religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 37
religion and philosophy- 37
भगवान शिव सृष्टि के रक्षक हैं तो संहारक भी है, इस बात का पुष्टि स्रोत हमारे शास्त्र हैं, भोलेनाथ हर समय कैलाश निवासी नहीं होते, अलग-अलग तिथियों में, भगवान अलग परिस्थितियों में होते हैं, शास्त्र कहते हैं कि भगवान शिव जब कैलाशपर्वत पर मां गौरी,और नंदी के सानिध्य में होते हैं तो प्रसन्न मुद्रा में होते हैं, यही समय होता है उनकी आराधना से शुभ फल प्राप्ति का, वो समय कौन सा है, और भगवान शिव की आराधना कैसे करें इस पर विस्तृत चर्चा कर रहे हैं आज हरिद्वार के वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर रमेश खन्ना, पढ़ें उनका ये उपयोगी लेख।
श्रीमती शशि शर्मा
संपादक Newsok24.com
शिव निवास का विचार रुद्राभिषेक का फल
किसी कामना, ग्रहशांति आदि के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव निवास का विचार करने पर ही अनुष्ठान सफल होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
प्रत्येक मास की तिथियों के अनुसार जब शिव निवास गौरी पार्श्व में, कैलाश पर्वत पर, नंदी की सवारी एवं ज्ञान वेला में होता है तो रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि, परिवार में आनंद मंगल और अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है।
“परन्तु शिव वास श्मशान, सभा अथवा क्रीड़ा में हो तो उन तिथियों में शिवार्चन करने से महा विपत्ति, संतान कष्ट व पीड़ादायक होता है।”
रुद्राभिषेक करने की तिथियां-
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
शिव वास कब कहा
1. प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।
2. कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
3. कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
4. कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं।
अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर भगवान शिव की साधना भंग होती है, जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।
5. कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।
6. कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं। इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।
7. कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं।
इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
इसके अतिरिक्त ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपा पात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।
अतः हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं।
स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है।
विभिन्न प्रकार के अभिषेक का फल
ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है । परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध से विशेष रूप से अभिषेक किया जाता है ।
विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है।
तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है।
किन्तु यदि पारद , स्फटिक , नर्मदेश्वर, अथवा पार्थिव शिवलिंग का अभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है ।
रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है ।
1जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
2 असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
दध्ना च पशु कामाय श्रिया इक्षु रसेन च । मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थ वारिणः ।।
1 भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
2 लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
3 धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
4 तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
5 पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
6 रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
7 ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
8 सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
9 प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै।
10 शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
11 सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
12 शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
13पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
14 गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
15 पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।
रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।
शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं।
रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।
रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है। श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है।
रुद्राभिषेक क्या है ?
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।
रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?
रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है।
रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।
रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ।
इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है?
भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।
जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।
रुद्राभिषेक की पूर्ण विधि
रुद्राभिषेक पाठ एवं उसके भेद
पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही ! ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है ।
अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसेयाग्यों से भी प्राप्त नही होता !
स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है । लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है !
(1) रूपक या षडड पाठ – रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ खा गया है ।
शिव कल्प शुक्त – 1. प्रथम हृदय रूपी अंग है
पुरुष शुक्त -2. द्वितीय सर रूपी अंग है ।
अप्रतिरथ सूक्त – 3. कवचरूप चतुर्थ अंग है ।
मैत्सुक्त – 4. नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।
शतरुद्रिय -5. अस्तरूप षष्ठ अंग कहा गया है।
इस प्रकार – सम्पूर्ण रुद्रश्त्ध्ययि के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है।
(2) रुद्री या एकादिशिनि – रुद्राध्याय की गयी ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।
(3) लघुरुद्र- एकादिशिनी रुद्री की ग्यारह अव्रितियों के पाठ के लघुरुद्र पाठ कहा गया है।
यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है । तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादिशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होती है।
(4) महारुद्र — लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है ।
(5) अतिरुद्र – महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री का 1331 आवृति पथ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है
(1)अनुष्ठात्मक
(2) अभिषेकात्मक
(3) हवनात्मक ,
तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो की अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है।
पूजा समाप्ति के उपरांत शिव अभिषेक का नियम है इसके लिये आवश्यक सामग्री पहले ही एकत्रित करलें।
सामग्री बाल्टी अथवा बड़ा पात्र जल के लिये संभव हो तो गंगाजल से अभिषेक करे। श्रृंगी (गाय के सींग से बना अभिषेक का पात्र) श्रृंगी पीतल एवं अन्य धातु की भी बाजार में सहज उपलब्ध हो जाती है।, लोटा आदि।
रुद्राभिषेक से लाभ
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा। रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से हैं ।
श्लोक
जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
जवरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशयः।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषतः।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च!!
