Laghu Saptashati, सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का ही स्वरूप है , दुर्गा लघु सप्तशती

Laghu Saptashati, It is the form of the complete Durga Saptashati, Durga Laghu Saptashati

religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 27

 

Laghu Saptashati, दुर्गालघुसप्तशती!!(श्रीमार्कण्डेय कृत)

ॐ वीं वीं वीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता स्वानन्देनन्दरूपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम्। (१)

हंसः सोऽहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते॥(२)

ॐ ह्रींकारं चोच्चरन्ती ममहरतु भयं चर्ममुण्डे प्रचन्डे खां खां खां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रकिते उग्ररूपे स्वरूपे। (३)

हुंहुंहुंकारनादे गगनभुवि तथा व्यापिनी व्योमरूपे हं हं हंकारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्री॥ (४)

ऐं लोके कीर्तयन्ति मम हरतु भयं चण्डरुपे नमस्ते घ्रांघ्रांघ्रां घोररूपे घघ घघ घटिते घर्घरे घोररावे।(५)

निर्मांसे काकजङ्घे घसितनख नखाधूम्रनेत्रे त्रिनेत्रे हस्ताब्जे शुलमुण्डे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते॥ (६)

क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुह मखिले कोकिले मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारी गुह्ये।(७)

तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवनचले नैव आज्ञा निधाने ऐंकारे रात्रिमध्ये शयितपशुजने तंत्रकांते नमस्ते॥ (८)

ॐ व्रां व्रीं व्रूं कवित्ये दहनपुरगते रुक्मरूपेण चक्रे त्रिः शक्त्या युक्तवर्णादिककरनमिते दादिवंपूर्णवर्णे। (९)

ह्रींस्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वलिते कोशितैस्तास्तुपत्रे स्वच्छदं कष्टनाशे सुरवरवपुषे गुह्यमुंडे नमस्ते॥ (१०)

ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोरतुण्डे घघघघघघघे घर्घरान्यांघ्रिघोषे ह्रीं क्री द्रं द्रौं च चक्र र र र र रमिते सर्वबोधप्रधाने। (११)

द्रीं तीर्थे द्रीं तज्येष्ठ जुगजुगजजुगे म्लेच्छदे कालमुण्डे सर्वाङ्गे रक्तघोरामथनकरवरे वज्रदण्डे नमस्ते॥ (१२)

ॐ क्रां क्रीं क्रूं वामभित्ते गगन गडगड़े गुह्ययोन्याहिमुण्डे वज्राङ्गे वज्रहस्ते सुरपतिवरदे मत्तमातङ्गरूढे। (१३)

सुतेजे शुद्धदेहे ललललललिते छेदिते पाशजाले कुण्डल्याकाररूपे वृषवृषभहरे ऐन्द्रि मातर्नमस्ते॥(१४)

ॐ हुंहुंहुंकारनादे कषकषवसिनी माँसि वैतालहस्ते सुंसिद्धर्षैः सुसिद्धिर्ढढढढढढढ़ः सर्वभक्षी प्रचन्डी।(१५)

जूं सः सौं शांतिकर्मे मृतमृत निगडे निःसमे सीसमुद्रे देवि त्वं साधकानां भवभयहरणे भद्रकाली नमस्ते॥ (१६)

ॐ देवि त्वं तुर्यहस्ते करधृतपरिघे त्वं वराहस्वरूपे त्वं चेंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं पुराणी महेन्द्री।(१७)

ऐं ह्रीं ह्रीं कारभूते अतलतलतले भूतले स्वर्गमार्गे पाताले शैलभृङ्गे हरिहरभुवने सिद्धिचंडी नमस्ते॥ (१८)

हँसि त्वं शौंडदुःखं शमितभवभये सर्वविघ्नान्तकार्ये गांगींगूंगैंषडंगे गगनगटितटे सिद्धिदे सिद्धिसाध्ये। (१९)

क्रूं क्रूं मुद्रागजांशो गसपवनगते त्र्यक्षरे वै कराले ॐ हीं हूं गां गणेशी गजमुखजननी त्वं गणेशी नमस्ते॥(२०)

