religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 15
religion and philosophy- 15
नारी और देवी,ऋणात्मक प्रकृति की हू-ब-हू प्रतिलिपि है,नारी
डॉक्टर रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
religion, ‘नारी’ इसलिए महामाया है; क्योंकि उसमें प्रकृति के समकक्ष समान गुण हैं। यह प्रकृति ही महामाया है, जो शिव से उत्पन्न होती है और उसी के लिंगामृत से तृप्त होती है।
नारी के शीर्ष पर इस अमृत का प्रवाह पुरुष की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। इसका स्वरूप (लिंगामृत) भी पुरुष के शीर्ष पर बनने वाले शिवलिंग से भिन्न होता है। यह भिन्नता नारी के शरीर की ऊर्जा प्रकृति के कारण है। वह सदाशिव सबको उसकी ही समान धन प्रकृति का ऊर्जा दान करता रहता है। यह एक नियम है। जैसा शरीर होगा, वैसी ही ऊर्जा प्रकृति का शिवलिंग उत्पन्न होगा
,religion
भैरवी विद्या में ‘नारी’ को महामाया माना गया है। माना क्या गया है, विश्वास के साथ कहा गया है कि वह महामाया ही है; क्योंकि वह ऋणात्मक प्रकृति की हू-ब-हू प्रतिलिपि है। उसका शरीर उस ऋण ऊर्जा के समकक्ष (समान) ऊर्जा से बना है। वह पुरुष के सापेक्ष उसका आधार है। पुरुष की पौरुष शक्ति नारी के लिए है और ‘नारी’ के बिना पुरुष का पौरुष निरर्थक है।
प्रकृति उसे अपना अमृत अपनी शक्ति देना बन्द कर देती है; क्योंकि वह उसका उपयोग नहीं करता। उसकी शारीरिक ऊर्जा उस इलेक्ट्रॉनिक मशीन की तरह होती है, जिसे निगेटिव नहीं मिल रहा। वह उस ऊर्जा का वास्तविक उपयोग नहीं कर पाता, जो प्रकृति उसे प्रदान करती है,religion
यहां भैरवी विद्या वैदिक मार्ग के सभी सूत्रों को तोड़ देती है। यह एक प्राकृतिक सूत्र बताती है। बिना ऋण के ‘धन’ का कोई उपयोग नहीं और ऐसे व्यक्ति को कभी मानसिक शान्ति नहीं मिलेगी। यह शरीर का प्राकृतिक धर्म है, शाश्वत नियम । इस नियम के अधीन समस्त प्रकृति बंधी हुई है। पॉजिटिव के बिना निगेटिव निरर्थक है, निगेटिव के बिना पॉजिटिव ।
इसका यह अर्थ है कि दक्षिणमार्गी साधक ‘मन’ को नियन्त्रित करने की सलाह नहीं देते। वे उसे मार देने के लिए कहते हैं। मन को मारना इतना आसान नहीं है। शरीर का भी अपना धर्म होता है। जिस प्रकार मल, मूत्र, छींक, पसीने आदि को नहीं रोका जा सकता, उसी प्रकार कामावेश (धनावेश) भी नहीं रोका जा सकता। इसे रोकना प्रकृति के विरुद्ध है। रोकने से यह आवेश शरीर के हर भाग में गरमी भर देगा। इससे मानसिक स्थिति भी प्रभावित होगी और शरीर भी। यह प्रभाव मानसिक एकाग्रता को भी बनने नहीं देगा।religion
नारी क्यों महामाया है?
