religion,धर्म-कर्म और दर्शन -75

religion and philosophy- 75

🏵️वट सावित्री व्रत पर आज विधिवत करें वट पूजा 🏵️

वट सावित्री व्रत पति की लम्बी आयु और सुर‌क्षित जीवन के लिए किया जाता है, ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री अथवा बडमावस का व्रत किया जाता है।
इस व्रत का उल्लेख भविष्योत्तर पुराण’ और ‘स्कंद पुराण’ में किया गया है इस दिन सुहागिन महिलाएं निराहार रहकर वट के पेड के नीचे बैठकर विधिपूर्वक पूजन कर वटवृक्ष को कच्चे धागे के सूत्र के साथ परिक्रमा करते हुए वृक्ष को चारों ओर से लपेट कर, पूजन दान पुण्य करती हैं और पति की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करतीं हैं।
साथ ही बायना निकाल कर सास अथवा ननद या जेठानी को दिया जाता है, इनमें से कोई न हो तो किसी ब्राह्मणी को वस्त्र भोजन दान दिया जाता है।
वट सावित्री की कथा कहती है कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों को हर कर ले जाते हुए यमराज से हठ पूर्वक प्राण वापिस लिए थे तभी से इस व्रत को करने का विधान है।

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माता पिता के लाड़, प्यार और दुलार के साथ पली बढ़ी सावित्री विवाह योग्य हुई, तब राजर्षि अश्वपति ने उसका विवाह द्युमत्सेन के बेटे सत्यवान से करवा दिया। विवाह के वक्त ही नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के अल्पायु होने के बारे में

सत्यवान एक कर्तव्यनिष्ठ और भगवान के सच्चे भक्त थे. एक दिन नारदजी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान की उम्र कम है. इसके बाद सावित्री ने सत्यवान की उम्र के लिए घोर तपस्या की. एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ने लगे, तभी उनके सिर में तेज दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गए. उसी समय सावित्री ने यमराज को आते देखा, जो सत्यवान के प्राण लेकर अपने साथ ले जाने लगे. सावित्री ने भी उसका पीछा किया।

यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यह कानून का नियम है, लेकिन सावित्री नहीं मानीं. आखिरकार यमराज को सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े. कहा जाता है कि वट वृक्ष का पूजन और व्रत करके ही सावित्री ने यमराज से अपने पति को वापस पा लिया था।
तभी से पति की लंबी आयु के लिए इस व्रत का विधान प्रचलित हो गया।

 

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