।। श्रीमार्कण्डेय कृत लघुसप्तशती दुर्गा स्तोत्रं सम्पूर्ण।। Laghu Saptashati

विधिः-माँ दुर्गा के चित्र या यंत्र के सामने करें।
पू
(१) कुंकुम, अक्षत,पुष्प,धूप-दीप (गाय के घी का दीपक) प्रज्वलित करें।
(२) और हो सके तो नैवेद्य चढ़ाएं।
(३) और प्रतिदिन नव पाठ करें।
(४) वीजमंत्रों से युक्त इस पाठ से दुर्गा सप्तशती का पूर्णफल मिलता है तथा
(५) सभी कामनायें सिद्ध हो जाती हैं।
(६) इस पाठ से “नवग्रह” एवं “शत्रु बाधाएं “ भी शांत हो जाती हैं।
(७) विशेष:- इसके साथ नवार्ण मंत्र-
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै”।
की 9माला ‘हकीक’ या ‘रुद्राक्ष’ माला से करे तथा अन्त में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ करने से शीघ्र लाभ होता है।
नवदुर्गा_शक्तिकवच।।सर्वकामना-सिद्धिस्तोत्र
श्री हिरण्यमयी हस्तिवाहिनी,सम्पत्ति शक्तिदायिनी।
मोक्षमुक्तिप्रदायिनी, सद्बुद्धिशक्तिदात्रिणी।।१

सन्तति-सम्वृद्धिदायिनी,शुभशिष्य वृन्द प्रदायिनी।
नवरत्ना नारायणी,भगवती भद्रकारिणी।।२

धर्मन्याय-नीतिदा, विद्याकला कौशल्यदा।
प्रेमभक्ति-वरसेवाप्रदा, राजद्वारयश विजयदा।।३

धनद्रव्य अन्न-वस्त्रदा,प्रकृति पद्मा कीर्तिदा।
सुखभोग वैभव-शान्तिदा, साहित्य सौरभ दायिका।।४

वंशवेलि-वृद्धिका,कुलकुटुम्ब पौरुष प्रचारिका।
स्वज्ञाति-प्रतिष्ठाप्रसारिका,स्वजाति प्रसिद्धि प्राप्तिका।।५

भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्यदेशोदय उद्भाषिका।
सर्वकार्यसिद्धि कारिका,भूतप्रेतबाधा नाशिका।।६

अनाथ-अधमोद्धारिका, पतितपावन कारिका।
मनवाञ्छित॒फल-दायिका,सर्वनरनारी मोहनेच्छा पूर्णिका।।७
साधनज्ञान-संरक्षिका,मुमुक्षुभाव समर्थिका।
जिज्ञासु जनज्योतिर्धरा,सुपात्रमान सम्वर्द्धिका।।८

अक्षरज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्मज्ञान सन्तुष्टिका।
पुरुषार्थप्रताप अर्पिता,पराक्रमप्रभाव समर्पिता।।९

स्वावलम्बन-वृत्तिवृद्धिका,स्वाश्रयप्रवृत्ति पुष्टिका।
प्रतिस्पर्द्धी-शत्रुनाशिका,सर्वऐक्यमार्ग प्रकाशिका।।१०

जाज्वल्य-जीवनज्योतिदा, षड्रिपुदल संहारिका।
भवसिन्धु भयविदारिका, संसारनाव सुकानिका।।११

चौरनाम-स्थानदर्शिका,रोगऔषधी प्रदर्शिका।
इच्छितवस्तु प्राप्तिका, उरअभिलाषा पूर्णिका।।१२

श्रीदेवी मङ्गला,गुरुदेव शापनिर्मूलिका।
आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३

सिन्धुसुता विष्णुप्रिया, पूर्वजन्म पाप विमोचना।
दुःखसैन्य विघ्नविमोचना, नवग्रहदोष निवारणा।।१४

ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्वकामनासिद्धि महायन्त्र देवतास्वरुपिणी श्रीमहामाया महादेवी महाशक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः।

