religion,धर्म-कर्म और दर्शन -79
religion and philosophy- 79
🏵️हम सबके लिए कुलदेवी – कुलदेवता का महत्त्व 🏵️
🙏पितृ देवताभीयो नमः।। कुल देवताभीयो नमः।।🙏
आज के भौतिकवादी युग में प्रत्येक व्यक्ति मानसिक तनावग्रस्त व सभी संसाधनों के होते हुए भी संतुष्ट नहीं। मानसिक उलझन में घिरा और अशांत रहताहै। जिसकी वजह है आज हम अपने पितरों (पितृ देवता)
कुल देवी तथा कुल देवता को भुला चुके हैं। आज की 70 फीसदी पीढ़ी अपने पितरों कुल देवता कुल देवी तथा गोत्र तक नहीं जानते हैं उनकी पूजा आराधना तथा सिमरन दूर की बातहै। यही हमारी मानसिक उलझनों का मूल कारण है।
हमारे भारत में ,सनातन धर्म में हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता / कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं। जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया। हमारे जीवन में कुलदेवी , कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है।
आर्थिक समृद्धि , सुख, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी ,कुलदेवता की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है। पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुलदेवता अथवा कुलदेवी का चयन कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों – ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रहकर उन्नति करते रहें।
कुलदेवी – कुलदेवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देवी देवता होते है। सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवी ,देवों की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है। अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई भी देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता।
उदहारण के तौर पर – यदि घर के मुखिया पिताजी – माताजी हमसे नाराज हों तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिये, आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी” होते है।
खासकर सांसारिक लोगों को कुलदेवी कुलदेवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना ही चाहिये।समय क्रम में परिवारों के एक से दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता / देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता / देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है। इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।
कुलदेवता ,कुलदेवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक – टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़ियां अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, अपितु कारण जल्दी नहीं पता चलता क्यूंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना असंभव तो नहीं अपितु मुश्किल अवश्य होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ घटता कुछ और है।
कुलदेवता या कुलदेवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं , और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं, ऐसे में आप किसी भी इष्ट की आराधना करे वह उस इष्ट तक नहीं पहुँचता, क्यूंकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, ऐसा होनेपर बाहरी बाधाएं अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुंचने लगती है, कभी कभी कहीं कहीं ऐसा भी देखा गया है कि व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही इष्ट की पूजा / नवैद्य / भोग कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न इष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है।
ऐसा कुलदेवी ,कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है। वर्तमान समय में कुलदेवी ,कुलदेव परम्परा को लोग भुला / भूल रहे है जिन घरों में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है, निर्वंशी हो रहे हों, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौतें हो रही हो, उन परिवारों को इसपर विशेष ध्यान देना चाहिए।
कुलदेवता या कुलदेवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न भिन्न समय होता है और भिन्न भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी – विवाह, संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है, परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुलदेवता या कुलदेवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान /अर्पण करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा – उन्नति होती रहे।
अंतः प्रत्येक परिवार / व्यक्ति को अपने कुलदेवी ,कुलदेवता को जानना चाहिये तथा यथायोग्य परिवार /कुल की परम्पराओं के अनुसार उन्हें समय समय पर तिथिविशेष पर पूजा / नैवैद्य / भोग अर्पण करने चाहिये जिससे परिवार में सुख शांति समृद्धि सदैव बनी रहे I
भूलचूक क्षमायाचना सहित
सदगुरुदेव शरणम
डॉ रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरीद्वार उत्तराखंड