religion,धर्म-कर्म और दर्शन -157

religion and philosophy- 157

🏵️श्री शक्तिशिव कृत श्रीगणाधीशस्तोत्रम् 🏵️
🌷 (हिन्दी अर्थ सहित )🌷

श्रीशक्तिशिव द्वारा विरचित इस स्तोत्र में दस (10) श्लोक हैं जिनमें भगवान् गणेश को प्रणाम किया गया है । भगवान् गणेश सिद्धि-बुद्धि के प्राणवल्लभ हैं । अपने साधक का सदा मंगल करने वाले हैं । इस स्तोत्र का जो साधक पाठ करता है उसे सर्वसौख्य, पुत्र, भोग,ऐश्वर्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

religion,धर्म-कर्म और दर्शन -157
religion,धर्म-कर्म और दर्शन -157

श्रीशक्तिशिवावूचतुः

नमस्ते गणनाथाय गणानां पतये नमः।
भक्तिप्रियाय देवेश भक्तेभ्यः सुखदायक ॥१॥

श्रीशक्ति और शिव बोले- भक्तों को सुख देने वाले हे देवेश्वर ! आप भक्तिप्रिय हैं तथा गणों के अधिपति हैं; आप गणनाथ को नमस्कार है ।

स्वानन्दवासिने तुभ्यं सिद्धिबुद्धिवराय च ।
नाभिशेषाय देवाय ढुण्ढिराजाय ते नमः ॥२॥

आप स्वानन्दलोक के वासी और सिद्धि-बुद्धि के प्राणवल्लभ हैं। आपकी नाभि में भूषणरूप से शेषनाग विराजते हैं, आप दुण्ढिराजदेव को नमस्कार है ।

वरदाभयहस्ताय नमः परशुधारिणे ।
नमस्ते सृणिहस्ताय नाभिशेषाय ते नमः ॥३॥

आपके हाथों में वरद और अभय की मुद्राएँ हैं। आप परशु धारण करते हैं। आपके हाथ में अंकुश शोभा पाता है और नाभि में नागराज, आपको नमस्कार है ।

अनामयाय सर्वाय सर्वपूज्याय ते नमः ।
सगुणाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मणे निर्गुणाय च ॥४॥

आप रोगरहित, सर्वस्वरूप और सबके पूजनीय हैं, आपको नमस्कार आप ही सगुण और निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है ।

ब्रह्मभ्यो ब्रह्मदात्रे च गजानन नमोऽस्तु ते ।
आदिपूज्याय ज्येष्ठाय ज्येष्ठराजाय ते नमः ॥५॥

आप ब्राह्मणों को ब्रह्म (वेद एवं ब्रह्म-तत्त्व का ज्ञान) देते हैं, हे गजानन ! आपको नमस्कार है। आप प्रथम पूजनीय, ज्येष्ठ (कुमार कार्तिकेय के बड़े भाई) और ज्येष्ठराज हैं, आपको नमस्कार है ।

मात्रे पित्रे च सर्वेषां हेरम्बाय नमो नमः।
अनादये च विघ्नेश विघ्नकर्त्रे नमो नमः ॥६॥

सबके माता और पिता आप हेरम्ब को बारम्बार नमस्कार है। हे विघ्नेश्वर ! आप अनादि और विघ्नों के भी जनक हैं, आपको बार-बार नमस्कार है ।

विघ्नहर्त्रे स्वभक्तानां लम्बोदर नमोऽस्तु ते ।
त्वदीयभक्तियोगेन योगीशाः शान्तिमागताः ॥७॥

हे लम्बोदर ! आप अपने भक्तों का विघ्न हरण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। योगीश्वर गण आपके भक्तियोग से शान्ति को प्राप्त हुए हैं ।

किं स्तुवो योगरूपं तं प्रणमावश्च विघ्नपम् ।
तेन तुष्टो भव स्वामिन्नित्युक्त्वा तं प्रणेमतुः ।
तावुत्थाय गणाधीश उवाच तौ महेश्वरौ ॥८॥

योगस्वरूप आपकी हम दोनों क्या स्तुति करें। आप विघ्नराज को हम दोनों प्रणाम करते हैं। हे स्वामिन् ! इस प्रणाममात्र से आप सन्तुष्ट हों। ऐसा कहकर शिवा-शिव ने गणेशजी को प्रणाम किया। तब उन दोनों को उठाकर गणाधीश ने कहा-

श्रीगणेश उवाच

भवत्कृतमिदं स्तोत्रं मम भक्तिविवर्धनम् ॥९॥
भविष्यति च सौख्यस्य पठते शृण्वते प्रदम् ।
भुक्तिमुक्तिप्रदं चैव पुत्रपौत्रादिकं तथा ।
धनधान्यादिकं सर्वं लभते तेन निश्चितम् ॥१०॥

श्री गणेशजी बोले- आप दोनों द्वारा किया गया यह स्तवन् मेरी भक्ति को बढ़ाने वाला है। जो इसका पठन और श्रवण करेगा, उसके लिये यह सौख्यप्रद होगा। इसके अतिरिक्त यह भोग और मोक्ष तथा पुत्र और पौत्र आदि को भी देने वाला होगा । मनुष्य इस स्तोत्र के द्वारा धन-धान्य आदि सभी वस्तुएँ निश्चित रूप से प्राप्त कर लेता है ।९–१०

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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