religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 10
religion and philosophy- 10
मेघनाथ ने पिता की जीत को,की थी देवी
श्रीप्रत्यङ्गिरा की उपासना
श्रीप्रत्यङ्गिरा विजयतेतराम्
सिंहारूढातिकृष्णा त्रिभुवनभयकृद् रूपमुग्रं वहन्ती ज्वालावक्त्रा वसाना नववसन युगं नीलमण्याभ कान्तिः। शूलं खड्गं वहन्ती निजकरयुगले भक्तरक्षैकदक्षा सेयं प्रत्यङ्गिरा संक्षपयतु रिपुभिर्निर्मितं वोऽभिचाराम्॥
जगदम्बा सर्वाभीष्टप्रदा श्रीप्रत्यङ्गिरा के असीम कृपा से एवं उनकी प्रेरणा से सभी साधकों को नमस्कार वैसे तो ये साधना अत्यंत दुरूह, तीव्र एवम कठिन है फिर भी ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो इसको आपको चुटकियों में सिद्ध करवाने का दावा करेंगे। मित्रों ऐसे लोगों के चक्कर में मत पड़िएगा क्योंकि थोड़ी सी भी त्रुटि होने पर ये न सिर्फ साधक का बल्कि उससे जुड़े लोगों का भी सर्वनाश कर देती है।
श्रीप्रत्यङ्गिरा देवी की बहूत सारी साधनाए हैं जैसे मंत्र, स्तोत्रं, कवचं, पटलं, सूक्तं, पुरश्चरणं, अष्टोत्तरशतनामावली एवं सहस्रनामस्तोत्रं इत्यादि। आप इनकी कोई भी साधना सत्यनिष्ठ, योग्य, सद्चरित्र गुरु के मार्गदर्शन में कर सकते हैं।
श्रीप्रत्यङ्गिरा उपासना विषय पर रामायण में मेघनाद के संदर्भ में एक उल्लेख आता है। रावण की सेना हार रही थी, तब गुप्त रूप से मेघनाद श्रीप्रत्यङ्गिरा देवी की साधना में चला गया था। जब हनुमान जी को इसका आभास हुआ तब उन्होंने उसकी साधना अधूरी ही तोड़ दी थी। अगर मेघनाद साधना पूर्ण कर लेता तो शायद श्रीराम जी को युद्ध जीतना कठिन हो जाता।
श्रीप्रत्यङ्गिरा देवी गुप्त अवस्था में रहने वाली मातृत्व की शक्ति है। वह आपके अंदर ही है, बस उसे जागृत करना आवश्यक है। आपके अंदर बसे सूक्ष्म भय चिंता को वह आपके सामने लाती, प्रकट करती है और उसी का विनाश करने के लिए मदत करती है। आध्यात्मिक जगत में भय के गहरे जख्म को समझाकर उससे दूर करने में मदत करती है। इसलिए यह मोक्ष के दरवाजे पर वास करने वाली शक्ति कहा है।
माँ प्रत्यङ्गिरा का स्वरुप की शक्ति अनन्तता (इनफिनिटी) का प्रतीक है। जिसका कार्य सन्तुलन करना है। कुण्डलिनी चक्रों में हर एक चक्र में मनुष्य अनेकों जन्मों से पापपुञ्जात्मक अलग अलग विघ्न रूप भय, संताप इत्यादि लेकर आता है। यह देवी शेर के मुख वाली होने के कारण इस साधना में बहुत तेज शक्ति बल से उस विघ्न को काटने को तत्पर होती है। इनका आधा शरीर सिंह और आधा मनुष्य रूपी शरीर है।
इस देवी की उपासना, किसी को सामन्यतः रोज के जीवन में सदैव कम अधिक अपघात होते हैं, तीव्र शत्रुत्व, काले जादू अथवा तत्सम विषयो के कारण बीमारी, किसी भी काले जादू के प्रभाव को कम करना, किसी शक्ति के घर पर अथवा आप पर गम्भीर दोष रोष आया हो, गम्भीर श्राप से मुक्ति के लिए भी इसकी साधना की जाती है।
