religion,धर्म-कर्म और दर्शन -138
religion and philosophy- 138
🏵️देवभूमि उत्तराखंड, यहां हैं नाग देवताओं के अनेक मंदिर 🏵️
*”सेम मुखेम नागराजा”* उत्तराखंड का सबसे प्रमुख पौराणिक मंदिर है। वही पौड़ी जिले में “डांडा नागराजा”और उत्तरकाशी में दो नाग ” कालिया”और वासुकीनाग को नागराज के रूप में पूजा जाता है। कालिया नाग को डांडी ताल क्षेत्र में पूजा जाता है और वासुकीनाग को बद गद्दी और टकनार में पूजा जाता है
मान्यता है कि वासुकीनाग का मुंह गणेशपुर और पूंछ मानपुर में स्थित है।
ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला से आगे गरुड़ चट्टी में भगवान विष्णु के वाहन श्री गरुड़ जी का ऐतिहासिक पौराणिक मंदिर है। जहां कालसर्प योग की पूजा व समाधान से देश के कोने-कोने से लोग आते हैं धन्य है देवभूमि उत्तराखंड आपको शत-शत नमन
*डॉ रमेश खन्ना*
*हरीद्वार*
नागराज एक संस्कृत शब्द है जो कि नाग तथा राज (राजा) से मिलकर बना है अर्थात नागों का राजा।
यह मुख्य रूप से तीन देवताओं हेतु प्रयुक्त होता है – शेषनाग, तक्षक तथा वासुकी। अनन्त, तक्षक तथा वासुकी तीनों भाई महर्षि कश्यप, तथा उनकी पत्नी कद्रू के पुत्र थे जो कि सभी नागों के जनक माने जाते हैं।
मान्यता के अनुसार नागराज का वास पाताललोक में है।
सबसे बड़े भाई शेषनाग भगवान विष्णु के भक्त हैं एवं नागों का मित्रतापूर्ण पहलू प्रस्तुत करते हैं क्योंकि वे चूहे आदि जीवों से खाद्यान्न की रक्षा करते हैं। भगवान विष्णु जब क्षीरसागर में योगनिद्रा में होते हैं तो अनन्त उनका आसन बनते हैं तथा उनकी यह मुद्रा अनन्तशयनम् कहलाती है। अनन्त ने अपने सिर पर पृथ्वी को धारण किया हुआ है। उन्होंने भगवान विष्णु के साथ रामायण काल में भगवान विष्णु के राम अवतार के समय राम के छोटे भाई लक्ष्मण तथा महाभारत काल में भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार के समय कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया। इसके अतिरिक्त रामानुज तथा नित्यानन्द भी उनके अवतार कहे जाते हैं।
छोटे भाई वासुकी भगवान शिव के भक्त हैं, भगवान
शिव हमेशा उन्हें गर्दन में पहने रहते हैं। तक्षक नागों के खतरनाक पहलू को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनके जहर के कारण सभी उनसे डरते हैं।
गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के थानगढ़ तहसील में नाग देवता वासुकी का एक प्राचीन मंदिर है। इस क्षेत्र में नाग वासुकी की पूजा ग्राम्य देवता के तौर पर की जाती है। यह भूमि सर्प भूमि भी कहलाती है। थानगढ़ के आस पास और भी अन्य नाग देवता के मंदिर मौजूद है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में नाग के छोटे-बड़े अनेक मन्दिर हैं। वहाँ नागराज को आमतौर पर नाग देवता कहा जाता है और नागराज शब्द का प्रयोग यहां के लोगों द्वारा नहीं किया जाता है। उत्तराखण्ड में सिर्फ नागराजा शब्द का प्रयोग होता है और “”सेम मुखेम नागराजा”” उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है जहां कृष्ण भगवान नागराजा के रूप में पूजे जाते हैं और यह उत्तराकाशी जिले में है तथा श्रद्धालुओं में सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है।
एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर “”डाण्डा नागराज”” पौड़ी जिले में है।
उत्तरकाशी में दो नाग “”कालिया और वासुकि नाग”” को नागराज के स्वरूप में पूजा जाता है।
कालिया नाग को डोडीताल क्षेत्र में पूजा जाता है और वासुकी नाग को बदगद्दी में तथा टेक्नॉर में पूजा जाता है।
मान्यता है कि वासुकी नाग का मुँह गनेशपुर में और पूँछ मानपुर में स्तिथ है ।
तमिलनाडु के जिले के नागरकोइल में नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर मान्नारशाला मन्दिर केरल के अलीप्पी जिले में है। इस मन्दिर में अनन्त तथा वासुकि दोनों के सम्मिलित रूप में देवता हैं।
केरल के तिरुअनन्तपुरम् जिले के पूजाप्पुरा में एक नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। यह पूजाप्पुरा नगरुकावु मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर की अद्वितीयता यह है कि इसमें यहाँ नागराज का परिवार जिनमें नागरम्मा, नागों की रानी तथा नागकन्या, नाग राजशाही की राजकुमारी शामिल है, एक ही मन्दिर में रखे गये हैं।
नाग देवता की पूजा से मिलने वाला फल
हिंदू धर्म में नागों को पूजनीय माना गया है. भगवान शिव ने अपने गले में नाग को धारण किया है. वहीं भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर आराम करते हैं. वहीं माना जाता है कि पृथ्वी को नाग ने अपने फन पर संभाला हुआ है. सावन महीना भगवान शिव को बेहद प्रिय है. सावन में ही नाग देवता की पूजा का दिन नागपंचमी पड़ती है.