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह!
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधिः सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीतः शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।
अर्थात
जल से रुद्राभिषेक करने पर – वृष्टि होती है।
कुशा जल से अभिषेक करने पर – रोग, दुःख से छुटकारा मिलती है।
दही से अभिषेक करने पर – पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
गन्ने के रस से अभिषेक करने पर – लक्ष्मी प्राप्ति
मधु युक्त जल से अभिषेक करने पर – धन वृद्धि के लिए।
तीर्थ जल से अभिषेक करने पर – मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से – बीमारी नष्ट होती है ।
दूध् से अभिषेककरने से – पुत्र प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण
गंगाजल से अभिषेक करने से -ज्वर ठीक हो जाता है।
दूध् शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से – सद्बुद्धि प्राप्ति हेतू।
घी से अभिषेक करने से -वंश विस्तार होती है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने से -रोग तथा शत्रु का नाश होता है।
शुद्ध शहद रुद्राभिषेक करने से – पाप क्षय हेतू।
इस प्रकार शिव के रूद्र रूप के पूजन और अभिषेक करने से जाने-अनजाने होने वाले पापाचरण से भक्तों को शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है और साधक में शिवत्व रूप सत्यं शिवम सुन्दरम् का उदय हो जाता है उसके बाद शिव के शुभाशीर्वाद सेसमृद्धि, धन-धान्य, विद्या और संतान की प्राप्ति।
रुद्राभिषेक कैसे कर
1 जल से अभिषेक
हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।
सर्वप्रथम भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें तत्पश्चाततांबे को छोड़ अन्य किसी भी पात्र विशेषकर चांदी के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें, ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
2 दूध से अभिषेक
शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें
भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें।
अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। खासकर तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। इससे ये सब मदिरा समान हो जाते हैं। तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक बिल्कुल वर्जित होता है। क्योंकि तांबे के पात्र में दूध अर्पित या उससे भगवान शंकर को अभिषेक कर उन्हें अनजाने में आप विष अर्पित करते हैं। पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
3 फलों का रस
अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें।
भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
4 सरसों के तेल से अभिषेक
ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें।
भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें फिर ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करे
5 चने की दाल
किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें।
भगवान शिव के ‘समाधी स्थित’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें फिर ताम्बे के पात्र में ‘चने की दाल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -ॐ शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
6 काले तिल से अभिषेक
तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें। इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘नीलवर्ण’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें, अभिषेक करते हुए -ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें, शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
7 शहद मिश्रित गंगा जल गुरु अंचल शर्मा
संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें।
सबसे पहले भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ” शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें, ॐ चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें, पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें, शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए -ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा’ का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें।
8 घी व शहद
रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें।
इसके लिये सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें, ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें फिर ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा” का जाप करें शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
9 कुमकुम केसर मिश्रित जल
आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर के मिश्रण से अभिषेक करें।
