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Freedom fighter Ishwar Dutt, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के एक वाक्य ने बदल दी स्वतंत्रता सेनानी ईश्वर दत्त विद्यालंकार की राहें।

freedom fighter Ishwar Dutt, One sentence of Netaji Subhash Chandra Bose changed the path of freedom fighter Ishwar Dutt Vidyalankar.

freedom fighter Ishwar Dutt, बात सन 1941 की है, दिल्ली के निकट अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थापित इंद्रप्रस्थ स्थान पर एक गुरुकुल में कक्षा 9 और 10 के ब्रह्मचारियों को संदेश मिला के दिल्ली जाने वाली सड़क से नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपनी कर से गुजरने वाले हैं यह सूचना मिलते ही सारे ब्रह्मचारी दौड़कर दिल्ली जाने वाली सड़क पर आकर खड़े हो गए ।
सभी छात्र नेता जी की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे थे।

तभी दूर से आती नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की कार दिखाई दी, छात्रों ने नेताजी की कार को रोक लिया नेताजी उस समय बीमार थे, और कर के पीछे की सीट पर लेटे थे गुरुकुल के कुछ आचार्यों ने सब ब्रह्मचारीयों का परिचय कराकर नेताजी से पूछा हमारा मार्गदर्शन कीजिए हम भी देश के लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा रखते हैं,इस पर नेताजी ने केवल इतना कहकर कि “देश और समय की जरूरत को समझो ” नेता जी ने यह कह कर अपनी बात पूरी की, लेकिन यह बात ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त आत्रेय के दिल दिमाग पर छा गई और ईश्वर दत्त आत्रेय ने स्वतंत्रता आंदोलन का रास्ता पकड़ लिया।freedom fighter Ishwar Dutt,

Freedom fighter Ishwar Dutt, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के एक वाक्य ने बदल दी स्वतंत्रता सेनानी ईश्वर दत्त विद्यालंकार की राहें।
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अब से ठीक सौ वर्ष पूर्व स्वतंत्रता सेनानी ईश्वर दत्त आत्रेय विद्यालंकर का जन्म 2 जुलाई 1924 को स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्थापित गुरुकुल कांगड़ी में हुआ था 1941 में इनको स्वामी श्रद्धानंद द्वारा दिल्ली के निकट अरावली पर्वत श्रृंखला में इंद्रप्रस्थ स्थान पर स्थापित एक अन्य गुरुकुल में कक्षा 9 और 10 के ब्रह्मचारियों के साथ भेज दिया गया था यहीं से उनकी मुलाकात नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई और उन्होंने नेताजी के सूत्र को अपने पल्लू की गांठ में बांध लिया ।

freedom fighter Ishwar Dutt, कुछ समय बाद 1942 अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया गुरुकुल से ब्रह्मचारी छात्रों के रूप में इस आंदोलन में भाग लेने के लिए दिल्ली जाने लगे परंतु ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त को उनके साथ जाने की अनुमति नहीं दी गई इसका कारण था कि वह अपने माता-पिता की 17 संतानों में से एकमात्र जीवित्त पुत्र थे जिसे पूर्व उनके 16 भाई कुछ दिनों की आयु में ही दिवंगत होते रहे ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त ने हरिद्वार गुरुकुल कांगड़ी निवासी अपने पिता को पत्र लिखा कि गुरुकुल के आचार्य मुझे अन्य ब्रह्मचारियों के साथ आंदोलन में भाग लेने के लिए जाने नहीं दे रहे हैं आप मुझे उनसे कहकर अनुमति दिला दीजिए पुत्र के मार्मिक अनुरोध पर उनके पिता ने इंद्रप्रस्थ गुरुकुल पहुंच कर उनके आचार्य से मुलाकात की और अनुरोध किया कि ईश्वर दत्त को मेरा पुत्र होने के कारण विशेष दर्जा न दिया जाए उसे भी अन्य ब्रह्मचारियों की भांति आंदोलन में भाग लेने के लिए अनुमति दें ऐसा अनुरोध कर पिता हरिद्वार गुरुकुल कांगड़ी वापस लौट गए।freedom fighter Ishwar Dutt,

