religion,धर्म-कर्म और दर्शन -73
religion and philosophy- 73
🏵️भैरवी साधना और कौल तंत्र के नाम पर लूट और शोषण…..
वर्तमान परिपेक्ष में बहुत से मनुष्य तंत्र विद्या की तरफ आकर्षित हो रहे हैं ।
हर व्यक्ति शक्तिशाली बनने की होड में, सर्वोत्तम कहलाने की लालसा लिये इस क्षेत्र की तरफ आकर्षित हो रहे है ।
प्राय: सभी को मालुम है की इस तंत्र विधा के क्षेत्र से आसानी से शक्ति हासिल की जा सकती है ।
शक्ति के साथ साथ धन दौलत और नाम भी कमाया जा सकता है ।
इसी लिये वर्तमान समय में हर घर मै तान्त्रिक जन्म रहा है ।
आज यह गोपनीय विद्या सोशल मीडिया और जनसामान्य में प्रचारित हो रही है । आकर्षण का कारण, इसका चमत्कारीक फल, असंभव को संभव बनाने वाले कार्य, शीघ्र शक्ति का प्राप्त होना है । इन्ही कारणों से वैदिक पूजा पद्धतियों में भी तंत्र पद्धतियों का समावेश हो गया है । यहाँ तक की अब विदेशी लोग भी इस विधा के प्रति बहुत अधिक आकर्षित हो रहे है ।
विदेशी लोग पहले से ही इस जटिल और गहन विधा को सीखने भारत आते थे पर पिछले कुछ वर्षों में इन की संख्या कई गुणा बढ गयी है । उनको पहले इसका महत्व इतना पता नही था पर अब उनको समझ आ गयी की हमारे तंत्र शास्त्रों में बहुत शक्ति है । बहुत रहस्य है ।
जिससे जटिल से जटिल रोग, काम – शक्ति एवं सभी प्रकार का समाधान है ।
वर्तमान परिवेश में अधिकतर का रुझान भैरवी साधना व श्यामा साधना की तरफ हो रहा है, जो की वाम मार्गीय साधनाएं हैं।
इन साधना के तरफ आकर्षित होने का मुख्य कारण सफलता अधिक और शीघ्र मिलना है और दुसरे इनका ऐसा प्रचार हो रहा की यह आधुनिक युवाओं और पाश्चात्य सभ्यता के अधिक अनुकूल लगता है । इस साधना के प्रति रुचि बढने का मुख्य कारण यौन तृप्ती है । अधिकतर की चाह भोग के साथ शक्ति प्राप्त करना है । इसी कारण इस साधना क्षेत्र में साधना करने वालों साधकों की बाढ़ सी आई गयी है ।
इन नव आग्नतुक साधकों का फायदा ढोंगी और लालची साधक उठाते हैं और नए युवकों युवतियों का खूब यौन शोषण करते हैं ।
वर्षों के भ्रम के बाद भी उनके हाथ कुछ नहीं लगता । ये शक्ति और तंत्र साधनाओं के चक्कर मैं पढकर अपना समय, धनदौलत और जीवन सब बर्वाद कर बैठते है ।
अधिकतर नारी सात्विक साधना करना ही पसंद करती हैं । पर शीघ्र और अधिक सफलता की चाह में यह भी वाम मार्ग पथ में आ रही है । इस पथ पर इन्ही का सबसे अधिक शोषण भी होता है । ये नारी जिस सोच से इस साधना में आती हैं उनको अंतिम क्षण तक कुछ नही मिलता । अधिकतर का तो जीवन ही वर्बाद हो जाती है ।
वो जी भी नही सकती और मर भी नही सकती । उनको ना शक्ति मिलती है और न उनकी पवित्रता ही बचती है । लुटा पिटाकर भी वह चुप रहने को विवश होती हैं । क्योकि एक तो तंत्र साधकों का शक्ति का डर और दूसरा समाज में उन की छवि धूमिल होने का भय ।
