religion,धर्म-कर्म और दर्शन -145
religion and philosophy- 145
🌺विंध्यवासिनी के स्मरण बिना अधूरा है कृष्ण जन्म का उत्सव।🌺
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की तो सर्वत्र धूम मची हुई है, किन्तु भाद्रपद कृष्ण अष्टमी यानी जन्माष्टमी को माता देवकी के गर्भ से उनके आठवें पुत्र के रुप में जब भगवान श्रीकृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ तो उसी भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को लगभग उसी समय माता यशोदा के गर्भ से भी एक दैवी शक्ति प्रादुर्भूत हुई थीं,जो भगवत्प्रदत्त अपना कार्य संपन्न कर अपने स्थान को चलीं गईं थीं। उनकी भी चर्चा जन्माष्टमी पर्व पर होनी चाहिए ऐसा सहज विचार मन में आया, इसलिए लिख रहा हूं।
जी हां! सही सोचा आपने। मैं बात कर रहा हूं श्रीकृष्णानुजा, एकानंशा, एकवीरा आदि नामों से ख्यात विन्ध्यवासिनी देवी भगवती योगमाया की। जो भगवान के आदेश से उनके साथ ही इस धराधाम पर माता यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हुईं, जिन्हें वसुदेवजी बालकृष्ण को माता यशोदा की बगल में सुलाकर अपने साथ मथुरा ले गए और जब कंस ने उनकी हत्या करने के लिए उन्हें छीनकर मारना चाहा तो उस पापी के हाथ से छूटकर अष्टभुजा देवी स्वरुप धारण कर उन्होंने कहा कि-
किं मया हतया मन्द जात: खलु तवान्तकृत्।
यत्र क्व वा पूर्वशत्रुर्मा हिंसी: कृपणान् वृथा।।
( श्रीमद्भागवत १०/४/१२ )
अर्थात – ‘रे मूर्ख! मुझे मारने से तुझे क्या मिलेगा? तेरे पूर्वजन्म का शत्रु तुझे मारने के लिए किसी स्थान पर पैदा हो चुका है। अब तू व्यर्थ निर्दोष बालकों की हत्या न किया कर’।
इस प्रकार कंस को भगवान के अवतार की सूचना और चेतावनी देकर भगवती योगमाया स्वयं द्वारा श्रीदुर्गासप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के श्लोक संख्या ४१ और ४२ में कहे अनुसार विन्ध्यपर्वत पर जाकर शुम्भ और निशुम्भ नामक दो अन्य महादैत्यों का नाश कर वहीं निवास करने लगीं।
॥देव्युवाच ॥
वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ।।
नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी।।
( श्रीदुर्गासप्तशती,११/४१,११/४२ )
अर्थात – देवी बोलीं — देवताओं! वैवस्वत मन्वन्तर के अट्ठाईसवें युग में शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो अन्य महादैत्य उत्पन्न होंगे।
तब मैं नन्दगोप के घर में उनकी पत्नी यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण हो विन्ध्याचल में जाकर रहूंगी और उक्त दोनों असुरों का नाश करूंगी।
इसी प्रकार श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कंध पूर्वार्द्ध के दूसरे अध्याय के श्लोक संख्या ६,७,८ एवं श्लोक संख्या ९, १०, ११ एवं १२ में भगवान स्वयं देवी योगमाया को आदेश देते हुए कहते हैं कि —-
भगवानपि विश्वात्मा विदित्वा कंसजं भयम्।
यदूनां निजनाथानां योगमायां समादिशत्।।
गच्छ देवि व्रजं भद्रे गोपगोभिरलंकृतम्।
रोहिणी वसुदेवस्य भार्याऽऽस्ते नन्दगोकुले।
अन्याश्च कंससंविग्ना विवरेषु वसन्ति हि।।
देवक्या जठरे गर्भं शेषाख्यं धाम मामकम्।
तंत्र संनिकृष्य रोहिण्या उदरे संनिवेशय।।
अथाहमंशभागेन देवक्या: पुत्रतां शुभे।
प्राप्स्यामि त्वं यशोदायां नन्दपत्न्यां भविष्यसि।।
अर्चिष्यन्ति मनुष्यास्त्वां सर्वकामवरेश्वरीम्।
धूपोपहारबलिभि: सर्वकामवरप्रदाम्।।
नामधेयानि कुर्वन्ति स्थानानि च नरा भुवि।
दुर्गेति भद्रकालीति विजया वैष्णवीति च।।
कुमुदा चण्डिका कृष्णा माधवी कन्यकेति च।
माया नारायणीशानी शारदेत्यम्बिकेति। च।।
( श्रीमद्भागवत १०/२/६,७,८,९,१०,११,१२ )
अर्थात — विश्वात्मा भगवान ने देखा कि मुझे ही अपना स्वामी और सर्वस्व मानने वाले यदुवंशी कंस के द्वारा बहुत ही सताए जा रहे हैं।तब उन्होंने अपनी योगमाया को यह आदेश दिया —– ‘देवि! कल्याणी ! तुम व्रज में जाओ। वह प्रदेश ग्वालों और गौओं से सुशोभित है। वहां नन्दबाबा के गोकुल में वसुदेव की पत्नी रोहिणी निवास करती हैं। उनकी और भी पत्नियां कंस से डरकर गुप्त स्थानों में रह रही हैं। इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष कहते हैं,देवकी के उदर में गर्भ रूप से स्थित है। उसे वहां से निकालकर तुम रोहिणी के पेट में रख दो। कल्याणी ! अब मैं अपने समस्त ज्ञान, बल आदि अंशों के साथ देवकी का पुत्र बनूंगा और तुम नन्दबाबा की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेना।
तुम लोगों को मुंहमांगे वरदान देने में समर्थ होओगी। मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली जानकर धूप – दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकार की सामग्रियों से तुम्हारी पूजा करेंगे। पृथ्वी में लोग तुम्हारे लिए बहुत – से स्थान बनायेंगे और दुर्गा, भद्रकाली, विजया, वैष्णवी, कुमुदा, चण्डिका, कृष्णा, माधवी, कन्या, माया, नारायणी, ईशानी, शारदा और अम्बिका आदि बहुत – से नामों से पुकारेंगे।
इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण के साथ आज उनकी बहन देवी योगमाया जिन्हें वर्तमान में देवी विन्ध्यवासिनी के नाम से जाना जाता है और जिनका भव्य मंदिर मिर्जापुर जिला, उत्तरप्रदेश में है, का भी अवतरण दिवस है। अतः जन्माष्टमी के इस शुभ पर्व पर भगवान श्रीकृष्ण के साथ भगवती योगमाया विन्ध्यवासिनी देवी का भी स्मरण एवं वन्दन हम सभी को करना चाहिए, जिससे दोनों की कृपादृष्टि से हमारा लौकिक जीवन सुखमय हो एवं अन्त में मोक्ष प्राप्त हो।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।
निशुम्भशुम्भ गर्जनी प्रचण्डमुण्डखण्डिनी।
वनेरणेप्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।।
Dr.Ramesh Khanna.
Senior Journalist
Haridwar.(uttarakhand)