Quit India Movement,9 अगस्त 1942, और हरिद्वार, ब्रिटिश सेना के दमन से बेहाल और भूखा-प्यासा था हरिद्वार
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ब्रिटिश सेना ने घरों से खाना लूटा, बच्चे भूखे और पुरुष जेल में बंद।
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शशि शर्मा
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Quit India Movement,यूं तो हरिद्वार के स्वतंत्रता आंदोलन का बडा इतिहास है लेकिन पहले बात हरिद्वार के उस स्वतंत्रता-संग्राम आंदोलन की जो सबसे चर्चित स्वतंत्रता आंदोलन “अगस्त क्रांति” के नाम से जाना जाता है।
मैंने अपने जीवन के पांच दशक से अधिक समय इस कहानी को अपने पिता से निरंतर सुनते लिखते बिताये है, दरअसल हरिद्वार की अगस्त क्रांति 15 अगस्त को नहीं 9 अगस्त को हुई थी,Quit India Movement
गांधी जी के करो या मरो, के समर्थन में 9 अगस्त 1942 को हरिद्वार शहर में आजादी के दीवानों ने एक जलूस निकाला, जुलूस में केवल चौदह से बीस बाईस वर्ष के नौजवान ही शामिल थे।
जलूस हरिद्वार के मुख्य मार्ग से होता हुआ हरकी पैड़ी के निकट सुभाष घाट पर तिरंगा फहराने पहुंचा तो पुलिस ने जलूस पर निर्ममता पूर्वक लाठियां बरसाई, उत्तेजित क्रांतिकारी युवकों ने भी पुलिस पर पलट कर हमला कर दिया लेकिन झंडा फहराने का सौभाग्य उन नौजवानों के दल को नहीं मिल सका।
अब तक पुलिस का दमन पूरे नगर में फैल गया था, हरकी पैड़ी पर झंडा ना फहराने से भडके नौजवान हरिद्वार के मुख्य डाकघर पहुंचे, क्रांतिकारियों ने मुख्य डाकघर को आग लगा दी, भर्ती दफ्तर को भी स्वाह कर दिया गया और हरिद्वार कोतवाली पर आजादी के दीवानों का अधिपत्य स्थापित हो गया था, कोतवाली में मौजूद पुलिसकर्मी अपनी जान बचा कर भाग गए थे, क्रांतिकारीयों ने कोतवाली के सभी संचार तंत्र ध्वस्त कर दिए थे, और पूरी शानो-शौकत से ध्जारोहण कर दिया था,अपनी इस जीत से उत्साहित युवकों का कारवां हरिद्वार की शिवमूर्ति के पास बने चुंगी चौकी पहुंचे, चुंगी चौकी आजादी के दीवानों के आक्रोश का परिणाम भुगत रही थी, तहस-नहस चुंगी चौकी को उसके हाल पर छोड़ नवयुवकों की टोली रेलवे स्टेशन की तरफ बढ चली, यहां ऋषिकुल के छात्रों का एक बड़ा दल भी शामिल हो गया और अब आजादी के दीवानों का एक बड़ा सैलाब रेलवे स्टेशन की तरफ बढ चला, आंदोलनकारीयों का लक्ष्य हरिद्वार रेलवे स्टेशन को आग के हवाले करना था।
नवयुवकों के शहर में हुए तांडव की खबर से ब्रिटिश पुलिस की भारी तैनाती रेलवे स्टेशन पर कर दी गई थी उग्र नवयुवकों की अनियंत्रित भारी संख्या को देख वहां मौजूद दरोगा प्रेमशंकर ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से नवयुवकों की भीड़ पर फायरिंग कर दी,एक गोली ऋषिकुल के छात्र जगदीश वत्स और एक गोली एक अन्य अज्ञात युवक को लगी, दोनों वहीं गिर पडे कोई मेडिकल सहायता नहीं मिलने से दोनों ने वही दम तोड दिया।
मेरे पिता नन्दलाल ढिंगरा ने बताया, दोनों शहीदों के शव वहीं पडे रहे,इस बीच हरकी पैड़ी सुभाष घाट पर झंडा ना फहराने का दंश और साथी की मौत से आहत, हरकी पैड़ी पर ही रह कर बढई का काम करने वाले बंगाली बाबा ने आजादी के दीवानों पर हुए बर्बर ब्रिटिश पुलिस के अत्याचार से आक्रोश में भर कर हाथ में फरसा उठाया और पहुंच गए सुभाष घाट झंडा फहराने, झंडा फहराने की नाकाम कोशिश में पोल पर चढे बंगाली बाबा को वहां मौजूद भारी पुलिस बल ने उनको गिरफ्तार कर लिया,और फिर शुरू हुआ भारी पुलिस लाठीचार्ज,भीड तितर बितर हो कर बडे बाजार से होते हुए भाग खडी हुई।
