religion,धर्म-कर्म और दर्शन -109
religion and philosophy- 109
🏵️कौलिक और कल्कि 🏵️
शिव शक्ति का अनुसंधान कर्ता कौलिक ही कल्कि हो सकता है या होता आया है, अवतार आते हैं, अवतार आये हैं औऱ आते रहेंगें, उनकी पहचान भले ही संसार न करें तो वह अपनी पहचान अवतारी चेतना श्री कृष्ण की तरह धर्मक्षेत्र में अपने कर्तव्य ,कर्मो की प्रचंडता द्वारा जनमानस रूपी अर्जुन को कराता है ।
वह अपने पीछे निर्धारणाये, व्यवस्थाएं बनाकर जाग्रत आत्माओं को उस काम को पूरा करने के लिए छोड़ जाता है । अवतारों को प्रायः जीवन काल में पहचाना ही नही जाता है ।राम पर भी लांछन लगे कृष्ण को चोर ,रणछोड़ कह बगैर नही बख्सा । बहुधा अवतार के जाने के बाद ही मूल्यांकन होता है।
उस मनुष्य के गुण जिस ऐतिहासिक मनुष्य से ज्यादा मिलते हैं उसकी तुलना उसी इतिहास पुरुष से करने पर उसे पुराने इतिहास पुरुष का अवतार या अवतारी अंश कहा जाता है । वैसे अवतार जैसी धारणा का महत्व —पहले था जब लोगों में निजी सोच विकसित नहीं हुई थी सबकी सोच सामाजिक राजनीतिक प्रेरित थी वर्तमान परिपेक्ष में निजी सोच विकसित हो जाने पर अब अवतार जैसी धारणा निर्मूल साबित हो चुकी है ।
उस अवतार पुरुष को वह श्रेष्ठ पुरुष माना जाता है जो अपनी मानसिक ऊर्जा शारीरिक ऊर्जा का अधिकतम सदुपयोग समाज के हित में करता है ।।
लेख विस्तृत न हो इस भय से कल्कि पुराण और आगम निगम का भाव संक्षेप और सांकेतिक रूप से बिना लंबी भूमिका के लिखने का प्रयास रहेगा , तो चलते है कल्कि पुराण के कथानक क्या कहते है गूढ़ रूप में क्या संकेत छोड़ते है
जब प्रलय काल बीत गया तब संसार के रचयिता श्री ब्रह्माजी ने अपनी पीठ से घोर मलिन पातक को जन्म दिया। यह पातक जन्म लेने पर अधर्म कहलाया। इस अधर्म के वंश का आख्यान श्रवण करने, स्मरण करने तथा सभी रहस्यों को जान लेने से प्राणी इस संसार के सभी पापों से मुक्त हो जाता है। उस पातक अधर्म की पत्नी का नाम मिथ्या था। वह बिल्ली जैसे चपल नेत्रों वाली, अत्यन्त सुन्दर और रमणीय थी। इन दोनों के परस्पर संयोग से इनके वंश में अत्यन्त तेजस्वी और महाक्रोधी स्वभाव का एक पुत्र जन्मा। इस क्रोधी पुत्र का नाम अधर्म ने दम्भ रखा। अधर्म और मिथ्या के यहां माया नाम की भ्रमित कर देने वाली, बुद्धि को कुमार्ग की ओर ले जाने वाली कन्या का जन्म हुआ।
माया ने दम्भ के साथ रमण करते हुए बहुत समय बिताया और कुछ समय के बाद इनके यहां लोभ नाम का एक लोभ नाम का एक पुत्र तथा निकृति(विकार) नाम की एक कन्या ने जन्म लिया। बाद में युवा होने पर लोभ और #निकृति (नीच कार्य) भी लैंगिक सम्बन्ध की ओर अग्रसर हुए और इनके परस्पर संयोग से इनके यहां क्रोध नाम का अत्यन्त उग्र स्वभाव का तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ।
लोभ और निकृति के यहां एक कन्या भी जन्मी। इस कन्या का नाम हिंसा था। यह भी निर्दयी स्वभाव की और करुणा विहीन थी। इस प्रकार क्रोध और हिंसा के संभोग से संसार को नष्ट करने वाले कलि का जन्म हुआ।
जन्म के समय कलि बाएं हाथ में उपास्थि धारण किए था और इसका संपूर्ण शरीर काजल के समान श्यामवर्णी था। काक उदर वाले, कराल तथा चंचल जीभ वाले तथा भयानक दुर्गन्ध युक्त शरीर वाले इस कलि ने जुए, मद्य, स्त्री और स्वर्ण में अपना निवास चुना। क्रोध और हिंसा के यहां दुरुक्ति(अनुचित युक्ति) नाम की एक अत्यन्त विकाराल दृष्टि वाली कन्या भी जन्मी। यह कन्या भी कलि की भांति बड़ी भयानक आकृति वाली थी। आगे इस कलि ने दुरुक्ति के साथ संयोग द्वारा भयानक नाम के अत्यन्त विरूप पुत्र को जन्म दिया और मृत्यु नाम की कन्या उत्पन्न की। भयानक ने आगे चलकर मृत्यु के साथ समागम करके निरय (नरक) नाम के पुत्र को जन्म दिया और साथ ही यातना नाम की पुत्री को भी जन्म दिया। इस प्रकार संसार सृष्ठा ब्रह्मा की पीठ से जन्मे घोर पातक अधर्म के वंश में कलि नामी अधर्मी का जन्म एक बड़ी घटना थी।