ॐ ह्रीं श्रीपरब्रह्म परमेश्वरी भाग्यविधाता भाग्योदयकर्त्ता भाग्यलेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं।
कुतूहलदर्शक, पूर्वजन्म दर्शक,भूत वर्तमान भविष्यदर्शक, पुनर्जन्मदर्शक, त्रिकालज्ञान प्रदर्शक, दैवीज्योतिष महाविद्या भाषिणी त्रिपुरेश्वरी अद्भुत अपुर्व अलौकिक अनुपम अद्वितीय सामुद्रिक विज्ञान रहस्य रागिनी श्रीसिद्धिदायिनी सर्वोपरि सर्व कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्वइच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा।

ॐ नमो नारायणी नवदुर्गेश्वरी कमला कमल शायिनी, कर्णस्वर दायिनी, कर्णेश्वरी,अगम्य अदृश्य अगोचर अकल्प्य अमोघ अधारे, सत्यवादिनी, आकर्षणमुखी, अवनी आकर्षिणी, मोहनमुखी, महिमोहिनी, वश्यमुखी, विश्ववशीकरणी, राजमुखी, जगजादूगरणी सर्वनरनारी मोहन वश्य कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्नसत्य कथय कथय अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन।

ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति दायिनी मम सर्वेप्सित सर्वकार्य सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा।

ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहामाया महाशक्ति महालक्ष्मी महादेव्यै विच्चे विच्चे श्रीमहादेवी महालक्ष्मी महामाया महाशक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।
ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः।
ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः।
ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः।
ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः।
ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः।
ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः।
ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः।
ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः।
ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः।
ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः।
ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः।
ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः।
ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः।
ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः।
ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः।
ॐ श्रीस्वर्गमृत्यु-पातालभूमि-राजकर्त्र्यै नमः।
श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री शक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री देवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री प्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री इन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः।
श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः।
श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः।
श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः।
श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीशंखचक्र-गदापद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः।
श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहामाया महादेवी महाशक्ति महालक्ष्मी स्वरुपा श्रीसर्वकामना सिद्धि महायन्त्र देवताभ्यो नमः।

ॐ विष्णुपत्नीं,क्षमादेवीं,माध्वीं च माधवप्रिया।
लक्ष्मीप्रियसखीं देवीं,नमाम्यच्युत वल्लभाम्।

ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नि च धीमहि,तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।
मम सर्वकार्य सिद्धिं कुरुकुरु स्वाहा।

विधि:-सामान्य रूप से नित्य कम से कम 3 पाठ करना उचित होता है दिन रविवार या मंगलवार से प्रारंभ करें।सर्व प्रथम देवी के मंदिर में जाकर पंचोपचार विधि से पूजन करें।फल-फूल प्रदान करें ।प्रसाद में खीर या इच्छानुसार मिष्ठान प्रदान कर मंदिर में ही 3 पाठ कर नित्य 3 पाठ करने की माता से अनुमति प्रदान करें।विधि प्रारम्भ करने के पहले हनुमानजी को प्रणाम करें एवं पूजा सम्पन्न होने पर श्री भैरव जी को प्रणाम करें। इनके बाद रोज अपने निवास स्थान पर एक नियमित समय पर पाठ करे।
ये सामान्य विधि है माता का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त हो शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक रक्षा प्राप्त होती हैं।इसके अलावा जटिल विधि भी है सिद्ध करने की किन्तु इसे सिर्फ गुरु आदेश से और हो सके तो गुरु सानिध्य में ही कि जा सकती है।इस स्तोत्र में भगवती आदिशक्ति नवदुर्गा जी की शक्ति विद्यमान है।जिससे शारीरिक रक्षा,दुखों को दूर करने की शक्ति है।किसी भी प्रकार के रोग ऋण शत्रु से मुक्ति प्राप्त होती है।यदि आपको लगता है कि आपके या आपके परिवार के ऊपर बाहर की बाधा हो,नजर दोष हो,तो इस कवच का पाठ अवश्य करें।यदि आप चाहे तो संकल्प प्रदान कर इस कवच का जप अनुष्ठान करा कर ,इसे कवच के रूप में धारण किया जा सकता है।
गुप्तसप्तशती_महास्तोत्र!!

