स्वतंत्रता सेनानी, स्वर्गीय नंद लाल ढींगरा।स्वतंत्रता सेनानी, स्वर्गीय नंद लाल ढींगरा।

In August 1942, Haridwar, अगस्त 1942 को हरिद्वार, ब्रिटिश सेना के दमन से बेहाल और भूखा-प्यासा था।

In August 1942, Haridwar, was in a bad state due to the oppression of the British army and was hungry and thirsty.
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ब्रिटिश सेना ने घरों से खाना लूटा, बच्चे भूखे और पुरुष जेल में बंद।

हरिद्वार क्रांति की एक सच्ची कहानी मेरे स्वतंत्रता सेनानी पिता स्वर्गीय नंद लाल ढींगरा की जुबानी ।
शशि शर्मा

विनम्र निवेदन, Newsok24.com पर प्रकाशन के लिए आप भी अपने पिता और पितामह की कहानी हमें 9837776625 व्हाट्स एप नम्बर पर भेज सकते हैं, कल 15 अगस्त पर पूरा दिन सेनानियों की कहानी के नाम करना चाहते हैं 🙏

In August 1942, यूं तो हरिद्वार के स्वतंत्रता आंदोलन का बडा इतिहास है लेकिन पहले बात हरिद्वार के उस स्वतंत्रता-संग्राम आंदोलन की जो सबसे चर्चित स्वतंत्रता आंदोलन “अगस्त क्रांति” के नाम से जाना जाता है।

In August 1942, मैंने अपने जीवन के पांच दशक से अधिक समय इस कहानी को अपने पिता से निरंतर सुनते लिखते बिताये है, दरअसल हरिद्वार की अगस्त क्रांति 15 अगस्त को नहीं 9 अगस्त को हुई थी।

गांधी जी के करो या मरो के समर्थन में 9 अगस्त 1942 को हरिद्वार शहर में आजादी के दीवानों ने एक जलूस निकाला, जुलूस में केवल चौदह से बीस बाईस वर्ष के नौजवान ही शामिल थे,In August 1942

In August 1942, जलूस हरिद्वार के मुख्य मार्ग से होता हुआ हरकी पैड़ी के निकट सुभाष घाट पर तिरंगा फहराने पहुंचा तो पुलिस ने जलूस पर निर्ममता पूर्वक लाठियां बरसाई, उत्तेजित क्रांतिकारी युवकों ने भी पुलिस पर पलट कर हमला कर दिया लेकिन झंडा फहराने का सौभाग्य उन नौजवानों के दल को नहीं मिल सका।

अब तक पुलिस का दमन पूरे नगर में फैल गया था, हरकी पैड़ी पर झंडा ना फहराने से भडके नौजवान हरिद्वार के मुख्य डाकघर पहुंचे, क्रांतिकारियों ने मुख्य डाकघर को आग लगा दी, भर्ती दफ्तर को भी स्वाह कर दिया गया और हरिद्वार कोतवाली पर आजादी के दीवानों का अधिपत्य स्थापित हो गया था, कोतवाली में मौजूद पुलिसकर्मी अपनी जान बचा कर भाग गए थे।

क्रांतिकारीयों ने कोतवाली के सभी संचार तंत्र ध्वस्त कर दिए थे, और पूरी शानो-शौकत से ध्जारोहण कर दिया था।

In August 1942, अपनी इस जीत से उत्साहित युवकों का कारवां हरिद्वार की शिवमूर्ति के पास बने चुंगी चौकी पहुंचे, चुंगी चौकी आजादी के दीवानों के आक्रोश का परिणाम भुगत रही थी, तहस-नहस चुंगी चौकी को उसके हाल पर छोड़ नवयुवकों की टोली रेलवे स्टेशन की तरफ बढ चली, यहां ऋषिकुल के छात्रों का एक बड़ा दल भी शामिल हो गया और अब आजादी के दीवानों का एक बड़ा सैलाब रेलवे स्टेशन की तरफ बढ चला, आंदोलनकारीयों का लक्ष्य हरिद्वार रेलवे स्टेशन को आग के हवाले करना था।

नवयुवकों के शहर में हुए तांडव की खबर से ब्रिटिश पुलिस की भारी तैनाती रेलवे स्टेशन पर कर दी गई थी उग्र नवयुवकों की अनियंत्रित भारी संख्या को देख वहां मौजूद दरोगा प्रेमशंकर ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से नवयुवकों की भीड़ पर फायरिंग कर दी,एक गोली ऋषिकुल के छात्र जगदीश वत्स और एक गोली एक अन्य अज्ञात युवक को लगी, दोनों वहीं गिर पडे कोई मेडिकल सहायता नहीं मिलने से दोनों ने वही दम तोड दिया।

