religion,धर्म-कर्म और दर्शन -113
religion and philosophy- 113
🙏🏵️*पाशुपतास्त्रोत*🏵️🙏
*अत्याधिक ऊर्जा पैदा करने वाला स्त्रोत है। यह अत्याधिक शाक्तशाली और तत्काल प्रभाव दिखाने वाला है*
*इस संदर्भ मे मेरा निजी अनुभव हैं। सामान्य व्यक्ती इसे अपनाकर किसी ब्राहमण से ही करवाये तो अच्छा होगा।*
*इस स्त्रोत्र मे काल को भी पछाड़ने की नींव क्षमता है। -*
*डॉ रमेश खन्ना*
🌼श्रीपाशुपतास्त्रस्तोत्र!!🌼
इस स्तोत्र का मात्र 1बार जप करने पर ही मनुष्य समस्त विघ्नों का नाश कर सकता है। 100 बार जप करने पर समस्त उत्पातों को नष्ट कर सकता है तथा युद्ध आदि में विजय प्राप्त कर सकता है। इस मंत्र का घी और गुग्गल से हवन करने से मनुष्य असाध्य कार्यों को पूर्ण कर सकता है।
इस पाशुपतास्त्र मंत्र के पाठ मात्र से समस्त क्लेशों की शांति हो जाती है। चारों दिशा से विजय दिलाता है यह चमत्कारी स्तोत्र…
विशेष –श्रावण मास मे इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है .। सामान्य लोग इसका पाठ केवल एक बार से ज्यादा न करें क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जा उत्पन्न करने वाला स्तोत्र है । शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है। जो विशिष्ट साधक है वो अधिक से अधिक पांच या सात पाठ
एक दिन में करें।
विनियोग :-हाथ मे जल लेकर विनियोग पढे और जल जमीन पर छोड़ें ….
ॐ अस्य श्री पाशुपतास्त्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्द: श्रीं बीजं हुं शक्ति: श्री पशुपतिनाथ देवता मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वग्रह बाधा शत्रू बाधा रोग बाधा अनिष्ट बाधा निवारणार्थं मम सर्व कार्य सिद्धर्थे [यहाँ अपनी इच्छा बोलें ] जपे विनियोग: ॥
कर न्यास :-
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
श्ल तर्जनीभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
ईं मध्यमाभ्यां नम: (अंगूठा और मध्यमा यानि बीच वाली उंगली को आपस मे मिलाएं )
प अनामिकाभ्यां नम: (अंगूठा और अनामिका यानि तीसरी उंगली को आपस मे मिलाएं )
शु: कनिष्ठिकाभ्यां नम: (अंगूठा और कनिष्ठिका यानि छोटी उंगली को आपस मे मिलाएं )
हुं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों को आपस मे रगड़ दें )
हृदयादि न्यास :-
अपने हाथ से संबंधित अंगों को स्पर्श कर लें ।
ॐ हृदयाय नम:
श्ल शिरसे स्वाहा
ईं शिखायै वषट
प कवचाय हुं
शु: नेत्रत्रयाय वौषट
हुं फट अस्त्राय फट
~ध्यानम्~
मध्यान्ह अर्कसमप्रभं शशिधरं भीम अट्टहासोज्वलं
त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रू स्फुरन्मूर्धजम
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुदगरमसिं शक्तिं दधानं विभुं
दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररुपं स्मरेत !!
अर्थ :- जो मध्यान्ह कालीन अर्थात दोपहर के सूर्य के समान कांति से युक्त है , चंद्रमा को धारण किये हुये हैं । जिनका भयंकर अट्टहास अत्यंत प्रचंड है । उनके तीन नेत्र है तथा शरीर मे सर्पों का आभूषण सुशोभित हो रहा है ।
उनके ललाट मे स्थित तीसरे नेत्र से निकलती अग्नि की शिखा से श्मश्रू तथा केश दैदिप्यमान हो रहे है ।
जो अपने कर कमलो मे त्रिशूल , मुदगर , तलवार , तथा शक्ति धारण किये हुये है ऐसे दंष्ट्रा से भयानक चार मुख वाले दिव्य स्वरुपधारी सर्वव्यापक महादेव का मैं दिव्यास्त्र के रूप मे स्मरण करता हूँ।
अब नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे ..
हर बार फट की आवाज के साथ आप शिवलिंग पर बेलपत्र पुष्प या चावल समर्पित कर सकते हैं । यदि किसी सामग्री की व्यवस्था ना हो पाए तो हर बार फट की आवाज के साथ एक ताली बजाएं ।
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
ॐ नमो भगवते महापाशुपताय अतुलबलवीर्य पराक्रमाय त्रिपंचनयनाय नानारुपाय नाना प्रहरणोद्यताय सर्वांगरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशानवेतालप्रियाय सर्वविघ्न निकृंतनरताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकंपिने असंख्यवक्त्र-भुजपादाय तस्मिन सिद्धाय वेतालवित्रासने शाकिनीक्षोभजनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षयकारिणे !