और इस तरह ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त को भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने की अनुमति मिल गई।

अगले दिन प्रातः काल ही गुरुकुल के ब्रह्मचारियों का एक दल जिसमें ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त शामिल थे आंदोलन में भाग लेने के लिए दिल्ली चांदनी चौक पहुंच गया अभी जुलूस प्रारंभ भी हुआ था कि शीशगंज गुरुद्वारा के सामने से जुलूस में शामिल अन्य आंदोलनकारी के साथ ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त सहित सभी ब्रह्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया गया सभी ब्रह्मचारियों को एक साथ न्यायालय में जज के सामने पेश किया गया और जब सभी ब्रह्मचारियों पर झूठे आरोप लगाए गए जिनमें रेल की पटरी को नुकसान पहुंचाना,बिजली और पोस्ट ऑफिस के तार काटना, पोस्ट ऑफिस में आग लगना आदि आरोप लगाए गए थे 14 या 15 साल की अल्पायु बच्चों के बच्चों पर लगाये गये इन झूठ आरोपों को सुनकर जज भी मुस्कुरा उठे और यह जानते हुए भी की यह सब आरोप झूठ है सभी ब्रह्मचारियों को ६-६ मास की सश्रम कारावास की सजा सुना दी।freedom fighter Ishwar Dutt,
लगभग 1 माह दिल्ली की जेल में रखने के बाद सभी ब्रह्मचारियों को लाहौर की सेंट्रल जेल जिसमें शहीद भगत सिंह व उनके साथियों को भी रखा गया था कि प्रांगण में बनाई गई विशेष अस्थाई बैरकों जिसे वोस्टर्स जेल का नाम दिया गया था, वहां भेज दिया गया।
कारावास की सजा काटने के दौरान सभी ब्रह्मचारियों की मुलाकात जेल के एक वयोवृद्ध कैदी जो गार्ड का भी काम करता था और जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा था से हुई इस कैदी ने भगत सिंह और उनके साथियों के जेल में रहने के दौरान अपनी आंखों से देखे एक-एक पल की यादें सभी ब्रह्मचारियों से साझा की जिसनें इन अल्प आयु बालकों को और अधिक उत्साह के साथ इस आंदोलन को जारी रखने का निर्णय लेने को प्रेरित किया।

freedom fighter Ishwar Dutt, जेल के अस्वच्छ वातावरण तथा बैरकों की दुर्दशा के कारण ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त को दमे जैसा असाध्य रोग हो गया जेल की अपनी निर्धारित सजा पूरी कर सभी ब्रह्मचारी गुरुकुल लौट आए और अपने आगे की पढ़ाई जारी रखी गुरुकुल इंद्रप्रस्थ से कक्षा 10 जिसे गुरुकुल में विद्याअधिकारी कहा जाता है उत्तीर्ण कर शेष शिक्षा के लिए ब्रह्मचारी ईश्वर दत्त गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार आ गए।

1948 में गुरुकुल कांगड़ी से विद्यालंकर की उपाधि ग्रहण कर स्नातक हुए स्नातक होने के उपरांत व ईश्वर दत्त विद्यालंकार ने आर्य समाज के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में आर्य समाज के प्रचारक व उपदेशक का कार्य किया इसके पश्चात 1949 50 में स्थानीय ज्वालापुर इंटर कॉलेज में हिंदी के प्रवक्ता पद पर नियुक्त हो गए।
27 नवंबर 2012 को 88 वर्ष की आयु में उनका स्वर्गवास हुआ उल्लेखनीय है कि इन्होंने इन्हीं अपने तेवरों के चलते अपने अध्यापन के सेवा काल में अध्यापकों के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया और अनेक बार जेल यात्राएं भी की।
स्वतंत्रता सेनानी ईश्वर दत्त विद्यालंकार के पुत्र हेमंत आत्रेय भी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार में उच्च पद पर अपनी सेवाएं प्रदान करने के बाद रिटायर रहते हुए समाजसेवा में रत है।
स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय ईश्वर दत्त विद्यालंकार के बारे में जानकारी हेमंत आत्रेय द्वारा Newsok24.com को उपलब्ध कराई गई।,freedom fighter Ishwar Dutt

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