माँ प्रत्यङ्गिरा का आविर्भाव श्री नृसिंह देव जी, जो भगवान विष्णु के अवतार थे, जब उन्होंने राक्षसों को मारकर उनका रक्त पिया था, तब उसके कारण उनके शरीर में काफी क्रोध आया था। उसके बाद वह बहुत हाहाकार मचाने लगे, परन्तु उसमें शिवजी को भी अपयश आया। जैसे की शिव ने देखा भगवान नृसिंह शान्त नहीं हो रहे हैं, भगवान शिव जी ने शरभ नामक एक महाकाय पक्षी का अवतार धारण किया । इस पक्षी के एक पंख पर शूलिनी देवी विराजमान थी और दूसरे पंख पर प्रत्यङ्गिरा देवी विराजमान थी। इस शिवजी के अवतार को श्रीशरभेश्वर कहा जाता है। परन्तु, श्री शरभजी ने अपने श्रीशूलिनी देवी के माध्यम से नृसिंह जी को शान्त करने में अपयशी हो गई। तब शरभ जी के एक पंख से प्रत्यङ्गिरा देवी अलग हुई और उसने नृसिंही देवी रूप धारण किया। और उस रूप में उसने भगवान नृसिंह जी को शान्त किया उस समय और एक शक्ति निर्माण हुई उसे गण्डभेरुण्डा नाम से कहा जाता है। यह एक महाभयंकर दैवीय शक्तियां थी।
साधना में श्रीप्रत्यङ्गिरा देवी का अनुभव आना अथवा उनका दर्शन होना काफी बड़ी बात कही जाती है। वह अपने सिंह मुख से अनेकों कठनाइयों को हटा देती है। इसका बीज मन्त्र है “क्षं”। श्रीप्रत्यङ्गिरा देवी साधना के दौरान, साधक के शरीर के अंगों में बस जाती है। इसलिए उसे प्रत्य + अंग ऐसा कहा है।
इनकी साधना से साधक के शरीर में काफी बदलाव होने लगता है और साधक के आसपास के लोग उसे उच्च मान सम्मान देने लगते हैं और उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है, शत्रु भी नरम रहते हैं। नियमित साधना से शरीर की ओरा तेजमय बनती है।
साधनाएँ इष्ट देवता तथा गुरुजी की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती है। इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है। साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है। साधना उसी व्यक्ति से लें जिसने ये साधना ईमानदारी से किया हो। जैसे 2+2= 4 होते हैं ये वही व्यक्ति बताएगा जिसने गणित पढ़ा हो उसी प्रकार ब्रह्म का उपदेश या साधना का उपदेश मात्र वही दे सकता है जिसका ब्रह्म से परिचय हो अथवा जिसने इस या किसी भी साधना को ईमानदारी व निष्ठा से किया हो। किताब कंठस्थ करके उपदेश देने वाले गुरुओं से हमेशा सावधान रहें अन्यथा हानि सुनिश्चित है।
साधना में सर्व प्रथम योग्य गुरु की अनुमति ले लें। किसी भी शुभ मुहूत, शुभ दिन, शुभ स्थान, स्वच्छ वस्त्र, नये ताम्र पूजा पात्र, बिना किसी छल कपट के शान्त चित, भोले भाव से यथाशक्ति यथा सामग्री, ब्रह्मचर्य के पालन की प्रतिज्ञा कर यह साधना आरम्भ कर सकते हैं। साधना पूर्व विघ्नविनाशक गणपति , शिव का ध्यान करें। याद रहे ध्यान अथवा मन्त्र ही सम्बंधित देवी-देवता का मोबाइल नम्बर है। जैसे ही आप मन्त्र का उच्चारण करेंगे, उस देवी-देवता के पास आपकी पुकार तुरंत पहुंच जाएगी। इसलिए मन्त्र शुद्ध पढ़ना चाहिए। मन्त्र का शुद्ध उच्चारण न होने पर कोई फल नहीं मिलेगा, बल्कि नुकसान ही होगा।
एक बात का हमेशा ध्यान रहना चाहिए की जप/पाठ के दौरान किसी को गाली गलौच गुस्सा अपमानित ना करें। किसी भी महिला (चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो) का अपमान ना करें । यथा सम्भव सम्मान करें। जिस बालिका/युवती/स्त्री के बाल कमर से नीचे तक या उससे ज्यादा लम्बे हों उसे देखने पर मन ही मन मातृ स्वरूप की भावना करते हुए हुए प्रणाम करें। सात्विक आहार, आचार, विचार रखें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