मेरे पास बहुत ऐसी नारीओं का मैसेज आता हैैं जिन्होंने #भैरवी साधना ,#पंचमकार साधना ,#वाम मार्गी साधना अथवा शक्ति साधना करने की जिज्ञासा रहती है ।
तंत्र से अपने आपको शक्तिशाली बनाने की इच्छा से इस क्षेत्र में प्रवेश करना चहाती है ।
आज समाज में बहुत सी नारी सब कुछ गंवाकर किसी भी लायक नहीं रही । जब साधना में थी तो इस भ्रम में रही की वो साधिका हैं और उनसा कोई मुकाबला नहीं है । वो विशेष हैं, वो खुद की और दूसरों की समस्या हल कर सकती है, किन्तु समय के साथ उनका यह भ्रम भी टूटता गया । समय व्यतित होता गया और अर्जन कुछ भी नही हुआ । हाथ शून्यता ही लगी । कुछ को कुछ शाबर आदि मन्त्रों की सिद्धियाँ करवा दि गयी जिससे वे समाज में अपने को भैरवी अथवा अघोर साधिका कहकर लूटने का धन्दा चलाने लगी ।
यैसा ना करे तो और करे भी क्या । उनके पास और कोई विकल्प ही नहीं था । उन्होंने तो अपना सब कुछ गँवा दिया था और उम्र के साथ समय भी निकल चूका था । ऐसे में पेट भरने अथवा भौतिक सुखों की चाह में वे खुद को प्रचारित करने लगी । कोई आश्रम खोल कर बैठ गई । कोई पैसे के बल पर धर्म की ठेकेदार बन गई । और बाकी बची नारी चुपचाप रोने और अपने आपको धिक्कारने को विवश हो गई ।
आज युवा विभिन्न तरह के तनावों, परेशानियों, अभावों और संघर्षों से गुजर रहे है । जिसके कारण वह अपनी समस्या के हल के तलाश में तांत्रिको, पंडितों और ज्योतिषी के संपर्क में पहूच जाते है ।
अपना भविष्य जानने के लिये, जीवन सुन्दर, सफल बनाने के उपाय में मूल्य चुकाता है और किसी किसी को इस का लाभ भी मितला है । और किसी को कुछ भी नहीं मिलता । ऐसी लोगों के सम्पर्क मै आकर, देखकर उसके मन में भी इच्छा उठती है की वह भी ऐसी विद्या सीखे जिससे उसकी समस्या हल हो जाये ।
कुछ तंत्र की शक्ति और भौतिकता की चाह में वो इस ओर आकर्षित होते हैं । तो कुछ साधकों द्वारा लुटे जाने के बाद इसे अच्छा धंधा मानकर इस ओर् रुख करते हैं । कुछ भोग विलास, मांस मदिरा, स्वच्छंद यौनाचार के आकर्षण में इस ओर आते हैं । इन्हें इस सब की जानकारी वेबसाईट और मीडिया देती है और आकर्षण उत्पन्न करती है । जिस पर यौनाचार सम्बंधित तांत्रिक सामग्रियां और प्रचार भरे होते हैं । इन का एक ही लक्ष्य होता है की जल्दी से जल्दी शक्ति प्राप्त करना, सिद्धि पाना, सफलता पाना, पैसा कमाना और भौतिक रूप से सुखी होना । लाखों साधक में से कोई एक वास्तविक साधना करना चाहता है । इसीलिए ये अधिकतर अघोर मार्ग, #भैरवी साधना, #कौल मार्ग आदि शाबर मंत्र पद्धतियों की ओर आकर्षित होते हैं ।
लाखों साधना करने वालों में कोई एक वास्तविक तंत्र साधना, #महाविद्या साधना की ओर जाता है ।
करोड़ों में कोई एक कुंडलिनी की तंत्रोक्त साधना कर पता है । यौन तृप्ती, भौतिक सुख के लालच मैं जो साधना का रास्ता अपनाते है उनका खूब शोषण होता है । इन्हें ऐसे ऐसे गुरु घण्टाल मिलते हैं जो फोन, आनलाइन, बटसप आदि में अथवा घर घर जाकर पैसे लेकर मंत्र देते हैं ।
