भारतीय संस्कृति और मूल्यों की रक्षा का संकल्प*

*भौगोलिक दूरी बदल सकती है पर सांस्कृतिक दूरी कभी नहीं*

अपनी मातृभूमि, मातृभाषा और आध्यात्मिक धरोहर से जुड़े रहना ही सशक्त भारतीयता का आधार*

स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में फिजी, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से आये प्रवासी भारतीय परिवारों को अपनी जड़ों, मूल और मूल्यों के संरक्षण का संदेश देते हुए स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भौगोलिक दूरी बदल सकती है पर सांस्कृतिक दूरी कभी नहीं होनी चाहिए। अपनी मातृभूमि, मातृभाषा और आध्यात्मिक धरोहर से जुड़े रहना ही सशक्त भारतीयता का आधार है। उन्होंने कहा कि जहाँ भी रहें, संस्कार, परिवार-भाव, सेवा, करुणा, कर्तव्य और आध्यात्मिकता जीवन का केंद्र बने रहें। यही जड़ें बच्चों में आत्मविश्वास, पहचान और गौरव प्रदान करती हैं। स्वामी जी ने आह्वान किया कि जड़ों को पकड़े रखो, मूल्यों को जियो और भारत को हृदय में धारण करो। स्वामी जी ने इस प्रवासी भारतीयों को नीलकंठ मन्दिर दर्शन, उत्तराखंड़ के दिव्य तीर्थ स्थलों, गुजरात के प्रसिद्ध मन्दिरों और भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों के दर्शन हेतु प्रेरित किया।

विश्वभर के कोने-कोने में बसे प्रवासी भारतीय आज आर्थिक उन्नति, वैज्ञानिक उपलब्धियों, बौद्धिक प्रगति और वैश्विक नेतृत्व के नए अध्याय रच रहे हैं। वे व्यापार, नवाचार, शिक्षा, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी में प्रभावी योगदान देकर नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा-पुंज बने हैं। किन्तु इस उपलब्धि की सबसे बड़ी शक्ति केवल आधुनिक कौशल नहीं, भारतीयता का संस्कार है और इस संस्कार की प्रथम, अनिवार्य एवं मूलभूत सीढ़ी है मातृभाषा।

भाषा केवल संवाद का उपकरण नहीं, यह हमारी पहचान, सभ्यता, स्मृति, भाव-संसार, परिवार, परंपरा, आस्था और मूल्य-सम्पदा का आधार है। यदि नई पीढ़ी भाषा से दूर होती है, तो वह अनिवार्य रूप से अपनी जड़ों, संस्कृति और ऐतिहासिक चेतना से भी कटने लगती है। इसी कारण वर्तमान समय की सबसे प्रबल सांस्कृतिक चुनौती है प्रवासी भारतीय समुदाय में भारतीय भाषाओं का संरक्षण, संवर्धन और पुनर्जीवन।

मातृभाषा हमें यह स्मरण कराती है कि हम कौन हैं, किस भूमि से जुड़े हैं, हमारी भावनाओं के वृक्ष किस सांस्कृतिक मिट्टी में पनपे हैं। परिवार, श्रद्धा, कर्तव्य, मर्यादा, करुणा, त्याग, धैर्य और आध्यात्मिक अनुशासन, ये सभी जीवन-मूल्य बच्चों को मातृभाषा के माध्यम से सहज, स्वाभाविक और भावपूर्ण रूप से सिखाए जाते हैं। जिस भाषा में बच्चा सोचता है, उसी में रचनात्मकता, आत्मविश्वास, भावनात्मक स्थिरता और आत्मगौरव विकसित होता है। मातृभाषा मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित करती है और व्यक्तित्व को स्थिर आधार देती है।

भारतीय शास्त्रों, पुराणों, कथाओं और काव्यों के रस का असली अनुभव अनुवाद में नहीं, मूल भाषा में मिलता है। रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता, वेदांत, उपनिषद, संत परंपरा, भक्तिधारा, लोककथाएँ, लोकगीत इनका तत्त्वज्ञान तभी हृदय में उतरता है, जब भाषा हृदय की हो। अनुवाद ज्ञान दे सकता है, पर मूल भाषा अनुभूति और संस्कार देती है।

स्वामी जी ने कहा कि आज के समय में कई भाषाएँ घर की चारदीवारी में सिमट गई हैं, जबकि हमारी सांस्कृतिक शक्ति की जड़ें भाषा में दबी हैं। यही कारण है कि आज विश्व की शीर्ष शैक्षणिक संस्थाएँ हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, टोरंटो विश्वविद्यालय, संस्कृत और भारतीय भाषाओं पर शोध कर रही हैं, क्योंकि भाषा संवाद से कहीं बढ़कर ज्ञान विज्ञान, सभ्यता विकास और दार्शनिक विमर्श का आधार है।

भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है, पर विश्वगुरु वही बन सकता है, जिसकी भाषा आत्मसम्मान, नेतृत्व, विचार सृजन और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता की ध्वजा उठाए। भाषा संरक्षण किसी विकल्प का विषय नहीं अस्तित्व, अस्मिता और आत्मगौरव का आधार है।

स्वामी जी ने कहा कि अपनी मातृभाषा को अगली पीढ़ी तक पहुँचाना, केवल परिवारिक प्रेम का व्यवहार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्तराधिकार का हस्तांतरण है। यही हमारी समष्टि-अभिव्यक्ति, यही राष्ट्र चेतना, और यही भारतीय सभ्यता के भविष्य की अनिवार्य जिम्मेदारी है।

मातृभाषा को सुरक्षित रखना, जड़ों से जुड़े रहना, पहचान को संरक्षित रखना और आने वाली पीढ़ियों को आत्मबल व गौरव देना है। यही भारतीय संस्कृति और मूल्यों की रक्षा का हमारा अटल, अखंड और पवित्र संकल्प होना चाहिए।


By Shashi Sharma

Shashi Sharma Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, she provided her strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got her pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of her pen. Delivered.

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