religion,धर्म-कर्म और दर्शन -176

religion and philosophy- 176

 

🌼श्रीराम धर्म का मूर्तरूप अर्थात धर्मस्वरूप🌼

ईश्वर व संसार के प्रति हिन्दू दृष्टि एवं संवाद संस्कृति
सृष्टा, सृष्टि व अवतार: किसी धर्म–संप्रदाय में सृष्टिकर्ता यउंजमतद्ध व उसकी सृष्टि यउंजजमतद्ध के बीच सम्बन्ध एक विशेष महत्त्व की धारणा होती है ।

सनातन धर्म में रचना को रचयिता का ही अंश माना है अर्थात जीव में भी परमात्मा का अंश विद्यमान है, परन्तु जीव चूंकि ईश्वर नहीं है अत: वह सर्वव्यापी नहीं है ।

सृष्टा अपनी सृष्टि से अलग नहीं है इसीलिए यहां अवतार की अवधारणा है न कि दूत की । जैसे मनुष्य का ईश्वर में मिलन संभव है वैसे ही ईश्वर भी मनुष्य रूप में अवतार लेता आया है । अवतार अर्थात सृष्टा व सृष्टि के बीच सतत् आवागमन ।

आचार्य रामानुज ने बताया कि अवतार के दो भेद है: मुख्य अर्थात जब स्वयं ईश्वर पृथ्वी पर प्रकट होते है तथा गौण अवतार । अनेक ग्रंथों में दश अवतारों का वर्णन आया है जिनमें दो बार भगवान मुख्य अर्थात पूर्ण ब्रह्म रूप में अवतरित हुए हैं जिनकी पूजा का विस्तृत विधान उपलब्ध है–श्रीराम व श्रीकृष्ण । ये स्वरूप ईश्वर के निर्गुण व सगुण की दूरी भी पाट देते हैं ।

अवतार का उद्देश्य इस छन्द में निहित है:
संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया । इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया । (साकेत) ।
ज्ञातव्य है कि सभी अवतार कर्म को प्राथमिकता देते हैं और समय की काई को हटाते हैं ।
भागवत के सर्वाधिक महत्वपूर्ण दशम स्कन्द में श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाओं का वर्णन है । सूरदास जी ने इसी स्कंद पर सूरसागर नामक गंथ लिखा है । श्री कृष्ण को वासुदेव कहा है, अर्थात उनमें अन्य सभी अवतार समाहित हैं ।

के–एम– मुंसी ने “”कृष्णावतार”” नामक पुस्तक श्रंखला में श्री कृष्ण लीलाओं का संकलन किया है । अवतार ईश्वर के दयालु व न्यायकारी होने का प्रमाण हैं ।

अन्तिम और दशवां कल्कि अवतार 4 लाख 32 हजार वर्ष में आएगा जिसके 5012 वर्ष बीत चुके हैं ।

गीत गोबिन्द के दशावतार स्त्रोत्र में अवतारों को श्रीकृष्ण के विविध पक्षों के रूप में दर्शाया है । दशावतार श्री विष्णु के अवतार हैं । भागवत में अवतार (स्कन्ध 6) तथा सृष्टि (10–8–2) का प्रयोजन भी बताया गया है तथा 24 अवतारों का वर्णन है जिसकी व्याख्या गुरू गोविन्द सिंह रचित दशम ग्रंथ में हुई है ।

सतयुग व द्वापर के संध्याकाल में श्रीराम अवतरित हुए तथा द्वापर व कलियुग के संध्याकाल में श्रीकृष्ण का अवतार हुआ ।
कलियुग के पश्चात सतयुग से पहले कल्कि अवतार आएगा ।

श्री राम एक अदभुत मानवता भरा अवतार श्रीराम को धर्म का मूर्तरूप अर्थात धर्मस्वरूप माना गया है–रामो विग्रहवान धर्म: ।

तुलसी कहते हैं कि जिसे सीता राम प्रिय नहीं उसे करोड़ बैरियों के समान मानकर छोड़ देना चाहिए चाहे वह कितना ही परम मित्र क्यों न हो– जाके प्रिय न राम बैदेही । तजिए ताहि कोटि बैरी सम, जदपि परम सनेही ।

बाल्मीकि रामायण के आरम्भ में बोला जाने वाला श्लोक कहता है–
वेद–वेद्ये परे पुंसि जाते दशरथात्मजे ।
वेद: प्राचेतसादासीत्साक्षात् रामायणात्मना ।