‘नारी’ इसलिए महामाया है; क्योंकि उसमें प्रकृति के समकक्ष समान गुण हैं।
religion, यह प्रकृति ही महामाया है, जो शिव से उत्पन्न होती है और उसी के लिंगामृत से तृप्त होती है। नारी के शीर्ष पर इस अमृत का प्रवाह पुरुष की अपेक्षा कई गुणा अधिक होता है। इसका स्वरूप (लिंगामृत) भी पुरुष के शीर्ष पर बनने वाले शिवलिंग से भिन्न होता है। यह भिन्नता नारी के शरीर की ऊर्जा प्रकृति के कारण है। वह सदाशिव सबको उसकी ही समान धन प्रकृति का ऊर्जा दान करता रहता है। यह एक नियम है। जैसा शरीर होगा, वैसी ही ऊर्जा प्रकृति का शिवलिंग उत्पन्न होगा।
इसी सूत्र पर प्राचीन स्थलों पर शिवलिंगों को स्थापित करके उनके पास बैठकर सिद्धियों के लिए साधनायें की जाती थीं। यह एक तान्त्रिक रहस्य है। शिवलिंग (जो श्याम शिवलिंग प्राचीनतम स्थलों में स्थापित हैं) स्थापित नहीं किया जाता। जिसे हम स्थापित किये हुए हैं, वह आद्यायोनि है। यहां शिव एवं सदाशिव का ध्यान लगाने से और मन्त्रों से वांछित इच्छा की सिद्धि प्राप्त कर सकता है। इस शिवलिंग पर जो अमृत बरसता है, असली अमृत है। यह इस योनि के शीर्ष के आवेश से संयोग करके एक नयी ऊर्जा उत्पन्न करता है। यह ऊर्जा मानसिक शान्ति और एकाग्रता के लिए अमृत है। इससे आवेशित शरीर शुद्ध एवं निर्विकार हो जाता है। यहां ध्यान लगाने से पाप भस्म हो जाते हैं।इस स्थिति में साधक जो सिद्ध करना चाहता है, वह आसानी से प्राप्त कर सकता है,religion
इस मूलाधार के शिवलिंग, जो वस्तुतः आदि योनि का रूप है और पृथ्वी की ऊर्जा से आवेशित होती है, पर नारी तो पृथ्वी एवं सूर्य दोनों के संयोग से और अधिक शुद्ध एवं शुद्ध ऊर्जा रूप है। उसकी योनि में यह आद्यायोनि विद्यमान है इसके आवेश से ही शिवलिंग उत्पन्न होता है। इसकी ही शक्ति से सारा शरीर संचालित है। यह सृष्टि की प्रथम पराउत्पत्ति निराकार योनि का छोटा रूप है।
religion , ‘नारी’ को देखकर पुरुष में शक्ति का संचार होने लगता है। इससे ज्ञात होता है कि नारी से संयोग करके वह अपार शक्ति को प्राप्त कर सकता है और उसे इष्ट के रूप में परिवर्तित कर सकता है। भैरवी विद्या का मुख्य सूत्र यही है। नारी-पुरुष रति से दोनों जितनी चाहे ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं। इसकी विधियां हैं। इस ऊर्जा की मात्रा इतनी होती है कि सारा पावर सर्किट कई गुणा अधिक गतिशील हो जाता है। उससे ऊर्जा के विभिन्न रूपों की भारी उत्पत्ति होने लगती है। इससे उन्हें शीर्ष से अधिक अमृत खींचना होगा। यह चलता रहता है । अभ्यास से इसे किसी सीमा तक खींचा जा सकता है।
‘भाव’ और ‘नियन्त्रण’ सर्वोपरि
religion,नारी का शरीर महामाया का रूप है, इसलिए उसमें ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियों का निवास होता है। योनि से लिंग की उत्पत्ति होती है और इसी से पुरुष की भी। इस समय आप जिस ‘भाव’ से प्रेरित होंगे, वही ऊर्जा उत्पन्न होगी। यह शरीर के अपने नियम हैं। यह ‘भाव’ से ही नियन्त्रित होता है । मन भी इसी के नियन्त्रण में होता है। भाव जैसा होगा, हमें वैसा ही फल मिलेगा। यह देवी तारा है, नील सरस्वती । इसका प्रवाह इतना तीव्र है कि इन्होंने जगदजननी सीता और राधा तक को विलाप करने पर विवश कर दिया। भावना का प्रवाह काली की ही भांति (काम, हिंसा, क्रोध आदि) अन्धा होता है।
दक्षिणमार्ग भी भाव के इस महत्त्व को मानता है । पर यह कहता है कि भाव को परमात्मा से जोड़ो और इस प्रकृति के तमाम सत्य को भूल जाओ। यह भाव ही तुम्हें परमात्मा तक पहुंचा देगा।
पर क्या सचमुच ऐसा होता है ?