इसी के वंश में उत्पन्न निरय(नरक) और यातना के संयोग से हजारों पुत्र उत्पन्न हुए। ये सभी अधर्म के वंशज पूरी तरह धर्म के विरुद्ध, उसकी निन्दा करने वाले, सभी प्रकार के पाप कर्म में लीन, ईश्वर भक्ति से विरत, सत्कर्म में अश्रद्धा रखने वाले, बुराईयों को बढ़ावा देने वाले, अविद्या माया से ग्रस्त, मोह, माया, आधि-व्याधि, बुढ़ापा और भय को आश्रय देने वाले हैं। #यज्ञ यागादि, अध्ययन, दान, दया, धर्म, शील, वैदिक तथा तांत्रिक कर्मों से विरत करने वाले और इन कर्मों को करने वालों के लिए संकट खड़ा करने वाले हुए। इनके दमनकारी कार्यों का इतना प्रभाव पड़ा कि पृथ्वी पर अनाचार बहुत अधिक बढ़ गया और सभी जगह प्रजा में त्राहि-त्राहि मचने लगी।
ऊपर चल रहा आख्यान वस्तुतः कोई नाम धारी राजा के वंश का वर्णन न होकर एक कलयुग के आगमन का भाव चित्रण हैं,
आख्यान पूरा का पूरा भाव वाचक है और दुर्गुणों की क्रमिक वंशावली का कलात्मक प्रतीक है
कल्कि पुराण के नायक कल्कि के जन्म ,शिक्षा ,दीक्षा से लेकर धर्म और व्यवस्था परिवर्तन, कथानक यूं ही आगे भाव के साथ अवतारी चेतना को पहचानने के संकेतों ,विचारों के निरूपणों के साथ चलता चला जाता है भगवान कल्कि कीक़टपुर अर्थात संकीर्ण स्वार्थी मनोवृति में निवास करने वाले बौद्ध तार्किक, घमंडी , स्वार्थी वामपंथी बुद्धि वाले अधर्मी मलेच्छ व्यक्तियों से युद्ध करते हैं। आस्था संकट से जूझते हुए वे ज्ञान रूपी खड्ग से सिर काटते है अर्थात विचार क्रांति द्वारा उनके विचारों को बदलकर उन्हें समर्पण अपनाने बाध्य कर देते हैं धर्म और आध्यत्म तत्व का वे ऐसा वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत करते है कि हर नास्तिक(बौद्ध) उनको पढ़ सुनकर बदलता चला जाता है।
कल्कि पुराण में इसे इतनी सूक्ष्म बुद्धि और कुशलता से पेश किया गया है कि वर्तमान युग की व्यख्या में किसी को संदेह न रह जाये ,
शास्त्रकारों की श्रुति रचने वालों की शैली यद्दपि अलंकारिक रूपक निरूपित है तो भी बुद्धि पर जोर डालने पर उसका मर्म और भाव समझ आने लगता है ।
इसी प्रकार जब आप तंत्र से सम्बंधित शास्त्रों और आचारों को पढ़ते है तो तो श्रेष्ठ आचार कुलाचार, कौल धर्म की विशेष संगति और संकेत कल्कि से सम्बंधित पाते है , भगवान शिव पार्वती के संवाद पर आधारित आगम निगम ,कुलावर्ण तंत्र, रुद्रयामल, निर्वाण तंत्र ,शास्त्रों, इत्यादि ने कुलाचार ,कुल धर्म ,कौलिक को श्रेष्ठ माना और उनकी महिमा का वर्णन किया है , मनुष्य को सांकेतिक तौर पर भविष्य प्रेक्ष्पण का उपक्रम भी रचा ,कहा है लेख विस्तृत होने के भय से संक्षेप में पुनः सांकेतिक रूप से लिखने का प्रयास रहेगा
आगम निगम, कुलावर्ण तंत्रों में शिव पार्वती के संवाद
शिव ने कहा हे देवी पार्वती तीनो लोको में शाक्त कौलिक से बढ़कर कोई नहीं है सूर्य गणपति और विष्णु के बाद अन्य देवताओं की अपेक्षा ये मानव की देह में चौथे नंबर पर आते हैं अन्य देवता इनके बाद हैं यह मानव के शरीर में देव रूप होते हैं। इनके बाद कोई भी व्यक्ति मानव शरीर में देव रूप नहीं होता शाक्त कौलिक शंकर और ब्रह्मा का स्वरूप है।
कौलिक के एक हाथ में योग , तो दूसरें में भोग रहता हैं … एक कौलिक इन दोनों के बीच तारतम्यता बनाये रखता हैं ….
