religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 38

religion and philosophy- 38

हिंदू धर्म में साधना के चार प्रकार माने जाते हैं, तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना, योग साधना।

इन साधनाओं के मूल में भौतिक लाभ की प्रबलता नजर आती है, जबकि मोक्ष की अभिलाषा रखने वालों के लिए प्रमुख हिन्दू ग्रन्थ गीता में मोक्ष के अनेकानेक मार्गों का वर्णन है जिन्हें चार प्रमुख मार्गों में बांटा गया है, कर्मयोग, सांख्ययोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग।

हालांकि मोक्ष की कामना का औसत, तंत्र साधना, मंत्र साधना, यंत्र साधना और योग साधना की अपेक्षा न्यूनतम दिखाई देता है, तंत्र साधना, मंत्र साधना इंस्टेंट लाभ का मार्ग तो हो सकते हैं लेकिन आम जन के लिए ये साधनाऐं जीवनघातक भी है, ठीक है, अपने धार्मिक रहस्यों का ज्ञान होना चाहिये किंतु आम जन के लिए ये ज्ञान की संज्ञा तक ही सीमित रहे तो उत्तम है, हम पत्रकार हैं ज्ञान तक पहुंचना और पहुंचाना हमारा काम है लेकिन ज्ञान के उपयोग,अपने हित अहित का उत्तरदायित्व, स्वयं आपका है।
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर रमेश खन्ना का यह लेख आपकी सेवा में प्रस्तुत है।

श्रीमती शशि शर्मा संपादक Newsok24.com
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अमोघ कर्णपिशाचनी साधना

किसी बहुत ही जानकर योग्य व्यक्ति से स्वयं जिसके 5 पीढ़ियों ने मास मदिरा का सेवन न किया हो ऐसे महात्मा से आप मार्गदर्शन और सानिध्य प्राप्त करके मंत्र दीक्षा में प्राप्त करके पूर्ण विधि विधान प्राप्त करे गुरु के प्रति निश्चल निष्कपट पूर्ण समर्पित श्रद्धा भाव रखे गुरु आज्ञा सर्वोपरि रखे अपने मन से कोई भी साधना कोई भी विधान कोई भी उपाय न करें इसके विषय में आपको जानकारी नहीं है गुरु दीक्षा अत्यंत आवश्यक है गुरु से जुड़िए और गुरु मार्गदर्शन में ही कीजिए अगर आप अपने मन से करते हैं और परिणाम गलत निकलते हैं तो आप स्वयं जिम्मेवार होंगे।

वरिष्ठ पत्रकार
डॉक्टर रमेश खन्ना हरिद्वार

पिप्पलाद उपनिषद्‍कालीन एक
महान ऋषि एवं अथर्ववेद का
सर्व प्रथम संकलकर्ता थे पिप्पलाद
का शब्दार्थ पीपल के फल खाकर जीनेवाला’ (पिप्पल+अद्‍) होता है अथर्ववेद की पिप्पलाद नामक
एक शाखा उपलब्ध है। इस शाखा
के प्रवर्तक सम्भवतः यही हैं।प्रश्नोपनिषद में एक तत्त्वज्ञानी के
रूप में इनका निर्देश प्राप्त है।मोक्षशास्त्र को ‘पैप्पलाद’ कहने
की प्रथा थी अथर्ववेद के एक
उपनिषद् में प्रारम्भ में ही कथा
आती है सुकेशा, भारद्वाज आदि
छह ऋषि मुनिवर पिप्पलाद के
पास गए और उनसे दर्शन
संबंधी प्रश्न पूछे जिनका उन्होंने पाण्डित्यपूर्ण उत्तर दिया। वे परम
विद्वान् और ब्रह्मज्ञानी थे महाभारत के शांतिपर्व में भी
यह उल्लेख मिलता है कि जब
भीष्म शरशय्या पर पड़े हुए थे
तो उनके पास पिप्पलाद उपस्थित
थे पिप्पलाद दधीचि ऋषि के पुत्र
के रुपमें विख्यात है। दधीचि की
मृत्यु के समय, उसनी पत्नी
प्रातिथेयी गर्भवती थी अपने पति
की मृत्यु का समाचार सुनकर
उसने उदरविदारण कर अपना
गर्भ बाहर निकाला तथा उसे
पीपल वृक्ष के नीचे रखकर
दधीचि के शव के साथ सती हो
गयी उस गर्भ की रक्षा पीपल वृक्ष
रूप में नारायण ने की इस कारण
इस बालक को पिप्पलाद नाम
प्राप्त हुआ पशु-पक्षियों ने इसकी
रक्षा की तथा सोम ने इसे सारी
विद्याओं में पारंगत कराया
बाल्यकाल में मिले हुए कष्टों का
कारण शनि को मानकर इन्होंने
उसे नीचे गिराया। त्रस्त होकर
शनि इनकी शरण में आए।
इन्होंने शनिग्रह को इस शर्त पर
छोड़ा कि वह 18 वर्ष से कम
आयु वाले इसीलिये आज भी
शनि की पीडा से छुटकारा पाने
के लिए पिप्पलाद, गाधि एवं
कौशिक ऋषियों का स्मरण
किया जाता है एक बार जब
यह कर्ण पिशाची की तपस्या
में निमग्न थे तब वहाँ कोलासुर
आकर इनका ध्यान भंग करने
के हेतु इन्हें पीड़ित करने लगा
तत्काल इनके पुत्र कहोड ने
एक कृत्या का निर्माण करके
उससे कोलासुर का वध कराया
इसी से इस स्थान को पिप्पलाद
तीर्थ नाम से जाना जाता है इन चीजों से आप अंदाजा लगा
सकते हैं कि महर्षि पिप्पलाद
जिस कर्ण पिशाचिनी को प्रत्यक्ष
करते थे वह भूत भविष्य
वर्तमान तीनों कालों का ज्ञान
देती थी और उसी का विधि-
विधान निम्न है !

