Shani Jayanti, शनि जयंती और जेठी अमावस का संयोग कितना हितकारी
Shani Jayanti, How beneficial is the combination of Shani Jayanti and Amavasya
शनि जयंती अमावस के दिन होने से 6 जून का दिन कई रुप से विशेष हो जाता है , खासतौर पर जो शनि की साढ़ेसाती, शनि की 19 वर्ष की महादशा,शनि के ढैय्या से पीड़ित होते हैं अथवा जन्मकुंडली में शनि के दुर्योग के निवारण के लिए भटकते है,उनके कष्ट के निवारण के लिए ये संयोग महत्वपूर्ण बताया जाता है।
इस दिन काले वस्त्र, काली दाल, काला छाता, काले जूते, और लोहे का समान दान करने का विशेष महत्व है, वरिष्ठ पत्रकार रमेश खन्ना आपके लिए लाए हैं शनि की विशेष कथा।श्रीमती शशि शर्मा संपादक
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🏵️_*शनैश्चर जयंती विशेष*_🏵️
💥*शनिदेव के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथाएं*💥
Shani Jayanti, शनि देव सूर्य के पुत्र और यमराज के अग्रज हैं। उन के जन्म को लेकर लोगों में अलग-अलग मान्यताएं हैं। बहुमान्य पौराणिक कथा के अनुसार शनि महाराज, भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं।*
Shani Jayanti,
*शनिदेव के जन्म के बारे में स्कंदपुराण के काशीखंड में जो कथा मिलती है वह कुछ इस प्रकार है। राजा दक्ष की कन्या संज्ञा का विवाह सूर्यदेवता के साथ हुआ। सूर्यदेवता का तेज बहुत अधिक था जिसे लेकर संज्ञा परेशान रहती थी।
वह सोचा करती कि किसी तरह तपादि से सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। जैसे तैसे दिन बीतते गये संज्ञा के गर्भ से वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानों ने जन्म लिया। संज्ञा अब भी सूर्यदेव के तेज से घबराती थी फिर एक दिन उन्होंने निर्णय लिया कि वे तपस्या कर सूर्यदेव के तेज को कम करेंगी लेकिन बच्चों के पालन और सूर्यदेव को इसकी भनक न लगे इसके लिये उन्होंने एक युक्ति निकाली उन्होंने अपने तप से अपनी हमशक्ल को पैदा किया जिसका नाम संवर्णा रखा। संज्ञा ने बच्चों और सूर्यदेव की जिम्मेदारी अपनी छाया संवर्णा को दी और कहा कि अब से मेरी जगह तुम सूर्यदेव की सेवा और बच्चों का पालन करते हुए नारीधर्म का पालन करोगी लेकिन यह राज सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही बना रहना चाहिये।*
*अब संज्ञा वहां से चलकर पिता के घर पंहुची और अपनी परेशानी बताई तो पिता ने डांट फटकार लगाते हुए वापस भेज दिया लेकिन संज्ञा वापस न जाकर वन में चली गई और घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई।*
*उधर सूर्यदेव को जरा भी आभास नहीं हुआ कि उनके साथ रहने वाली संज्ञा नहीं सुवर्णा है। संवर्णा अपने धर्म का पालन करती रही उसे छाया रूप होने के कारण उन्हें सूर्यदेव के तेज से भी कोई परेशानी नहीं हुई। सूर्यदेव और संवर्णा के मिलन से भी मनु, शनिदेव और भद्रा (तपती) तीन संतानों ने जन्म लिया।*,Shani Jayanti
*एक अन्य कथा के अनुसार शनिदेव का जन्म महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुआ। छाया शिव की भक्तिन थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या कि वे खाने-पीने की सुध तक उन्हें न रही। भूख-प्यास, धूप-गर्मी सहने के कारण उसका प्रभाव छाया के गर्भ मे पल रही संतान यानि शनि पर भी पड़ा और उनका रंग काला हो गया। जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता।
मां के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव को देखा तो सूर्यदेव बिल्कुल काले हो गये, उनके घोड़ों की चाल रूक गयी। परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी इसके बाद भगवान शिव ने सूर्यदेव को उनकी गलती का अहसास करवाया। सूर्यदेव अपने किये का पश्चाताप करने लगे और अपनी गलती के लिये क्षमा याचना कि इस पर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला।*
*लेकिन पिता पुत्र का संबंध जो एक बार खराब हुआ फिर न सुधरा आज भी शनिदेव को अपने पिता सूर्य का विद्रोही माना जाता है।*
*पिता के अपमान से नाराज़ शनि देव ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उनकी साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने उन्हें वरदान दिया और कहा कि आज से नवग्रहों में तुम्हारा स्थान सर्वश्रेष्ठ होगा। केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे।*Shani Jayanti
*महादेव ने स्वयं शनिदेव को न्यायाधिपति के रूप में अधिष्ठित किया।*
*ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि देव एक न्यायाधीश की भूमिका निभाते हैं, जिनका न्याय निष्पक्ष होता है।*
*ये व्यक्ति के अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा देते हैं। शनि देव मकर और कुंभ राशियों के स्वामी हैं।*
*क्रूर कहे जाने वाले शनि देव का रंग काला है और इनका वाहन गिद्ध है।,Shani Jayanti
*जय शनि देव*
Shree Shani Jayanti.Aur Jathi Aamavesya.
Dr. Ramesh Khanna
Haridwar(Uttarakhand)