‘डीएफओ डायरी फाॅरेस्ट वाॅरियर्स’ 2024 का बिन्सर के जंगल की आग बुझाते हुए षहीद योद्धाओं से प्रेरित एक एपिसोडिक हिंदी फिल्म

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानंद सरस्वती महाराज जी के हाथों हिन्दी फीचर फिल्म ‘डीएफओ डायरी फाॅरेस्ट वाॅरियर्स’ के पोस्टर का अनावरण किया गया। फिल्म का एक गीत राही ओ राही पद्मश्री कैलाष खेर ने गाया है। उस गीत का भी स्वामी जी के हाथों लोकापर्ण किया गया। पैन-इंडिया रिलीज की जा रही फिल्म ‘डीएफओ डायरी फाॅरेस्ट वाॅरियर्स’ एक सिनेमाई अनुभव है उत्तराखंड के जंगलों को बचाने की खामोश लड़ाई का।

‘डीएफओ डायरी फाॅरेस्ट वाॅरियर्स’ एक एपिसोडिक फिल्म है। जिसमें अलग-अलग चैप्टरस है जो जुड़े हैं एक वन अधिकारी डीएफओ विजय की डायरी से। 2024 का बिन्सर अग्निकांड इस फिल्म का मूल आधार है। बिन्सर वाइल्ड लाइफ़ सेंचूरी, जो अल्मोड़ा जिले में स्थित है वहाॅं 2024 की गर्मियों में जंगलों में लगी आग को बुझाते हुए कुछ वनकर्मी और स्थानीय लोग शहीद हो गए।
ये फिल्म उन्हीं शहीदों और उनके जैसे अन्य वनरक्षकों के संधर्श को सामने लाती है।

कहानी शुरू होती है विश्व पर्यावरण दिवस के एक कार्यक्रम से। कार्यक्रम में विजय की आने वाली किताब – ‘डीएफओ डायरी फायर वारियस’ के बारे में पूछा जाता है, जो विजय अपने 20 साल के अनुभवों को अलग-अलग चैप्टर्स की शक्ल में सुनाता है। इन चैप्टरर्स में जंगलों की आग, शिकारियों और माफियाओं के खिलाफ संघर्ष दर्ज है । हर चैप्टर की कहानी के साथ फिल्म आगे बढ़ती है।

एपिसोडिक फिल्म में मूलतः तीन चैप्टर हैं।

पहला चैप्टर: नोबल विजेता रविन्द्र नाथ टैगोर जी की कुमांउ में वीरान पड़ी हवेली की खोज को लेकर है जिसमें कुछ काॅलेज की छात्राओं नोबल विजेता रविन्द्र नाथ टैगोर जी की वीरान गुमनाम लेखन स्थल की खोज पर निकलती हैं और उस दौरान शिकारियों द्वारा बंधक बना ली जाती हैं। सही समय डीएफओ विजय आकर उनको बचाता है।

दुसरा चैप्टर: कुछ लकड़ी माफियाओं के साथ फाॅरेस्ट डिपार्टमेंट की मुठभेड़ को लेकर है जिसमें धने जंगलों में काफी देर पीछा करने के बाद कुख्यात वन तस्करों को पकड़ा जाता है।

तीसरा चैप्टर: उत्तराखंड के जंगलों में फायर सीजन पर आधारित है। कैसे जंगलों को आग से बचाने की कवायद शुरू होती है। महीनों की मेहनत के बाद भी कुछ गलती, कुछ लापरवाही और कुछ जानबुझकर पर जरा सी चिंगारी से सारा जंगल स्वाहा हो जाता है। जंगल को बचाने की मुहिम में जुटे गांववालों के साथ फाॅरेस्ट डिपार्टमेंट की जंग को लेकर है। इस कोशिश में आग बुझाते हुए कुछ वनयोद्धाओं के शहीद होने की दर्दनाक धटना को दर्शाया गया है।

संक्षेप में फिल्म उन गुमनाम योद्धाओं के बारे में बताती-दिखाती है जो इस प्रकृति और पर्यावरण के लिए कई बार अपनी जान तक कुर्बान कर देते हैं। कई सारी सच्ची धटनाओं से प्रेरित इस डायरी के पन्नों को गीत-संगीत के साथ फिल्मी अंदाज में प्रस्तुत किया गया है।

‘डीएफओ डायरी फॉरेस्ट वॉरियर्स’ एक रोमांचक एडवेंचर ड्रामा फिल्म है, जिसे उत्तराखंड के खूबसूरत कुमाऊँ हिमालय की गोद में फिल्माया गया है। यह फिल्म जंगलों की आत्मा और उन जाँबाज रक्षकों की गाथा है, जो हर दिन प्रकृति को बचाने के लिए संघर्ष करते हैं।

डीएफओ की डायरी के पन्नों से दर्शक उन वास्तविक और नाटकीय घटनाओं की यात्रा पर निकलते हैं, जहाँ जंगल ही पृष्ठभूमि भी है और रणभूमि भी। कहीं निर्दयी शिकारी मासूम ट्रेकर्स की जिंदगी पर खतरा बनकर आते हैं, तो कहीं भीषण जंगल की आग से लड़ने के लिए गाँववाले, अधिकारी और बच्चे एकजुट होकर धरती माँ को बचाने की कसम खाते हैं।

