religion,धर्म-कर्म और दर्शन -61
religion and philosophy- 61
🏵️आज्ञा चक्र का जागरण क्या पूर्ण कुंडलिनी जागरण है।🏵️
अगर किसी ने कभी भी आज्ञा चक्र के अलावा किसी और चक्र पर ध्यान नही किया क्या फिर भी उसकी कुंडलिनी जाग्रत हो सकती ?आज्ञा चक्र पर पूरे प्रकाश के साथ ध्यान का सरलता से टिक जाना क्या इससे साधक के निचले चक्र जाग्रत नहीं होते हैं ?*
*आज्ञा चक्र हमारे शरीर का वह केंद्र बिंदु है जो संपूर्ण शरीर को नियंत्रित करता है। यह निश्चित है कि आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाकर साधना करने वाले साधक के समस्त चक्र स्वतः ही जागृत हो जाते हैं। आज्ञा चक्र का पूर्ण प्रकाशित होना इस बात का द्योतक है कि कुंडलिनी ऊर्जा मूलाधार से आज्ञा चक्र तक पहुंच चुकी है। नाद का सुनाई देना इस बात का संकेत है कि ऊर्जा आज्ञा चक्र से ऊपर उठ रही है।
इसलिए जिस व्यक्ति ने जीवन भर सिर्फ आज्ञा चक्र पर ध्यान किया है ।वह नीचे के चक्रों पर ध्यान नहीं करते हुए भी संपूर्ण चक्रों को अपने आप ही जागृत कर लेगा। इस सत्य को भौतिक जगत के इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि किसी व्यक्ति ने जीवन में अन्य किसी पद की तैयारी नहीं की किंतु वह आईएएस की तैयारी करता है और एक दिन जिलाधीश बन जाता है तो क्या अब उसे जिले के अंदर आने वाले अन्य किसी पद की तैयारी करने की जरूरत है ? क्या अन्य पद उसके आदेश का पालन नहीं करेंगे? निश्चित ही जिले के अन्य सभी पदाधिकारी उसके अधीन रहकर कार्य करेंगे, सिर्फ ऊपर से उसके द्वारा दिए गए आदेश का पालन करेंगे।
यही आज्ञा चक्र के साथ है। किंतु यह अवश्य है कि यदि किसी व्यक्ति ने प्रारंभ में पटवारी का पद प्राप्त किया हो, फिर वह तहसीलदार बना हो, एसडीएम बना हो और अंत में जाकर जिला कलक्टर बना हो तो निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति को नीचे के पदों का भी गहन ज्ञान होगा । उस व्यक्ति से ज्यादा जो सीधा आईएएस के पद पर आकर बैठा है किंतु आप किसी भी आधार पर यह नहीं मान सकते कि सीधा जो आईएएस के पद पर आकर बैठा है।
वह नीचे से ऊपर आए हुए व्यक्ति से बहुत कम शक्तिहीन है।आज्ञा चक्र का जागरण हो जाने के बाद साधक को ललाट मध्य ललना चक्र ,सहस्रार चक्र एवं ब्रह्मरंध्र पर अवश्य ध्यान करना चाहिए। इससे ऊर्जा का संपूर्ण विस्तार हो पाता है और साधक अपनी चेतना को ब्रह्मांड व्यापी बना पाने में समर्थ होता है। इससे साधक के अंदर संकल्प शक्ति को सिद्ध करने की सामर्थ्य भी धीरे धीरे जागृत होती जाती है और ऐसा साधक अपनी साधना के द्वारा अपने संकल्पों को सिद्ध कर पाने में भी समर्थन हो होने लगता है।
किंतु जो मोक्षाकांक्षी हैं ,उन्हें साधना के मार्ग में संकल्प का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि संकल्प युक्त साधना निश्चित ही परिणाम लेकर आती है। साधक संकल्प युक्त होकर यदि अपनी चेतना को ब्रह्मांड व्यापी बनाता है तो वह देर से ही सही किंतु अपना परिणाम अवश्य दिखाती है । जैसे-जैसे ध्यान की गहराई एवं तप की ऊर्जा बढ़ती जाती है । यह ब्रह्मांड उस संकल्प को पूरा करने के लिए मजबूर होने लगता है। यदि साधक का संकल्प प्राणी मात्र के कल्याण के लिए है, मानव मात्र के हित संतान के लिए है तो निश्चित रूप से यह साधना -उपासना , तपश्चार्य का सबसे सही उपयोग है किंतु लक्ष्य यदि कल्याणकारी नहीं है तो वह परिणाम साधक को बंधन युक्त होने पर मजबूर कर देगा।
मनुष्य द्वारा किए गए हर कर्म का फल समय आने पर यह प्रकृति मांँ अवश्य देती है। निश्चित की मांँ आदिशक्ति हमें हमारे परिश्रम का भरपूर फल देती है किंतु यदि हमने विवेक को जागृत नहीं रखा तो हमारे द्वारा किए गए कर्म ही हमारे विनाश का कारण बन जायेंगे ,बंधन का कारण बन जायेंगे। इसलिए साधक को अपने जीवन में आत्म कल्याण को ही मुख्य लक्ष्य बनाना चाहिए ।तभी उसका वास्तविक कल्याण हो सकता है। वरना जीवन में चाहे कोई सी भी उन्नति प्राप्त कर ली जाए ।वह भी विवेक हीनता के पथ पर चलने पर विनाश ही उत्पन्न करती है।पतन की राह पर ही लेकर जाती है ।बंधन युक्त ही बनाती है अतः साधक को अपनी साधना का उद्देश्य उस निर्विचार ,निर्विकल्प अवस्था को प्राप्त करके सत चित आनंद पूर्ण ब्रह्म में लीन हो जाना ही होना चाहिए।
किंतु हांँ वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व की स्थिति अत्यंत गंभीर है । मानवता खतरे में है। अधर्म अत्यंत शक्तिशाली हो चुका है और धर्म खतरे में है ।
इसलिए मैं सच्चे साधकों का आह्वान करता हूंँ अभी मोक्ष आपका लक्ष्य नहीं होना चाहिए ,अभी मानव मात्र का कल्याण ही आपका लक्ष्य होना चाहिए । संपूर्ण विश्व में अधर्म का नाश होकर धर्म की स्थापना होना ही आपका लक्ष्य होना चाहिए ।इसलिए अभी अपनी साधना को संकल्प युक्त बनाइए और संपूर्ण विश्व से अधर्म का नाश हो और सत्य मानवीय मूल्यों से युक्त भेदभाव रहित मानव धर्म की स्थापना हो !इस संकल्प को धारण करके आज्ञा चक्र पर ध्यान लगाते हुए अपने गुरु मंत्र का ,गायत्री महामंत्र का ओमकार का निरंतर जप और ध्यान कीजिए ।परिणाम आप स्वयं सामने देखेंगे।*
डॉ रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरीद्वार उत्तराखंड