परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज महाकाव्य रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि जी और प्रसिद्ध संत, कवयित्री मीरा बाई की जयंती के पावन अवसर पर उन्हें भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि दोनों ने अपना जीवन अपने इष्ट को समर्पित कर दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने तीर्थों की दिव्यता व भव्यता पर विशेष चर्चा हुई।

महर्षि वाल्मीकि जी और संत मीराबाई की जयंती पर नमन

आज की परमार्थ निकेतन, गंगा आरती महर्षि वाल्मीकि जी ओर संत मीराबाई को की समर्पित

तीर्थों की दिव्यता व भव्यता पर हुई विशेष चर्चा

नारी सशक्तिकरण केवल भौतिक स्वतंत्रता से नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक स्वतंत्रता से प्राप्त किया जा सकता है

मीरा बाई, नारी सशक्तिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण

महाग्रंथ रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को दिशा देने वाला एक मार्गदर्शक : स्वामी चिदानन्द सरस्वती

धर्म यात्रा महासंघ जिसकी स्थापना 1984 में हुई और यह महासंघ माननीय श्री अशोक सिंघल जी की प्रेरणा से बना। भारत की आत्मा तीर्थों में रहती हैं। वहां की संस्कृति; वहां की परम्परायें; वहां की पवित्रता; दिव्यता श्रद्धालु अपने साथ लेकर आते हैं और दिव्यता को प्राप्त करते हैं।

समय -समय पर संतों ने ही इन तीर्थों में पहुंचकर तीर्थों का तीर्थत्व प्रदान किया। धर्मयात्रा महासंघ के पूर्व अध्यक्ष श्री मांगेराम जी गर्ग परमार्थ निकेतन आते रहें और वर्तमान में श्री प्रमोद अग्रवाल जी भी अपने सभी साथियों को लाकर यहां पर पूज्य महापुरूषों की जयंती व उत्सवों को मनाया और अपने जीवन को धन्य किया। स्वामी जी ने कहा कि धन्य है महापुरूषों का संघ बदल देता जीवन का रंग। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि प्रसिद्ध संत और कवयित्री मीरा बाई नारी सशक्तिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण हैं। उनके जीवन और काव्य ने सदियों से अनगिनत नारियों को प्रेरित किया है।

मीरा बाई का जन्म 1498 में राजस्थान के कूड़की में हुआ था। वे राठौड़ परिवार की थीं और उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ हुआ था। मीरा बाई का विवाह तो एक राजपरिवार में हुआ था, लेकिन उनकी आत्मा हमेशा भगवान कृष्ण के प्रति समर्पित रही। उनके ससुरालवालों ने उनके भक्ति मार्ग का विरोध किया, लेकिन मीरा बाई ने अपने प्रेम और भक्ति से सारे विरोध को सहा और स्वयं को अपने प्रभु को समर्पित कर दिया।

मीरा बाई के भजन आज भी दिल को छूते हैं। उनका प्रेम और भक्ति भगवान श्री कृष्ण के प्रति इतना गहरा था कि उन्होंने सामाजिक बंधनों और परंपराओं को तोड़कर अपने भक्ति मार्ग को अपनाया।  मीरा बाई ने अपने समय की सामाजिक बंधनों का विरोध किया। उन्होंने समाज के दबाव और परंपराओं के बावजूद अपने भक्ति मार्ग को अपनाया और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा की। उनका जीवन यह शिक्षा देता है कि सच्ची स्वतंत्रता और सशक्तिकरण अपने अधिकारों में ही निहित है।

स्वामी जी ने कहा कि मीरा बाई ने संदेश दिया कि नारी सशक्तिकरण केवल भौतिक स्वतंत्रता से नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक स्वतंत्रता से प्राप्त किया जा सकता है।

आज महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती के दिव्य अवसर पर उन महान ऋषि को नमन। उन्होंने न केवल रामायण की रचना कर समाज को एक अद्वितीय ग्रंथ दिया, बल्कि अपने जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से समाज में नैतिकता, धर्म और सत्य के मूल्यों को भी स्थापित किया।

महाग्रंथ रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को दिशा देने वाला एक मार्गदर्शक भी है। रामायण के माध्यम से महर्षि वाल्मीकि ने समाज को धर्म, मर्यादा, सत्य और नैतिकता का संदेश दिया।

By Shashi Sharma

Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, he provided his strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got his pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of his pen. Delivered.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *