उत्तराखंड के मखमली बुग्यालों की खूबसूरती और ग्रामीण आस्था का संगम इस बार भी देखने को मिला, जब दयारा बुग्याल की हरी-भरी वादियों में पारंपरिक अढूंडी उत्सव यानी बटर फेस्टिवल का आयोजन हुआ। हालांकि, धराली आपदा की गहरी चोट के कारण इस साल उत्सव अपने तय समय से बीस दिन देर से और सादगी के साथ मनाया गया।

ग्रामीणों ने दूध, दही और मक्खन से एक-दूसरे को सराबोर कर खुशहाली की दुआएं मांगी। राधा-कृष्ण स्वरूप बने कलाकारों ने दही-हांडी फोड़कर उत्सव का शुभारंभ किया और वन देवियों व आराध्य देवताओं को विधिवत भोग अर्पित किया गया।

परंपरा और संस्कृति का अनोखा संगम

दयारा बुग्याल में हर साल भाद्रपद माह की संक्रांति पर यह उत्सव आयोजित होता है। इसे रैथल गांव और आसपास के ग्रामीण मिलकर आयोजित करते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि सावन मास में दूध-दही और मक्खन को संजोकर रखना समृद्धि का प्रतीक है, और इन्हीं उत्पादों को देवताओं को अर्पित कर प्रकृति व मवेशियों की खुशहाली की कामना की जाती है।

ढोल-दमाऊ की थाप पर रासो-तांदी नृत्य ने माहौल को और रंगीन बना दिया। इस अवसर पर उपस्थित ग्रामीणों ने कहा कि यह उत्सव केवल पर्व नहीं बल्कि प्रकृति और समाज के बीच अटूट संबंध की मिसाल है।

धराली आपदा की छाया में फीकी पड़ी रौनक

दयारा पर्यटन समिति के अध्यक्ष मनोज राणा और सदस्य पृथ्वीराज राणा ने बताया कि इस साल धराली आपदा की वजह से यह उत्सव तय समय पर नहीं हो पाया। आपदा में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि देने के बाद ग्रामीणों ने बीस दिन बाद इसे सादगी से आयोजित किया।

जहां सामान्य परिस्थितियों में हजारों की संख्या में पर्यटक और ग्रामीण शामिल होते हैं, वहीं इस बार दयारा बुग्याल में सीमित संख्या में ही लोग जुट पाए। रैथल गांव में धराली आपदा के पीड़ितों की आत्मा की शांति के लिए श्रद्धांजलि सभा और सांस्कृतिक संध्या भी आयोजित की गई।

बुग्यालों का सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व

दयारा बुग्याल (11,000 फीट ऊँचाई पर) हिमालय के सबसे सुंदर अल्पाइन घास के मैदानों में गिना जाता है। यह बुग्याल न केवल पर्यटकों के लिए आकर्षण है, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों के लिए आजीविका और संस्कृति का भी हिस्सा है। यहां सालभर मवेशियों के लिए घास उपलब्ध होती है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि बुग्यालों में ऐसे पर्व आयोजित करना ग्रामीणों को अपनी जड़ों से जोड़ता है और युवाओं को पारंपरिक संस्कृति से परिचित कराता है। साथ ही यह पर्यटन को बढ़ावा देने का माध्यम भी है।

अंतरराष्ट्रीय पहचान बना रहा बटर फेस्टिवल

पिछले कुछ वर्षों में बटर फेस्टिवल ने अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है। बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी इस पर्व का हिस्सा बनते रहे हैं। हालांकि इस साल आपदा के कारण विदेशी पर्यटकों की भागीदारी लगभग नगण्य रही।

फिर भी, ग्रामीणों का कहना है कि चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अढूंडी उत्सव उनकी सांस्कृतिक पहचान है और इसे हर हाल में जीवित रखा जाएगा।

अढूंडी उत्सव केवल दूध-दही और मक्खन की होली भर नहीं, बल्कि यह हिमालयी ग्रामीण संस्कृति, प्रकृति के प्रति आस्था और सामाजिक एकजुटता का पर्व है। इस साल भले ही आपदा की छाया में यह आयोजन फीका रहा, लेकिन बुग्यालों की पवित्र वादियों में इसकी परंपरा एक बार फिर जीवित हो उठी।

By Shashi Sharma

Shashi Sharma Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, she provided her strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got her pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of her pen. Delivered.

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