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religion,धर्म-कर्म और दर्शन -99

religion and philosophy- 99

🏵️कैलाश पर्वत पर सफल आरोहण करने वाले अंतिम ज्ञात व्यक्ति 🏵️

🧘महासिद्ध मिलरेपा🧘

मिलरेपा के विषय में जानकारी बौद्ध परंपराओं और उसमें भी वज्रयानी परंपराओं में मिलती है, सिद्धों की परंपरा और तिब्बती संस्कृति में उनकी विस्तृत चर्चा है।
मिलरेपा वह प्रथम और अंतिम ज्ञात व्यक्ति हैं जिन्होंने पवित्र कैलाश पर्वत पर आरोहण करने में सफलता प्राप्त की
इनका जन्म तिब्बत के दुर्गम पठारी क्षेत्र में 11वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था।
यह उस समय के एक अतिशय संपन्न कृषक परिवार से थे उनके बचपन का प्रारंभिक भाग बहुत प्यार दुलार में बीता किंतु जब कोई सिद्ध पुरुष जन्म लेता है तो अनेक बार उसके जीवन की समस्याएं भी सामान्य व्यक्ति से कहीं कठिनतर होती हैं। मिलरेपा के साथ भी ऐसा ही हुआ। 7 वर्ष की अवस्था में उनके पिता अपनी सारी संपत्ति उनकी मां और उनके और उनकी बहन के नाम पर करके और अपने छोटे भाई यानी मिलरेपा के चाचा और बुआ को उन सबका संरक्षक नियुक्त करके शरीर त्याग दिये।