700मन्त्रों की ‘श्रीदुर्गा सप्तशती, का पाठ करने से साधकों का जैसा कल्याण होता है, वैसा-ही कल्याणकारी इसका पाठ है। यह ‘गुप्त-सप्तशती’ प्रचुर मन्त्र-बीजों के होने से आत्म कल्याणेछु साधकों के लिए अमोघ फलप्रद है।इसके पाठ का क्रम इस प्रकार है। प्रारम्भ में ‘कुञ्जिका-स्तोत्र’, उसके बाद ‘गुप्त-सप्तशती’, तदन्तर ‘स्तवन’ का पाठ करें।

गुप्त सप्तशती पाठ में इन तीनों स्तोत्रों का पाठ आवश्यक है।
1.कुञ्जिका-स्तोत्र
2.गुप्त-सप्तशती स्तोत्र
3..देवीस्तवन

सबसे पहले 11बार इस मालामंत्र का पाठ करें

नवार्ण मालामंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचन्डि महामाये महामोहे महायोगनिंद्रे जय मधुकैटभ विद्राविणी महिषासुरमर्दिनी धूम्रलोचनसंहंत्री चन्डमुन्डविनाशिनी रक्तबीजांतके निशुम्भ ध्वंसिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवी अष्टादशबाहुके कपाल खटवांग शूल खड्ग खेटक धारिणी छिन्नमस्तक धारिणी रुधिरमांंस भोजिनी
समस्त भूतप्रेतादिकयोग ध्वंसिनी ब्रहमेन्द्रादिक स्तुते ।
देवी माम् रक्ष रक्ष मम शत्रुन् नाशय नाशय ह्रीं फट् ह्रूं फट् ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै नमः।

कुञ्जिका-स्तोत्र

।।पूर्व-पीठिका-ईश्वर उवाच।।
श्रृणु देवि, प्रवक्ष्यामि कुञ्जिका-मन्त्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेन चण्डीजापं शुभं भवेत्‌॥1॥
न वर्म नार्गला-स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासं च न चार्चनम्‌॥2॥
कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्‌।
अति गुह्यतमं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्व-योनि-वच्च पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।
पाठ-मात्रेण संसिद्धिः कुञ्जिकामन्त्रमुत्तमम्‌॥ 4॥

अथ मंत्र :-
१..ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”

२..ॐ श्लैं दुँ क्लीं क्लौं जुं सः ज्वलयोज्ज्वल ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल प्रबल-प्रबल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा
।।इति मंत्र:।।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।

धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।

हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।

इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।

यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।

।इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।

गुप्तसप्तशती स्तोत्र
ॐ ब्रीं-ब्रीं-ब्रीं वेणु-हस्ते, स्तुत-सुर-बटुकैर्हां गणेशस्य माता।
स्वानन्दे नन्द-रुपे, अनहत-निरते, मुक्तिदे मुक्ति-मार्गे।।
हंसः सोहं विशाले, वलय-गति-हसे, सिद्ध-देवी समस्ता।
हीं-हीं-हीं सिद्ध-लोके, कच-रुचि-विपुले, वीर-भद्रे नमस्ते।।१

ॐ हींकारोच्चारयन्ती, मम हरति भयं, चण्ड-मुण्डौ प्रचण्डे।
खां-खां-खां खड्ग-पाणे, ध्रक-ध्रक ध्रकिते, उग्र-रुपे स्वरुपे।।
हुँ-हुँ हुँकांर-नादे, गगन-भुवि-तले, व्यापिनी व्योम-रुपे।
हं-हं हंकार-नादे, सुर-गण-नमिते, चण्ड-रुपे नमस्ते।।२

ऐं लोके कीर्तयन्ती, मम हरतु भयं, राक्षसान् हन्यमाने।
घ्रां-घ्रां-घ्रां घोर-रुपे, घघ-घघ-घटिते, घर्घरे घोर-रावे।।
निर्मांसे काक-जंघे, घसित-नख-नखा, धूम्र-नेत्रे त्रि-नेत्रे।
हस्ताब्जे शूल-मुण्डे, कुल-कुल ककुले, सिद्ध-हस्ते नमस्ते।।३