फिल्म की सिनेमाटोग्राफी उत्तराखंड की झीलों, ओक पाइन से भरे घने जंगलों, धुंध से ढकी घाटियों और पारंपरिक गाँवों की सुंदरता को बड़े परदे पर जीवंत करती है। हिमालय यहाँ एक पात्र की तरह उभरता है जिसकी गोद में सौंदर्य भी है और संकट भी।

‘डीएफओ डायरी, फॉरेस्ट वॉरियर्स’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक आंदोलन है जो रोमांच, साहस, भावना और प्रेरणा को एक साथ जोड़कर दर्शकों को न सिर्फ सिनेमाई अनुभव कराता है, बल्कि उन्हें भी प्रकृति के रक्षक बनने की पुकार सुनाता है।

यह फिल्म दिल को छू लेने वाली और रोमांचक दोनों है। ये भारत के उन अनसुने नायकों को समर्पित हैं, जिन्होंने जंगलों की रक्षा के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया, और यह याद दिलाती है कि जब हम सब साथ खड़े हों, तो धरती का सबसे अनमोल खजाना प्रकृति हमेशा सुरक्षित रह सकता है।

गीत और संगीत : फिल्म का संगीत इसकी आत्मा है जो उत्तराखंड की लोकधुनों और आधुनिक संगीत का अनूठा मेल हैं।

गीत: राही ओ राही, स्वर: पद्मश्री कैलाश खेर

विषेश: नोबल पुरस्कार रविन्द्रनाथ जी की कृति गीतांजलि जहाॅं लिखी गयी वो जगह आज वीरान, गुमनाम और उजाड़ है। उस जगह की खोज को लिए है ये ट्रैवलॉग गीत।

उत्तराखंड में कुमांउ का एक गुमनाम स्थान- टैगोर टाॅप, वहाॅं आने का निमंत्रण देता एक एैतिहासिक सा यात्रा गीत है। नोबल पुरूस्कार से सम्मानित श्री रविन्द्र नाथ टैगोर जी का वो स्थान जहाॅं उन्होंने गीताजंलि को लिखा वो जंगलों के बीच में जर्जर हालत में वीरान सा पड़ा हैं ग्राफिक इरा विष्वविद्यालय की कुछ छात्राऐं उसकी खोज के लिए निकलती हैं। गीत टैगोर जी की गीतांजलि लिखने वाले स्थान तक पहुॅंचने की यात्रा को लिए है। यात्रा कुमांउ की खूबसूरत वादियों के बीच से गुनगुनाती सी गुजरती है।

गीत: भागीरथों पुनः उठो, स्वर: बीजू लाल आई.एफ.एस.

विषेश: जंगलों को आग से बचाने के लिए सभी को पुकारता, पे्ररित करता ये पहला गीत है जो वास्तविक लोकेषन में फिल्माया गया। ग्लोबल वाॅर्मिंग के लिए युवा पीढ़ी को आगे आकर कमान संभालने को जोष भरता है ये गीत।

एक आह्वान गीत है। जो हर युवा से महान तपस्वी भगीरथ के जैसे प्रकृति को बचाने और संवारने के लिए डटे रहने की प्रेरणा देता है। सूखते, जलते, टूटते और दरकते पहाड़ की पीड़ा और उस दूर करने के लिए आगे आने का संदेष देता ये गीत बीजू लाल आई.एफ.एस ने गाया है।
लोकधुनों पर आधारित गीत जिसमें छोलिया नृत्य को बड़ी खूबसूरती से पिरोया गया है।

शूटिंग लोकेशन: फिल्म की सारी षूटिंग कुमांउ की खूबसूरत वादियों की गयी। नैनीताल, भवाली, पंगोट, रामगढ़, मुक्तेष्वर आदि लोकेषन में इसे फिल्माया गया।

क्रिएटिव टीम

लेखक-निर्देषक: महेष भट्ट, निर्माताः सज्जू लाल टी आर, कॉन्सेप्टः बीजू लाल आई.एफ.एस. क्रिएटीव प्रोडयूसर: आयुश्मान भट्ट कैमरा: मनोज सती, संतोश पाल सम्पादन: आयुश्मान, आलोक सिंह, पटकथा:ऋृतुराज संगीत: अमित वी कपूर, विनय कोचर, मन चैहान, पाष्र्व संगीत: अमित वी कपूर, स्वरः पद्मश्री कैलाष खेर, बीजू लाल आई.एफ.एस, कास्टिंग: सौरभ मिश्रा, कास्टूयम: काजल सिंह, फाइट: अरूण सिंह, प्रोडक्षन: संजय मैठाणी

कलाकार

बीजू लाल आई.एफ.एस., हर्शिता कोहली, देवेन्द्र बिश्ट, राजेष आर्या, देवेन्द्र रावत, पवन कुमार, गंगा बुटलाकोटी, नीलम, किरन डिमरी, मनोज षाह,मुकेष धस्माना, चित्रा नेगी,डा.रजनी रावत, सुनिधि खरे, दिषा यादव, रिचा तिवारी, पूजा, पायल, निधि आर्या, सईद खान, प्रदीप मिश्रा तथा भवाली क्षेत्र के स्थानीय कलाकार

पैन-इंडिया रिलीज

‘डीएफओ डायरी फाॅरेस्ट वाॅरियर्स’ देशभर के अनेक थियेटरों में एक साथ रिलीज हो रही है। फिल्म को हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी दिखाया जाएगा ताकि यह संदेश पूरे भारत में बच्चों और युवाओं तक पहुँचे।


By Shashi Sharma

Shashi Sharma Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, she provided her strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got her pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of her pen. Delivered.

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