religion,धर्म-कर्म और दर्शन -179
religion and philosophy- 179
🌺कैसे बने देवी की कृपा के पात्र 🌺
नवरात्रि पर बड़ी बड़ी साधना की बात करना बगलामुखी,छिन्नमस्ता,तारा आदि ये सब कोई मजाक का विषय नही है,गुरु सानिध्य में ही इनकी साधना करनी चाहिए अन्यथा सिर्फ और सिर्फ समय नष्ट होता है,आप स्वयं देख लीजिए आज कल हर कोई तंत्र साधक बन गया है पर उनके जीवन में झांक कर देखिये क्या वो सुखी हैं ???? आखिर क्यों साधना में लोग सफल नही हो पा रहे हैं ???? कभी सोचा है आप लोगों ने ??? मित्रों कमी है सिर्फ और सिर्फ “पात्रता” की।

बड़े ही सरलता से स्वयं को देवी के कृपा के पात्र बनाया जा सकता है-9 दिन स्वयं को किसी भी पाप कर्म से बचाएं, ब्रम्हमुहूर्त में स्नान करें,ब्रम्हचर्य का पालन करें,बालक जैसा मन होना अनिवार्य है,कोई ऑथेंटिक मंत्र यदि किसी गुरु अथवा आचार्य से अगर आपने प्राप्त किया हो तो उसका जप करें,कुछ न हो सके तो 9 दिन अपने घर के आस पास के देवी मंदिर में जा कर आरती अटेंड करें,9 दिन दस वर्ष से छोटी कन्या को संतुष्ट करें-सेवा करें,डूब कर 9 दिन सिर्फ पूर्ण समर्पण व श्रद्धा से देवी की भक्ति करें-प्रेम करें।कोई नही रोक पाएगा आपको जीवन मे सफल होने से,बस इन कुछ सरल सूत्रों से देवी को प्रसन्न कर स्वयं को ब्रम्हांड के लय में लाया जा सकता है।मैं पहले भी कह चुका हूं साधना करने के लिए गुरु की आवश्यकता है पर भक्ति करने के लिए न ही किसी गुरु की जरूरत है और न ही किसी सूत्र की।
प्रचंड संकट,शून्यागार,शमशान,घोर जंगल,जल अथवा आग के बीच में,संग्राम में तथा प्राण बाधा उपस्थित होने पर भगवती काली के स्मरण मात्र से क्षण भर में स्थिति बदल जाती है, भगवती त्वरित अपने भक्त की रक्षा के लिए सहायक हो जाती हैं।
महाकाली चेतना, वास्तविकता और अस्तित्व की आधारभूत देवी हैं | काली महाकाल की शक्ति है। महाकाली का स्वरुप समय और मृत्यु का स्वरुप है | तांत्रिक हिंदू शास्त्रों में महाकाली अग्रगणीय है | महाकाली तामस या जड़ता के बल का प्रतिनिधित्व करती है।
महाकाली समय की देवी है। महाकाली के साधक स्वत: ही अष्ट सिद्धियो की प्राप्ति कर लेते हैं | महाकाली के यह 108 नाम दिव्य और अद्वित्य हैं | इन 108 नामों का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करने से महाकाली की असीम कृपा प्राप्त होती है और साधक शीघ्र ही महाविद्या काली के दर्शन प्राप्त करता है। महाविद्या साधना में इन नामों का नियमित पठन लाभकारी माना जाता है।
काली ककारादि शतनाम स्तोत्रम
श्रीकाल्यै नमः ।
श्रीकपालिन्यै नमः ।
श्रीकान्तायै नमः ।
श्रीकामदायै नमः ।
श्रीकामसुन्दर्यै नमः ।
श्रीकालरात्रयै नमः ।
श्रीकालिकायै नमः ।
श्रीकालभैरवपूजिताजै नमः ।
श्रीकुरुकुल्लायै नमः ।
श्रीकामिन्यै नमः ।
श्रीकमनीयस्वभाविन्यै नमः ।
श्रीकुलीनायै नमः ।
श्रीकुलकर्त्र्यै नमः ।
श्रीकुलवर्त्मप्रकाशिन्यै नमः ।
श्रीकस्तूरीरसनीलायै नमः ।
श्रीकाम्यायै नमः ।
श्रीकामस्वरूपिण्यै नमः ।
श्रीककारवर्णनिलयायै नमः ।
श्रीकामधेनवे नमः ।
श्रीकरालिकायै नमः ।
श्रीकुलकान्तायै नमः ।
श्रीकरालास्यायै नमः ।
श्रीकामार्त्तायै नमः ।
श्रीकलावत्यै नमः ।
श्रीकृशोदर्यै नमः ।
श्रीकामाख्यायै नमः ।
श्रीकौमार्यै नमः ।
श्रीकुलपालिन्यै नमः ।