कलियुग में नानाप्रकार के तापों से जातकों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जातकों के मन में हमेशा अशान्ति का वातावरण छाया रहता है । माँ प्रत्यङ्गिरा का भद्रकाली या महाकाली का ही विराट रूप है। माँ प्रत्यङ्गिरा की गुप्तरूप से की गई आराधना, जप से अच्छों-अच्छों के झक्के छूट जाते हैं। कितना ही बड़ा काम क्यों न हो अथवा कितना बड़ा शत्रु ही क्यों न हो, सभी को माँ चुटकियों में शमन कर देती है। आप भी माँ प्रत्यङ्गिरा की सच्चे मन से साधना-आराधना-जप करके यश, वैभव, कीर्ति प्राप्त कर सकते हैं।
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।
ईश्वर एक साथ सबकी मदद करने नहीं पहुंच सकते, इसलिए उन्होंने संसार को उपहार स्वरुप माँ दी है, उन्हें माँ पर ही विश्वास है और हम शक्त बन कर उन्ही की आराधना करतें हैं इसीलिए माँ ने, अपने विभिन्न रूपों में, अपने पुत्रों के लिए अपने आंचल में पूरे संसार सुख समाहित कर दिया। यह अंतिम सत्य है कि माँ यह चराचर जगत ही नहीं, सृष्टि का आदि अंत भी माँ ही है, चाहे वह किन्हीं रूपों में हो। प्रकृति और पुरूष भी माँ के द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं। माँ ब्रह्म है। सत्य है, श्रद्धा है, शक्ति है, तप है, पुण्य है, ग्रह, नक्षत्र, ज्योतिष देव, दानव, यक्ष, गन्धर्व आदि सब है माँ। इसलिए माँ के बिना जीवन की कल्पना की ही नहीं जा सकती। आप अपने जन्म देने वाली माँ की भी अगर ऐसे पूजा करें जैसी माता दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि की करते हैं तो आपको वही शक्ति वही उर्जा और आर्शिवाद मिलेगा। सनद रहे, जन्म देने वाली माँ को दुखी करके आप सृष्टि की आदि मध्य और अन्त यानी त्रिशक्ति माता महालक्ष्मी, महासरस्वती और माता महाकाली के आशीर्वाद अथवा वरदान का पात्र नहीं बन सकते। हमारे धर्म ग्रन्थ इस शाश्वत सत्य के गवाह हैं कि जब भी पुत्रों पर कष्ट आता है माँ उसे दूर करती है चाहे उसे कुछ भी करना पड़े।
माँ ही ब्रह्मा की शक्ति बनकर सृष्टि का सृजन करती है तो
भगवान विष्णु की शक्ति बनकर आपका भरण-पोषण भी करती है। परन्तु मार्ग से भटकने अथवा अपनी जीवन यात्रा समाप्त करने के लिए महाकाल की शक्ति महाकाली बनकर संहार भी करती है। अतः यही वह मां त्रिशक्तियां है जिन्होंने चराचर जगत को अपनी प्रतिनिधि के रूप में माताओं को जन्म दिया और यही माताएं चौबीसों घंटे हमपर आशीर्वाद बनाये रखने और कुशलक्षेम के लिए तत्पर रहती हैं। सजीव या निर्जीव किसी का भी कोई अस्तित्व नहीं। शिव भी शक्ति के बिना शव के समान है।
शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं
न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि।