अर्थात :: वेद–वेद्य, सच्चिदानन्दघन परब्रह्म का ही राघवेन्द्र श्री रामचन्द्र स्वरूप में अवतरण हुआ अर्थात श्रीराम ब्रह्म हैं । श्रीराम ब्रह्माण्ड नायक हैं और वे हर्ष, धैर्य व अभय अर्थात निर्भय होने का अनुभव हैं ।

श्रीराम का धनुष सज्जनों की सुरक्षा का वचन है तथा यह शक्ति एवं अभय का सूचक है । श्रीराम जिस पापी का भी वध किया वह मोक्ष पा गया । पत्थर बनी अहित्या व भीलनी का उद्धार किया । ब्रह्मांड नायक रामजी सुशील व गुणों के सागर हैं । वे युद्ध से पहले स्तुति करते हैं । श्रीकृष्ण तो जगमोहक हैं और उनमें भगवान के सर्वाधिक फलक व रस्मियों व्यक्त हुई हैं ।

बालकृष्ण की बाल लीलायें भी अद्भुत हैं जिन्हें सूरदास जी ने अमर कर दिया है, जिसमें रूप सौन्दर्भ, वात्सल्य, प्रेम, विरह, करुणा का वर्णन है ।

शिव मानव इतिहास में पूजे गए प्राचीनतम स्वरूप रहे हैं । भारत में स्थित सर्वाधिक मंदिर भी शिव को ही समर्पित हैं , यद्यपि वे भिन्न–भिन्न नाम से जाने जाते हैं । इन स्वरूपों की भक्ति निर्गुण व सगुण दोनों मार्र्गों से होती आई है ।

श्री राम को एक महानायक के रूप में प्रस्तुत करने वाली वाल्मीकि रामायण एक ऐतिहासिक धरोहर भी है ।

इसमें वर्णित घटनाएं आज विज्ञान के माध्यम से सत्य सिद्ध हो रही हैं ।
वे कुछ उपनिवेशी इतिहास लेखक ही थे जिन्होंने यह भ्रम उत्पन्न किया कि रामायण एक मिथक है (जेम्स मिल्स व चार्ल्स ग्रांट द्वारा तैयार 1808 का आलेख)
जबकि 1030 में अलबरूनी ने श्री राम को ऐतिहासिक महापुरुष बताया है ।

यह बड़ा रोचक तथ्य है कि 1550 के आस–पास बेगम हमीदा बानू (हुमायूं की पत्नी तथा अकबर की मां) ने रामायण की चित्रकारी करवाई और बाद में अकबर ने भी रामायण का अनुवाद करवाया ।
यह कार्य रामायण को ऐतिहासिक ग्रंथ मानकर किया गया था

रामायण में श्री राम से जुड़े जो भी स्थल बताए गए हैं उन्हें आज पहचाना जा चुका है ।

श्री राम का जन्म श्री राम नवमी को बताया है और रामायण का एक श्लोक उस समय के पंचांग का पूर्ण वर्णन करता है । इस घटिकाल को आज के सॉफ्टवेयर में डालें तो श्री राम का जन्म समय 10 जनवरी, 5114(बीसी) आता है ।

रामायण में भरत की जन्म तिथि तथा दशरथ द्वारा राज्य छोड़ने का समय भी उसी सॉफ्टवेयर से देखों तो ये काल हू–ब–हू मिलते हैं ।

वस्तुत: राम का कथानक भारत में ही नहीं अपितु पूर्व व पश्चिम एशिया में भी सर्वत्र व्याप्त है ।
भगवान राम ने भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं अपितु संपूर्ण एशिया की सोच व मर्यादाओं को दिशा दी ।

कोरिया, थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया आदि देशों के राजा स्वयं को श्रीराम का वंशज मानते हैं । प्राच्यविद् डायकोनौफ ने लिखा है कि प्राचीन ईरान में लोगों के नाम के साथ राम शब्द जुड़ा होता था । इसी प्रकार राम जी तब रामसे बन गया, आदि ।

इस्लाम पूर्व के ईरान में राम एक पवित्र नाम था (टी–सी– यंग) ।
यह जोरस्ट्रियन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण नाम है ।
एक कर्डिस जनजाति का नाम राम बजरंग है ।
प. मध्य एशिया व यूरोप में राम नाम के अनेक नगर है ।
रामागम, राम पेरोज आदि ।
वस्तुत: यह कपोल कल्पना या संयोग नहीं गहन शोध का विषय है जिसमें चैंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे ।

रोम का स्थापना दिवस राम नवमी को पड़ता है और उस दिन वहॉं कोई बलि नहीं दी जाती है और वह सूर्य से संबंधित है ।
रामेल्ला का तात्पर्य वही है जो रामपुर का है ।