महा सिद्ध मिलरेपा
महा सिद्ध मिलरेपा

मिलरेपा के जीवन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, गर्मी के मौसम में वह चाचा के खेतों में काम करते और शीतकाल में बुआ की भेड़ें चराया करते थे, शारीरिक श्रम बैल जैसा और भोजन श्वान जैसा, यही मिलरेपा की नियति बन गई थी।
होश संभालने और किशोर होने के बाद जब इन्होंने अपना दाय अर्थात अपना उत्तराधिकार अपने चाचा से मांगा तो इनके तातश्री ने इन्हें इनकी बहन और माता सहित भरपूर पीटा, इतना कि पीट पीट कर लहू लुहान कर दिया और घर से भी निकाल दिया।
मिलरेपा की माता जो अब तक इस आस में जी रही थीं कि पुत्र के बड़े होने पर और पति की संपत्ति मिलने पर जीवन बदल जाएगा इस अपमान से अत्यधिक आहत हुई और उन्होंने अपने पुत्र को किसी भी मूल्य पर चाचा से प्रतिशोध लेने का आदेश दिया।
एक किशोर 15- 16 साल का लड़का, या बच्चा भी कहें तो क्या गलत होगा भला दुष्टों की पूरी टीम से कैसे लोहा लेता।
मिलरेपा की उदासीनता देखकर उनकी माता ने उन्हें आत्महत्या की चेतावनी दी अब मिलरेपा के पास लड़ाई के मैदान में कूदने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था।
उन्होंने तिब्बती परंपरा के अंतर्गत ही एक मांत्रिक गुरु खोजा और उनसे मंत्र आदि की दीक्षा लेकर श्मशान भूमि में साधना करने को प्रस्तुत हुए ताकि, अपने अपराधियों से प्रतिशोध ले सकें।
कहा जाता है की 40 दिन की साधना के बाद मिलरेपा ने, सूक्ष्म जगत की किसी तामसिक शक्ति को वशीभूत किया और अपनी माता के पास लौट आए…..।
अब शक्ति परीक्षण की बारी थी।
इन्होंने पुन: चाचा से अपना अधिकार मांगा, चाचा ने पुनः अपमानित करके भगा दिया। अब मिलरेपा ने अपने मंत्र बल पर चाचा के खेतों में ओले बरसाकर उनकी खड़ी फसल नष्ट कर दी, पशुओं को मंत्र बल से मार डाला, और मंत्र बल से ही चाचा के घर पर पत्थर भी बरसाए।
चाचा को इस परेशानी का कारण मालूम पड़ा तो सहयोगियों समर्थकों के साथ मिलरेपा और उनके परिवार को दंडित करने को धावा बोल दिए।
मिलरेपा ने अपनी अतिमानवीय शक्तियों से उन्हें, उनके परिवार संबंधियों और सहयोगियों के साथ मौत के घाट उतार दिया जो किसी समारोह में वहां एकत्रित हुए थे और मिलेरेपा के विरुद्ध संगठित हुए थे। परंतु मिलरेपा का क्रोध इतने पर ही शांत नहीं हुआ दुष्टों को संपूर्ण दंड देने के लिए उन्होंने सारे गांव की फसल नष्ट कर दी क्योंकि अधिकांश ग्रामीण भी अन्याय के पक्ष में थे।
महात्माओं का क्रोध क्षणिक होता है। इन सब के बाद मिलरेपा को शीघ्र ही अपने किए का भारी पश्चाताप हुआ और वह दिन-रात आत्मग्लानि में जलने लगे। यद्यपि कि, उन्होंने दुष्टों को उनकी करनी का ही दंड दिया।
जब उन्हें किसी प्रकार से शांति नहीं मिली तो उन्होंने गृह त्याग दिया और गुरु की खोज में भटकने लगे और इस प्रकार देशाटन करते हुए उन्हें तिब्बत के ही एक सुदूर क्षेत्र में मारपा नमक एक सिद्ध का पता चला।
मिलरेपा तत्काल मरपा के पास पहुंचे जो उसे समय अपने खेतों में काम कर रहे थे इन्हें देखकर मारपा ने अपना कार्य इन्हें सौंप दिया और घर आ गए खेतों का काम निपटाकर जब मिलरेपा उनके घर के पास पहुंचे तो उन्हें अंदर आने से पहले घर आंगन की सफाई करनी पड़ी। अंदर आकर उन्होंने मरपा को गुरु संबोधित करते हुए उनसे प्रायश्चित और ज्ञान की याचना की
मारपा ने एक शर्त पर उन्हें अपने घर में शरण देने की बात की। उन्होंने कहा या तो मुझसे ज्ञान को या फिर भोजन आदि ले लो यदि ज्ञान चाहिए तो भोजन का प्रबंध स्वयं करो और यदि भोजन चाहिए तो ज्ञान के लिए कोई अन्य गुरु ढूंढो।
मिलरेपा ने ज्ञान को चुना और भोजन का प्रबंध भिक्षा द्वारा करने का निश्चय किया। ज्ञान प्राप्ति के लक्ष्य में बाधा ना आए इसके लिए उन्होंने कुछ ही दिनों में भिक्षा द्वारा भरपूर अनाज इकट्ठा कर लिया और जब अनाज के गट्ठर को उन्होंने घर लाकर रख तो असंतुलित होने की वजह से गट्ठर गिरा जिससे मारपा का ध्यान टूट गया मारपा क्रोधित हो गए और उन्होंने मिलरेपा को बहुत अधिक भला बुरा कहा। उन्होंने यह भी कहा कि तुम्हारे अंदर एक सामान्य मनुष्य का भी शिष्टाचार नहीं है और तुम घर में रहने योग्य नहीं हो यह कहकर उन्हें घर से निकाल दिया।
अब मिलारेपा घर के बाहर बरामदे में ही समय काटने लगे और मारपा द्वारा निर्धारित कार्यों को करने लगे, जैसे उनके खेतों में काम करना पशुओं को चराना घर आंगन की सफाई करना जो भी काम एक नौकर या बहुत सारे नौकर मिलकर कर सकते हैं वह सब कुछ मिलरेपा अकेले करते थे, और बीच-बीच में मारपा से प्रार्थना भी करते थे कि वह उन्हें दीक्षा दें।
बहुत समय बीतने पर भी मारपा ने उन पर कृपा नहीं की बल्कि केवल बैल की तरह उनसे काम लिया।
इस प्रकार करीब 13 वर्ष बीत गए और मिलरेपा लगभग निराश हो गए।
अब मिलरेपा ने मारपा की पत्नी की सम्मति से उनके एक शिष्य से दीक्षा ली और गुप्त भाव से साधना में जुट गए किंतु उन्हें किसी भी प्रकार की कोई दैवीय अनुभूति नहीं हुई। थक हारकर वह पुनः दीक्षा देने वाले शिष्य के साथ मारपा की शरण में पहुंचे।
सारा मामला जानने के बाद मारपा आग बबूला हो गए और उन्होंने अपने शिष्य और मिलरेपा दोनों को ही बहुत भला बुरा कहा उन्होंने मिलरेपा को कहा कि मैं तो तुम्हें ज्ञान और दीक्षा के लिए ही तैयार कर रहा था लेकिन तुममें पशुओं की तरह ना तो धैर्य है और ना ही इतने वर्षों में तुम अपने अहंकार से मुक्त हो पाए हो इसलिए तुम्हें और प्रतीक्षा करनी होगी धीरे-धीरे मिलरेपा जीवन के उत्तरार्द्ध में पहुंच गए और तब एक दिन मारपा अपने उन पर कृपा की और उन्हें अज्ञान अंधकार के नाशक और चित शक्ति के उन्मेष कारक सिद्ध मंत्र दिया, और मंत्र पारायण तथा ध्यान की विधि बताई।
इतने के बाद मारपा ने मिलरेपा को एक काल कोठरी में बंद कर दिया जिसमें श्वास लेने के लिए हवा तो आ सकती थी किंतु उसमें प्रकाश का नामो निशान न था मिलरेपा अचल भाव से ध्यानस्थ होकर जप करने बैठ गए और मन को मूलाधार में केंद्रित कर दिया।
अभी तीन ही दिन व्यतीत हुए थे की मूलाधार की अधिष्ठात्री शक्ति डाकिनी देवी ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए, और कुंडलिनी उत्थापन और षटचक्र भेद के एक गुह्यतम रहस्य के बारे में संकेत किया तथा आदेश दिया कि जाओ और जाकर अपने गुरु से पूछो कि उन्हें इसका पता है या नहीं, इतना कह कर हास्यवदना डाकिनी देवी तिरोहित हो गई।

