religion,धर्म-कर्म और दर्शन -102

religion and philosophy- 102

🏵️बालात्रिपुरासुंदरी ,भगवती ललिता महात्रिपुरसुंदरी का बाल रूप हैं।🏵️

धर्म अर्थ काम और मोक्ष , इन चारों पुरुषार्थों के लिए भगवती के इस स्वरूप की आराधना बहुत ही उत्तम होती है। बाला सुंदरी बाल्यावस्था में होने के कारण कोमल ह्रदय की होती हैं और अपने भक्त पर बहुत शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनकी उपासना करने वाले अक्सर बहुत ही संपन्न और सभी प्रकार की ग्रहपीड़ा, दोषों और विकारों से मुक्त होते हैं। इनका हर एक मंत्र तीव्र ऊर्जा वाला होता है।

religion,धर्म-कर्म और दर्शन -102
religion,धर्म-कर्म और दर्शन -102

त्रिपुर बाला सुंदरी

भगवती के इसी बाल स्वरूप का एक ऐसा स्तोत्र है जो बहुत ऊर्जा से युक्त और शीघ्र मनोकामना पूर्ण करने वाला होता है। दशमहाविद्याओं की शक्ति से परिपूर्ण यह स्तोत्र तीव्र प्रभाव वाला है। गुप्त नवरात्रि में इसका पाठ विशेष लाभकारी है। जो लोग आर्थिक स्थिति से परेशान हैं। तंत्र आदि का अब असर है या ग्रह पीड़ा , दोष आदि हैं उन्हें यह स्तोत्र अवश्य करना चाहिए ।
यह स्तोत्र मैं स्वयं करता हूं और इसकी ऊर्जा से परिचित हूं। आप जब करोगे तो लगभग ७ दिन में आपको फील होने लग जायेगा।

इस स्तोत्र को दशमयीबालात्रिपुरासुंदरी स्तोत्र कहते हैं।

माता का षोडशोपचार से पूजन कर श्रीयंत्र या माता की फोटो के सम्मुख ११ बार नित्य स्वर पूर्वक हृदय से पाठ करने से २१ दिनों के भीतर माता आपके समस्त संकट हर लेती हैं। सात्विक आहार और आहार शुद्धता इस साधना का नियम है। आप हरदिन इसका पाठ कर सकते हैं या २१, ३१ या ४१ दिन का संकल्प भी ले सकते हैं। अंतिम दिन अनुष्ठान और देवी के अष्टोत्तर शतनाम य सहस्त्रनाम से हवन आदि कर सकते हैं।
दशमयीबालात्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रम्

श्रीकाली बगलामुखी च ललिता धूम्रावती भैरवी

मातंगी भुवनेश्वरी च कमला श्रीवज्रवैरोचनी।

तारा पूर्वमहापदेन कथिता विद्या स्वयं शम्भुना

लीलारूपमयी च देशदशधा बाला तु मां पातु सा।।1।।

अर्थ – प्रारंभ से ही सर्वोत्कृष्ट पद धारण करने वाले स्वयं भगवान शिव के द्वारा श्रीकाली, बगलामुखी, ललिता, धूम्रावती, भैरवी, मातंगी, भुवनेश्वरी, कमला, श्रीवज्रवैरोचनी तथा तारा – इन दस प्रकार के अपने ही अंशों के रूप में कही गई लीलारूपमयी वे दस महाविद्यास्वरूपिणी भगवती बाला मेरी रक्षा करें।