क्या मन के भावों को निरुद्ध करना इतना सरल है
इसका एक ही उत्तर है। निरन्तर अभ्यास से कुछ भी सम्भव है। भैरवी विद्या ने पूजा एवं सिद्धि के लिए उस प्रथम और सर्वशक्तिशाली भाव को अपनाया है। काम का भाव। इसमें मन केन्द्रित करने में कोई परेशानी नहीं होती। यह यदि पूजा, श्रद्धा एवं कामना से युक्त होकर विधिपूर्वक किया जाये और इससे प्राप्त ऊर्जा को नियन्त्रित करके वांछित रूप में विधियों से मनोकामना पूर्ति का प्रयत्न हो, तो अन्य किसी भी साधनामार्ग की अपेक्षा इसमें कम समय और कम परिश्रम लगता है
सबसे बड़ी कसौटी
जो स्त्री-पुरुष कामभाव में मन को स्थिर करके बतायी गयी विधियों से उसे रोकने का नियन्त्रण कर लें, वे किसी भी भाव में एकाग्र हो जायेंगे,religion
प्रारम्भिक चरणों में कई महीने सामूहिक पूजा चलती रहती है। इसमें सभी प्रकार के चुहल एवं श्रृंगार की अनुमति होती है, पर रति अनुमेय नहीं होता। घर पर भी नहीं। चाहे वे शादीशुदा हों।
इस समय जो सफल होता है, अगली दीक्षा उसे ही दी जाती है। सामूहिक पूजा एक पूजा विधि है। इसका साधना से नहीं, उस समय के भाव से सम्बन्ध है। असली भैरवी विद्या इसके बाद है।
जो नारी के लिए मन में हीन भाव रखता है, उसके प्रति क्रूर व्यवहार करता है, बलपूर्वक इच्छाविरुद्ध रति करता है, वह भैरवी विद्या में नरकगामी होता है। उसका वंश खराब हो जाता है। वह शरीर के आवेश को उतार देता है, पर उस अमृत से वंचित रह जाते हैं, जो नारी की योनि में बरसता है। कारण है कि वह आवेशित ही नहीं है। वह अमृत बना ही नहीं,religion
भैरवी साधक के लिए नारी उसकी इष्ट देवी है। वह उसको वस्त्रादि सभी प्रकार की श्रृंगार सामग्री देकर या स्वयं उसे सजाता है। उसे भैरवी चक्र के मध्य बैठाकर चरणों से कपाल तक उसे भैरवी मन्त्रों से शुद्ध करके चरणों से कपाल तक की पूजा करता है। उसे प्रसाद अर्पित करता है और तब निश्चित हवन आदि भजन
आदि होते हैं। इस काल में एक गुरु, एक प्रधान भैरवी, आठ भैरवी, आठ भैरव, चार दिशा स्वामिनी एवं उसके देव। इन सबकी पूजा की जाती है। गुरु से लेकर भैरव एवं देवता आदि भी भैरवी की पूजा करते हैं। यह सामूहिक पूजा हमारी पूजा से मिलती है। जैसे हम कुमारियों की पूजा करते हैं।
प्रथम पूजा दीक्षा के समय गुरु करता है। यह पूजा 9 दिन तक चलती है। इसे गुरु दीक्षा कहा जाता है। दसवें दिन गुरु की पूजा की जाती है। इसके बाद ही किसी को इस पूजा में शामिल होने की अनुमति होती है। दीक्षा केवल वीराचारी साधक दे सकता है, जो भैरवी विद्या का साधक हो और गुरु हो ।
फिर पूजा चक्र में परीक्षण होता है। संयम, नियन्त्रण, भाव एवं मन के नियन्त्रण का अभ्यास। यह तब तक चलता है, जब तक गुरु सन्तुष्ट न हो जाये कि वह भैरवी विद्या की साधना के योग्य है।
फिर गुरु एक-एक करके रति-साधनाओं के अद्भुत रहस्यों को बताता जाता है।
अकसर देखा गया है कि नारियां संयम में अधिक सफल रही हैं। यह उसका प्राकृतिक गुण है। वह जिस भाव में डूबती है, उसी में एकाग्र हो जाती है। यदि कोई उसे अपने भाव में बांध लेता है, तो उस समय उस पर अमृत बरस रहा होता है। सारे देवी-देवता अपनी शक्ति दे रहे होते हैं। साथ-साथ मन का नियन्त्रण, साथ-साथ विधियों का पालन । एक तारतम्य बनाना होता है।
इसके बाद साधनायें हैं। अनन्त श्रृंखलाओं में। हमने प्रमुख साधनायें बतायी हैं, पर सूत्र आगे बता दिया है। चाहो तो स्वयं साधना विधियां विकसित कर लो, पर यह गुरु के बिना करना थोड़ा खतरनाक हो सकता है। रति से बनने वाली ऊर्जा को उपयोग न कर पाने से भारी क्षति हो सकती है। बोतल से जिन्न निकालने में बहादुरी नहीं है, उसे नियन्त्रित करने की क्षमता भी चाहिए। अन्यथा वह जिन्न ही हमें
नारी की इसी महत्ता के कारण उसे देवी कहा जाता है। वह शक्ति का स्त्रोत है। उसकी शक्ति से हमें शक्ति मिल सकती है। दोनों शक्ति से तीसरी शक्ति प्राप्त की जा सकती है। अतः नारी पूजया है,religion
Jai ho