नागपंचमी के दिन अष्ट नाग देवताओं की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में 8 नाग देवता माने गए हैं. इन नाग देवताओं की पूजा करने से सर्पदंश , अकाल मृत्यु , भय , धन हानि , कष्टों से निजात मिलती है.
नाग देवता की पूजा करने से अपार सुख, समृद्धि, धन-दौलत मिलती है.
इन नाग देवताओं की करें पूजा
हिंदू धर्म में 8 नाग देवता बताए गए हैं और इन सभी का अलग-अलग महत्व है.
वासुकी नाग:
वासुकी नाग को भोलेनाथ के गले का श्रृंगार माना जाता है. इसे शेषनाग का भाई माना गया है.
माना जाता है कि जब देवतओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था तब रस्सी की जगह वासुकी नाग का ही इस्तेमाल किया गया था. वासुकी नाग वही नाग है जिसने बचपन में वासुदेव द्वारा नदी पार करते समय भगवान कृष्ण की रक्षा की थी.
अनन्त नाग:
अनन्त नाग को भगवान श्रीहरि का सेवक माना गया है. अनन्त नाग को शेषनाग भी कहा जाता है. माना जाता है कि अनंत नाग के फन पर ही धरती टिकी हुई है.
पद्म नाग:
पद्म नाग को महासर्प कहा गया है. माना जाता है कि पद्म नाग गोमती नदी के पास शासन करते थे. बाद में ये नाग मणिपुर में जाकर बस गए थे. इसलिए उन्हें नागवंशी कहा जाता है.
महापद्म नाग:
महापद्म नाग का नाम शंखपद्म भी है. महापद्म नाग के फन पर त्रिशूल का निशान बना होता है. महापद्म नाग का वर्णन विष्णु पुराण में भी मिलता है.
तक्षक नाग:
तक्षक नाग को क्रोधी नाग रूप माना गया है. माना जाता है कि तक्षक नाग पाताल में रहते हैं. तक्षक नाग का वर्णन महाभारत में भी किया गया है.
कुलीर नाग:
कुलीर नाग को ब्राह्मण कुल का माना गया है और उनका संबंध जगतपिता ब्रह्मा जी से बताया गया है.
कर्कट नाग:
कर्कट नाग को भगवान महादेव का एक गण माना गया है. कर्कट नाग बेहद भयानक होते हैं और इनकी पूजा करने से काली के श्राप से मुक्ति मिलती है.
शंख नाग:
शंख नागों को नागों में सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना गया है. को बद गद्दी और टेकनार में पूजा जाता है।
मान्यता है कि नाग का मुंह नागराज एक संस्कृत शब्द है जो कि नाग तथा राज (राजा) से मिलकर बना है अर्थात नागों का राजा।
यह मुख्य रूप से तीन देवताओं हेतु प्रयुक्त होता है – शेषनाग, तक्षक तथा वासुकी। अनन्त, तक्षक तथा वासुकी तीनों भाई महर्षि कश्यप, तथा उनकी पत्नी कद्रू के पुत्र थे जो कि सभी नागों के जनक माने जाते हैं।
मान्यता के अनुसार नागराज का वास पाताललोक में है।
सबसे बड़े भाई शेषनाग भगवान विष्णु के भक्त हैं एवं नागों का मित्रतापूर्ण पहलू प्रस्तुत करते हैं क्योंकि वे चूहे आदि जीवों से खाद्यान्न की रक्षा करते हैं। भगवान विष्णु जब क्षीरसागर में योगनिद्रा में होते हैं तो अनन्त उनका आसन बनते हैं तथा उनकी यह मुद्रा अनन्तशयनम् कहलाती है। अनन्त ने अपने सिर पर पृथ्वी को धारण किया हुआ है। उन्होंने भगवान विष्णु के साथ रामायण काल में भगवान विष्णु के राम अवतार के समय राम के छोटे भाई लक्ष्मण तथा महाभारत काल में भगवान विष्णु के कृष्ण अवतार के समय कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया। इसके अतिरिक्त रामानुज तथा नित्यानन्द भी उनके अवतार कहे जाते हैं।
छोटे भाई वासुकी भगवान शिव के भक्त हैं, भगवान शिव हमेशा उन्हें गर्दन में पहने रहते हैं। तक्षक नागों के खतरनाक पहलू को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनके जहर के कारण सभी उनसे डरते हैं।
गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के थानगढ़ तहसील में नाग देवता वासुकी का एक प्राचीन मंदिर है। इस क्षेत्र में नाग वासुकी की पूजा ग्राम्य देवता के तौर पर की जाती है। यह भूमि सर्प भूमि भी कहलाती है। थानगढ़ के आस पास और भी अन्य नाग देवता के मंदिर मौजूद है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में नाग के छोटे-बड़े अनेक मन्दिर हैं। वहाँ नागराज को आमतौर पर नाग देवता कहा जाता है और नागराज शब्द का प्रयोग यहां के लोगों द्वारा नहीं किया जाता है। उत्तराखण्ड में सिर्फ नागराजा शब्द का प्रयोग होता है और “”सेम मुखेम नागराजा”” उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ है जहां कृष्ण भगवान नागराजा के रूप में पूजे जाते हैं और यह उत्तराकाशी जिले में है तथा श्रद्धालुओं में सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है।
एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर “”डाण्डा नागराज”” पौड़ी जिले में है।
उत्तरकाशी में दो नाग “”कालिया और वासुकि नाग”” को नागराज के स्वरूप में पूजा जाता है।
कालिया नाग को डोडीताल क्षेत्र में पूजा जाता है और वासुकी नाग को बदगद्दी में तथा टेक्नॉर में पूजा जाता है।
मान्यता है कि वासुकी नाग का मुँह गनेशपुर में और पूँछ मानपुर में स्तिथ है ।
तमिलनाडु के जिले के नागरकोइल में नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर मान्नारशाला मन्दिर केरल के अलीप्पी जिले में है। इस मन्दिर में अनन्त तथा वासुकि दोनों के सम्मिलित रूप में देवता हैं।
केरल के तिरुअनन्तपुरम् जिले के पूजाप्पुरा में एक नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। यह पूजाप्पुरा नगरुकावु मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर की अद्वितीयता यह है कि इसमें यहाँ नागराज का परिवार जिनमें नागरम्मा, नागों की रानी तथा नागकन्या, नाग राजशाही की राजकुमारी शामिल है, एक ही मन्दिर में रखे गये हैं।
नाग देवता की पूजा से मिलने वाला फल
हिंदू धर्म में नागों को पूजनीय माना गया है. भगवान शिव ने अपने गले में नाग को धारण किया है. वहीं भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर आराम करते हैं. वहीं माना जाता है कि पृथ्वी को नाग ने अपने फन पर संभाला हुआ है. सावन महीना भगवान शिव को बेहद प्रिय है. सावन में ही नाग देवता की पूजा का दिन नागपंचमी पड़ती है.
नागपंचमी के दिन अष्ट नाग देवताओं की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में 8 नाग देवता माने गए हैं. इन नाग देवताओं की पूजा करने से सर्पदंश , अकाल मृत्यु , भय , धन हानि , कष्टों से निजात मिलती है.
नाग देवता की पूजा करने से अपार सुख, समृद्धि, धन-दौलत मिलती है.
इन नाग देवताओं की करें पूजा
हिंदू धर्म में 8 नाग देवता बताए गए हैं और इन सभी का अलग-अलग महत्व है.
वासुकी नाग:
वासुकी नाग को भोलेनाथ के गले का श्रृंगार माना जाता है. इसे शेषनाग का भाई माना गया है.
माना जाता है कि जब देवतओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था तब रस्सी की जगह वासुकी नाग का ही इस्तेमाल किया गया था. वासुकी नाग वही नाग है जिसने बचपन में वासुदेव द्वारा नदी पार करते समय भगवान कृष्ण की रक्षा की थी.
अनन्त नाग:
अनन्त नाग को भगवान श्रीहरि का सेवक माना गया है. अनन्त नाग को शेषनाग भी कहा जाता है. माना जाता है कि अनंत नाग के फन पर ही धरती टिकी हुई है.
पद्म नाग:
पद्म नाग को महासर्प कहा गया है. माना जाता है कि पद्म नाग गोमती नदी के पास शासन करते थे. बाद में ये नाग मणिपुर में जाकर बस गए थे. इसलिए उन्हें नागवंशी कहा जाता है.
महापद्म नाग:
महापद्म नाग का नाम शंखपद्म भी है. महापद्म नाग के फन पर त्रिशूल का निशान बना होता है. महापद्म नाग का वर्णन विष्णु पुराण में भी मिलता है.
तक्षक नाग:
तक्षक नाग को क्रोधी नाग रूप माना गया है. माना जाता है कि तक्षक नाग पाताल में रहते हैं. तक्षक नाग का वर्णन महाभारत में भी किया गया है.
कुलीर नाग:
कुलीर नाग को ब्राह्मण कुल का माना गया है और उनका संबंध जगतपिता ब्रह्मा जी से बताया गया है.
कर्कट नाग:
कर्कट नाग को भगवान महादेव का एक गण माना गया है. कर्कट नाग बेहद भयानक होते हैं और इनकी पूजा करने से काली के श्राप से मुक्ति मिलती है.
शंख नाग:
शंख नागों को नागों में सबसे ज्यादा बुद्धिमान माना गया है।
*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार ( उत्तराखंड)*