*आईआईटी रुड़की में 8वें अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन का शुभारंभ*

• सम्मेलन में शिक्षा, सतत विकास और नैतिक नेतृत्व के संदर्भ में रामायण की समकालीन प्रासंगिकता पर विशेष चर्चा

• ब्लेंडेड मोड में लगभग 150 शोध पत्र प्रस्तुत; समकक्ष समीक्षा (पीयर-रिव्यू) के बाद ई-बुक के रूप में प्रकाशन

• तीन दिवसीय मंथन में भारत एवं विदेशों से विद्वान, संत और शोधकर्ता भारतीय ज्ञान परंपरा पर विचार-विमर्श करेंगे

आधुनिक शिक्षा के लिए यह आवश्यक है कि वह रामचरितमानस के मूल्यों को समझे और आत्मसात करे, क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका अर्जन नहीं, बल्कि मानवता की सेवा है। यह विचार आठवें अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर आईआईटी रूड़की के निदेशक प्रोफ़ेसर के. के. पंत ने व्यक्त किए। उन्होंने उल्लेख किया कि आईआईटी रूड़की का कुलगीत भी रामचरितमानस की चौपाई “परहित सरिस धर्म नहिं भाई” से प्रेरणा लेता है। रामचरितमानस की यह पंक्ति तथा आईआईटी रूड़की के कुलगीत की पंक्ति “सर्जन हित जीवन नित अर्पित”—दोनों ही समाज-सेवा के महत्व को रेखांकित करती हैं।

प्रोफ़ेसर पंत ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा के सिद्धांत अमूल्य हैं। उन्होंने आयोजकों की सराहना की कि उन्होंने रामायण को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ने का प्रयास किया है। उन्होंने माता-पिता के प्रति कर्तव्य, सामाजिक उत्तरदायित्व, सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा तथा रामराज्य के आदर्श जैसे रामायण के मूल्यों को सततता, स्वास्थ्य, नैतिकता एवं राष्ट्र-निर्माण जैसे समकालीन विषयों से जोड़ा। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे ज्ञान को केवल उच्च वेतन प्राप्ति का साधन न मानकर समाज की सेवा एवं विकसित भारत 2047 के निर्माण का माध्यम समझें।

उद्घाटन सत्र में महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद जी का आशीर्वचन प्राप्त हुआ। स्वामी जी ने मोबाइल फोन और भौतिक आकांक्षाओं से प्रभुत्व वाले वर्तमान युग में रामायण, महाभारत एवं अन्य शास्त्रों की चरित्र-निर्माण एवं आंतरिक सुख के लिए कालातीत प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने आईआईटी रूड़की और श्री रामचरित भवन की इस पहल की प्रशंसा की, जिसके माध्यम से गंगा तट पर संतों और विद्वानों को एक मंच पर लाया गया। उन्होंने रामायण को जीवन की संपूर्ण मार्गदर्शिका बताते हुए त्याग, भक्ति, गुरु-भक्ति और सामाजिक समरसता के मूल्यों पर बल दिया।

उद्घाटन सत्र के दौरान “गीता शब्द अनुक्रमणिका” तथा सम्मेलन की ई-कार्यवाही का विमोचन भी किया गया। गणमान्य अतिथियों ने कहा कि इस प्रकार के संदर्भ ग्रंथ गीता एवं रामायण के गंभीर अध्ययन में संलग्न साधकों, शोधकर्ताओं और भक्तों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे।

एक विशेष क्षण में, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं प्रख्यात संस्कृत विद्वान प्रोफ़ेसर महावीर अग्रवाल को उनके पाँच दशकों के अध्यापन, अनुसंधान एवं भारतीय ज्ञान परंपरा की सेवा के लिए “रामायण रत्न” पुरस्कार मरणोपरांत प्रदान किया गया। उनके व्यापक शैक्षणिक एवं प्रशासनिक योगदान को रेखांकित करते हुए यह पुरस्कार उनकी धर्मपत्नी श्रीमती वीणा अग्रवाल ने ग्रहण किया।

सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर महावीर स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के प्रथम व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसे उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति प्रोफ़ेसर दिनेश शास्त्री ने प्रस्तुत किया। उन्होंने रामायण की पृष्ठभूमि में निहित समृद्ध संस्कृत एवं दार्शनिक परंपराओं पर प्रकाश डाला तथा भारतीय ज्ञान परंपरा ढाँचे के अंतर्गत विद्यालय से उच्च शिक्षा तक संरचित पाठ्यक्रमों के माध्यम से ऐसे ग्रंथों के अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जब परहित, सत्य और करुणा जैसे मूल्य आत्मसात हो जाते हैं, तो भ्रष्टाचार एवं सामाजिक वैमनस्य जैसी समस्याएँ स्वाभाविक रूप से कम हो सकती हैं।

इस अवसर पर डॉ. राजरानी शर्मा, प्रोफ़ेसर विनय शर्मा, श्रीमती आशा श्रीवास्तव एवं श्रीमती विनीता मिश्रा को श्री रामचरित भवन रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

डॉ. सी. कामेश्वरी, प्रोफ़ेसर रजत अग्रवाल, श्री राम गिरीश द्विवेदी एवं श्रीमती अलका प्रमोद को श्री रामचरित भवन विभूषण पुरस्कार प्रदान किया गया।

वहीं डॉ. मानवी गोयल, श्री छविनाथ लाल, श्री राकेश चौबे एवं श्रीमती स्मिता एन. लधावाला को श्री रामचरित भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

तीन दिवसीय यह सम्मेलन आईआईटी रूड़की एवं श्री रामचरित भवन, अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जा रहा है, जिसमें भारत एवं विदेशों से विद्वान, संत तथा रामायण अध्येता सहभागी हो रहे हैं

प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए प्रोफ़ेसर रजत अग्रवाल, प्रमुख, प्रबंधन अध्ययन विभाग एवं डीपीआईआईटी आईपीआर चेयर प्रोफ़ेसर ने श्री रामचरित भवन के प्रति आभार व्यक्त किया कि उन्होंने आईआईटी रूड़की को इस सम्मेलन के लिए मेज़बान परिसर के रूप में चुना। उन्होंने कहा कि लगभग 180 वर्षों से जहाँ ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है, वह ऐतिहासिक परिसर ज्ञान और भक्ति के संगम के लिए अत्यंत उपयुक्त है।

श्री रामचरित भवन के संस्थापक एवं ह्यूस्टन–डाउनटाउन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रोफ़ेसर ओम प्रकाश गुप्ता ने 2016 में प्रारंभ हुए अंतरराष्ट्रीय रामायण सम्मेलन की यात्रा का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन के पूर्व संस्करण अमेरिका, भोपाल, जयपुर एवं अहमदाबाद में आयोजित किए गए थे और यह इसका आठवाँ संस्करण है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि रामायण एवं संबंधित आध्यात्मिक साहित्य पर आधारित लगभग 150 शोध पत्र सम्मिश्र माध्यम में प्रस्तुत किए जाएँगे तथा समकक्ष समीक्षा के पश्चात सम्मेलन की कार्यवाही ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित की जाएगी।

वक्ताओं ने सामूहिक रूप से यह रेखांकित किया कि रामायण को सततता, नैतिकता एवं समकालीन चुनौतियों से जोड़ने की सम्मेलन की विषयवस्तु प्राचीन ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित करने में सहायक सिद्ध होगी।

सम्मेलन का समापन 13 दिसंबर 2025 को आयोजित समापन सत्र में हुआ, जहाँ उत्कृष्ट शोध योगदान के लिए सुश्री साक्षी गोयल, डॉ. अपर्णा सिंह, श्री राकेश चौबे एवं डॉ. राजेश कुमार मिश्र को श्रेष्ठ शोध पत्र पुरस्कार प्रदान किए गए।


By Shashi Sharma

Shashi Sharma Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, she provided her strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got her pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of her pen. Delivered.

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