ये पैसे के बदले में मंत्र लेकर उसे रटने लगते हैं । ना उस मंत्र का भाव पता है ना उसका अर्थ । ना गुरु से संपर्क, ना पद्धति का पता, ना उच्चारण मालूम, ना नाद की समझ, ना पदार्थों का ज्ञान, ना न्यास आया, ना मूल नियम का पता । बस तोते की रटन । सालों बाद कुछ हाथ नहीं लगा तो शुरू करते है गुरु की तलाश ।
अंततः भटककर या तो खुद लुटेरे बन जाते है या फीर इसको बदनाम करने का ठेका ले लेते है ।
कुछ साधक यौनाचार के आकर्षण में भैरवी साधना या श्यामा साधना पद्धति की ओर बढ़ते हैं । पता नही चल पढते है साधना करने और रास्ते मै मीलते #गुरूघण्टाल गुरु और मंत्र भी मिल जाता है ।
उसके बाद भैरवी की तलाश में भटकते हैं, मिले तो ठीक नहीं तो यहाँ वहां वशीकरण मंत्र पूछते फिरते हैं ।
जिससे किसी को भैरबी साधना सीखने के नाम पर फसाया जाये और अपनी काम तृप्ति की पुर्ति की जाये । नसीब से कोई मिल गई तो उसको मूर्ख बना कर तुम सिद्ध भैरवी बन सकती हो कहकर उसका शोषण करना शुरू कर देते है ।
खुद की इजाज की गई पद्धति और नियम के सिवाय उन के पास कोई ज्ञान नहीं होता और मूर्ख बनाने में लगे रहते है । जिसे खुद को कुछ ना मिला हो वो दुसरे को क्या देगा । उसका तो सब कुछ गया, उस की तो काम वासना पूर्ति हो गयी । प्राय साधकों की स्थिति यैसी ही दयनिय है । तंत्र से संबंध में कुछ भी ज्ञान नहीं होता और खुद को कौल साधक, कौलाचार्य, भैरवी साधक कहते हैं ।
यैसे ढोगी के चक्कर में फंसकर लड़के लड़कियां बर्बाद होने के सिवाय कूछ भी नही होता ।
भैरवी साधना मूलतः कापालिक सम्प्रदाय से उत्पन्न हुई एक विवादास्पक साधना है ।
उसका मुख्य उद्देश्य कुंडलिनी जागरण द्वारा शिव और शक्ति का मिलन कर मोक्ष प्राप्ति करना है ।
यह अत्यंत पवित्र और संसार की सबसे कठिन साधना है । कापालिक मत से यह बौद्धों में गई और वज्रयान के उदय के साथ इसमें विकृतियाँ आने लगी । कापालिक से कौल सम्प्रदाय निकला । यहाँ तक भी कुछ सही रास्ते पर थे । तो कुछ ने मूल पद्धति से छेड़छाड़ कर विकृती भर दिया । इनमे कुछ मूल कुंडलिनी साधना से जुड़े रहे तो कुछ शक्तिपीठों के आराध्य बनकर पद्धति में बदलाव कर लिया । कामाख्या यहाँ मूल ईष्ट हो गई । जबकि मूल स्थिति में श्री विद्या ईष्ट थी । इसके बाद इसमें से #योगिनी कुल उत्पन्न हुई । जो नाथों, सिद्धों द्वारा यह मार्ग अपनाने से यह बना । यहाँ कामाख्या को मूल ईष्ट मानने लगे और पद्धति पूरी तरह बदल दी । बदलाव के साथ ही अधिक भौतिक साधना शुरू हो गई । बीज मन्त्रों की जगह शाबर मंत्र स्थान लेने लगे और तात्कालिक शक्तियां प्राप्त करने के लिए स्थानीय छोटी छोटी शक्तियों की आराधना शुरू हो गई । जीस के कारण मूल भैरवी साधना लगभग विलुप्त हो गई । क्यों कि वह गुरु गम्य और गुरु मुखी साधना थी । उसके शास्त्र नहीं लिखे जाते थे । परिवर्तन के बाद कॉल मार्ग से सम्बंधित शास्त्र लिखे जाने लगे । जिन में भैरवी साधना की मूल पद्धति थी ही नहीं । मूल साधकों में न रूचि दिखाई लिखने में और ना बताने का बहुत बडा मतलब था ।