सर्वप्रथम भगवान शिव के ‘नीलकंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें चाँदी अथवा स्टील के पात्र में ‘कुमकुम केसर और पंचामृत’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें – ‘ॐ उमायै नम:’ का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-‘ॐ नम: शिवाय’ फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें. अभिषेक का मंत्र-ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा’ शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
रूद्राभिषेक पूजा प्रक्रिया:
रुद्र अभिषेक का विस्तृत संस्करण होमा या आग में यज्ञ संबंधी वस्तुएं चढ़ाने के बाद किया जाता है। यह सिद्ध पुजारियों द्वारा किया जाता है। इसमें शिवलिंग को उत्तर दिशा में रखते हैं। भक्त शिवलिंग के निकट पूर्व दिशा की ओर मुंख करके बैठते हैं। अभिषेक गंगा जल से शुरू होता है और गंगा जल के साथ हर तरह के अभिषेक के बीच शिवलिंग को स्नान कराने के बाद अभिषेक के लिए आवश्यक सभी सामग्री शिवलिंग पर अर्पण की जाती है। अंत में, भगवान को विशेष व्यंजन अर्पित किए जाते हैं और आरती की जाती है।
अभिषेक से एकत्रित गंगा जल को भक्तों पर छिड़का जाता है और पीने के लिए भी दिया जाता है, जिसे माना जाता है कि सभी पाप और बीमारियां दूर हो जाती हैं। रूद्राभिषेक की संपूर्ण प्रक्रिया में रूद्राम या ‘ओम नम: शिवाय’ का जाप किया जाता है।
रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है।
क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।
रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है। श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है।
शिव अभिषेक का नियम है इसके लिये आवश्यक सामग्री पहले ही एकत्रित करलें। सामग्री बाल्टी अथवा बड़ा पात्र जल के लिये संभव हो तो गंगाजल से अभिषेक करे। श्रृंगी (गाय के सींग से बना अभिषेक का पात्र) श्रृंगी पीतल एवं अन्य धातु की भी बाजार में सहज उपलब्ध हो जाती है।, लोटा आदि।
रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है।
यह पंचामृत से की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है। ब्राह्मण के अभाव में स्वयं भी संस्कृत ज्ञान होने पर रुद्राष्टाध्यायी के पाठ से अथवा अन्य परिस्थितियों में शिवमहिम्न का पाठ करके भी अभिषेक किया जा सकता है। इस सबकी सुविधा ना होने पर भी निम्नलिखित मंत्रो से भी महादेव को स्नान एवं अभिषेक करने से बहुत पूण्य मिलता है।
रुद्राष्टाध्यायी अत्यंत ही मूल्यवान है, न ही इससे बिना रुद्राभिषेक ही संभव है और न ही इसके बिना शिव पूजन ही किया जा सकता है। यह शुक्लयजुर्वेद का मुख्य भाग है। इसमें मुख्यत: आठ अध्याय हैं पर अंतिम में शान्त्यध्याय: नामक नवम तथा स्वस्तिप्रार्थनामन्त्राध्याय: नामक दशम अध्याय भी हैं।
इसके प्रथम अध्याय में कुल 10 श्लोक है तथा सर्वप्रथम गणेशावाहन मंत्र है, प्रथम अध्याय में शिवसंकल्पसुक्त है। द्वितीय अध्याय में कुल 22 वैदिक श्लोक हैं जिनमें पुरुसुक्त (मुख्यत: 16 श्लोक) है। इसी प्रकार आदित्य सुक्त तथा वज्र सुक्त भी सम्मिलित हैं। पंचम अध्याय में परम् लाभदायक रुद्रसुक्त है, इसमें कुल 66 श्लोक हैं। छठें अध्याय के पंचम श्लोक के रूप में महान महामृत्युंजय श्लोक है। सप्तम अध्याय में 7 श्लोकों की अरण्यक श्रुति है प्रायश्चित्त हवन आदि में इसका उपयोग होता है। अष्टम अध्याय को नमक-चमक भी कहते हैं जिसमें 24 श्लोक हैं।
श्लोकों की संख्या की सूची निम्नांकित है–
प्रथम अध्याय = 10 श्लोक
द्वितीय अध्याय = 22 श्लोक
तृतीय अध्याय = 17 श्लोक
चतुर्थ अध्याय = 17 श्लोक
पंचम अध्याय = 66 श्लोक
षष्ठम अध्याय = 8 श्लोक
सप्तम अध्याय = 7 श्लोक
अष्टम अध्याय = 29 श्लोक
शान्त्यध्याय: = 24 श्लोक
स्वस्तिप्रार्थनामंत्राध्याय: = 13 श्लोक
शिवसंकल्प सुक्त
प्रथम अध्याय के 5वे श्लोक से इसकी शुरुआत है–
यज्जाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति। दूरंगमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥१॥
अर्थ: जो मन जागते हुए मनुष्य से बहुत दूर तक चला जाता है, वही द्युतिमान् मन सुषुप्ति अवस्था में सोते हुए मनुष्य के समीप आकर लीन हो जाता है तथा जो दूरतक जाने वाला और जो प्रकाशमान श्रोत आदि इन्द्रियों को ज्योति देने वाला है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।
येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥२॥
अर्थ: कर्म अनुष्ठान में तत्पर बुद्धि संपन्न मेधावी पुरुष यज्ञ में जिस मन से शुभ कर्मों को करते हैं, प्राजाजन के शरीर में और यज्ञीय पदार्थों के ज्ञान में जो मन अद्भुत पूज्य भाव से स्थित है, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।
यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु। यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु॥३॥
अर्थ: जो मन प्रकर्ष ज्ञान स्वरूप, चित्त स्वरूप और धैर्य रूप हैं; जो अविनाशी मन प्राणियों के भीतर ज्योति रूप से विद्यमान है और जिसकी सहायता के बिना कोई कर्म नहीं किया जा सकता, वह मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।
येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत्परिगृहीतममृतेन सर्वम्। येन
*डॉ रमेश खन्ना*
वरिष्ठ पत्रकार
हरिद्वार (उत्तराखण्ड)
जय शिव शंकर जय भोलेनाथ 🙏🙏🌹🌹🌹🌹