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religion,धर्म-कर्म और दर्शन -94

religion and philosophy- 94

🏵️🌸ग्रहों की रानी चंद्रमा 🌸🏵️

🌜दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।🌛

यह पृथ्वी का सबसे निकटस्थ पड़ोसी ग्रह है। पृथ्वी से इसकी दूरी 2,38,000 मील है । यह सर्वाधिक तीव्र गति से चलता है तथा 27 दिन , 7 घंटा 43 मिनट एवं 11 सैकिण्ड अर्थात् 27 . 1/3 दिन में सौर मण्डल की परिक्रमा कर लेता है । एक राशि पर यह लगभग 2.25 दिन संचरण करता है। यह पृथ्वी की परिक्रमा करते रहने के अतिरिक्त, उसी के साथ सूर्य की भी परिक्रमा करता रहता है

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ग्रह परिषद में सूर्य की भाँति ‘चन्द्रमा को रानी का पद दिया गया है ।। ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को स्त्री-ग्रह तथा सूर्य की अर्धांगिनी मानते हुये रानी के रूप में भी स्वीकार किया गया है। यह भी सदा मार्गी तथा उदित रहने वाला ग्रह है। कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तथा चतुर्दशी को इसे वृद्ध , अमावस्या को ‘मृत’ तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को ‘बाल’ अवस्था वाला माना जाता है। अतः ये चार तिथियाँ शुभ कार्यों के लिये त्याज्य कही गई हैं। पूर्ण चन्द्र को ‘सौम्य’ तथा क्षीण चन्द्र को ‘पापग्रह’ माना गया है। बली-चन्द्रमा ‘शुभ’ तथा निर्बली ‘अशुभ-ग्रह’ के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसकी स्वराशि ‘कर्क’ है। यह वृष राशि में उच्चस्थ एवं मूल-त्रिकोणस्थ तथा वृश्चिक राशि में नीचस्थ होता है ।

यह कर्क तथा वृष राशि में, सोमवार, द्रेष्काण, होरा, नवांश तथा राश्यन्त में शुभ ग्रहों से दृष्ट, रात्रि, चतुर्थ भाव तथा दक्षिणायन में बली होता है। कक्ष-सन्धि के अतिरिक्त सर्वत्र पूर्ण तथा बलवान चन्द्रमा को राजयोग कारक माना गया है। शुक्लपक्ष की एकादशी से कृष्णपक्ष की पंचमी तक यह ‘पूर्ण’, कृष्णपक्ष की एकादशी से शुक्लपक्ष की पंचमी तक ‘क्षीण’, कृष्णपक्ष की षष्ठी से कृष्णपक्ष की दशमी तक एवं शुक्लपक्ष की षष्ठी से शुक्लपक्ष की दशमी तक यह ‘मध्यम’ माना जाता है। ‘पूर्ण-चन्द्र’ शुभ तथा ‘क्षीण-चन्द्र’ अशुभ होता है । मध्यम-चन्द्र मध्यम फल कारक होता है ।

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चन्द्रमा को काल-पुरुष का ‘मन’ माना गया है। ज्योतिषीय मतानुसार यह- श्वेत वर्ण, युवावस्था वाला, स्त्रीलिंग, वैश्य जाति, सुन्दर, स्थूलाकृति, सत्वगुणी, जल तत्व, मृग-वाहन एवं कफ प्रकृति वाला तथा वायव्य दिशा का स्वामी है। इसका मन, अन्तःकरण, मनोभाव, संवेदन, शारीरिक स्वास्थ्य, मस्तिष्क, रक्त, दयालुता, कोमलता, कल्पना शक्ति, गार्हस्थ्य प्रेम, देश प्रेम, सहानुभूति, सौन्दर्य तथा ज्योतिष विद्या पर आधिपत्य माना जाता है । इसके द्वारा जल, मोती, कृषि, श्वेत वस्त्र, चाँदी, पुष्प, चावल , मिश्री, श्वेत वस्तुयें , भ्रमणशीलता , माता, राजभक्ति तथा स्त्री आदि से लाभ का विचार किया जाता है।

