कॉर्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन ने हाल ही में ईको डेवलपमेंट कमेटियों (ईडीसी) को 90 लाख से अधिक की धनराशि वितरित की थी। राशि का उद्देश्य गांवों में वन्यजीवों से होने वाली क्षति की भरपाई और विकास कार्यों को बढ़ावा देना था। लेकिन अब इस वितरण को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। बुधवार को पांच गांवों के ईडीसी अध्यक्ष अपने-अपने चेक वापस करने पार्क प्रशासन पहुंचे और आरोप लगाया कि धनराशि के बंटवारे में भारी भेदभाव हुआ है।
ईडीसी अध्यक्ष ओमप्रकाश गौड़ ने कहा कि उनके क्षेत्र को जंगली जानवरों से सबसे ज्यादा नुकसान होता है, बावजूद इसके उन्हें मात्र 1.48 लाख रुपये का चेक दिया गया। वहीं कुछ समितियों जो नगर पालिका क्षेत्र में आती हैं और जिन पर वन्यजीव क्षति का दबाव अपेक्षाकृत कम है, उन्हें लाखों रुपये की राशि दी गई है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि चोरपानी क्षेत्र की ईडीसी जो अब नगर पालिका क्षेत्र में आ चुकी है, उसे 11 लाख 6 हजार रुपये दिए गए हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब यह क्षेत्र अब नगर पालिका सीमा में आ चुका है, तो वहां की समिति को इतनी बड़ी राशि क्यों दी गई।
ओमप्रकाश ने आगे कहा कि एक अन्य समिति जो गांवों के बीचों-बीच स्थित है और जहां वन्यजीव क्षति बहुत कम है, उसे 6.5 लाख रुपये दिए गए। वहीं उनकी समिति जो पूरी तरह से जंगल से घिरी है और जहां हाथी व बाघ जैसी वन्यजीवों से लगातार फसलों को नुकसान होता है, उसे डेढ़ लाख रुपये ही दिए गए। उन्होंने इसे सीधा भेदभाव बताया और चेतावनी दी कि जब तक वास्तविक रूप से प्रभावित गांवों को उचित राशि नहीं दी जाती, वे इस तरह के चेक स्वीकार नहीं करेंगे।
इस मामले पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पार्क वार्डन अमित ग्वासाकोटी ने कहा कि ईडीसी समितियों को पार्क प्रशासन द्वारा पर्यटन से मिले राजस्व का हिस्सा दिया जाता है, ताकि गांवों में वन्यजीव क्षति को कम करने और विकास कार्यों में सहयोग मिल सके।
उन्होंने माना कि कुछ समितियों ने अपने चेक लौटाए हैं और ज्ञापन भी सौंपा है. ग्वासाकोटी ने आश्वासन दिया कि उनकी मांगों पर विचार किया जाएगा और जैसे ही बजट उपलब्ध होगा समस्याओं का समाधान किया जाएगा.।