ॐ क्रीं-क्रीं-क्रीं ऐं कुमारी, कुह-कुह-मखिले, कोकिलेनानुरागे।
मुद्रा-संज्ञ-त्रि-रेखा, कुरु-कुरु सततं, श्री महा-मारि गुह्ये।।
तेजांगे सिद्धि-नाथे, मन-पवन-चले, नैव आज्ञा-निधाने।
ऐंकारे रात्रि-मध्ये, स्वपित-पशु-जने, तत्र कान्ते नमस्ते।।४

ॐ व्रां-व्रीं-व्रूं व्रैं कवित्वे, दहन-पुर-गते रुक्मि-रुपेण चक्रे।
त्रिः-शक्तया, युक्त-वर्णादिक, कर-नमिते, दादिवं पूर्व-वर्णे।।
ह्रीं-स्थाने काम-राजे, ज्वल-ज्वल ज्वलिते, कोशिनि कोश-पत्रे।
स्वच्छन्दे कष्ट-नाशे, सुर-वर-वपुषे, गुह्य-मुण्डे नमस्ते।।५
ॐ घ्रां-घ्रीं-घ्रूं घोर-तुण्डे, घघ-घघ घघघे घर्घरान्याङि्घ्र-घोषे।
ह्रीं क्रीं द्रूं द्रोञ्च-चक्रे, रर-रर-रमिते, सर्व-ज्ञाने प्रधाने।।
द्रीं तीर्थेषु च ज्येष्ठे, जुग-जुग जजुगे म्लीं पदे काल-मुण्डे।
सर्वांगे रक्त-धारा-मथन-कर-वरे, वज्र-दण्डे नमस्ते।।६

ॐ क्रां क्रीं क्रूं वाम-नमिते, गगन गड-गडे गुह्य-योनि-स्वरुपे।
वज्रांगे, वज्र-हस्ते, सुर-पति-वरदे, मत्त-मातंग-रुढे।।
स्वस्तेजे, शुद्ध-देहे, लल-लल-ललिते, छेदिते पाश-जाले।
किण्डल्याकार-रुपे, वृष वृषभ-ध्वजे, ऐन्द्रि मातर्नमस्ते।।७

ॐ हुँ हुँ हुंकार-नादे, विषमवश-करे, यक्ष-वैताल-नाथे।
सु-सिद्धयर्थे सु-सिद्धैः, ठठ-ठठ-ठठठः, सर्व-भक्षे प्रचण्डे।।
जूं सः सौं शान्ति-कर्मेऽमृत-मृत-हरे, निःसमेसं समुद्रे।
देवि, त्वं साधकानां, भव-भव वरदे, भद्र-काली नमस्ते।।८

ब्रह्माणी वैष्णवी त्वं, त्वमसि बहुचरा, त्वं वराह-स्वरुपा।
त्वं ऐन्द्री त्वं कुबेरी, त्वमसि च जननी, त्वं कुमारी महेन्द्री।।
ऐं ह्रीं क्लींकार-भूते, वितल-तल-तले, भू-तले स्वर्ग-मार्गे।
पाताले शैल-श्रृंगे, हरि-हर-भुवने, सिद्ध-चण्डी नमस्ते।।९

हं लं क्षं शौण्डि-रुपे, शमित भव-भये, सर्व-विघ्नान्त-विघ्ने।
गां गीं गूं गैं षडंगे, गगन-गति-गते, सिद्धिदे सिद्ध-साध्ये।।
वं क्रं मुद्रा हिमांशोर्प्रहसति-वदने, त्र्यक्षरे ह्सैं निनादे।
हां हूं गां गीं गणेशी, गज-मुख-जननी, त्वां महेशीं नमामि।।१०

.देवीस्तवन
या देवी खड्ग-हस्ता, सकल-जन-पदा, व्यापिनी विशऽव-दुर्गा।
श्यामांगी शुक्ल-पाशाब्दि जगण-गणिता, ब्रह्म-देहार्ध-वासा।।
ज्ञानानां साधयन्ती, तिमिर-विरहिता, ज्ञान-दिव्य-प्रबोधा।
सा देवी, दिव्य-मूर्तिर्प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।१