मोसोपोटामिया पर सबसे लंबे समय तक राज्य करने वाले शासक का नाम राम था ।
सुमेरु सभ्यता में भरत, राम, सिन (चंद्र), रिम (राम) जैसे शब्द आते हैं ।
जातक की कहानियों और सुमेरु सभ्यता में आए अनेक राजाओं के नाम एक से हैं ।

यहां प्रश्न केवल नाम का नहीं अपितु नाम के पीछे जो संदर्भ आए हैं वे भी अयोध्या के राम की ओर इंगित करते हैं ।
वहां सरयूं को हरयूं कहा । राम का नाम द–पू– में तो इस तरह व्याप्त है कि यह आश्चर्य उत्पन्न करता है ।

चंद्रगुप्त मौर्य (285 बीसी) तथा ललितादित्य का राज्य खाड़ी देशों तक था और दक्षिण भारत के चोल आदि राजाओं का प्रभाव द–पूर्वी देशों तक था ।

अंकोरवाट आदि मंदिर रामायण से ओत–प्रोत हैं । हिंदू सभ्यता के 32000 (बीसी) तक के साक्ष्य मिलते हैं यद्यपि यह बहुत प्राचीन है ।

द्वारिका, अयोध्या हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि सब इसी के अंग हैं ।
वस्तुत क्रिश्चियनिटी व इस्लाम की स्थापना से पूर्व सनातन धर्म विश्वव्यापी था । लेकिन अन्य सभ्यताओं के आक्रमण से सनातन संस्कृति रसातल में चले गई ।

वैटीकन सिटी का आकार शिवलिंगम् जैसा होना, जो संभवत: केवल संयोग मात्र न हो
लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता से प्रभावित बासम व रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों ने राम को एक ‘जनजातीय’ नेता कहकर आंखों में पट्टी बांध दी ।

नील नदी के किनारे भी गंगा नदी की तरह धर्म के चिह्न विकसित हुए ।
मिश्र में सूर्यवंशी रामसेज का वर्णन आता है जो राम से ही निकला है । इनकी गाथाओं में आता है कि उनकी सभ्यता ‘समुद्र के पार पूर्व के देश’ से निकली ।

दुर्भाग्य से ओल्ड टेस्टामेंट व भारतीय ग्रंथों का तुलनात्मक अध्ययन अभी नहीं के बराबर हुआ है, तथापि वहां पाया जाता है कि अनेक संदर्भ कहीं न कहीं भारत से जुड़े हैं ।
वस्तुत: श्री राम का नाम विश्वव्यापी रहा है ।
भारत में अयोध्या स्थित राजा धनदेव का संस्कृत अभिलेख 150 बी–सी– का है जो इस बात का साक्षी है कि अयोध्या नगर का भी गोरवपूर्ण इतिहास रहा है । अयोध्या जाकर सरयू में दीप जलाने की परंपरा बहुत प्राचीन है ।

कबीर व नानक ने श्रीराम को निर्गुण व निराकार रूप में देखा अर्थात उनके राम अयोध्या के राजकुमार दशरथ के पुत्र से भिन्न हैं, उनके राम अकाल, अजन्मा, अनाम और निराकार हैं ।

।।श्रीराम का स्वरूप कितना लोकप्रिय है इसका आँकलन इस तथ्य से कर सकते हैं कि सदियों से अधिकतम हिन्दुओं के नाम के साथ ‘राम’ शब्द जोड़ने की परम्परा रही है । लोग एक–दूसरे का अभिवादन ‘राम–राम’ कहकर करते हैं । यहां तक कि मृत्योपरान्त अन्तिम यात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ के उच्चारण की पुनरावृत्ति होती है ।

तुलसी ने श्रीराम को निर्धनों का रखवाला कहा है–
तुलसी सोई जानिए, राम गरीब नवाज ।

यहां मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति मृत्यु के समय अन्तिम शब्द के रूप में ‘राम’ नाम पुकारता है वह मोक्ष प्राप्त करता है । गांधी जी के अन्तिम शब्द ‘हे राम!’ थे ।

श्रीराम हिंदुओं के महानायक भी हैं ।
यहां तक कि इकबाल ने भी श्रीराम को रूहानी नजर वाले इमामे हिन्द कहा और बताया ज्ञानी लोग जानते हैं कि वे नेकी का रास्ता दिखाते हैं–
राम के वजूद पर हिन्दोसतां को नाज है ।
अहले नजर समझते हैं उनको इमामे हिन्द ।

रामायण में आता है–
लोके नहि स विद्येत यो न राममनुव्रत: ।
अर्थात संसार में कोई ऐसा मानव नहीं है जो श्रीराम का भक्त न हो, क्योंकि वे आनन्द स्वरूप हैं ।

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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