श्यामां श्यामघनावभासरुचिरां नीलालकालड़्कृतां

बिम्बोष्ठीं बलिशत्रुवन्दितपदां बालार्ककोटिप्रभाम्।

त्रासत्राणकृपाणमुण्डदधतीं भक्ताय दानोद्यतां

वन्दे संकटनाशिनीं भगवतीं बालां स्वयं कालिकाम्।।2।।

अर्थ – जो श्याम वर्ण के विग्रह वाली हैं, जो श्याम मेघ की आभा के समान परम सुन्दर लगती हैं, जो नीले वर्ण के घुँघराले केशों से अलंकृत हैं, बिम्बाफल के समान जिनके ओष्ठ हैं, बलि शत्रु इन्द्र जिनके चरणों की वन्दना करते हैं, जो करोड़ों बालसूर्य की प्रभा से सम्पन्न हैं, भय से रक्षा के लिए जो कृपाण तथा मुण्ड धारण किए रहती हैं, जो भक्तों को वर प्रदान करने हेतु सदा तत्पर रहती हैं, उन संकटनाशिनी साक्षात कालिका स्वरूपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ।

ब्रह्मास्त्रां सुमुखीं बकारविभवां बालां बलाकीनिभां

हस्तन्यस्तसमस्तवैरिरसनामन्ये दधानां गदाम्।

पीतां भूषणगन्धमाल्यरुचिरां पीताम्बरांगा वरां

वन्दे संकटनाशिनीं भगवतीं बालां च बगलामुखीम्।।3।।

अर्थ – ब्रह्मास्त्र धारण करने वाली, सुन्दर मुखमण्डल वाली, बकारबीज वैभव से संपन्न, बलाकी के सदृश धवल स्वरुप वाली, एक हाथ से समस्त शत्रुओं की जिह्वाओं को पकड़े रहने वाली तथा दूसरे हाथ में गदा धारण करने किए रहने वाली, पीले वर्ण के आभूषण-गन्ध तथा माला धारण करने से परम सुन्दर प्रतीत होने वाली, पीताम्बर सुशोभित अंगों वाली तथा उत्तम चरित्र वाली उन संकटनाशिनी बगलामुखीस्वरुपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ।

बालार्कश्रुतिभास्करां त्रिनयनां मन्दस्मितां सन्मुखीं

वामे पाशधनुर्धरां सुविभवां बाणं तथा दक्षिणे।

पारावारविहारिणीं परमयीं पद्मासने संस्थितां

वन्दे संकटनाशिनीं भगवतीं बालां स्वयं षोडशीम्।।4।।

अर्थ – कानों में बाल सूर्य के समान प्रदीप्त आभूषण धारण करने से जाज्वल्यमान प्रतीत होने वाली, तीन नेत्रों से सुशोभित, मन्द मुस्कान वाली, सुन्दर मुख मण्डल वाली, बाएँ हाथ में पाश तथा धनुष और दाहिने हाथों में बाण धारण करने वाली, परम ऎश्वर्य से संपन्न, सुधा सिन्धु में विहार करने वाली, पराशक्तिस्वरुपिणी तथा कमल के आसन पर विराजमान उन संकटनाशिनी साक्षात षोडशीस्वरुपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ।

दीर्घां दीर्घकुचामुदग्रदशनां दुष्टच्छिदां देवतां

क्रव्यादां कुटिलेक्षणां च कुटिलां काकध्वजां क्षुत्कृशाम्।

देवीं सूर्पकरां मलीनवसनां तां पिप्पलादार्चितां

बालां संकटनाशिनीं भगवतीं ध्यायामि धूमावतीम्।।5।।

अर्थ – दीर्घ विग्रहवाली, विशाल पयोधरों से संपन्न, उभरी हुई दंत पंक्ति से युक्त, दुष्टों का संहार करने वाली, देवतास्वरूपिणी, मांस का आहार करने वाली, कुटिल नेत्रों वाली, कुटिल स्वभाव वाली, काक-ध्वजा से सुशोभित (रथ पर विराजमान), भूख के कारण दुर्बल विग्रहवाली, देवीस्वरूपा, हाथ में सूप धारण करने वाली, मलिन वस्त्र धारण करने वाली तथा पिप्पलाद ऋषि से पूजित उन संकटनाशिनी धूमावतीस्वरुपिणी भगवती बाला का मैं ध्यान करता हूँ।

