commercialization of ganga, गंगा आस्था की धारा के बदले, राजस्व की लाइन तो नहीं बन रही – राम कुमार मिश्रा पूर्व महामंत्री गंगा सभा
commercialization of the sacred Ganga
हरिद्वार, कर्मकांड से पिकनिक तक
सत्ता परंपरा को प्रमाण-पत्रों में कैद करना चाहती है- मिश्रा
commercialization of ganga, तीर्थ, पुरोहित और सत्ता की बदली हुई दृष्टि हरिद्वार हजारों वर्षों से कर्मकांड का स्थल रहा है, पर्यटन का नहीं।
यहां आने वाला व्यक्ति सैर करने नहीं, संस्कार करने आता था, अस्थि-विसर्जन, पिंडदान, स्नान और व्रत, यही हरिद्वार की पहचान थी।
ऐसे में आज हर आगंतुक को “तीर्थ यात्री” कहना एक ऐतिहासिक भूल है, सच्चाई यह है कि अब हरिद्वार में आने वालों का बड़ा हिस्सा पर्यटक है, और तीर्थ धीरे-धीरे पिकनिक स्थल में बदलता जा रहा है। सप्ताहांत पर बढ़ती भीड़ इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है, जहां उद्देश्य साधना नहीं, मनोरंजन होता है।
इस परिवर्तन का सबसे गहरा प्रभाव तीर्थ पुरोहितों पर पड़ा है, जिन पुरोहितों ने सदियों तक कुंभ परंपरा को जीवित रखा, आज वही सिमटे हुए और सहमे हुए दिखाई देते हैं।
सरकार का ध्यान परंपरा पर नहीं, राजस्व पर है, नए घाटों के नाम पर पुरोहितों की पुरानी गद्दियों को हटाया जाता है, फिर उनसे “सबूत” मांगा जाता है यह विडंबना है, क्योंकि ब्रिटिश काल से पहले हरिद्वार में न तो किसी हिंदू राज्य की सत्ता थी, न किसी मुस्लिम शासन की, यहां केवल तीर्थ, तीर्थ यात्री और तीर्थ पुरोहित थे।
सत्ता का प्रवेश बहुत बाद की बात है, पर आज वही सत्ता परंपरा को प्रमाण-पत्रों में कैद करना चाहती है।
आज गंगा आस्था का माध्यम कम और तिजारत का साधन अधिक बनती जा रही है। बड़े-बड़े आकर्षक आश्रम, होटल और कॉरिडोर योजनाओं के सामने तीर्थ पुरोहित की गद्दी सरकार की आंखों में खटकती है, जो गद्दी कभी व्यवस्था का आधार थी, वह अब अवरोध मानी जाती है।, गंगा के किनारे बैठा पुरोहित “अतिक्रमण” कहलाता है, जबकि बहुमंज़िला ढांचा “विकास”। यह दृष्टि केवल असंतुलित ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक स्मृति से भी कट चुकी है।
हरिद्वार का प्रश्न केवल शहर का प्रश्न नहीं है। यह तय करता है कि भारत में तीर्थ क्या रहेगा। यदि तीर्थ को केवल पर्यटन उत्पाद बना दिया गया, तो कर्मकांड, परंपरा और सामाजिक उत्तरदायित्व स्वतः समाप्त हो जाएंगे।
गंगा तब आस्था की धारा नहीं, राजस्व की लाइन बनकर रह जाएगी, हरिद्वार आज एक चेतावनी है, या तो हम तीर्थ और पर्यटक में फर्क समझें, या फिर यह स्वीकार कर लें कि हमने हजारों वर्षों की परंपरा को सप्ताहांत की भीड़ के हवाले कर दिया है।
पं०राम कुमार मिश्रा पूर्व महामंत्री श्री गंगा सभा हरिद्वार।