religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 6
religion and philosophy- 6
religion, शास्त्र कहते हैं कि सृष्टि की संरचना और विनाश दोनों ही से जुडा है भगवती देवी महाकाली का स्वरूप।
सिद्धियों की दाता है तो प्रलयकारी भी है मां भगवती, शास्त्र कहते हैं कि मां के इतने सूक्ष्म स्वरूप है जितनी मानव जनसंख्या भी नहीं है।
नये सूर्य के प्रस्फुटन से लेकर विस्फोटन तक देवी के विभिन्न सूक्ष्म और गुप्त रूप ही विद्यमान हैं,गुरु दत्तात्रेय ,दुर्वासा मुनि ,ऋषि विश्वामित्र,पाराशर मुनि ,बलि ,नारद ,भगवान् परशुराम ,दैत्यगुरु शुक्राचार्य,सहस्त्रार्जुन,कपिल मुनि तथा वैवस्वत मनु आदि माँ कामकला काली के उपासक रहे हैं ।
किंतु वे सब तपस्वी और समर्थ थे, शास्त्र कहते हैं कि देवी के सूक्ष्म रूप प्रचंड हैं,इस कारण असमर्थ मनुष्यों को इनका मंत्र ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस मंत्र के प्रभाव से सिद्धि या मृत्यु दोनों में से एक ही मिलती है। भारतीय धर्म कर्म और दर्शन के इन्हीं गूढ रहस्यों पर प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर रमेश खन्ना का आज का यह लेख –
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कुक्कुटी महाविद्या रहस्यम:-
प्रस्तुतकर्ता डॉक्टर रमेश खन्ना
religion, भगवती प्रलय काली
रक्ष्रां रक्ष्रीं रक्ष्रूं रक्ष्रैं रक्ष्रौं रम्रां रम्रीं रम्रैं सखक्लक्ष्मध्रयब्लीं अनंतानंत घोर ज्वाले सृष्टि संहारकारिकेप्रलयकालिके समतरक्षखछ्रक्लीं तेनाहं भावयामि… लोके ॐ…क्ष्फ्रह्रौं फट्…स्वाहा-अपूर्ण
शक्ति से अधिक महत्वपूर्ण है बुद्धि (युक्ति) क्योंकि बुद्धि के बल पर ही प्राचीन काल के अनेकानेक परम शक्तिशाली अजेय योद्धाओं को युक्तियों से ही पराजित किया गया है
महाकालोवाच: कोई भी देवी इनसे(महाविद्या छिन्नमस्ता) से बढ़कर उग्र नहीं है।
इस कारण असमर्थ मनुष्यों को इनका मंत्र ग्रहण नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस मंत्र के प्रभाव से सिद्धि या मृत्यु दोनों में से एक ही मिलती है,religion
राज्यं दद्याद्ध्नं दद्यात स्त्रियं दद्याच्छिरस्तथा । न तु कामकलाकालीं दद्यात्कस्मापि क्वचित ॥ महाकाल और महाकाली तंत्र के अधिष्ठाता हैं महाकाल और महाकाली का सबसे तेजस्वी और अद्भुत स्वरुप है कामकला काली .तंत्र साधना में इस साधना को सर्वस्व प्रदायक साधना कहा गया है I
इस साधना से परे कोई साधना नहीं है सभी साधनाएं इसी साधना में समाहित हैं.I
महाकालसहिंता के अनुसार जिसमें स्वयं महाकाल ,देवी से कहते हैं कि कोई भी देवी इनसे बढ़कर उग्र नहीं है उनका नाम माँ कामकलाकाली है I
साधनाओं के क्षेत्र में कामकला काली की साधना को सर्वोपरि माना जाता है, इसके लिये कहा गया है कि प्राण का दान देकर भी यह विद्या मिल जाये तो इसे सप्रयास ग्रहण करना चाहिये ,religion
इस विश्व में जितनी मानवसंख्या है उससे बहुत अधिक इन पारमेश्वरी शक्तियों की संख्या है कालसंकर्षिणि परा ,परापरा और अपरा नामक चार शक्तियों में से प्रत्येक के सृष्टि स्थिति संहार कार्यों की दृष्टि से तीन तीन रूप होते हैं शैवशास्त्र में ये शक्तियां द्वादश काली के नाम से अभिहित होती है I
महाकालसहिंता में दक्षिणकाली ,भद्रकाली ,श्मशानकाली ,कालकाली ,गुह्यकाली,कामकलाकाली ,धनकाली ,सिद्धिकाली और चन्द्रकाली नामक नव कालियों का वर्णन है I कामकलाकाली नव कालियों में सर्वश्रेष्ठ है वस्तुतः गुह्यकाली मन्त्र ध्यान पूजा और प्रयोग के भिन्न होने से कामकलाकाली कही जाती है I