मेरे पिता नन्दलाल ढिंगरा ने बताया, दोनों शहीदों के शव वहीं पडे रहे,इस बीच हरकी पैड़ी सुभाष घाट पर झंडा ना फहराने का दंश और साथी की मौत से आहत, हरकी पैड़ी पर ही रह कर बढई का काम करने वाले बंगाली बाबा ने आजादी के दीवानों पर हुए बर्बर ब्रिटिश पुलिस के अत्याचार से आक्रोश में भर कर हाथ में फरसा उठाया और पहुंच गए सुभाष घाट झंडा फहराने, झंडा फहराने की नाकाम कोशिश में पोल पर चढे बंगाली बाबा को वहां मौजूद भारी पुलिस बल ने गिरफ्तार कर लिया,और फिर शुरू हुआ भारी पुलिस लाठीचार्ज,भीड तितर बितर हो कर बडे बाजार से होते हुए भाग खडी हुई,एक बड़ा दल बडी सब्जी मंडी की ओर निकल आया ।,In August 1942,

इस भीड में चौदह वर्ष का एक बालक भी शामिल था, चौदह वर्ष के नन्दलाल ढिंगरा को हरकी पैड़ी की ओर से आती डीएसपी की गाड़ी नजर आई,साथी जगदीश वत्स की मौत से आक्रोशित नन्दलाल ढिंगरा ने पास ही पडा एक बड़ा पत्थर उठा कर डीएसपी को निशाना कर मारा, पत्थर डीएसपी के ड्राइवर को लगा, डीएसपी की गाड़ी एक खम्बे से जा टकराई, डीएसपी अपनी बंदूक लेकर बालक को निशाना बना जैसे ही फायरिंग करना चाहता था,वहीं भीड में से एक युवक ने डीएसपी की बंदूक छीन कर खम्बे पर दे मारी, डीएसपी ने हरिद्वार कोतवाली के पास ही बने एक शौचालय में छिप कर अपनी जान बचाई।

वर्तमान हरकी पैड़ी चित्र
वर्तमान हरकी पैड़ी चित्र

In August 1942, उस दिन हरिद्वार पूरा दिन आंदोलनकारीयों का अखाड़ा बना रहा, नगर के सभी संचार तंत्र ध्वस्त हो चुके थे इसके बावजूद सिंचाई विभाग का टेलीफोन काम कर रहा था, अंग्रेज अफसरों ने उस फोन से रुड़की फोन कर ब्रिटिश सेना की चार कम्पनियां मंगवा ली, हरिद्वार में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया।

अंग्रेजी फौज का दमन चक्र शुरू हुआ,फौज ने स्थानीय लोगों के घरों से और बाजारों से खाने पीने का सामान लूट लिया,भूख से बिलखते बच्चे महिलाएं अकेले रह गये थे, हरिद्वार से पांच छः सौ व्यक्तियों को गिरफ्तार कर हरिद्वार कोतवाली लाकर कठोर यातनाएं दी गईं, तीन चार दिन के यातना भरे दौर के बाद सभी को रुड़की जेल हवालात में भेज दिया गया।,In August 1942,

16 अगस्त 1942 को सभी 48 नामजद व्यक्तियों को रुड़की की एक छोटी सी बैरक में बंद कर दिया गया और बहुत बडी संख्या में ब्रिटिश सरकार से क्षमा याचना करने वालों को रिहा कर दिया गया।,In August 1942,

उन बैरक में बंद 48 लोगों में बंद चौदह वर्ष का बालक नंदलाल ढिंगरा भी शामिल थे,बैरक की यातना भरी कहानी भी उस चौदह साल के बालक के मुख से मैंने सुनी और देहरादून के नारी शिल्प मंदिर इंटर कालेज में कक्षा नाईथं सी से पहली बार 1972 में अपने स्कूल की मैगजीन में छपवाया था।,In August 1942,

मै हरकी पैड़ी पर ही एक छोटे-से तख्त को अपना आशियाना बनाये हुए बंगाली बाबा से 1986 में मिली, फरसा लेकर सुभाष घाट पर झंडा फहराने की कोशिश करने वाले बंगाली बाबा वहीं रहे,उनका भारत सरकार से जारी ताम्रपत्र बाहर ही लटका रहता था।
पिता स्वर्गीय नंद लाल ढींगरा जी के पास हरिद्वार के कई सेनानी अक्सर आते थे, उनकी कहानियां उन्हीं की जुबानी सुनते मन क्रांतिकारी हो जाता था।,In August 1942

स्वतंत्रता सेनानी, स्वर्गीय नंद लाल ढींगरा।
स्वतंत्रता सेनानी, स्वर्गीय नंद लाल ढींगरा।

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