religion,धर्म-कर्म और दर्शन -143

religion and philosophy- 143

🏵️ग्रह संकेतक हैं और ज्योतिषी ग्रहों का नियंत्रक 🏵️

वीर्यं क्षेत्रं प्रसूतेश्च समयः संगतिस्तथा। उत्तमादि गुणै हेतु बलवान उत्तरोत्तर।।

वीर्य ( माता पिता) क्षेत्र (स्थान) समय ( काल) संगति ये महत्वपूर्ण घटक है जिनका प्रभाव जातक पर पड़ता है।

महर्षि पराशर ने बृहत पाराशर होरा शास्त्र में स्पष्ट लिखा है कि व्यक्ति जिस वातावरण में रहता है उसके प्रभाव व्यक्ति की मानसिकता पर ग्रहों से ज्यादा पड़ता है:

ज्योतिषी वर्ग बृहतपाराशर होराशास्त्र के इस श्लोक को पढ़ें या समझें नहीं और स्वयं को भाग्य नियंत्रक और उपचारों से भाग्य बदलने वाला घोषित करें और विद्वान आलोचक मूल पुस्तकों को पढ़े बिना या ज्योतिष के स्वरूप व सीमा का मूल्यांकन किए बिना ज्योतिष से निश्चयात्मक भविष्य वाणी की अपेक्षा करें या इसे भाग्यवादी यथास्थिति वादी घोषित करें तो क्या किया जा सकता है?

ज्योतिष के विरुद्ध जो आलोचना होती है वह इन भाग्य बदलने के दावों के कारण ही होती है।

ग्रह तो संकेतक हैं। उदाहरण के लिए किसी राजमार्ग पर एक संकेतक लगा है कि आगे मोड़ है या गड्डा है तो यह सब संकेतक ने निर्मित नहीं किया है ।संकेतक तो केवल बता रहा है। ज्योतिष की जन्मपत्रिका के ग्रह ऐसा ही एक संकेतक हैं।

सितारे प्रवृत्ति मूलक हैं , बाध्य कारक नहीं हैं -the stars incline ,they do not compel…कोई भी अपनी इच्छा शक्ति या आत्म शक्ति के बल पर अपनी जन्म पत्रिका के प्रभावों से उबर सकता है …जब हम ऐसा करने में सक्षम होजाते हैं तो हम समय की शतरंज में मोहरे के स्थान पर खिलाड़ी बन जाते हैं।

religion,धर्म-कर्म और दर्शन -143
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शास्त्र कहता है : गहना कर्मणा गति -गीता । कर्म की गति गहन है आसानी से नहीं समझ आ सकती।इसीलिए ज्योतिष के फलादेश में कुछ अनिश्चय अक्सर आ जाता है।

एक बात और, ज्योतिष के आधार ये कर्म तो समाज में रह कर ही होते हैं , कर्म के अच्छे बुरे का लेबल सामाजिक आचार से ही तय होता है । कर्म और कर्म कर्म क्षेत्र अर्थात परिवेश या सामाजिक परिवेश social environment ये दो ही आधार हैं ज्योतिष के। ज्योतिष का आधार भौतिक ग्रह नहीं हैं।

पर ज्योतिषी ज्योतिष के मूल ग्रन्थों के इन दोनों प्रमाणों को पढ़ना ही नहीं चाहते बताना नहीं चाहते।क्योंकि ऐसा करने से जनता के सामने फैला महाभ्रम ,यह तिलस्म टूट जाएगा कि ग्रह व्यक्ति के कर्म को नियंत्रित करते हैं और ज्योतिषी ग्रहों को उपायों से नियंत्रित करता है ।

ज्योतिषी वर्ग ने जन मानस में स्वयं ऐसा भ्रम फैलाने में बहुत अधिक भूमिका निभाई है कि जड़ ग्रह व्यक्ति के कंट्रोलर हैं – एक श्लोक देखा जाता है जिसमें कहा गया है कि- 1-संसार देवों के आधीन है , 2 जब कि देव ग्रह के आधीन हैं 3 ग्रह मंत्र के आधीन हैं और 4 मंत्र दैवज्ञ ब्राह्मण के आधीन हैं । इस श्लोक के कई रूपांतर भी हैं । पर इन सबका सार यही है कि मनुष्य तो ग्रहों की कठपुतली है और इस कठपुतली को कंट्रोल करने वाला दैवज्ञ ज्योतिषी है ।

