religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 45
religion and philosophy- 45
🌺अतिप्रभावशाली सहस्राक्षी सिद्ध चंडी मंत्र साधना🌺
सहस्राक्षी सिद्ध चंडी मंत्र से किसी भी मिशन को पूरा करें। सहस्राक्षी एक हजार आँखों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि सिद्ध चंडी का अर्थ है चंडी या दुर्गा जो पहले से ही बुलायी गयी है और साधक को फल और लक्ष्य प्रदान करने के लिए तैयार है।
सहस्राक्षी महाविद्या मंत्र एक बहुत ही प्रभावशाली लेकिन दुर्लभ मंत्र है जो इस संसार में किसी भी कार्य को सिद्ध करने में सक्षम है।
सहस्राक्षी महाविद्या मंत्र का उद्देश्य तांत्रिक या साधना के प्रायोजक के कठिन कार्य को पूरा करना है। यह साधना किसी भी शुभ समय में की जा सकती है।
सहस्राक्षी महाविद्या साधक के लिए वरदान है। महाविद्या न केवल मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं बल्कि अपनी सहस्त्र आंखों से साधक की देखभाल भी करती हैं।
चंडी महाविद्या मंत्र शत्रुओं को नष्ट करने और काले जादू और बुरी आत्माओं को दूर करने की क्षमता प्रदान करता है।
महाविद्या साधक को असाधारण ज्ञान और बुद्धि प्रदान करती है। इस प्रकार की महाविद्या के बारे में दुनिया में बहुत कम लोग जानते हैं
सहस्राक्षी सिद्ध चंडी मंत्र कैसे करें
सहस्रााक्षरी सिद्ध चंडी महाविद्या साधना करना आसान है। यह साधना काली जयंती पर रात्रि के समय अथवा नवरात्रि में संपन्न की जा सकती है।
साधक को रात्रि में 9 बजे के बाद बिना कपड़ों के स्नान करना चाहिए तथा किसी अन्य वस्त्र को छुए बिना, ताजा सफेद वस्त्र धारण करना चाहिए तथा दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके सफेद आसन पर बैठना चाहिए। जादुई ‘सहस्रााक्षरी सिद्ध चंडी यंत्र’ या ऊर्जावान महाकाली मूर्ति को स्थापित करें और संक्षेप में इसकी महिमा करें।इस मंत्र का जाप करने से पहले अपनी हथेली पर थोड़ा सा पानी ले लें और अपनी इच्छा या मनोकामना कहें जो आप करना चाहते हैं।
ध्यान समाप्त करने के बाद घी का दीपक जलाएं। इसके बाद भगवती काली की छवि की कल्पना करते हुए निम्नलिखित महाविद्या मंत्र का जाप करें। साधक को इस मंत्र का जाप एक रात्रि में 51 माला या 101 माला करना चाहिए। साधक इस उद्देश्य के लिए ऊर्जावान लाल हकीक माला का उपयोग कर सकता है।इस साधना को निष्पादित करने का अनुष्ठान एक रात में 101 जाप है। यह समारोह एक रात में पूरा किया जा सकता है।
🏵️सहस्राक्षी सिद्ध चंडी मंत्र लाभ🏵️
चण्डिका सहस्राक्षर मंत्र अत्यन्त उग्र एवं प्रभावशाली है। इसका तंत्रोक्त पाठ करने से महाभय, अकाल-मृत्यु, आर्थिक-हानि, अभिचारिक-क्रिया तथा असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है। समस्त शत्रु व ग्रहों की कुदृष्टि से जापक की रक्षा होती है।
कार्य सिद्धि हेतु कम से कम 108 पाठ नित्य एक माह तक करने चाहिये । विशेष संकट में 11000 पाठ विधिपूर्वक सम्पन्न करें। समस्त यम नियमों की जानकारी गुरुमुख से प्राप्त करनी चाहिये।
ध्यान:
ॐ या चण्डी मधु-कैटभादी-दलनी या माहिषो-न्मुलनी, या धुम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड, मथनी या रक्त-बिजाशनी।
