प्रज्ञाकुंज में शिव के
जलाभिषेक को उमड़ी भीड़।
श्री महाकालेश्वर महादेव मंदिर प्रज्ञाकुंज जगजीतपुर कनखल हरिद्वार में सावन के पहले दिन सोमवार को प्रातः काल ५ बजे से ही जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।
सर्व प्रथम पूरे श्रावण मास में प्रतिदिन रुद्राभिषेक करने वाले मोहित कुमार वर्मा ने महारुद्राभिषेक किया।
प्रतिवर्ष श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या देखकर प्रसन्नता हुई। श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए आज शिव जी पर नशीले पदार्थ समर्पित करने की परम्परा का उल्लेख करते हुए गणेश गायत्री परिवार ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी जितेन्द्र रघुवंशी ने शास्त्रोक्त उदाहरण देते हुए बताया कि जब समुद्र मंथन हुआ था तब बहुमूल्य रत्नों के साथ नशीले पदार्थ अर्थात विष भी निकला था, संसार को इससे कोई क्षति न हो यह सोचकर देव दानव समाधान के लिए शिव जी के पास लेकर गये। शिव जी ने लोक कल्याण की भावना से उसे कण्ठ में धारण कर लिया, वह विष इतना जहरीला था कि शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया और तब से शिव जी का एक नाम नीलकण्ठ महादेव भी हो गया।
ऋषिकेश के समीप वह स्थान आज भी नीलकण्ठ महादेव के नाम से वन्दित है, जहाँ शिव जी ने विष के प्रभाव का शमन करने के लिए तपस्या की थी। तब से यह परम्परा बनाई गई कि कहीं भी नशीले अर्थात विषाक्त पदार्थ मिलें तो उन्हें शिव जी को समर्पित करते हुए भोले शंकर से प्रार्थना करें कि हम तथा हमारा परिवार इन नशीले पदार्थों से दूर रहें ऐसी शक्ति हमें प्रदान करें।
मध्यकालीन युग में ऐसे अनर्थकारी प्रतिपादन किये गये और शिव जी को समर्पित नशीले पदार्थों को प्रसाद के रूप में महिमामंडित करके ग्रहण करने के लिए कहा गया, जिसका परिणाम यह हुआ कि आज की पीढ़ी पूरी तरह से नशा के आगोश में आकण्ठ डूबती चली जा रही है।
शिव आराधना को सफल बनाने के लिए सर्वप्रथम हमें नशीले पदार्थों का त्याग करना होगा। जो श्रद्धालु नशामुक्त होकर शिव जी का अभिषेक श्रावण मास में करेंगे, उनकी मनोकामनाएं निश्चित रूप से पूरी होंगी।