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religion,धर्म-कर्म और दर्शन – 39

religion and philosophy- 39

🏵️भगवान श्री कालभैरव जी के वाहन “कालघंट” 🏵️

श्री काल भैरव तंत्र जगत के स्वामी है सभी तंत्र साधनाएं बाबा काल भैरव के अधीन है। यह लेख मेरे गुरु महाराज के वचनों पर आधारित है।
काल भैरव साधना बहुत विकट व गुरु सानिध्य वा अत्यंत संयम व सावधानी में संभव है। इस पर विस्तार से “मंत्र महोधी” व “रुद्राय मल स्तोत्र”
जैसी दुर्लभ प्राचीन पुस्तकों पर आधारित लेख संपूर्ण विधि सहित अगले लेख में लिखूंगा।

🏵️*।। जय बाबा भैरवनाथ।।*🏵️

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरिद्वार (उत्तराखण्ड)*

( मेरे पास इस कथा के शास्त्रोक्त / पुराणोक्त / वेदोक्त कोई तथ्य उपलब्ध नहीं हैं तथा जिन सिद्धयोगी महात्मा जी के मुख से कथा मैंने सुनी थी उनसे तथ्यों को माँगना मैंने उचित नहीं समझा ) **

🏵️भगवान श्री कालभैरव जी के वाहन श्वान का नाम क्या है तथा इसके पीछे की कथा क्या है ?”🏵️

मेरे अध्ययन काल में मेरी भेंट उच्चकोटि के **श्री भैरव उपासक सिद्ध योगी पूजनीय श्री अकेलागिरि जी** से हुई थी पूजनीय श्री अकेलागिरि जी गिरनार के घने जंगलों में बसी हुई एक गुफा में रहते थे और बहुत ही कम लोगों से मिलते थे एवं उनका अधिकांश समय साधना / जप / तप में ही व्यतीत होता था मेरे एक परिचित थे जिनसे श्री अकेलागिरि जी को विशेष स्नेह था उन्हीं की कृपा से मैं मूरख ,अज्ञानी पूजनीय श्री अकेलागिरि जी से मिला था तथा उनके सानिध्य में सन १९९४ में २ दिन रहने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था सन २००१ में पूजनीय श्री अकेलागिरि जी भैरवलीन ( ब्रह्मलीन ) हो गए उनके सानिध्य में जो दो दिन मैंने बिताये वह दो दिन मेरे जीवन के अविस्मरणीय दिन है वो अनुभव भी अविस्मरणीय है उन दो दिनों में मैंने उनसे बहुत से प्रश्न पूछे उन्होंने बड़े प्रेम से मेरे प्रश्नों के उत्तर भी दिए उन्हीं प्रश्नों में मैंने वार्तालाप के दौरान उनसे **भगवान् श्री कालभैरव के वाहन श्वान के नाम के विषय में प्रश्न किया था** तब उन्होनें जो कथा मुझे सुनाई थी वह इस प्रकार है ( कथा सुनाने से पहले उन्होंने मुझसे कहा की ये कथा मैंने अपने सद्गुरु जी से सन १९२२ में सुनी थी )

🌸भगवान श्री कालभैरव के वाहन कालघंट की कथा 🌸

**नेगासुर **नामक एक असुर था जिसने घोर तप करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया था और जब ब्रह्माजी ने उससे वरदान मांगने को कहा तो उसने यह वरदान माँगा की मैं जब चाहूँ तब किसी भी देवी देवता का रूप धारण कर सकूँ तथा मेरा वध मात्र पशु ही कर सके वह भी **ऐसा पशु जो विचित्र हो जो शाकाहार तथा मांसाहार दोनों का सेवन करता हो जो ईमानदार हो जिसके सूंघने की क्षमता विलक्षण हो **उसके ऐसा वरदान मांगने पर ब्रह्माजी उसे वरदान प्रदान करके अपने लोक को चले गए I वरदान प्राप्त करने के पश्चात नेगासुर ऋषियों के आश्रमों में तथा अन्य स्थानों पर जिस किसी देवी देवता के निमित्त यज्ञकार्य – हवन तथा शुभकार्य होते थे वह वहां देवी देवता से पहले उनका रूप धारण करके जाता और हवन की आहुतियों – भोग को प्राप्त कर लेता था उसके निरंतर ऐसा करने से देवी देवता दुर्बल होने तथा शक्तिहीन होने लगे I