मनुष्य-शरीर में गले से हृदय तक , अण्डकोष , गर्भ तथा पिंगला नाड़ी पर इसका अधिकार रहता है। स्त्री, वेश्या, दाई , पारिचारिका , मछुआरे, यात्री, नाविक , औषध तथा शराब-विक्रेता , नेत्र-रोग, पीलिया , पीनस, मानसिक विकार, मूत्रकृच्छ, स्त्री-संसर्गजन्य रोग तथा गाँठ आदि का भी यह ग्रह प्रतिनिधित्व करता है।सूर्य, गुरु तथा बुध- ये तीनों चन्द्रमा के नैसर्गिक ‘मित्र’ हैं, राहु तथा केतु ‘शत्रु’ हैं एवं मंगल, शुक्र तथा शनि से यह ‘सम’ भाव रखता है । जन्म- कुण्डली में चन्द्रमा जिस स्थान पर बैठा हो, वहाँ से तृतीय तथा दशम भाव को एक पाद दृष्टि से, पंचम तथा नवम भाव को द्विपाद दृष्टि से, चतुर्थ तथा अष्टम भाव को त्रिपाद दृष्टि से तथा सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है ।

मेष, तुला, वृश्चिक तथा मीन लग्न में चन्द्रमा योगकारक होता है । रोहिणी, पुनर्वसु, विशाखा तथा पूर्वा भाद्रपदा नक्षत्र का चन्द्रमा श्रेष्ठ फल देता है । कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी, आश्लेषा, ज्येष्ठा, उत्तराषाढ़ा तथा रेवती नक्षत्रों पर अशुभ फल देता है। नीचस्थ तथा असंगत चन्द्रमा अशुभ फल कारक होता है। यदि चन्द्रमा के साथ बैठा राहु ग्रहण-योग बना रहा हो तो भी चन्द्रमा अशुभ फल देता है । पुनर्वसु, पुष्य तथा आश्लेषा- चन्द्रमा के नक्षत्र हैं। यह जातक के जीवन में प्रायः 24 से 26 वर्ष की आयु में अपना शुभ अथवा अशुभ फल प्रदर्शित करता है । गोचर में यह प्रत्येक राशि-संक्रमण की अन्तिम घटी अर्थात् 1घण्टा 12 मिनट पहले से अपना विशिष्ट फल देने लगता है ।

चन्द्रकृत्-पीड़ा अथवा दोष-निवारणार्थ ‘मोती’ धारण किया जाता है । जन्म-कुण्डली में 5,9, 12, 1,4 तथा 8 भाव चन्द्रमा के ‘बिद्ध’ तथा 1,3,6,7,10 एवं 11 भाव शुभ स्थान माने गये हैं । बिद्ध-स्थानों पर बुध- रहित कोई ग्रह नहीं होना चाहिये, अन्यथा बिद्ध-चन्द्र शुभ-स्थान पर रहते हुये भी अशुभ फल देता है ।सूर्य और चन्द्रमा जब परस्पर 6 राशि के अन्तर पर आते हैं, उस समय पूर्णिमा होती है तथा उसी के प्रभाव से समुद्रों में ज्वार-भाटे आने लगते हैं। कभी-कभी अमावस्या के दिन जब यह (चन्द्रमा)- पृथ्वी तथा सूर्य के बीच आ जाता है, उस दिन ‘सूर्य-ग्रहण’ होता है। जब कभी पूर्णिमा के दिन पृथ्वी-चन्द्रमा और सूर्य के बीच आ जाती है, उस रात ‘चन्द्र-ग्रहण’ होता है ।

चन्द्रमा का नाम मंत्र – ॐ सों सोमाय नम:।

चंद्रमा गायत्री मंत्र – ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।

चंद्रमा का पौराणिक मंत्र- दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम। नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।

चन्द्रमा के तांत्रोक्त मंत्र-
ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।
ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम: ।

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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