श्रीकर्णपिशाची मंत्र
ॐ ब्रूहि ब्रूहि कर्णकथय कर्णपिशाचनी
पिप्पलादपालित ब्रूहि ब्रूहि मम् कर्णे भूत भविष्य कथ्य कथ्य ह्रींग ह्रौंग फट् फट्

इस साधना मे कर्णपिशाचिनी
भूतकाल ही नहीं बताती अपितु
भविष्य काल भी बताती है
अब इस्से अच्छी साधना कोन
सी हो सकती है और मुख्य
बात तो ये है इस साधना को घर
मे किया जा सकता है यह
सौम्यरूपी साधना है इस साधना
के दो चरण है.
(1)-जिससे हमे भूतकाल का पता चलता है साथ मे वर्तमानकाल भी
(2)-भविष्यकाल भी देवी कान मे बता देती है अथवा चलचित्र भी दिखाती है.

साधना रूप – भविष्यकथ्य
माला – काले हकीक की अथवा रुद्राक्ष
माला जाप – इक्कीस माला जाप
दिवस – प्रत्यक्षीकरण ४१ दिन में
दिशा – दक्षिण पक्छिम कोण
समय – रात्रि ११ बजे के बाद शुरू करे
आसन – काला ऊनी गाढ़ा लीजिए
वस्त्र – काला धोती कुर्ता पहन लीजिए
दीपक – तिल के तेल का दीपक
भोग – एक मीठा पान, काले रसगुल्ले ५
एक अनार, लाल फूल, इत्र, अगरबत्ती
कवच – घेरा लगाकर साधना कीजिए
ब्रम्हचर्य – पालन अति आवश्यक
भोजन – जो इक्षा सात्विक कीजिए
साधना स्थान – घर का एकांत कमरा
मंत्र ध्यान – जाप के बाद १५ मिंट ध्यान
वैवाहिक व्यक्ति – कर सकते है
धार्मिक स्थल पर आना जाना – नही
स्त्री कर सकती हैं – हाँ
मुहूर्त – कृष्ण पक्ष की अष्टमी से करे

नोट्स:—

– एक साधक की मांग पर यह साधना प्रकाशित की जा रही है इस साधना को करने से पहले आपके पास जो आवश्यक ज्ञान होना चाहिए तंत्र का उस ज्ञान को पहले आप सीख लीजिए समझ लीजिए ग्रहण कर लीजिए यह कार्य आपको किसी गुरु के मार्गदर्शन से प्राप्त होगा उसके बाद इस साधना को आप करेंगे तो शत प्रतिशत सफलता प्राप्त होगी और इस साधना में पीपलाद ऋषि ने जिस शक्ति को सिद्ध किया था उस शक्ति का आप प्रत्यक्षीकरण करेंगे और इस शक्ति के द्वारा आपको समस्त लाभ प्राप्त होते हैं जो एक पिशाचिनी से प्राप्त होना तय होता है भूत भविष्य वर्तमान तीनों कालों का कथन यह शक्ति बड़े आराम से कर देती है!

वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर रमेश खन्ना हरिद्वार
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर रमेश खन्ना हरिद्वार

 

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