श्रीकुलजायै नमः ।
श्रीकुलकन्यायै नमः ।
श्रीकलहायै नमः ।
श्रीकुलपूजितायै नमः ।
श्रीकामेश्वर्यै नमः ।
श्रीकामकान्तायै नमः ।
श्रीकुञ्जरेश्वरगामिन्यै नमः ।
श्रीकामदात्र्यै नमः ।
श्रीकामहर्त्र्यै नमः ।
श्रीकृष्णायै नमः ।
श्रीकपर्दिन्यै नमः ।
श्रीकुमुदायै नमः ।
श्रीकृष्णदेहायै नमः ।
श्रीकालिन्द्यै नमः ।
श्रीकुलपूजितायै नमः ।
श्रीकाश्यप्यै नमः ।
श्रीकृष्णमात्रे नमः ।
श्रीकुलिशाङ्ग्यै नमः ।
श्रीकलायै नमः ।
श्रीक्रींरूपायै नमः ।
श्रीकुलगम्यायै नमः ।
श्रीकमलायै नमः ।
श्रीकृष्णपूजितायै नमः ।
श्रीकृशाङ्ग्यै नमः ।
श्रीकिन्नर्यै नमः ।
श्रीकर्त्र्यै नमः ।
श्रीकलकण्ठ्यै नमः ।
श्रीकार्तिक्यै नमः ।
श्रीकम्बुकण्ठ्यै नमः ।
श्रीकौलिन्यै नमः ।
श्रीकुमुदायै नमः ।
श्रीकामजीविन्यै नमः ।
श्रीकुलस्त्रियै नमः ।
श्रीकीर्तिकायै नमः ।
श्रीकृत्यायै नमः ।
श्रीकीर्त्यै नमः ।
श्रीकुलपालिकायै नमः ।
श्रीकामदेवकलायै नमः ।
श्रीकल्पलतायै नमः ।
श्रीकामाङ्गवर्धिन्यै नमः ।
श्रीकुन्तायै नमः ।
श्रीकुमुदप्रीतायै नमः ।
श्रीकदम्बकुसुमोत्सुकायै नमः ।
श्रीकादम्बिन्यै नमः ।
श्रीकमलिन्यै नमः ।
श्रीकृष्णानन्दप्रदायिन्यै नमः ।
श्रीकुमारीपूजनरतायै नमः ।
श्रीकुमारीगणशोभितायै नमः ।
श्रीकुमारीरञ्जनरतायै नमः ।
श्रीकुमारीव्रतधारिण्यै नमः ।
श्रीकङ्काल्यै नमः ।
श्रीकमनीयायै नमः ।
श्रीकामशास्त्रविशारदायै नमः ।
श्रीकपालखट्वाङ्गधरायै नमः ।
श्रीकालभैरवरूपिण्यै नमः ।
श्रीकोटर्यै नमः ।
श्रीकोटराक्ष्यै नमः ।
श्रीकाश्यै नमः ।
श्रीकैलासवासिन्यै नमः ।
श्रीकात्यायिन्यै नमः ।
श्रीकार्यकर्यै नमः ।
श्रीकाव्यशास्त्रप्रमोदिन्यै नमः ।
श्रीकामाकर्षणरूपायै नमः ।
श्रीकामपीठनिवासिन्यै नमः ।
श्रीकङ्किन्यै नमः ।
श्रीकाकिन्यै नमः ।
श्रीक्रीडायै नमः ।
श्रीकुत्सितायै नमः ।
श्रीकलहप्रियायै नमः ।
श्रीकुण्डगोलोद्भवप्राणायै नमः ।
श्रीकौशिक्यै नमः ।
श्रीकीर्तिवर्द्धिन्यै नमः ।
श्रीकुम्भस्तन्यै नमः ।
श्रीकटाक्षायै नमः ।
श्रीकाव्यायै नमः ।
श्रीकोकनदप्रियायै नमः ।
श्रीकान्तारवासिन्यै नमः ।
श्रीकान्त्यै नमः ।
श्रीकठिनायै नमः ।
श्रीकृष्णवल्लभायै नमः
“आपकी प्रत्येक समस्या का एक समाधान दुर्लभ गोपनिय एवं अति शक्तिशाली महाविद्या कालिका कवचं”
जिन देवी ने काल की गति को भी अपने वश में कर लेने के कारण कालिका नाम पाया है उन महाकाल की साम्राज्ञी ,परम अघोरा महाकाली के कवच का पाठ अपने साधक को इस मृत्युलोक के हर भय से मुक्त करके अदम्य साहस शक्ति प्रदान करने वाला है ।महाकाली कवच का पाठ साधक के चारो ओर एक अभेद्य चुम्बकीय आवरण का निर्माण कर देता है जिसे भेदकर कोई भी नकारात्मक शक्ति साधक को छू भी नहीं सकती है ,ऐसा कवच का वचन है ।
चार भुजाओं को धारण करने और सभी देवियों में अत्यंत भयंकर स्वरूप धारण करने वाली माँ महाकाली ने अपने एक हाथ में खड्ग व दूसरे में रक्तरंजित कटा सिर पकड़ रखा है तब भी अपने साधकों और भक्तों के लिए माता के समान वरदायिनी हैं ।
ब्रह्म वैवर्त पुराण में महाकाली कवच की महिमा का बखान करते हुए भगवन महादेव श्रीमंत विष्णु से कहते हैं कि इस कवच को पूर्ण विश्वास से धारण करने वाला समस्त लोक परलोक में महाकाली के सुरक्षा को प्राप्त करता है ।
अथ महाकाली कवचं