तब सभी देवी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और नेगासुर के अत्याचारों के विषय में उनसे कहा तथा उसके वध का उपाय पूछा तब ब्रह्माजी ने नेगासुर को दिए वरदान के विषय में देवी देवताओं को बताया तथा उनसे कहा की आप सभी **भगवान् श्री नृसिंह जी** के पास जायें वे ही इसका उपाय कर सकतें हैं ब्रह्माजी की आज्ञा लेकर सभी देवी देवता** भगवान् श्री नृसिंह जी** के पास गए और उनसे सम्पूर्ण बात बताई देवी देवताओं की बात सुनकर **भगवान् श्री नृसिंह** **जी** अत्यधिक क्रोधित हुए उनके क्रोध की ज्वाला से एक पशु उत्पन्न हुआ जिसका स्वरुप बहुत ही भयंकर था जो शाकाहार तथा मांसाहार दोनों का सेवन करने में निपुण था उसे देखते ही ऐसा प्रतीत होता था जैसे साक्षात काल प्रकट हो गए हों जिनकी गर्जना ऐसी थी जैसे हजारों लाखों घंट एक साथ बज रहें हों भगवान श्री नृसिंह जी ने **घंट गर्जना करनेवाले काल जैसे प्रतीत होनेवाले उस पशु को ” कालघंट” **नाम प्रदान किया I **कालघंट** ने भगवान् श्री नृसिंह जी को प्रणाम करके उसे उत्पन्न करने का हेतु पूछा तो भगवान् श्री नृसिंह जी ने उसे उत्पन्न करने का प्रयोजन बताया तथा **नेगासुर **का वध करने का आदेश दिया भगवान् श्री नृसिंह जी का आदेश प्राप्त करके **कालघंट **ने **अपने सूंघने की विलक्षण क्षमता **का उपयोग करके यह पता कर लिया क़ि इस समय नेगासुर कहाँ है वे वहां पहुँच गए और नेगासुर को युद्ध के लिए ललकारा दोनों में भीषण युद्ध हुआ नेगासुर बहुत समय तक भिन्न भिन्न देवी देवताओं का रूप लेकर **कालघंट** को चकमा देने का प्रयास करता रहा परन्तु वह** कालघंट** की सूंघकर पहचानने की क्षमता को चकमा नहीं दे पाया और अंततः **कालघंट **ने नेगासुर का वध करके देवी देवताओं को भयमुक्त किया नेगासुर के वध के पश्चात भी **कालघंट** का क्रोध शांत नहीं हुआ वो भयंकर गर्जना करता हुआ यहाँ वहां घूमने लगा उसके क्रोध से सभी भयभीत हो गए तब भगवान् श्री नृसिंह जी ने **कालघंट** का क्रोध शांत करने हेतु **कालघंट **से ही इसका उपाय पूछा तब **कालघंट** ने कहा क़ि जो मेरी तरह भयंकर हों ,जो मेरी तरह अपने इष्ट / प्रभु के प्रति पूर्णरूप से समर्पित तथा ईमानदार हों जो मेरी तरह **शाकाहार तथा मांसाहार दोनों को सेवन करते हों** तथा जो अपने **भक्तों क़ि भक्ति रुपी सुगंध को क्षणभर में पहचान जाते हों **ऐसे किसी देवी अथवा देवता का मुझे वाहन बना देने पर ही मेरा क्रोध शांत होगा I **कालघंट **के ऐसा बोलने पर **भगवान श्री नृसिंह जी **क्षणभर मुस्कुराये और उन्होंने **भगवान श्री कालभैरव जी **का स्मरण करके उन्हें उपस्थित होने की प्रार्थना की , भगवान श्री नृसिंह के बुलाने पर **भगवान श्री कालभैरव जी प्रकट हुए** तथा बुलाने का प्रयोजन पूछा तदुपरांत भगवान श्री नृसिंह जी ने उनसे विस्तारपूर्वक सम्पूर्ण बात बताई तथा **कालघंट को अपना वाहन बनाने के लिए कहा ** I भगवान श्री नृसिंह जी के कहने पर भगवान श्री कालभैरव ने **कालघंट** को अपना वाहन बनाना स्वीकार किया I भगवान श्री कालभैरव जी जैसे ही **कालघंट पर विराजमान हुए कालघंट का क्रोध उसी क्षण शांत हों गया** तथा भगवान श्री कालभैरव जी के वाहन बनने पर **कालघंट** प्रसन्न हुए I तबसे **भगवान श्री कालभैरव** के जो वाहन है जिसे हम लोग **श्वान अथवा स्वस्वा** कहतें है उनका वास्तविक नाम **कालघंट** हैं I

भूलचूक क्षमायाचना सहित

वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर रमेश खन्ना हरिद्वार
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर रमेश खन्ना हरिद्वार

 

 

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