कौलिक ही परम धर्म है वही परम देवता है वही परम तीर्थ है साक्षात शिव स्वरूप महासागर पाप पुण्य से रहित होते हैं ,निष्कलंक होते है ,उन्हें ना कोई पाप लगता है ना कोई पुण्य इस पृथ्वी पर कौन उनके इस प्रभाव को जान सकता है अर्थात
कौलिक निष्कलंक होता है कोई नहीं जानता वह मानव बन कर सारे जगत का उद्धार का निमित्त है और संसार के लोगों ज्ञान विज्ञान की शिक्षा देने के लिए भूमंडल पर भेजे जाते हैं।
कौलिक भोग और योग दौनों से युक्त है। यही कुल धर्म है। इसे ही ज्ञान मार्ग कहते हैं, न वेदों के अध्ययन से मुक्ति, न दर्शनों के मनन से मुक्ति प्राप्त होती है मात्र ज्ञान प्राप्त होने से ही मुक्ति सम्भव है इसी ज्ञान से वह दूसरों को मुक्त करता है
शुद्ध-चित्त, शान्त, कर्म-शील, गुरु-सेवा-परायण और परम भक्त को कुल-धर्म का ज्ञान होता है , मनुष्यों की क्या बात देवी देवता भी कुल धर्मी कौलिक हैं,
भूमि लोक में उनका परम पद अत्यंत गोपनीय होता है। इसलिए वह इसी शरीर में मुक्त हैं और औरों को भी मुक्ति दे देते हैं।
शिव ने कहा है पार्वती मेरे अंश भूत प्राणी शैव होते हैं और तुम्हारे अंश भूत शाक्त होते हैं इसमें तनिक भी संदेह नहीं है सहस्त्रौ वर्षों में शिव और शक्ति परायण कौलिक शाक्त शंकर के रूप में जिस किसी ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्ध कुल में उत्पन्न होंगे यह मनुष्य ना होकर देव रूप होते हैं केवल सांसारिक लोग ही उन्हें मनुष्य के रूप में देखेंगे।
कौलिक ही परम धर्म है वही परम देवता है वही परम तीर्थ है साक्षात शिव स्वरूप महासागर पाप पुण्य से रहित होते हैं ,निष्कलंक होते है ,उन्हें ना कोई पाप लगता है ना कोई पुण्य इस पृथ्वी पर कौन उनके इस प्रभाव को जान सकता है अर्थात
कुल धर्म में प्रवेश अनंत जन्मों के संचित पुण्य का परिणाम है।
स्वभाविक रूप से आपकी जिज्ञासा कुल धर्म और कौल मार्ग , कुलाचार क्या है ,कौलिक किसे कहते है, कौलिक का कार्य क्षेत्र क्या है जानने की होगी तो इसे भी संक्षेप में सारभूत से प्रस्तुत किया जा रहा
शिव शक्ति के अनुसंधान कर्ता कौलिक कहा गया है
अब असल मुद्दे पर आते है जब कल्कि और कौलिक की समीक्षा करते है तो पाते है कि जो सांकेतिक गुण ,धर्म कल्कि पुराण में अवतार कल्कि के विषय मे कहे ,उनकी संगति सिर्फ एक कौलिक से अक्षरांश मेल खाती है , श्रीराम श्रीकृष्ण, परशुराम जी , महर्षि विश्वामित्र ये सभी कौलिक रहे है जिन्हें हम ईस्वर के अवतारों के नाम से जानते है
यह सब बातें तथ्य कल्कि ही कौलिक होंगे ,या कौलिक ही कल्कि होगा ,न्याय संगत और युक्तियुक्त लगता है
कल्कि कल्कि जितना कहो , कुछ भी कल्कि न होय
कौलिक जैसा जो भी करे ,जय जय कल्कि हो
डॉ रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरीद्वार उत्तराखंड