religion,धर्म-कर्म और दर्शन -83

religion and philosophy- 83

 

🌼किसे कहते हैं ब्रह्मराक्षस ?🌼

आम तौर पर हम सभी भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी चांडाल चुड़ैलों के बारे में अपने बड़े बुजुर्गों से सुनते आये है । अपितु ब्रह्मराक्षस के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना है जैसे की अधिकांश लोग ये नही जानते कि ब्रह्मराक्षस किसे कहते है ? ये कौन होते है ? और ये कितने शक्तिशाली होते है ? तो आज इस पोस्ट के माध्यम से मैंने अपने अध्ययन काल में ब्रह्मराक्षस के विषय मे जो कुछ भी पढ़ा तथा कुछेक ज्ञानीजनों के मुख से इस विषय पर जो कुछ भी ज्ञान / जानकारी प्राप्त की है वही यहाँ विस्तार से प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ I सर्वप्रथम हमें ये जानना / समझना होगा की आखिर ब्रह्मराक्षस क्या है?

religion,धर्म-कर्म और दर्शन -83
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ब्रह्मराक्षस वे दैत्य होते है जिनके पास ब्रह्मा का ज्ञान होता है। लेकिन वो अपनी इन शक्तियों का प्रयोग बुरे कामो के लिए करते है। ये बहुत ज्यादा शक्तिशाली भी होते है। पुराणों में लिखा गया है कि ब्रह्मराक्षस आधे देव और आधे दैत्य होते है। अजीब बात यह है कि इन ब्रह्मराक्षस के बारे में हमारे पुराणों में भी बहुत कम जानकारी दी गई है। ब्रह्मा राक्षसों का जिक्र श्री कृष्ण के वक़्त में पुराणों में हुआ है।
हमारे हिन्दू /सनातन धर्म के अनुसार जीव / मनुष्य के मरने के बाद उसका विभाजन गति और कर्म के आधार पर होता है।
भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी चांडाल चुड़ैल ब्रह्मराक्षस बेताल इन सभी भागों में विभाजित होते है।

फिर इन सभी के उपभाग भी होते है। आयुर्वेद के अनुसार प्रेत १८ प्रकार के होते है। इसमें से भूत पहले क्रम में है, इसी क्रम में आगे बढ़ने पर ब्रह्मराक्षस आते है। ब्रह्मराक्षस उन आत्माओं को कहा जाता है जिनका जन्म उच्चकुल (ब्राह्मणकुल ) में हुआ होता है । लेकिन उच्चकुल (ब्राह्मणकुल ) में जन्म लेने के उपरांत भी उनके कर्म बुरे होते है,अथवा फिर वे लोग जो अपने ज्ञान और प्रतिभा का प्रयोग समाज कल्याण के बजाए अपनी निजी स्वार्थ या गलत कामों के लिए करते है। ऐसे लोग ही मरने के बाद अपने ज्ञान और प्रतिभा के कारण ब्रह्मराक्षस बन कर अपनी सज़ा भुगतते है।

जो व्यक्ति बुद्धिमान और उच्चकुल ((ब्राह्मणकुल ) में होने के बावजूद बुरे कर्म करता है। वो व्यक्ति मरने के बाद ब्रह्मराक्षस बन जाता है जोकि बहुत ही शक्तिशाली होता है। ब्रह्मराक्षस खामोश रहकर अनुशासन से जीवन यापन करते है। ये घंटो घंटो एक ही अवस्था में बैठे या खड़े रहते है। मैंने कुछेक ज्ञानियों / साधकों के मुख से सुना है कि ये बहुत सारा खाना खाते है। ब्रह्मराक्षस अपने सीखने के स्तर को सदैव बनाये रखते है। ऐसा कहा जाता है कि इनकी सबसे बुरी बात यह है कि ये मनुष्यों को खाते है। वे अपने पिछले जन्म की यादों के साथ साथ वेद और पुराणों का ज्ञान अपनी यादों में सहेज कर रखते है। अगर देखा जाए तो इनका आधा हिस्सा ब्रह्म यानी देव होता है और आधा हिस्सा दैत्य यानी दानव /राक्षस का होता है।
ब्रह्मराक्षस और पीपल :
ऐसा माना जाता है की पीपल वृक्ष ब्रह्मराक्षस को आबादी से दूर रखने के लिए होता है अन्य मान्यता के अनुसार ब्रह्मराक्षस को पीपल का वृक्ष पसंद होता है जिस पर वे वास करते है। अगर कोई इसे हटा दे तो ब्रह्मराक्षस क्रोधित हो जाते है। दोनों ही मान्यता में पीपल वृक्ष इन्हें आबादी वाले इलाके से दूर रखता है। उच्चकुल ( ब्राह्मण कुल ) के कारण ब्रह्मराक्षस किसी अन्य वृक्ष पर वास नहीं कर सकते क्यों की ये निम्न श्रेणी के वृक्ष होते है।
ब्रह्मराक्षस के मंदिर कहाँ कहाँ पाए जाते है?
ब्रह्मराक्षस के मंदिर ज्यादातर भारत के मध्य और दक्षिण भारत के इलाकों में पाया जाता है। महाराष्ट्र और केरल में सबसे ज्यादा ब्रह्मराक्षस के मंदिर या उनकी मूर्ति देखने को मिलती है। ब्रह्मराक्षस की पूजा भी की जाती है और कोई भी निर्माण कार्य शुरू करने से पहले उनकी पूजा करके उनकी अनुमति ली जाती है। भारत में ब्रह्मराक्षस का सबसे प्रसिद्ध मंदिर केरल के कोट्टायम में उपस्थित है इन्हें सम्मान दिया जाता है और तेल का दिया भी जलाया जाता है। I

ब्रह्मराक्षस से मुक्ति दिलाने के उपाय
ज्ञानियों के अनुसार सबसे सरल उपाय ये है
1 ) श्रीमद्भगवद्गीता जी के आठवे अध्याय का अथवा श्रीगुरुगीता जी का नियमित पाठ करने से ब्रह्मराक्षस को मुक्ति दिला सकते हैं I
2 ) काशी में जाकर योग्य विद्वान के मार्गदर्शन में ब्रह्मराक्षस को मुक्ति दिलाई जा सकती है I
3 ) अगर ब्रह्मराक्षससे ग्रस्त व्यक्ति किसी सिद्ध महापुरुषके पास चला जाये तो वह व्यक्ति उस ब्रह्म-राक्षससे छूट जाता है और उस ब्रह्मराक्षस का भी उद्धार हो जाता है अथवा ब्रह्मराक्षस गया श्राद्ध कराना स्वीकार कर ले तो उसके नामसे गयाश्राद्ध कराना चाहिये । इससे उसकी सद्‌गति हो
भूलचूक क्षमायाचना सहित
सदगुरुदेव शरणम्

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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