक्टर रमेश खन्ना वरिष्ठ पत्रकार हरिद्वार
भगवान शिव द्वारा वाममार्ग को अत्यन्त दुर्गम तथा योगियों के लिए भी अगम्य माना गया है-
‘‘वामो मार्गः परम गहनो-योगिनामप्यगम्यः’’
पुरश्चर्यार्णव नामक तंत्र ग्रन्थ में वाममार्ग को सर्वोतम, सर्वसिद्धिप्रद तथा केवल जितेन्द्रिय व्यक्ति के लिए ही सुलभ माना गया है-
‘‘अयं सर्वोत्तमं धर्मः-शिवोक्त सर्वसिद्धिदः
जितेन्द्रियस्य सुलभो-नान्यथा नन्त जन्मभिः’’
अर्थात् इन्द्रिय-लोलुपव्यक्ति अनन्त जन्मों में भी इस साधना का अधिकारी नहीं बन सकता है।
भगवान श्री शिव मॉं पार्वती से कहते हैं कि कि हे देवि! इस उत्कृष्ट वाममार्ग की साधना को सदैव परम गोपनीय रखना चाहिए-
‘‘अतो वामपथं देवि! गोपये मातृजारवत्’’
प्रसिद्ध आगमग्रन्थ ‘मेरूतंत्र’ का कथन है कि केवल वही साधक वाममार्ग की साधना का अधिकारी हो सकता है जो दूसरों के धन को देखकर अन्धा, परस्त्री को देखकर नपुंसक तथा दूसरों की निंदा करते समय गूंगा बनने की क्षमता रखता हो।
जय माँ
#आपके_जानने_योग्य_तथ्य!!
⚘ महायज्ञ ( पञ्चमहायज्ञ ) विहीन व्यक्ति ब्राह्मणों की
पंक्ति में बैठने योग्य नहीं है ।
⚘ वेदज्ञ ब्राह्मण भी यदि बलिवैश्वदेव नहीं करते तथा
अग्निहोत्र आदि गृह्यकर्म से अलग रहते हैं – उन्हें
शूद्र ही जानना चाहिए ।
⚘ यज्ञ और श्राद्ध में जो ब्राह्मण को निमन्त्रण देकर
उसका त्याग करता है – वह सूकरयोनि को प्राप्त
होता है ।
⚘ यज्ञ मण्डप में भोजन करने का निषेध है – करने पर
एक दिन का उपवास करना चाहिए ।
⚘ यज्ञ के अभाव से कलियुग के बल की वृद्धि होती है
⚘ यज्ञ में आचार्य – ब्रह्मा आदि समस्त ऋत्विज गृहस्थ
ब्राह्मण होने चाहिए ।
⚘ काञ्जिक – दूध – मठा – दही – तेल – घी में पका हुआ
अन्न – मणिकट ( जलकलश ) का जल ये राहू के
सूतक में ( ग्रहण काल ) दूषित नहीं होते — तील –
कुशा भी दूषण को रोकते हैं ।
⚘ व्रत – तीर्थ – अध्ययन – विशेषकर श्राद्ध में जिसका
अन्न होता है – उसी को फल मिलता है।
⚘ दीन – अंध – कृपण – बधिर – वामन – कुब्ज – तथा
रोगी ये सब द्वार पर ही सत्कार के योग्य हैं ।
⚘ पितर आपका अभ्युदय चाहते हैं – जब वे वर देने को
उद्यत होते हैं – तभी स्वप्न में अपने वंशजों को दर्शन
देते हैं ।
⚘ रजस्वला स्त्री की प्रथम दिन ब्रह्मघातनी – दूसरे दिन
चाण्डाली व तीसरे दिन धोबिन संज्ञा होती है –
विशेषतः तीन दिन इन्हें कोई भी गृहकार्य नहीं करना
चाहिए ।
⚘ देहधारी जीव के लिए गर्भ में ही आयु – कर्म – धन –
विद्या और मृत्यु– इन पाँच वस्तुओं की सृष्टि कर दी
जाती है । ( स्कन्द पुराण )
⚘ अग्निशाला – गोशाला – देवता और ब्राह्मण के समीप-
तथा स्वाध्याय – और भोजन – जलपान के समय
खडाऊं और जूते उतार देने चाहिए ।
⚘ पर्वत – भालू – वृक्ष – नदी – सर्प – पक्षी – नाग और
दासादि का बोध कराने वाले नामों से युक्त स्त्री के
साथ विवाह न करें – जो सोम्य नाम वाली हो – उससे
विवाह करें । ( स्कन्द पुराण )
⚘ जहाँ दक्षिणावर्त शंख – लक्ष्मीनारायण स्वरूप
शालग्राम शिला – तुलसी का वृक्ष – कृष्णसार मृग
और द्वारका की शिला ( गोमतीचक्र ) हो – वहाँ
लक्ष्मी – विजय – विष्णु – और मुक्ति – इन चारों की
उपस्तिथि होती है ।
⚘ जिस घर में शालग्राम शिला और महाभारत की पुस्तक हो
हो – वहाँ कलियुग का निवास नहीं होता ।