अब ये बात जन मानस को अधिक सस्ता सरल शॉर्टकट लगती है कि ग्रह शांति के लिए रत्न धारण करने से कुछ पाठ दक्षिणा -अब फीस – देकर करवाने से कर्म फल बदल जाएगा । तो ज्योतिष का आधार ग्रह तो दिखेगा ही । ज्योतिषी वर्ग ने स्वयं को दूसरा ब्रह्मा बनने के लिए ज्योतिष का आधार ग्रह है यह भ्रम सदियों से फैलाया है ।
प्राकृतिक विज्ञान की निश्चयात्मकता की कसौटी को सामाजिक विज्ञान के दायरे में आने वाले ज्योतिष में लागू किया जा रहा है

जब वे मूल ग्रन्थों में वर्णित ज्योतिष का आधार कर्म है ग्रह नहीं , इस तथ्य को ही नहीं समझना चाहते तो ये विश्लेषण कैसे करेंगे?

पराशर ने इसे सामाजिक विज्ञान सिद्ध करने के लिए पर्याप्त तर्क लिखा उसे कितनों ने पढ़ा समझा? वर्षों में पराशर के उक्त श्लोक पर चर्चा करने वाला कोई सम्मेलन या कोई लेख नहीं देखने में आया है।आपने देखा हो तो बताइएगा।

केवल ज्योतिष ही भविष्य बताने के कार्य में नहीं लगा है, ज्ञान विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी भविष्य कथन करने का चलन है भविष्य का अनुमान लगाना और इसके अनुसार योजना बनाना यह तो मनुष्य के स्वभाव में ही है – इसे चाहे जो भी नाम दें :पूर्वानुमान कहें या मौसम में फोरकास्ट, विज्ञान में प्रिडिक्शन, बजट में एस्टीमेट, या मैंनेजमेंट में फ्यूचर प्रोजेक्शन कहें ; प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान सभी की विभिन्न शाखाएं पूर्वानुमान लगाए बिना भविष्य की योजना ही नहीं बना सकतीं ।

ज्योतिष की ही आलोचना क्यों होती है ? इसका कारण मीडिया पर अल्पज्ञ नक्षत्रजीवी ज्योतिषियों का सर्वज्ञ होने का दावा ही मुख्य है । इसलिए ज्योतिष की ऐसी आलोचनाओं पर मेरा स्पष्ट मत है कि ज्योतिष के मनीषियों को ऐसी सभी आलोचनाओं का सामना करना चाहिए आत्म-आलोचन करना चाहिए; कालक्रम के कारण ज्योतिर्विज्ञान में आ गईं विसंगतियों में परिष्कार करने का प्रयास भी करते रहना चाहिए। क्योंकि ज्योतिष सामाजिक विज्ञान की ऐसी ज्ञान शाखा है जिसका दैनिक जीवन में उपयोग भारत सहित विश्व के सभी देशों में सदियों से किया जा रहा है।
यद्यपि ज्योतिष की आलोचना प्राचीन काल में भी होती रही है पर यह ज्योतिष की नहीं बल्कि ज्योतिष के दुरुपयोग और इसे आजीविका का साधन बनाने के विरुद्ध की होती रही है और ऐसे ज्योतिषियों को नक्षत्रजीवी व पंक्तिदूषक कह कर नीचा स्थान दिया गया है। आजीविका के लिए ज्ञान का दुरुपयोग करने के कारण ही मनु ने ज्योतिषी के अलावा ऐसे ब्राह्मण को भी देवलक कहते हुए पंक्ति दूषक कहा है जो तीन साल से अधिक समय तक आजीविका के लिए देव पूजा पर निर्भर रहा हो
Dr.Ramesh Khanna.
Senior Journalist
Haridwar.

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