religion,धर्म-कर्म और दर्शन -70

religion and philosophy- 70

🏵️🪷ध्यान कैसे करें आइए समझते हैं..!!🪷🏵️

ध्यान करने के समय हमें अपनी समस्त हरकतों को विराम देना होता है , जैसे बोलना सोचना शरीर का हिलना आदि । ध्यान के लिए पहला कार्य है स्थिर होना । आप किसी भी प्रकार बैठ सकते हैं । बैठना आरामदेह और निश्चिंत होना चाहिए । ध्यान किसी भी स्थान किसी भी समय कर सकते हैं, जहां हमें सुखदाई हो।

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आराम से बैठिए घुटनों को मोड़िए , उंगलियों को फंसाइए , आंखे बंद कीजिए तथा अंदर और बाहर की आवाजों पर रोक लगाइए। किसी भी मंत्र का उच्चारण न कीजिए , शरीर को बिल्कुल ढीला एकदम ढीला छोड़ दीजिए । जब हम घुटने मोड़ते व उंगलियों को फंसा लेते हैं तो शक्ति का दायरा बढ़ जाता है , स्थिरता बढ़ जाती है। आंखे दिमाग का द्वार है इसलिए यह बंद होनी चाहिए । जब शरीर ढीला छोड़ दिया जाता है तो चेतना अपने कक्ष में पहुंचती है।

मन विचारों का समूह है। जब विचार आते हैं तो प्रश्न भी खड़े होते हैं जाने – अनजाने। मन और बुद्धि को भावातीत करने के लिए हमें अपनी सांस पर ध्यान देना चाहिए । अपने आप पर ध्यान देना हमारी प्रकृति है। जान बूझकर सांस न लीजिए न छोड़िए।

प्राकृतिक सांस पर ध्यान दीजिए , विचारों का पीछा न कीजिए। विचार सवाल से मत चिपक जाइये। सांस पर ध्यान दीजिए, सांसों में खो जाइए। इसके साथ साथ सांसों की गहराई कम होती जायेगी। धीरे धीरे सांस हल्की और छोटी – छोटी होती जायेगी , आखिर में बहुत छोटी होती जायेगी और अंत में दो भागों में चमक का रूप ले लेगी। इस दशा में हर किसी में न सांस रहेगी न विचार..! वो विचारों से परे हो जायेगा। यह दशा कहलाती है निर्मल स्थिति , बिना विचारों की दशा । ये ध्यान की दशा है। ये वो अवस्था है जब हमपर विश्वशक्ति की बौछार होने लगती है। हम जितना ज्यादा ध्यान करेंगे उतनी ही ज्यादा विश्वशक्ति हमें प्राप्त होगी।

विश्वशक्ति प्राणमय शरीर की शक्ति में प्रवाह करती है। उस शक्ति से भरा हुआ शरीर प्राणमय कहलाता है। प्राणमय शरीर में 72000 से ज्यादा रंगरहित नाड़ियां या शक्ति की नलियां होती हैं। जो पूरे शरीर में फैली होती हैं। ये भाग ब्रम्हरंज कहलाता है। ये नलियां सारे शरीर में पेड़ की जड़ और डालियों की तरह फैली हुई हैं। प्राणमय शरीर हमारे शरीर का विशेष आधार है।

प्राणमय शरीर को नींद में या ध्यान में विश्वशक्ति प्राप्त होती है। हम इस शक्ति का उपयोग रोज के कामों में जैसे बोलना सोचना सुनना आदि शारीरिक – मानसिक कामों में इस्तेमाल करते हैं। इन सभी कार्यों का आधार विश्वशक्ति है। विश्वशक्ति का बहाव केवल हमारे विचारों पर आधारित है। जब हम सोचने विचारने लगते हैं तो विश्वशक्ति का बहाव रुक जाता है। मतलब सोचना विचारना विश्वशक्ति का बांध है। जब विश्वशक्ति का बहाव कम हो जाता है। तो शक्ति नालियों में कम शक्ति पहुंचती है। ये कमी हमारे शरीर की शक्ति मे रंगरहित अदृश्य धब्बे डाल देती है। ये धब्बे धीरे धीरे बीमारी पैदा करते हैं। मतलब हमारे प्राणमय शरीर में विश्वशक्ति की कमी सारी बीमारियों की जड़ है।

ध्यान से हमें बहुत बड़ी मात्रा में विश्व शक्ति प्राप्त होती है। ये हमारी शक्ति नलियों में सारे शरीर में पहुंचती है। विश्वशक्ति जब बहुत बड़ी मात्रा में बहने लगती है तो रंग रहित अदृश्य धब्बे मिट जाते हैं। जब ये धब्बे साफ हो जाते हैं तो हम स्वस्थ हो जाते हैं। सभी बीमारियों से मुक्त हो जाते हैं। जब ब्रम्हरंज में शक्ति में बहने लगती है सिर में सारे शरीर में भारीपन लगता है।

जब शक्ति हमारी नलियों को साफ करने लगती है, तो हमे इस हिस्से में खुजली या दर्द का आभास होता है। कभी कभी भौतिक शरीर के कई हिस्सों में दर्द भी महसूस हो सकता है। इस दर्दों को दूर करने के लिए हमे दवा लेने की जरूरत नहीं है ज्यादा से ज्यादा ध्यान करने से ये दर्द स्वतः दूर होते जाते हैं। अधिक ध्यान के द्वारा ज्यादा से ज्यादा विश्वशक्ति अर्जित करने पर हम सारी मानसिक शारीरिक बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं।

डॉक्टर रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार हरिद्वार

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