ॐ हां हीं हूं वर्म-युक्ते, शव-गमन-गतिर्भीषणे भीम-वक्त्रे।
क्रां क्रीं क्रूं क्रोध-मूर्तिर्विकृत-स्तन-मुखे, रौद्र-दंष्ट्रा-कराले।।
कं कं कंकाल-धारी भ्रमप्ति, जगदिदं भक्षयन्ती ग्रसन्ती-
हुंकारोच्चारयन्ती प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।२

ॐ ह्रां ह्रीं हूं रुद्र-रुपे, त्रिभुवन-नमिते, पाश-हस्ते त्रि-नेत्रे।
रां रीं रुं रंगे किले किलित रवा, शूल-हस्ते प्रचण्डे।।
लां लीं लूं लम्ब-जिह्वे हसति, कह-कहा शुद्ध-घोराट्ट-हासैः।
कंकाली काल-रात्रिः प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।३

ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोर-रुपे घघ-घघ-घटिते घर्घराराव घोरे।
निमाँसे शुष्क-जंघे पिबति नर-वसा धूम्र-धूम्रायमाने।।
ॐ द्रां द्रीं द्रूं द्रावयन्ती, सकल-भुवि-तले, यक्ष-गन्धर्व-नागान्।
क्षां क्षीं क्षूं क्षोभयन्ती प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।४

ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भद्र-काली, हरि-हर-नमिते, रुद्र-मूर्ते विकर्णे।
चन्द्रादित्यौ च कर्णौ, शशि-मुकुट-शिरो वेष्ठितां केतु-मालाम्।।
स्त्रक्-सर्व-चोरगेन्द्रा शशि-करण-निभा तारकाः हार-कण्ठे।
सा देवी दिव्य-मूर्तिः, प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।५

ॐ खं-खं-खं खड्ग-हस्ते, वर-कनक-निभे सूर्य-कान्ति-स्वतेजा।
विद्युज्ज्वालावलीनां, भव-निशित महा-कर्त्रिका दक्षिणेन।।
वामे हस्ते कपालं, वर-विमल-सुरा-पूरितं धारयन्ती।
सा देवी दिव्य-मूर्तिः प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।६

ॐ हुँ हुँ फट् काल-रात्रीं पुर-सुर-मथनीं धूम्र-मारी कुमारी।
ह्रां ह्रीं ह्रूं हन्ति दुष्टान् कलित किल-किला शब्द अट्टाट्टहासे।।
हा-हा भूत-प्रभूते, किल-किलित-मुखा, कीलयन्ती ग्रसन्ती।
हुंकारोच्चारयन्ती प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।७

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं कपालीं परिजन-सहिता चण्डि चामुण्डा-नित्ये।
रं-रं रंकार-शब्दे शशि-कर-धवले काल-कूटे दुरन्ते।।
हुँ हुँ हुंकार-कारि सुर-गण-नमिते, काल-कारी विकारी।
त्र्यैलोक्यं वश्य-कारी, प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे।।८

वन्दे दण्ड-प्रचण्डा डमरु-डिमि-डिमा, घण्ट टंकार-नादे।
नृत्यन्ती ताण्डवैषा थथ-थइ विभवैर्निर्मला मन्त्र-माला।।
रुक्षौ कुक्षौ वहन्ती, खर-खरिता रवा चार्चिनि प्रेत-माला।
उच्चैस्तैश्चाट्टहासै, हह हसित रवा, चर्म-मुण्डा प्रचण्डे।।९

ॐ त्वं ब्राह्मी त्वं च रौद्री स च शिखि-गमना त्वं च देवी कुमारी।
त्वं चक्री चक्र-हासा घुर-घुरित रवा, त्वं वराह-स्वरुपा।।
रौद्रे त्वं चर्म-मुण्डा सकल-भुवि-तले संस्थिते स्वर्ग-मार्गे।
पाताले शैल-श्रृंगे हरि-हर-नमिते देवि चण्डी नमस्ते।।१०

