religion,धर्म-कर्म और दर्शन -135

religion and philosophy- 135

🏵️शिव नैवेद्य ग्रहण करने से क्या होता है 🏵️

विद्येश्वर संहिता (शिव पुराण) में वर्णन मिलता है कि शिव के नैवेद्य (प्रशाद) को देख लेने भर से और ग्रहण करने से क्या होता है।

दृष्ट्वापि शिवनैवेद्यं यान्ति पापानि दूरत:।
भुक्ते तु शिवनैवेद्ये पुण्यान्यायान्ति कोटिश:।।
अलं याग सहस्त्रेणाप्यलं यागार्बुदैरपि।
भक्षिते शिवनैवेद्ये शिवसायुज्यमाप्नुयात्।।
आगतं शिवनैवेद्यं गृहित्वा शिरसामुदा।
भक्षणीयं प्रयत्नेन शिवस्मरणपूर्वकम्।।
न यस्य शिव नैवेद्य ग्रहणेच्छा प्रजायते।
स पापिष्ठो गरिष्ठ: स्यान्नरके यात्यपि ध्रुवम्।।
शिवदीक्षाऽन्वितो भक्तो महाप्रसादसंज्ञकम्।
सर्वेषामपि लिङ्गानां नैवेद्यं भक्षयेच्छुभम्।।

अर्थात, शिव के नैवेद्य देख लेने मात्र से भी सारे पाप दूर भाग जाते हैं, उसको खा लेने से तो करोड़ों पुण्य अपने भीतर आ जाते हैं। सहस्त्रों अरबों यज्ञ करने से क्या होगा, शिव नैवेद्य भक्षण मात्र से शिव सायुज्य प्राप्त हो जाता है। आए हुए शिव नैवेद्य को प्रसन्नता पूर्वक देखकर शिवजी का स्मरण करते हुए ग्रहण कर भक्षण करें। जिसका शिव नैवेद्य में ग्रहण करने की इच्छा नहीं होती, वह महापापी नरक को प्राप्त होता है। शिव दीक्षा लिए हुए भक्त को अवश्य नैवेद्य ग्रहण करना चाहिए।

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वह सभी शिवलिंगों के प्रसाद ग्रहण करने योग्य और भक्षण योग्य है।

अन्य देवता के दीक्षित के लिए :

अन्यदीक्षायुजांनऋणां शिवभक्तिरतात्मनाम् ।
शृणिध्वं निर्णयप्रित्वा शिवनैवेद्ये भक्षणे।।
शालिग्रामोद्भवे लिङ्गे रसलिङ्गे तथा द्विजा:।
पाषाणे राजते स्वर्णे सुरसिद्धप्रतिष्ठिते।
काश्मिरे स्फाटिके रात्ने ज्योतिर्लिङ्गेषु सर्वश:।
चांद्रायणसमं प्रोक्तं शम्भोनैवेद्यभक्षणम्।।
ब्रह्महापि शुचिर्भुत्वा निर्माल्यं यस्तु धारयेत्।
भक्षयित्वा द्रुतं तस्य सर्वपापं प्रणस्यति।।

जो अन्य देवताओं के दीक्षा से युक्त है और शिव भक्ति में भी मन लगाए हुए है, उसके लिए विधान क्या है –

जहां से शालग्राम शीला की उत्पत्ति होती है वहां से उत्पन्न लिंग, रसलिंग (पारद), पाषाण, सुवर्ण, रजत से निर्मित लिंग में, देवताओं तथा सिद्धों द्वारा प्रतिष्ठित लिंग में, केसर निर्मित लिंग में, स्फटिक निर्मित लिंग में, रत्न निर्मित लिंग तथा समस्त ज्योतिर्लिंगों में विराजमान भगवान शिव के नैवेद्य भक्षण चान्द्रायण व्रत के समान पुण्यजनक है।

ब्रह्महत्या करने वाला भी पवित्र अवस्था में शिव निर्माल्य का भक्षण कर उसे शिर पर धारण करे तो उसका सारा पाप शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

डॉ रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरीद्वार (उत्तराखंड)

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