परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश में आयोजित गंगा जी के प्रति जागरूकता एवं आरती कार्यशाला का उद्घाटन स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, साध्वी भगवती सरस्वती जी और भारत के विभिन्न राज्यों से आये पंडितों ने दीप प्रज्वलित कर किया। यह कार्यशाला परमार्थ निकेतन, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे और अर्थ गंगा के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित की जा रही है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गंगा जी की आरती केवल एक कर्तव्य नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारी है। गंगा, जिसे हम माँ के रूप में पूजते हैं यह उनकी स्वच्छता, अविरलता और पवित्रता को बनाए रखने की जिम्मेदारी का प्रतीक है। आरती के दौरान हम गंगाजी से यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें शुद्ध करे, लेकिन साथ ही हमें यह भी याद रखना होगा कि हमें गंगा की पवित्रता की रक्षा करने की जिम्मेदारी भी निभानी है। गंगा जी हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। यह न केवल हमें जल प्रदान करती है, बल्कि हमारी संस्कृति, सभ्यता और आस्था का प्रतीक भी है।

परमार्थ निकेतन में गंगा तटों पर आरती करने वाले पंडितों और आचार्यों को प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे गंगा के प्रति समाज में जागरूकता ला सकें। जब घाटों के पंडित गंगा की पूजा-अर्चना करते हैं, तो वे न केवल धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, बल्कि गंगा के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास को भी मजबूत करते हैं। इस कार्यशाला के माध्यम से, गंगा के तटों पर उपस्थित आस्थावानों को स्वच्छता, संरक्षण और गंगा की अविरलता को बनाए रखने के महत्व को बताया जाता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गंगा जी की आरती करना सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य ही नहीं है बल्कि गंगा के संरक्षण और उनकी गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी है, जिसे आप सभी पंडितों को निष्ठा और समर्पण के साथ निभाना होगा। समय के साथ गंगा में बढ़ते प्रदूषण, कचरे, और जलाशयों में गिरते अवशेषों के कारण गंगा जी की स्वच्छता और निर्मलता संकट में है। इस संकट से निपटने के लिए न केवल सरकारी प्रयासों की आवश्यकता है, बल्कि सामाजिक जागरूकता भी अत्यंत आवश्यक है। गंगा आरती कार्यशाला का उद्देश्य न केवल गंगा की पवित्रता और महत्व को समझाना है, बल्कि उसे संरक्षित करने के लिए एक जागरूकता अभियान चलाना भी है।

स्वामी जी ने कहा कि प्राचीन काल से ही नदियाँ हमारे जीवन का अभिन्न अंग रही हैं। भारतीय सभ्यता की शुरुआत नदियों के किनारे हुई थी, और आज भी हम नदियों के आस-पास अपने जीवन को संजोते हैं। नदियों का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व है। नदियाँ हमें जल, जीवन, जीविका और आहार प्रदान करती हैं। खेती के लिए सिंचाई, पीने के पानी, और उद्योगों के संचालन के लिए नदियाँ अति महत्वपूर्ण हैं। जल जीवन का आधार है और नदियाँ जल का प्रमुख स्रोत हैं।

गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, और सरस्वती जैसी नदियाँ न केवल जल प्रदान करती हैं, बल्कि ये हमारी पारिस्थितिकी का हिस्सा हैं। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अत्यधिक जल दोहन के कारण इन नदियों की स्थिति दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। हमारी सभ्यता का उत्थान और पतन नदियों के उत्थान और पतन पर निर्भर है। इस कारण से नदियों का संरक्षण और उनका सही तरीके से उपयोग करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।

स्वामी जी ने कहा कि गंगाजी भारतीय संस्कृति की माँ हैं। गंगाजी, भारतीय    संस्कृति की रक्षक है। गंगा का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। भारतीय संस्कृति की कई महत्वपूर्ण धरोहरें गंगा के किनारे स्थित हैं। वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश, इलाहाबाद (प्रयागराज) जैसे पवित्र स्थान गंगा के तटों पर ही बसे हैं जो हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।

गंगा के बिना भारतीय संस्कृति और जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। गंगा का अस्तित्व भारत के समृद्धि, विकास और जीवन के निरंतरता से जुड़ा हुआ है। गंगा का उद्गम हिमालय से होता है, और इस कारण गंगा और हिमालय का संबंध अविभाज्य है। गंगा नदी का अस्तित्व हिमालय के शिखर से जुड़ा हुआ है, और हिमालय का अस्तित्व गंगा से। इस कारण, गंगा के संरक्षण का अर्थ न केवल जल, बल्कि हमारे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और जलवायु संतुलन की रक्षा करना है।

गंगा का अस्तित्व न केवल हमारी भौतिक जीवनधारा से जुड़ा है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का प्रतीक है। गंगा के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। जब गंगा स्वच्छ और निर्मल रहती है, तो वह समृद्धि, शांति और समरसता की प्रतीक बन जाती है। गंगा के जल में जीवन की शक्ति है, और यह शक्ति भारतीय समाज को एकजुट रखने में मदद करती है।

गंगा आरती कार्यशाला का आयोजन केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि गंगा के संरक्षण और उसकी स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए किया जाता है। गंगा के प्रति हमारी जिम्मेदारी यही है कि हम उसे शुद्ध रखें, उसकी पवित्रता को बनाए रखें और आने वाली पीढ़ियों के लिए उसे एक जीवनदायिनी के रूप में सुरक्षित रखें।

इस कार्यशाला में उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के 15 घाटों के 26 पंडितों ने सहभाग किया। ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस की परियोजना निदेशक सुश्री गंगा नन्दिनी त्रिपाठी, राकेश रोशन, श्रीमती वंदना शर्मा, पूजा मेहता, रेशमी एस, आचार्य दीलिप, ऋषिकुमार आयुष बडोनी नमामि गंगे के प्रशिक्षक, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमार सभी प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।

By Shashi Sharma

Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, he provided his strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got his pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of his pen. Delivered.

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