शक्ती-शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-दलनी, या सिद्धी-दांत्री परा सा देवी नव-कोटी-मुर्ती-संहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
🌸सहस्राक्षरी सिद्ध चण्डी महाविधा मंत्र🌸
विनियोगः
ॐअस्य सर्व-विज्ञान-महा-राज्ञी-सप्तशती रहस्याति-रहस्य-मयी-परा-शक्ति श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डिका-सहस्राक्षरी-महा-विद्या-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषि, गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्दांसि, नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवता, श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः
श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषिभ्यां नमः शिरसि,
गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्देभ्यो नमः मुखे,
नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवतायै नमः हृदि,
श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
महाविद्यान्यासः
ॐ श्रीं नमः सहस्रारे ।
ॐ हें नमः भाले।
क्लीं नमः नेत्र-युगले।
ॐ ऐं नमः कर्ण-द्वये।
ॐ सौं नमः नासा-पुट-द्वये।
ॐ ॐ नमो मुखे।
ॐ ह्रीं नमः कण्ठे।
ॐ श्रीं नमो हृदये।
ॐ ऐं नमो हस्त-युगे।
ॐ क्लें नमः उदरे।
ॐ सौं नमः कट्यां।
ॐ ऐं नमो गुह्ये।
ॐ क्लीं नमो जङ्घा-युगे।
ॐ ह्रीं नमो जानु-द्वये।
ॐ श्रीं नमः पादादि-सर्वांगे।।
ॐ या माया मधु-कैटभ-प्रमथनी, या माहिषोन्मूलनी, या धूम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड-दलनी, या रक्त-बीजाशनी। शक्तिः शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-मथनी, या सिद्ध-लक्ष्मी परा, सा देवी नव-कोटि-मूर्ति-सहिता, मां पातु विश्वेश्वरी।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्मौं श्रीं ह्रीं क्लौं ऐं सौं ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं जय जय महा-लक्ष्मि जगदाद्ये बीज-सुरासुर-त्रिभुवन-निदाने दयांकुरे सर्व-तेजो-रुपिणि महा-महा-महिमे महा-महा-रुपिणि महा-महा-माये महा-माया-स्वरुपिणि विरञ्चि-संस्तुते ! विधि-वरदे सच्चिदानन्दे विष्णु-देह-व्रते महा-मोहिनि मधु-कैटभ-जिह्वासिनि नित्य-वरदान-तत्परे !
महा-स्वाध्याय-वासिनि महा-महा-तेज्यधारिणि ! सर्वाधारे सर्व-कारण-करणे अचिन्त्य-रुपे ! इन्द्रादि-निखिल-निर्जर-सेविते ! साम-गानं गायन्ति पूर्णोदय-कारिणि! विजये जयन्ति अपराजिते सर्व-सुन्दरि रक्तांशुके सूर्य-कोटि-शशांकेन्द्र-कोटि-सुशीतले अग्नि-कोटि-दहन-शीले यम-कोटि-क्रूरे वायु-कोटि-वहन-सुशीतले !
ॐ-कार-नाद-बिन्दु-रुपिणि निगमागम-मार्ग-दायिनि महिषासुर-निर्दलनि धूम्र-लोचन-वध-परायणे चण्ड-मुण्डादि-सिरच्छेदिनि रक्त-बीजादि-रुधिर-शोषणि रक्त-पान-प्रिये महा-योगिनि भूत-वैताल-भैरवादि-तुष्टि-विधायनि शुम्भ-निशुम्भ-शिरच्छेदिनि !
निखिला-सुर-बल-खादिनि त्रिदश-राज्य-दायिनि सर्व-स्त्री-रत्न-रुपिणि दिव्य-देह-निर्गुणे सगुणे सदसत्-रुप-धारिणि सुर-वरदे भक्त-त्राण-तत्परे। वर-वरदे सहस्त्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त-कोटि-चामुण्डा-रुपिणि नव-कोटि-कात्यायनी-रुपे अनेक-लक्षालक्ष-स्वरुपे इन्द्राग्नि ब्रह्माणि रुद्राणि ईशानि भ्रामरि भीमे नारसिंहे ! त्रय-त्रिंशत्-कोटि-दैवते अनन्त-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायिके चतुरशीति-मुनि-जन-संस्तुते !
सप्त-कोटि-मन्त्र-स्वरुपे महा-काले रात्रि-प्रकाशे कला-काष्ठादि-रुपिणि चतुर्दश-भुवन-भावाविकारिणि गरुड-गामिनि ! कों-कार हों-कार ह्रीं-कार श्रीं-कार दलेंकार जूँ-कार सौं-कार ऐं-कार क्लें-कार ह्रीं-कार ह्रौं-कार हौं-कार-नाना-बीज-कूट-निर्मित-शरीरे नाना-बीज-मन्त्र-राग-विराजते ! सकल-सुन्दरी-गण-सेवते करुणा-रस-कल्लोलिनि कल्प-वृक्षाधिष्ठिते चिन्ता-मणि-द्वीपेऽवस्थिते मणि-मन्दिर-निवासे !
चापिनि खडिगनि चक्रिणि गदिनि शंखिनि पद्मिनि निखिल-भैरवाधिपति-समस्त-योगिनी-परिवृते ! कालि कङ्कालि तोर-तोतले सु-तारे ज्वाला-मुखि छिन्न-मस्तके भुवनेश्वरि ! त्रिपुरे लोक-जननि विष्णु-वक्ष-स्थलालङ्कारिणि ! अजिते अमिते अमराधिपे अनूप-सरिते गर्भ-वासादि दुःखापहारिणि मुक्ति-क्षेमाधिषयनि शिवे शान्ति-कुमारि देवि !
सूक्त-दश-शताक्षरे चण्डि चामुण्डे महा-कालि महा-लक्ष्मि महा-सरस्वति त्रयी-विग्रहे ! प्रसीद-प्रसीद सर्व-मनोरथान् पूरय सर्वारिष्ट-विघ्नं छेदय-छेदय, सर्व-ग्रह-पीडा-ज्वरोग्र-भयं विध्वंसय-विध्वंसय, सर्व-त्रिभुवन-जातं वशय-वशय, मोक्ष-मार्गं दर्शय-दर्शय, ज्ञान-मार्गं प्रकाशय-प्रकाशय, अज्ञान-तमो नाशय-नाशय, धन-धान्यादि कुरु-कुरु, सर्व-कल्याणानि कल्पय-कल्पय, मां रक्ष-रक्ष, सर्वापद्भ्यो निस्तारय-निस्तारय। मम वज्र-शरीरं साधय-साधय, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमोऽस्तु ते स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमो दैव्यै महा-देव्यै, शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै, नियताः प्रणताः स्म ताम्।।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व-मंगल-माङ्गल्ये, शिवे सर्वार्थ-साधिके ! शरण्ये त्र्यम्बके गौरि ! नारायणि नमोऽस्तु ते ।।
सर्व-स्वरुपे सर्वेशे, सर्व-शक्ति-समन्विते ! भयेभ्यस्त्राहि नो देवि ! दुर्गे देवि ! नमोऽस्तु ते।।
सिद्धि-चण्डी-महा-मन्त्रं, यः पठेत् प्रयतो नरः। सर्व-सिद्धिमवाप्नोति, सर्वत्र विजयी भवेत्।। संग्रामेषु जयेत् शत्रून्, मातंगं इव केसरी। वशयेत् सदा निखिलान्, विशेषेण महीपतीन्।। त्रिकालं यः पठेन्नित्यं, सर्वेश्वर्य-पुरःसरम्। तस्य नश्यन्ति विघ्नानि, ग्रह-पीडाश्च वारणम्।।
पराभिचार-शमनं, तीव्र-दारिद्रय-नाशनं। सर्व-कल्याण-निलयं, देव्याः सन्तोष-कारकम्।। सहस्त्रावृत्तितस्तु, देवि ! मनोरथ-समृद्धिदम्। द्वि-सहस्त्रावृत्तितस्तु, सर्व-संकट-नाशनम्।। त्रि-सहस्त्रावृत्तितस्तु, वशयेद् राज-योषितम्। अयुतं प्रपठेद् यस्तु, सर्वत्र चैवातन्द्रितः। स पश्येच्चण्डिकां साक्षात्, वरदान-कृतोद्यमाम्।। इदं रहस्यं परमं, गोपनीयं प्रयत्नतः। वाच्यं न कस्यचित् देवि ! विधानमस्थ सुन्दरि।।
फलश्रुति सिद्धि चण्डी महामंत्रं यः पठेत् प्रयतो नरः।
डॉक्टर रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार हरिद्वार