एक बड़ा दल बडी सब्जी मंडी की ओर निकल आया इस भीड में चौदह वर्ष का एक बालक भी शामिल था, चौदह वर्ष के नन्दलाल ढिंगरा ने हरकी पैड़ी की ओर से आती डीएसपी की गाड़ी नजर आई,साथी जगदकी मौत से आक्रोशित नन्दलाल ढिंगरा ने पास ही पडा एक बड़ा पत्थर उठा कर डीएसपी को निशाना कर मारा पत्थर डीएसपी के ड्राइवर को लगा, डीएसपी की गाड़ी एक खम्बे से जा टकराई, डीएसपी अपनी बंदूक लेकर बालक को निशाना बना जैसे ही फायरिंग करना चाहता था,वहीं भीड में से एक युवक ने डीएसपी की बंदूक छीन कर खम्बे पर दे मारी, डीएसपी ने पास ही बने एक शौचालय में छिप कर अपनी जान बचाई।
Quit India Movement,उस दिन हरिद्वार पूरा दिन आंदोलनकारीयो का अखाड़ा बना रहा।
नगर के सभी संचार तंत्र ध्वस्त हो चुके थे इसके बावजूद सिंचाई विभाग का टेलीफोन काम कर रहा था, अंग्रेज अफसरों ने उस फोन से रुड़की फोन कर ब्रिटिश सेना की चार कम्पनियां मंगवा ली, हरिद्वार में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया।
अंग्रेजी फौज का दमन चक्र शुरू हुआ,फौज ने स्थानीय लोगों के घरों से और बाजारों से खाने पीने का सामान लूट लिया,भूख से बिलखते बच्चे महिलाएं अकेले रह गये थे, हरिद्वार से पांच छः सौ व्यक्तियों को गिरफ्तार कर हरिद्वार कोतवाली लाकर कठोर यातनाएं दी गईं, तीन चार दिन के यातना भरे दौर के बाद सभी को रुड़की जेल हवालात में भेज दिया गया,Quit India Movement
16 अगस्त 1942 को सभी 48 नामजद व्यक्तियों को रुड़की की एक छोटी सी बैरक में बंद कर दिया गया और बहुत बडी संख्या में ब्रिटिश सरकार से क्षमा याचना करने वालों को रिहा कर दिया गया।
उन बैरक में बंद 48 लोगों में बंद चौदह वर्ष का बालक नंदलाल ढिंगरा भी शामिल थे,बैरक की यातना भरी कहानी भी उस चौदह साल के बालक के मुख से मैंने सुनी और देहरादून के मूलचंद “नारीशिल्प मंदिर इंटरकालेज” में कक्षा नाईथं सी से पहली बार 1972 में अपने स्कूल की मैगजीन में छपवाया था, मै हरकी पैड़ी पर ही एक छोटे-से तख्त को अपना आशियाना बनाये हुए बंगाली बाबा से 1986 में मिली, फरसा लेकर सुभाष घाट पर झंडा फहराने की कोशिश करने वाले बंगाली बाबा वहीं रहे,उनका भारत सरकार से जारी ताम्रपत्र बाहर ही लटका रहता था।
नंद लाल ढींगरा का जन्म पाकिस्तान के डेरास्माईल खां में हुआ था,जन्म तिथि की जानकारी नहीं है, पिता का नाम झंडा राम माता लक्ष्मी देवी
शिक्षा – प्राथमिक शिक्षा उर्दू माध्यम से
छः महीने कैद के बाद परिवार देहरादून में बस गया, यहीं आरएसएस के शाखा संचालक रहे,दस वर्ष तक देहरादून चुक्खू मौहल्ला वार्ड नंबर दस के नगरपालिका पार्षद रहे, अटल बिहारी बाजपेई के कट्टर समर्थक और नित्यानंद स्वामी जी के परम मित्र रहे पत्नी यशोदा देवी और पांच संतानों दो पुत्री और तीन पुत्रों की परवरिश में कट्टर इमानदार नंद लाल ढींगरा ने समाज सेवा करते हुए कठोर परिस्थितियों में जीवन यापन किया धर्म परायण पत्नी यशोदा के देहांत के बाद कुछ वर्ष के अंतराल पर 23 जनवरी 2022को पारगमन कर गये
देहरादून में रहते हुए छोटे से व्यवसाय में भारी नुक़सान के बाद 1974 में पुनः हरिद्वार आ कर बस गये किन्तु दोबारा आजिविका व्यवस्थित नहीं हो सकी उनका अधिकांश समय जन सेवा में ही बीता, स्वतंत्रता सेनानियो के हित के लिए काम करते रहे, जिला हरिद्वार स्वतंत्रता सेनानी संगठन के वर्षों जिलाध्यक्ष रहे हरिद्वार में अपने शहीद साथी जगदीश लाल वत्स की प्रतिमा स्थापित करवाई शहीद स्मारक का निर्माण जिला प्रशासन की सहायता से बनवाया स्वतंत्रता सेनानियों को चिकित्सा संबंधी, पेंशन सम्बंधित समस्याओं में जी जान से सहायता करते रहे, दूसरों के लिए सहायक बनने वाले स्वयं अभावोंं में ही परलोकवासी हो गये,Quit India Movement