उद्यत्कोटिदिवाकरप्रतिभटां बालार्कभाकर्पटां

मालापुस्तकपाशमड़्कुशधरां दैत्येन्द्रमुण्डस्रजाम्।

पीनोत्तुंगपयोधरां त्रिनयनां ब्रह्मादिभि: संस्तुतां

बालां संकटनाशिनीं भगवतीं श्रीभैरवीं धीमहि।।6।।

अर्थ – उगते हुए करोड़ों सूर्यों की कान्ति को तिरस्कृत करने वाली, बाल-सूर्य की प्रभा के समान अरुण वस्त्र धारण करने वाली, अपने हाथों में माला-पुस्तक-पाश और अंकुश धारण करने वाली, दैत्यराज के मुण्ड की माला धारण करने वाली, विशाल तथा उन्नत पयोधरों वाली, तीन नेत्रों वाली तथा ब्रह्मा आदि देवताओं से सम्यक् स्तुत होने वाली उन संकटनाशिनी श्रीभैरवीस्वरूपिणी भगवती बाला का मैं ध्यान करता हूँ।

वीणावादनतत्परां त्रिनयनां मन्दस्मितां सन्मुखीं

वामे पाशधनुर्धरां तु निकरे बाणं तथा दक्षिणे।

पारावारविहारिणीं परमयीं ब्रह्मासने संस्थितां

वन्दे संकटनाशिनीं भगवतीं मातंगिनीं बालिकाम्।।7।।

अर्थ – वीणा बजाने में तल्लीन, तीन नेत्रों से सुशोभित, मन्द मुस्कान से युक्त, सामने की ओर मुख करके विराजमान, बाएँ हाथों में पाश तथा धनुष और दाहिने हाथों में बाण धारण करने वाली, चैतन्य सागर में विहार करने वाली तथा ब्रह्मासन पर विराजने वाली परमयी उन संकटनाशिनी मातंगिनीस्वरूपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ।

उद्यत्सूर्यनिभां च इन्दुमुकुटामिन्दीवरे संस्थितां

हस्ते चारुवराभयं च दधतीं पाशं तथा चाड़्कुशम्।

चित्रालड़्कृतमस्तकां त्रिनयनां ब्रह्मादिभि: सेवितां

वन्दे संकटनाशिनीं च भुवनेशीमादिबालां भजे।।8।।

अर्थ – उगते हुए सूर्य के सदृश प्रभाव वाली, चन्द्र-मुकुट से शोभा पाने वाली, रक्त कमल के आसन पर विराजमान, हाथों में सुन्दर वर तथा अभयमुद्रा और पाश व अंकुश धारण करने वाली, चित्रों से अलंकृत मस्तक वाली, तीन नेत्रों वाली, ब्रह्मा आदि देवताओं से सुसेवित उन संकटनाशिनी भुवनेशीस्वरूपिणी भगवती आदि बाला का मैं भजन करता हूँ।

देवीं कांचनसंनिभां त्रिनयनां फुल्लारविन्दस्थितां

बिभ्राणां वरमब्जयुग्ममभयं हस्तै: किरीटोज्ज्वलाम्।

प्रालेयाचलसंनिभैश्च करिभिराषिण्च्यमानां सदा

बालां संकटनाशिनीं भगवतीं लक्ष्मीं भजे चेन्दिराम्।।9।।

अर्थ – सुवर्ण के समान जिनकी कान्ति है, जो तीन नेत्रों से सुशोभित हो रही हैं, जो विकसित कमल के आसन पर स्थित हैं, जिन्होंने अपने हाथों में वर-अभय तथा कमलद्वय धारण कर रखा है, मस्तक पर किरीट धारण करने से जो प्रकाशमान है तथा हिमालय के सदृश चार श्वेत वर्ण के हाथियों के द्वारा अपनी शुण्डों से उठाए गए स्वर्ण-कलशों से जो निरन्तर अभिषिक्त हो रही हैं, उन संकटनाशिनी इन्दिरासंज्ञक लक्ष्मीस्वरुपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ।

