religion,धर्म-कर्म और दर्शन -156
religion and philosophy- 156
🏵️भारतीय तंत्र साहित्य 🏵️
नोट: नीचे कुछ शास्त्रों के नाम प्रस्तुत हैं।
कृपया , तंत्र क्षेत्र में प्रवेश के पहले , इस ग्रंथों का अवश्य ही अध्ययन कर लीजिए।
तभी इस लेख श्रंखला का लाभ है।
तंत्र भारतीय उपमहाद्वीप की एक वैविधतापूर्ण एवं सम्पन्न आध्यात्मिक परिपाटी है।
तंत्र के अन्तर्गत विविध प्रकार के विचार एवं क्रियाकलाप आ जाते हैं।
तन्यते विस्तारयते ज्ञानं अनेन् इति तन्त्रम्
अर्थात् ज्ञान को इसके द्वारा तानकर विस्तारित किया जाता है, यही तंत्र है।
इसका इतिहास बहुत पुराना है। समय के साथ यह परिपाटी अनेक परिवर्तनों से होकर गुजरी है और सम्प्रति अत्यन्त दकियानूसी विचारों से लेकर बहुत ही प्रगत विचारों का सम्मिश्रण है।
तंत्र अपने विभिन्न रूपों में भारत, नेपाल, चीन, जापान, तिब्बत, कोरिया, कम्बोडिया, म्यांमार, इण्डोनेशिया और मंगोलिया विश्व के सबसे प्राचीन तांत्रिक मठ आगम मठ में विद्यमान रहा है।
भारतीय तंत्र साहित्य विशाल और वैचित्र्यमय साहित्य है।
यह प्राचीन भी है तथा व्यापक भी। वैदिक वाङ्मय से भी किसी किसी अंश में इसकी विशालता अधिक है।
“”चरणाव्यूह”” नामक ग्रंथ से वैदिक साहित्य का किंचित् परिचय मिलता है, परन्तु तन्त्र साहित्य की तुलना में उपलब्ध वैदिक साहित्य एक प्रकार से साधारण मालूम पड़ता है।
तांत्रिक साहित्य का अति प्राचीन रूप लुप्त हो गया है। परन्तु उसके विस्तार का जो परिचय मिलता है उससे अनुमान किया जा सकता है कि प्राचीन काल में वैदिक साहित्य से भी इसकी विशालता अधिक थी और वैचित्र्य भी।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि परम अद्वैत विज्ञान का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्लेषण और विवरण जैसा तंत्र ग्रंथों में है, वैसा किसी शास्त्र के ग्रंथों में नहीं है।
साथ ही साथ यह भी सच है कि उच्चाटन, वशीकरण प्रभृति क्षुद्र विद्याओं का प्रयोग विषयक विवरण भी तंत्र में मिलता है।
स्पष्टत: वर्तमान हिंदू समाज वेद-आश्रित होने पर भी व्यवहार-भूमि में विशेष रूप से तंत्र द्वारा ही नियंत्रित है
‘तंत्र’ तथा ‘आगम’ दोनों समानार्थक शब्द हैं। किसी-किसी स्थान में आगम शब्द के स्थान में, ‘निगम’ शब्द का भी प्रयोग दिखाई देता है। फिर भी यह सच है कि तंत्र समझने के लिये आगम शब्द का ‘शब्दप्रमाण’ रूप में अर्थात् आप्तवचन रूप में व्यवहार करते थे।
अंग्रेजी में जिसे, रिविलेशन, (revelation) कहते हैं, ये आगम प्राय: वही हैं।
लौकिक आप्तपुरूषों से अलौकिक आप्तपुरूषों का महत्त्व अधिक है, इसमें संदेह नहीं। वेद जिस प्रकार हिरणयगर्भ अथवा ब्रह्म के साथ संश्लिष्ट है, उसी प्रकार तंत्र मूलत: शिव और शक्ति के साथ संश्लिष्ट है।
जैसे शिव के, वैसे ही शक्ति के भिन्न रूप हैं। भिन्न रूपों से विभिन्न प्रस्थानों के तंत्रो का आविर्भाव हुआ था।
इसी प्रकार शैव तथा शाक्त तंत्र के अनुरूप वैष्णव तंत्र भी है।
‘पांचरात्र’, अथवा ‘सात्वत’, आगम इसी का नामांतर है।
वैष्ण्णव के सदृश गणपति और सौर आदि संप्रदायों में भी अपनी धारा के अनुसार आगम का प्रसार है।
तंत्र ग्रन्थ
शैव – सदाशिव (शिवागम), वाम या तुम्बुरु, दक्षिण या भैरव
कुलार्णव तन्त्र
अमृतेशतन्त्र या नेत्रतन्त्र नेत्रज्ञानार्णव तन्त्र
निःश्वासतत्त्वसंहिता कालोत्तर तन्त्र सर्वज्ञानोत्तर शैवागम
रौद्रागम भैरवागम वाम आगम दक्षिणागम
शिवशक्ति परम्परा – यामल (यह भैरव परम्परा में भी हैं)
ब्रह्म यामल रुद्र यामल स्कन्द यामल विष्णु यामल यम यामल वायु यामल कुबेर यामल इन्द्र यामल
शाक्त – काली परम्परा
शाक्त आगम
मुण्डमालातन्त्र तोडल तंत्र चामुण्डातन्त्र देवीयामल माधवकुल
योनिगहवर कलीकुलार्णव तन्त्र कंकालमालिनी तन्त्र
झंकारकरवीमहाकालसंहिता कालीतन्त्र कालज्ञानतन्त्र
कुमारीतन्त्र तोड़ल तंत्र सिद्धलहरी तन्त्र निरुत्तर तन्त्र
कालीविलासतन्त्र उत्पत्तितन्त्र कामधेनुतन्त्र निर्वाणतन्त्र
कामाख्यातन्त्र तारा तन्त्र कौल तन्त्र मत्स्य सूक्त / तारा कल्प
समय तन्त्र वामकेश्वर तन्त्र
तन्त्रजा तन्त्र योगिनी तन्त्र
चित्र:–
श्रीयंत्र जिसके चारों ओर एक कुण्डली बनाये सर्प है। उसके बगल में शिव और शक्ति हैं। ऊपर और नीचे कुल १० महाविद्याएँ
*डॉ रमेश खन्ना*
वरिष्ठ पत्रकार
हरीद्वार (उत्तराखंड* )