religion,धर्म-कर्म और दर्शन -148

religion and philosophy- 148

🌸नील सरस्वती🌸

मां सरस्वती के एक स्वरूप जिसे नील सरस्वती भी कहा जाता है, की पूजा बहुत फलदायक है. नील सरस्वती की पूजा करने का भी विशेष महत्व है.
बहुत कम लोग जानते हैं कि मां नील-सरस्वती की पूजा करना काफी फलदायी है.
मां सरस्वती का ही स्वरूप है नील सरस्वती. नील सरस्वती को धन, सुख, समृद्धि देने वाली देवी कहा गया है.

पुराणों में भी इस बात को कहा गया है कि सरस्वती मां के नील स्वरूप को पूजने से शत्रु पराजित होते हैं. इनके स्वरूप का वर्णन इस प्रकार है- नील वर्ण की हैं. चार भुजाएं हैं. दो हाथों में वीणा है.

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🌸 नील सरस्वती देवी का स्वरुप 🌸

नील सरस्वती देवी अपने भक्तों को धन, सुख, समृद्धि देती हैं.
पुराणों के अनुसार, सरस्वती मां के नील स्वरूप को अगर सच्चे मन और पूरे विधि-विधान के साथ पूजा जाए व्यक्ति शत्रुओं को पराजित कर सकता है.
इनके स्वरूप का वर्णन किया जाए तो इनका वर्ण नील है. इनकी 4 भुजाएं हैं.

🌸 सरस्वती वंदना 🌸

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावर-दण्ड-मण्डितकरा या श्वेत पद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृति भिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

🌸नील-सरस्वती स्त्रोत🌸

नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है और विद्या की प्राप्ति होती है। नील सरस्वती की साधना तंत्रोक्त विधि से की जाती है। ये दस महाविद्याओं में से एक हैं।
यदि आप अपने जीवन में शत्रुओ के कारण कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, तो यह नील सरस्वती स्तोत्र आपके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा, इसके पाठ के माध्यम से आप अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
यह नील सरस्वती स्तोत्र हमारे सभी प्रकार के शत्रुओं का नाश करने में सक्षम है।
सर्वप्रथम स्नान करके स्वच्छ श्वेत व पीले वस्त्र धारण करें।

एक पीले आसान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके पद्मासन में बैठ जाएँ।
अब अपने सामने लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछा कर देवी माँ सरस्वती की एक प्रतिमा अथवा छायाचित्र स्थापित करें।
देवी सरस्वती का ध्यान व आवाहन करें तथा उनको आसन ग्रहण करवाएं।
उनको धुप, दीप, सुगन्ध व नैवेद्य आदि अर्पित करें।
उनको बेसन अथवा बूंदी के लड्डू का भोग अर्पित करें।
पूर्ण श्रद्धा से श्री नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।
पाठ सम्पूर्ण होने पर देवी सरस्वती की आरती करें तथा
अपने लिए बुद्धि, विद्या तथा ज्ञान की कामना करें।

🌸॥ श्री नील सरस्वती स्तोत्रम् ॥🌸

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – भयानक रूपवाली, घोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥
अर्थ – देव तथा दानवों के द्वारा पूजित, सिद्धों तथा गन्धर्वों के द्वारा सेवित और जड़ता तथा पाप को हरनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – जटाजूट से सुशोभित, चंचल जिह्वा को अंदर की ओर करनेवाली, बुद्धि को तीक्ष्ण बनानेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।
सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते।
सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। हे सृष्टिस्वरुपिणि ! आपको नमस्कार है, मुझ शरणागत की रक्षा करें।
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥
अर्थ – आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं। हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें।
वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्रस्वरूपिणी हे देवि ! मैं आपके दर्शन की कामना करता हूँ। बलि तथा होम से प्रसन्न होनेवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। उग्र आपदाओं से तारनेवाली हे उग्रतारे ! आपको नित्य नमस्कार है, आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढ़त्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढ़ता का नाश करें। आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

इन्द्रादिविलसद्द्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्। ॥

अर्थ – इन्द्र आदि के द्वारा वन्दित शोभायुक्त चरणयुगल वाली, करुणा से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखमण्डलवाली और जगत को तारनेवाली हे भगवती तारा ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः।
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा। ॥

अर्थ – जो मनुष्य अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी तिथि को इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह छः महीने में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकम्। ॥
अर्थ – इसका पाठ करने से मोक्ष की कामना करनेवाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है, धन चाहनेवाला धन पा जाता है और विद्या चाहनेवाला विद्या तथा तर्क – व्याकरण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेता है।
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वितः।
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते। ॥

अर्थ – जो मनुष्य भक्तिपरायण होकर सतत इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके शत्रु का नाश हो जाता है और उसमें महान बुद्धि का उदय हो जाता है।

पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः। ॥

अर्थ – जो व्यक्ति विपत्ति में, संग्राम में, मूर्खत्व की दशा में, दान के समय तथा भय की स्थिति में इस स्तोत्र को पढ़ता है, उसका कल्याण हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।

इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत्। ॥

अर्थ – इस प्रकार स्तुति करने के अनन्तर देवी को प्रणाम करके उन्हें योनिमुद्रा दिखानी चाहिए।
मां नील सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जप करें-
ऐं ह्रीं श्रीं नील सरस्वत्यै नम:
॥ नील सरस्वती स्तोत्र के लाभ व महत्व ॥

सिद्ध नील सरस्वती स्तोत्रम का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति के आत्मज्ञान में वृद्धि होती है।

जिन छात्रों को पढ़ाई करने में समस्या होती है अथवा परिश्रम करने पर भी परीक्षा में मनोवांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं तो उन्हें भी श्री नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति के मस्तिष्क में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।

जो लोग कविता, साहित्य, कला व संगीत आदि ललित कलाओं के क्षेत्र में अपना करियर बनान चाहते हैं अथवा दक्षता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें श्री नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए।

सिद्ध नील सरस्वती स्तोत्रम के प्रभाव से साधक समस्त प्रकार के ज्ञात व् अज्ञात भय से मुक्त हो जाता है।

इस स्तोत्र को सुनने से अनेक प्रकार की मानसिक समस्याओं का समाधान होता है तथा शांति का अनुभव होता है।

यदि किसी बालक का मानसिक विकास ठीक से नहीं हो रहा है अथवा वह अन्य बालकों की तुलना में में मानसिक रूप से दुर्बल है तो इस स्तोत्र का पाठ व श्रवण करने से उसका मानसिक विकास सुचारु रूप से होने लगता है।

Dr. Ramesh Khanna.
Senior Journalist.

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