मिलरेपा भागे भागे अपने गुरु मारपा के पास आए। उन्हें देखते ही मारपा पुनः क्रोधित हो गए और पूछा कि तुम साधना छोड़कर बाहर कैसे चले आए मिलरेपा ने उन्हें बताया कि उन्हें डाकिनी के दर्शन हुए हैं। मारपा ने कहा कि तीन दिन में तो यह संभव ही नहीं है जब मिलरेपा ने डाकिनी द्वारा संकेत किए गये विषय के बारे में पूछा तब मारपा को यह स्वीकार करना पड़ा कि वह स्वयं भी उस विषय के बारे में नहीं जानते हैं।
फिर मारपा ने मिलारेपा को अपने भारत स्थित गुरु नरोपा के बारे में बताया जो वर्तमान हिमाचल प्रदेश एवं लद्दाख के बीच में कहीं रहते थे। लंबी यात्रा करके दोनों नरोपा की शरण में पहुंचे। मारपा ने गुरु को डाकिनी द्वारा पूछे गए रहस्य के बारे में निवेदित किया। नरोपा अंतर्दृष्टि प्राप्त सिद्ध योगी थे उन्होंने क्षण भर में ही जान लिया की डाकिनी के दर्शन मिलरेपा को हुए हैं ना कि, मारपा को।
नरोपा ने हंसकर अपने शिष्य को कहा कि तुम्हारे शिष्य की योग्यता तुमसे अधिक है यही कारण है की देवी के दर्शन तुम्हें अब तक नहीं हुए और इसे तीन ही दिन में हो गए।

इसके बाद उन्होंने उस रहस्य को संपूर्णत: उद्घाटित किया जिसका संकेत मात्र डाकिनी देवी ने किया था। नरोपा द्वारा उपदिष्ट मार्ग का अवलंबन लेकर मिलरेपा ने क्रमशः षटचक्र भेदपूर्वक डाकिनी के अतिरिक्त, लाकिनी, राकिणी, काकिनी, शाकिनी, हाकिनी सभी चक्र देवताओं को सिद्ध करते हुए साक्षात कुल कुंडलिनी स्वरूपा चित्शक्ति का साक्षात्कार पूर्वक आत्मलाभ किया। इसके बाद वह वापस तिब्बत चले आए जहां मारपा ने उनका अनुसरण किया और उन्हें गुरु स्वीकार करते हुए उनसे दीक्षा प्राप्त की।
तंत्र साहित्य के इतिहास में यह अपने प्रकार की अनूठी घटना है।
इसके बाद मिलरेपा ने साधना के बल पर, काय सिद्धि, आकाशगमन, बहुकाय प्रकाशन आदि विभूतियों पर अधिकार प्राप्त किया और एक सुदीर्घ जीवन बिताया।
अंतिम समाधि के समय मिलरेपा अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में रहे।
मिलरेपा अंतिम ज्ञात व्यक्ति हैं जिन्होंने कैलाश पर्वत पर सफलतापूर्वक आरोहण किया।
सभी सिद्धों को नमन।
जय मां,

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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