कौल काली के उपासक होते है । उनके अनुष्ठान गुप्त होते है । इन अनुष्ठानों में मद्य, मांस, मीन, मुद्रा एवं मैथुन वर्जित नहीं हैं । उत्तर कौल, कापालिक और दिगंबर स्वयं को भैरव मानते हैं । वे निवस्त्र होकर देवी पूजा की करते हैं । कहीं कहीं कन्याओं की योनि के पूजन की भी परंपरा है । इन संप्रदायों का अधिक प्रभाव बंगाल एवं अविजित आसाम के अधिकांश क्षेत्रों में रहा है । शाक्तों में ही पूर्व कौल संप्रदाय के अनुयायी पंचमकार को प्रतीकात्मक मानते हैं । इनकी साधना विधियां भी अधिकतर सौम्य होती हैं । शक्तों के समयाचारी संप्रदाय में श्री चक्र का पूजन होता है । उनकी आस्था षट्चक्रों में है । दक्षिण भारत में समयाचारी साधना का प्रचलन रहा है ।
कौल सम्प्रदाय में दो मत हैं । उत्तर कौल मत और पूर्व कौल मत । इनके अपने अपने आचार हैं । उत्तर कौल मत के आचार को कौलाचार और पूर्व मत के आचार को समयाचार कहते हैं । उत्तर कौल मत और उसका आचार कौलाचार रजोगुणी और तमोगुणी मिश्रित है । जबकि पूर्व कॉल और उसका आचार समयाचार पूर्णत: सात्विक है । उत्तर कौल मत के अनुयायिओं का प्रमुख साधना केंद्र कामख्या ( असम ) है और पूर्व कौल के मानने वालों का साधना केंद्र श्रीनगर है । इन दोनों सिद्धांतों को मिलाकर बाद में एक नया सिद्धांत एवं पथ प्रकाश में आया । जिसे #”योगिनी कौल ” कहते हैं । योगिनी कौल सम्प्रदाय के केंद्र की स्थापना कामख्या में हुई ।
कामरूप इदं शास्त्रं योगिनीनं गृहे गृहे ।
यह वही सम्प्रदाय है जिसके गर्भ से आगे चलकर ”हठयोग” का नाथ सम्प्रदाय प्रकाश में आया और सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ । सुप्रसिद्ध चौरासी सिद्ध इस सम्प्रदाय से सम्बंधित थे । हमारे देश में 8वीं से 11वीं सदी मध्य तक सिद्ध और नाथ नाम के मुख्य तांत्रिक संप्रदायों का बहुत बडा प्रभाव रहा है । आज भी इन दोनों संप्रदायों के अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े सिद्ध पीठ हैं । भारत के ग्राम्य समाज में सिद्ध एवं नाथ संप्रदाय के अनुयायियों की खासी बड़ी संख्या है । लोकभाषाओं में लिखे और बिखरे हुए इन संप्रदायों के विपुल साहित्य के विस्तृत अध्ययन के योजनाबद्ध कार्य की अपेक्षा है । इन दोनों संप्रदायों में अनेक प्रकार की साधनाओं का प्रचलन है । सिद्धों में पंचमकार वर्जित नहीं है लेकिन नाथ संप्रदाय में वर्जित है । भारतीय साहित्य शिल्प और स्थापत्य पर इन संप्रदायों का गहरा प्रभाव पड़ा है ।