इनका मूल मन्त्र अट्ठारह अक्षरों वाला है ,माँ कामकला काली के दो स्वरुप है निराकार और साकार , निराकार रूप विश्वाकार है तथा इनका साकार रूप बीभत्स ,रौद्र , उग्र और भयानक कहा गया है इनकी पूजा वाममार्ग से होती है इनकी पूजा के पहले इनकी सात आवरण देवताओं की अर्चना भी करनी पड़ती है ,इनके विविध प्रकार के अनुष्ठानों को करने से साधक को अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है महाकालसहिंता के अनुसार यही एक ऐसी देवी हैं जिनके लिए छत्तीस प्रकार के पक्षियों और अट्ठारह प्रकार के पशुओं का मांस अर्पित किया जाता है और सियारिणों के रूप में आकर स्वयं देवी इनका भोग लगाती है I
योगी साधक के धन सामर्थ्य के अनुसार इनकी पूजा के तीन प्रकार बताये गए हैं १) राजोपचार २) मध्योपचार ३) सामान्योपचार कुंडलिनी जागरण आदि यौगिक सफलता भी इनकी कृपा से हस्तगत होती है I
षोढान्यास का प्रयोग एकमात्र इसी काली का वैशिष्ट्य है I विभिन्न रूप वाली वागीश्वरी आदि इक्क्यावन शक्तियां इन्हीं देवी की स्वरूपभूता बतलायी गई हैं इस देवी का त्रैलोक्यमोहन कवच धारण करने से साधक अजर ,अमर तथा वज्रसार हो जाता है कालकेय असुरों पर विजय प्राप्त करने हेतु रावण ने भुजंगप्रयात छंद में बद्ध श्लोकों से इन देवी की प्रार्थना की थी I कामकला काली का शतनाम एवं सहस्त्रनाम अद्भुत फल देनेवाला है I
माँ कामकला काली के सात मंत्र है ये अत्यंत गुप्त रखे गए हैं इनमें से त्रैलोक्यकर्षण मंत्र मुख्य है ये मंत्र अट्ठारह अक्षरों का है कहते हैं की इस मंत्र के स्मरण मात्र से समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती है देवता मूर्छित होकर कांपते हुए साधक के समक्ष उपस्थित होते हैं वे साधक के साथ सेवकवत व्यवहार करते है ये मंत्र सर्वार्थसाधक है I
श्री गुरु दत्तात्रेय ,दुर्वासा मुनि ,ऋषि विश्वामित्र,पाराशर मुनि ,बलि ,नारद ,भगवान् परशुराम ,दैत्यगुरु शुक्राचार्य,सहस्त्रार्जुन,कपिल मुनि तथा वैवस्वत मनु आदि माँ कामकला काली के उपासक रहे हैं ,religion
कुक्कुटी महाविद्या रहस्यम:-
समस्त ब्रह्माण्ड अण्डरुप है। बीज भी अण्ड है चाहे वह वृक्ष का हो या जीव का। ब्रह्माण्ड भी अण्ड है, सूर्य चंद्रादि ग्रह नक्षत्र भी अण्ड है, मनुष्य के शरीर के अंदर असंख्य अण्ड है।
इन सब अण्ड को सेवित करती हैं कुक्कुटी और उसमें से निषेचन(सृजन )करती हैं । कुक्कुटी तो पाषाणाण्ड, जलाण्ड,वाय्वाण्ड किसी का भी निषेचन कर सकती है।
जब प्रलय होता है तब पृथ्वी अण्डज के रूप में हो जाती है और उस अण्ड को कुक्कुटी पुनः निषेचित करके नवीन अण्ड को सृजित कर देती है।
जैसे ही सूर्य फटेगा उसके बीज में से स्वर्ण रंग का सूर्याण्ड निकल कर छिटक जाएगा और कुक्कुटी जब चाहेगी तब उस अण्ड में से पुनः नवीन सूर्य का निर्माण कर लेगी।
इसलिए इस महाविद्या को परमगोपनीय विद्या कहा गया है। इनके महामंत्र का स्वरूप इस प्रकार है- वाग्भव,माया,लक्ष्मी,काम, फेत्कारी,क्रोध बीजों को कहकर कुक्कुटी कहें तत्पश्चात काली,पाश, अंकुश बीजों का कथन कर शाकिनी और चण्ड बीजों का उच्चारण करें। दो अस्त्र एवं अंत में शिर को कहने से अट्ठारह अक्षरों का महामंत्र बनता है।
यह कुक्कुटी विद्या सभी आगमों में गुप्त रखी गई है।
तारकासुर के उपर विजय की इच्छा रखने वाले स्कंद ने इसकी उपासना की थी,religion
🙏जय माँ