सच्छिन्नां स्वशिरोविकीर्णकुटिलां वामे करे बिभ्रतीं

तृप्तास्यस्वशरीरजैश्च रुधिरै: सन्तपर्यन्तीं सखीम्।

सद्भक्ताय वरप्रदाननिरतां प्रेतासनाध्यासिनीं

बालां संकटनाशिनीं भगवतीं श्रीछिन्नमस्तां भजे।।10।।

अर्थ – पूर्णरुप से कटे मस्तक वाली, अपने कटे सिर के कारण कुटिल प्रतीत होने वाली, कटे सिर को अपने बाएँ हाथ में धारण करने वाली, तृप्त मुखमण्डल वाली, अपने शरीर से निकले रक्त से अपनी सखी को सतृप्त करने वाली, सद्भक्तों को वरदान देने में तत्पर रहने वाली और प्रेतासन पर विराजमान रहने वाली उन संकटनाशिनी छिन्नमस्तास्वरुपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ।

उग्रामेकजटामनन्तसुखदां दूर्वादलाभामजां

कर्त्रीखड्गकपालनीलकमलान् हस्तैर्वहन्तीं शिवाम्।

कण्ठे मुण्डस्रजामं करालवदनां कण्जासने संस्थितां

वन्दे संकटनाशिनीं भगवतीं बालां स्वयं तारिणीम्।।11।।

अर्थ – जो अत्यन्त उग्र स्वभाव वाली हैं, जो एक जटावाली हैं, जो परम सुखदायिनी हैं, दूर्वादल की आभा के समान जिनका वर्ण हैं, जो जन्मरहित हैं, जिन्होंने अपने हाथों में कैंची-खड्ग-कपाल और नीलकमल धारण कर रखा है, जो कल्याणमयी हैं, जिनके गले में मुण्डमाला सुशोभित हो रही है, जिनका मुखमण्डल भयंकर है तथा जो कमल के आसन पर विराजमान हैं, उन संकटनाशिनी साक्षात तारास्वरुपिणी भगवती बाला की मैं वन्दना करता हूँ।

मुखे श्रीमातंगी तदनुकिलतारा च नयने

तदन्तरगा काली भृकुटिसदने भैरवि परा।

कटौ छिन्ना धूमावती जय कुचेन्दौ कमलजा

पदांशे ब्रह्मास्त्रा जयति किल बाला दशमयी।।12।।

अर्थ – जिनके मुख में श्रीमातंगी, उसके बाद नेत्र में भगवती तारा, उसके भीतर स्थित रहने वाली काली, भृकुटिदेश में पराम्बा भैरवी, कटि प्रदेश में छिन्नमस्ता और धूमावती, चन्द्र सदृश आभा वाले वक्ष देश में भगवती कमला और पदभाग में भगवती ब्रह्मास्त्रा विराजमान है, ऎसी उन दशविद्यास्वरूपिणी भगवती बाला की बार-बार जय हो।

विराजन् मन्दारद्रुमकुसुमहारस्तनतटी

परित्रासत्राणास्फटिकगुटिकापुस्तकवरा ।

गले रेखास्तिस्रो गमकगतिगीतैकनिपुणा

सदा पीला हाला जयति किल बाला दशमयी।।13।।

अर्थ – जिनका वक्षस्थल मन्दार वृ़क्ष के पुष्पों के हार से सुशोभित हो रहा है, जो अपने हाथों में महान भय से रक्षा करने वाली अभय मुद्रा, स्फटिक की गुटिका, पुस्तक तथा वर मुद्रा धारं किए हुई हैं, जिनके गले में तीन रेखाएँ सुशोभित हैं, जो गमक-गति से युक्त गीत गाने में परम निपुणा हैं और सदा मधुपान में निरत रहती हैं, उन दशविद्यास्वरूपिणी भगवती बाला की जय हो।
।।इति श्रीमेरुतन्त्रे दशमयीबालात्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

डॉ रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरीद्वार उत्तराखंड

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