कौलिक की परिभाषा करते हुए कुलार्णव तन्त्र कहता है की कुल गोत्र को कौलिक कहते हैं । यह शिव -शक्ति से उत्पन्न होता है । इसके ज्ञानवान को कौलिक कहते हैं । कुल शक्ति है ,अकुल शिव है । कुलाकुल का अनुसंधाता कौलिक कहलाता है । कौल शास्त्र उर्ध्वाम्नाय ईशानमुख से प्रवर्तित रहस्य गर्भ शास्त्र है । शिव को पार्वती जी कुलेश्वर संबोधित करती हैं और शिव उन्हें कुलेश्वरी कहते हैं । यही कुलेश्वर और कुलेश्वरी कुलाचार या कुलमार्ग में दीक्षित कौलिकों के परमाराध्य हैं । कुल मार्ग उर्ध्वाम्नाय माना गया है अर्थात यह मोक्ष मार्ग है । नाम से ही प्रमाणित हो जाता है की यह सर्वोत्तम आम्नाय है जिसे गुरुमुख से ही प्राप्त करना चाहिए । उर्ध्वाम्नाय का पर्मोपास्य बीज श्री प्रासाद्परा मंत्र माना जाता है ।
जो गुण शास्त्रीय कौलिकों के माने जाते हैं वो वास्तविक गुण हैं । वह आज देखने को नहीं मिलते । इस मार्ग को सर्वथा गोपनीय रखा जाता है । किन्तु आज यह मार्ग फेसबुक, नेट आदि जगहों पर खुलेआम दिख रहा । वह भी मूल रूप में नहीं अपितु अत्यंत विकृत रूप में । खुद को कौलिक और कौलाचार्य कहने वालों की भीड़ लगी है । जबकि वास्तविक कौलिक बताता नहीं की वह कौल साधक है । कौलिक स्वार्थ रहित मोक्ष मार्गी होता है । किन्तु आज यिने स्वार्थ और भोग में लिप्त होते हुये देखा जा रहा । जो भिन्न मार्गी हैं जिन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं है वह भी खुद को कौलिक कहते हैं । जिसे कौलिकों का मूल मंत्र तक नहीं पता वह खुद को कौलिक बताकर लोगों को मूर्ख बना रहे है । भैरवी साधना कराने का दावा कर रहे है । जो जीवन भर शाबर मंत्र से साधना करते रहे वह कौलिक साधक बने बैठे है । जबकि वह मूल कौल न होकर योगिनी कौल के अंतर्गत आते हैं । मूल कौल साधना और योगिनी कौल साधना में भारी अंतर है । इन भ्रमों में युवकों और युवतियों का शोषण भी हो रहा और उने लुटा भी जा रहा है । कौल साधना अति गोपनीय और कुंडलिनी साधना है जो मोक्ष का लक्ष्य करती है । जबकि आज भोग, यौन तृष्णा परम लक्ष्य हो गया है ।
जो सम्प्रदाय आज तक समाज के लिए सर्वाधिक गोपनीय रहा हो । । जैसे कौल, अघोरी, कापालिक आदि । कौल, अघोरी, कापालिक, नाथ, योगी आदि अपने नाम के आगे लगाने की परंपरा चल पड़ी है । जबकि यह सब सम्प्रदाय और मार्ग हैं । जो कुछ नहीं जानते और किसी सम्प्रदाय से ठीक से दीक्षित नहीं है । वह भी नाथ, योगी, कौल, अघोरी लगा रहे है । फर्जी भैरव ,अघोरी ,भैरवी की बाढ़ है ! क्यों क्योकि नाम से जनमानस इज्जत देता है ,डरता है ,,उसका लाभ उठाया जा सके ,मूर्ख बनाया जा सके ! क्या इससे जो वास्तविक साधक और सम्प्रदाय हैं उनकी इज्जत नहीं जा रही ,उनका अपमान नहीं होगा ,जब उनके नाम पर लोग लुटे जायेंगे ! लोग कौलिकों ,अघोरियों ,नाथों को गलत बोलेंगे जबकि वास्तविक साधक की कोई गलती नहीं
डॉ रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
हरिद्वार (उत्तराखंड)