रक्ष त्वं मुण्ड-धारी गिरि-गुह-विवरे निर्झरे पर्वते वा।
संग्रामे शत्रु-मध्ये विश विषम-विषे संकटे कुत्सिते वा।।
व्याघ्रे चौरे च सर्पेऽप्युदधि-भुवि-तले वह्नि-मध्ये च दुर्गे।
रक्षेत् सा दिव्य-मूर्तिः प्रदहतु दुरितं मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे।।११

इत्येवं बीज-मन्त्रैः स्तवनमति-शिवं पातक-व्याधि-नाशनम्।
प्रत्यक्षं दिव्य-रुपं ग्रह-गण-मथनं मर्दनं शाकिनीनाम्।।
इत्येवं वेद-वेद्यं सकल-भय-हरं मन्त्र-शक्तिश्च नित्यम्।
मन्त्राणां स्तोत्रकं यः पठति स लभते प्रार्थितां मन्त्र-सिद्धिम्।।१२
चं-चं-चं चन्द्र-हासा चचम चम-चमा चातुरी चित्त-केशी।
यं-यं-यं योग-माया जननि जग-हिता योगिनी योग-रुपा।।
डं-डं-डं डाकिनीनां डमरुक-सहिता दोल हिण्डोल डिम्भा।
रं-रं-रं रक्त-वस्त्रा सरसिज-नयना पातु मां देवि दुर्गा।।१३

इसके बाद भगवती दुर्गा के निम्नलिखित शतनाम का पाठ करें।
~सिद्धिदायक दुर्गा शतनाम~
ॐ दुर्गा भवानी देवेशी विश्वनाथप्रिया शिवा ।
घोरदंष्ट्राकरालास्या मुण्डमालाविभूषिता ॥ १॥

रुद्राणी तारिणी तारा माहेशी भववल्लभा ।
नारायणी जगद्धात्री महादेवप्रिया जया ॥ २॥

विजया च जयाराध्या शर्वाणी हरवल्लभा ।
असिता चाणिमादेवी लघिमा गरिमा तथा ॥ ३॥

महेशशक्तिर्विश्वेशी गौरी पर्वतनन्दिनी ।
नित्या च निष्कलङ्का च निरीहा नित्यनूतना ॥ ४॥

रक्ता रक्तमुखी वाणी वस्तुयुक्तासमप्रभा।
यशोदा राधिका चण्डी द्रौपदी रुक्मिणी तथा ॥ ५॥

गुहप्रिया गुहरता गुहवंशविलासिनी ।
गणेशजननी माता विश्वरूपा च जाह्नवी ॥ ६॥

गङ्गा काली च काशी च भैरवी भुवनेश्वरी ।
निर्मला च सुगन्धा च देवकी देवपूजिता ॥ ७॥

दक्षजा दक्षिणा दक्षा दक्षयज्ञविनाशिनी।
सुशीला सुन्दरी सौम्या मातङ्गी कमलात्मिका ॥ ८॥

निशुम्भनाशिनी शुम्भनाशिनी चण्डनाशिनी ।
धूम्रलोचनसंहारी महिषासुरमर्दिनी ॥ ९॥

उमा गौरी कराला च कामिनी विश्वमोहिनी ।
जगदीशप्रिया जन्मनाशिनी भवनाशिनी ॥ १०॥

घोरवक्त्रा ललज्जिह्वा अट्टहासा दिगम्बरा ।
भारती स्वरगता देवी भोगदा मोक्षदायिनी ॥ ११॥

इत्येवं शतनामानि कथितानि वरानने ।
नामस्मरणमात्रेण जीवन्मुक्तो न संशयः।
पठित्वा शतनामानि मन्त्रसिद्धिं लभेत् धृवम् ॥ १२॥Laghu Saptashati

प्रस्तुतकर्ता-*डॉ रमेश खन्ना*
वरिष्ठ पत्रकार
हरिद्वार (उत्तराखण्ड)

One thought on “Laghu Saptashati, सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का ही स्वरूप है , दुर्गा लघु सप्तशती”

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