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम्।
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीं इति लोचने।
ॐ ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदाऽवतु।
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दंष्ट्रं सदाऽवतु।
क्लीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मे अधरयुग्मकम्।
ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदाऽवतु।
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मकं सदाऽवतु।
ॐ क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा दंतं पातु माम् सदा मम्।
ॐ क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्षः सदाऽवतु।
ॐ क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदाऽवतु।
ॐ ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पृष्ठं सदाऽवतु।
रक्तबीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदाऽवतु।
ॐ ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदाऽवतु।
ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वांगं मे सदाऽवतु।
पाठ -विधि
किसी भी चन्द्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण में महाकाली की पूर्ण श्रद्धा विश्वास से पूजन करके इस कवच का 108 बार पाठ करने पर इस अद्वितीय कवच की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है ।
इस दिव्य कालिका कवचं के पाठ के अद्भुत प्रभाव प्राप्त होते हैं
जो साधक इस अद्भुत वरदायी कालिका कवचं का प्रतिदिन 1 बार प्रातःकाल में पाठ करता है उसके सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं ।
प्रतिदिन 2 पाठ करने वाले साधक को समस्त भय नष्ट होकर अपार संतोष की प्राप्ति होती है ।
जो साधक प्रतिदिन कालिका कवचं के पाठ का 3 बार जप करते हैं उनकी सभी स्वास्थ्य समस्याएं नष्ट हो जाती हैं और निरोगी काया प्राप्त होती है ।
जो साधक कालिका कवचं का प्रतिदिन 4 बार प्रातःकाल में और एक बार किसी भी यात्रा पर निकलने से पूर्व पाठ करता है उसकी आकस्मिक दुर्घटना से महाकाली रक्षा करती हैं ।
जो साधक कालिका कवचं का 5 पाठ कर अभिमंत्रित जल का छिड़काव समस्त गृह में करते हैं महाकाली उनके ऊपर प्रयोग किये हुए हर काले जादू व बुरी शक्तियों का नाश कर देती हैं ।
कालिका कवचं के विधिपूर्वक 6 बार पाठ करने से साधक की सभी बुरे ग्रहों के असर से रक्षा होती है और समस्त ग्रह उसे सकारात्मक प्रभाव प्रदान करने लगते हैं ।
जो साधक पूर्ण मनोयोग से भगवती महाकाली के इस दिव्य कवच का प्रतिदिन 7 बार पाठ करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं अतिशीघ्र पूर्ण हो जाती हैं
“श्रीश्री ज्वालादेवी शक्तिपीठ”
भगवती महाकाली की उपासना साधना अराधना किसी योग्य गुरु के सानिध्य में ही करना चाहिए,मैं दावा करता हूं देवी के इन दिव्य 108 नामों का व दिव्य कवच का चार पहर पाठ करने(सुबह-दोपहर-शाम-रात) से कोई भी सांसारिक सुख आपसे व आपके परिवार से दुर्लभ नही रह जाएगा।
देवी प्रचंड संकट में भी ऐसे साधक के लिए त्वरित सहायता प्रदान करती हैं।यह बार बार आजमाया हुआ टेस्टेड व बेहद सरल प्रयोग है।ध्यान रहे ब्रम्हचर्य का पालन व बालक जैसा मन अनिवार्य है।
*डॉ. रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*