ॐ कृष्णपिंगलाय फट ! ॐ हूंकारास्त्राय फट !
ॐ वज्रहस्ताय फट ! ॐ शक्तये फट !
ॐ दंडाय फट ! ॐ यमाय फट !
ॐ खडगाय फट ! ॐ नैऋत्ताय फट !
ॐ वरुणाय फट ! ॐ वज्राय फट !
ॐ पाशाय फट ! ॐ ध्वजाय फट !
ॐ अंकुशाय फट ! ॐ गदायै फट !
ॐ कुबेराय फट ! ॐ त्रिशूलाय फट !
ॐ मुदगराय फट ! ॐ चक्राय फट !
ॐ पद्माय फट ! ॐ नागास्त्राय फट !
ॐ ईशानाय फट ! ॐ खेटकास्त्राय फट !
ॐ मुंडाय फट ! ॐ मुंडास्त्राय फट !
ॐ कंकालास्त्राय फट ! ॐ पिच्छिकास्त्राय फट !
ॐ क्षुरिकास्त्राय फट ! ॐ ब्रह्मास्त्राय फट !
ॐ शक्त्यास्त्राय फट ! ॐ गणास्त्राय फट !
ॐ सिद्धास्त्राय फट ! ॐ पिलिपिच्छास्त्राय फट !
ॐ गंधर्वास्त्राय फट ! ॐ पूर्वास्त्राय फट !
ॐ दक्षिणास्त्राय फट ! ॐ वामास्त्राय फट !
ॐ पश्चिमास्त्राय फट ! ॐ मंत्रास्त्राय फट !
ॐ शाकिनि अस्त्राय फट ! ॐ योगिनी अस्त्राय फट !
ॐ दंडास्त्राय फट ! ॐ महादंडास्त्राय फट !
ॐ नमो अस्त्राय फट ! ॐ शिवास्त्राय फट !
ॐ ईशानास्त्राय फट ! ॐ पुरुषास्त्राय फट !
ॐ अघोरास्त्राय फट ! ॐ सद्योजातास्त्राय फट !
ॐ हृदयास्त्राय फट ! ॐ महास्त्राय फट !
ॐ गरुडास्त्राय फट ! ॐ राक्षसास्त्राय फट !
ॐ दानवास्त्राय फट ! ॐ क्षौं नरसिंहास्त्राय फट !
ॐ त्वष्ट्र अस्त्राय फट ! ॐ सर्वास्त्राय फट !
ॐ न: फट ! ॐ व: फट ! ॐ प: फट ! ॐ फ: फट !
ॐ म: फट ! ॐ श्री: फट ! ॐ पें फट !
ॐ भू: फट ! ॐ भुव: फट ! ॐ स्व: फट !
ॐ मह: फट ! ॐ जन: फट ! ॐ तप: फट !
ॐ सत्यं फट ! ॐ सर्व लोक फट ! ॐ सर्व पाताल फट !
ॐ सर्व तत्त्व फट ! ॐ सर्व प्राण फट ! ॐ सर्व नाडी फट !
ॐ सर्व कारण फट ! ॐ सर्व देव फट !
ॐ ह्रीम फट ! ॐ श्रीं फट ! ॐ ह्रूं फट !
ॐ स्त्रूं फट ! ॐ स्वां फट ! ॐ लां फट !
ॐ वैराग्यस्त्राय फट ! ॐ मायास्त्राय फट !
ॐ कामास्त्राय फट ! ॐ क्षेत्रपालास्त्राय फट !
ॐ हुंकारास्त्राय फट ! ॐ भास्करास्त्राय फट !
ॐ चंद्रास्त्राय फट ! ॐ विघ्नेश्वरास्त्राय फट !
ॐ गौ: गां फट ! ॐ ख्रों ख्रौं फट !
ॐ हौं हों फट ! ॐ भ्रामय भ्रामय फट !
ॐ संतापय संतापय फट ! ॐ छादय छादय फट !
ॐ उन्मूलय उन्मूलय फट ! ॐ त्रासय त्रासय फट !
ॐ संजीवय संजीवय फट ! ॐ विद्रावय विद्रावय फट !
ॐ सर्वदुरितं नाशय नाशय फट !
ॐ श्लीं पशुं हुं फट स्वाहा !
अंत मे एक नींबू काटकर शिवलिंग पर निचोड़ कर अर्पित कर दें।दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें ।
और कहें “श्री साम्ब सदाशिव चरणार्पणम
*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*