आज की ईर्ष्यालु, लोलुप और तमाम लिप्साओं से भरी भागदौड़ की जिन्दगी में मानव रातों-रात कामयाबियों के चरम पर पहुंचना चाहता है। वो चाहता है कि कामयाबी उसके कदम चूमें लेकिन अपने इस भगीरथ प्रयास में जब वह सफल होने लगता है तो तमाम कठिनाइयां काल बनकर मुंह फैलाये सामने खड़ी होती हैं। यहां तक कि स्वयं उसे अपने आप से ही लड़ना पड़ता है मित्रों-संबंधियों से लड़ना पड़ता है। आज लोग अपनी विफलता से दुखी नहीं, बल्कि पड़ोसी की सफलता से दुखी हैं। ऐसे में उन लोगों को सफलता देने के लिए माँ प्रत्यङ्गिरा मानव कल्याण के लिए कलियुग में प्रत्यक्ष फल प्रदान करती रही है।
यह विद्या आंतरिक और बाह्य शर्त्रुओ का नाश करने में अद्भुत है, वही कोर्ट, कचहरी में, वाद-विवाद में भी विजय दिलाने में सक्षम है। इसकी साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। उसके मुख का तेज इतना हो जाता है कि उससे आँखें मिलाने में भी व्यक्ति घबराता है। सामनेवाले विरोधियों को शान्त करने में इस विद्या का अनेक लोग अपने ढंग से इस्तेमाल करते हैं। यदि इस विद्या का सदुपयोग किया जाए तो सर्वशक्तिमान होगा। मन्त्र शक्ति का चमत्कार हजारों साल से होता आ रहा है। सभी मन्त्र अपना कार्य करने में सक्षम हैं। मन्त्र का उचित गुरु के मार्गदर्शन में यदि सही विधि द्वारा जप/पाठ किया जाए तो वह मन्त्रादि निश्चित रूप से सफलता दिलाने में सक्षम होता है।
यह प्रत्यङ्गिरा देवी राहु ग्रह के दोष को कम करती है, और श्री वाराही देवी केतु ग्रह के दोष को कम करती है। राहु दोष के कारण बहुत लोगो को स्वभाव चक्रम बन जाता है, उसको यह स्थिरत्व देती है। देवी ने आठ सर्पों को शरीर पर धारण किया है, किसीको सर्पदोष तथा स्वप्न में सर्पों के भयानक चित्र आतें हो तो यह देवी जल्द ही उसको कम करती है। देवी के नाम से अगर कुंकुम लेकर घर के मुख्य दरवाजे के नीचे डाल दिया जाए तो भी दुष्ट आत्माए और सर्प अंदर नहीं आतें ।
अतः सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली, कोर्ट में विजय दिलाने वाली, अपने विरोधियों का मुँह बंद करने वाली तथा हमारी आंतरिक दोषों को दूर करने वाली माँ प्रत्यङ्गिरा की आराधना हम सभी को आवश्कता पड़ने पर अवश्य ही सच्चे एवं योग्य गुरुं के मार्गदर्शन में अपने अभीष्ट की प्राप्ति हेतु करना चाहिए ।
साधना में इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए की इन करुणामयी मां की साधना अथवा प्रार्थना में आपकी श्रद्धा , समर्पण और विश्वास असीम हो तभी माँ की शुभ दृष्टि आप पर पड़ेगी। इनकी आराधना करने आप जीवन में जो चाहें जैसा चाहें वैसा कर सकते हैं।
आप सब साधकों को माँ भगवती जगदम्बा श्रीप्रत्यङ्गिरा के अनुग्रह से अपनी अपनी मनोकामना पुरी होने के लिये हम हार्दिक शुभकामनाएँ करतें हैं।
जगदम्ब ! जगदम्ब ! जगदम्ब !
दासोऽयमिति मां मत्वा यथेच्छसि तथा कुरु ।
त्वं मां भजस्व प्रत्यङ्गिरे येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥
जय परांबा जय महाकाल
*डॉ रमेश खन्ना*
वरिष्ठ पत्रकार हरिद्वार
(उत्तराखण्ड)
जय पराबा जय महाकाल जय जय जगदम्बा मां
जय माता दी जय महाकाल 🙏🙏🙏