प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मसूरी में नाग पंचमी का पर्व इस बार भी श्रद्धा, आस्था और ऐतिहासिक विरासत के साथ बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान हाथीपांव क्षेत्र में स्थित 500 साल पुराना नाग मंदिर हजारों भक्तों की भीड़ और जयकारों से गूंज उठा।
आचार्य संदीप जोशी ने बताया कि मसूरी के नाग मंदिर का इतिहास न केवल प्राचीन है, बल्कि अत्यंत चमत्कारी और रहस्यमयी भी है। करीब 500 साल पहले, यह स्थान जंगल और खेतों से घिरा एक शांत इलाका था। एक दिन, एक स्थानीय चरवाहे ने देखा कि उसकी गाय रोज एक विशेष स्थान पर जाकर अपने आप दूध गिरा रही है.। जब उसने जाकर पास से देखा तो पाया कि गाय एक विशेष पत्थर पर दूध अर्पित कर रही थी।
इस घटना से हैरान होकर उसने गांव वालों को बुलाया। जब सबने मिलकर वह स्थान देखा तो उन्हें वहां नाग देवता का स्वरूप दिखाई दिया। तभी से माना जाने लगा कि वहां स्वयंभू नागराज विराजमान हैं। उसी पत्थर को आज भी मंदिर में नाग देवता के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर को लेकर गहरी लोक मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से नागराज से मनोकामना करता है, उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है। इसी विश्वास के साथ आज भी न केवल मसूरी और देहरादून बल्कि हरिद्वार, टिहरी, पौड़ी और देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु नाग पंचमी पर मंदिर पहुंचते हैं। कई लोग इसे मनोकामना सिद्धि स्थल भी कहते हैं
इस वर्ष नाग पंचमी पर मौसम ने परीक्षा ली. तेज बारिश, फिसलन भरे रास्ते और कोहरे के बावजूद, भक्तों के कदम मंदिर की ओर बढ़ते रहे। सुबह से ही मंदिर परिसर में पूजन-अर्चना, रुद्राभिषेक, नाग स्तोत्र पाठ और विशेष हवन का आयोजन शुरू हो गया था। श्रद्धालुओं की कतारें मंदिर से बाहर तक लगी थी। हर कोई नागराज को दूध, बेलपत्र, पुष्प और चंदन अर्पित कर रहा था।