उत्तराखंड के चप्पे-चप्पे पर देवदूत बनी घूमती है एसडीआरएफ
आपकी यात्रा में मददगार एसडीआरएफ कैसे होती है सहायक
उत्तराखंड राज्य में चलने वाली चारधाम यात्रा का देश भर में एक अलग ही महत्व हैं। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु चारधाम यात्रा के लिए उत्तराखंड आते है। धार्मिक महत्व के साथ साथ पर्यटन की दृष्टि से देखा जाए तो यहां पर अनेक रमणीक, पौराणिक, रोमांच से भरपूर स्थान देखने के लिए मिल जायेंगे, जिसकी ओर अनायास ही पर्यटक खिंचे चले आते है।
चारधाम यात्रा की बात की जाए तो माह अप्रैल में श्रीकेदारनाथ, श्री बद्रीनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री के कपाट खुलने से आरम्भ होने वाली यात्रा माह नवंबर में कपाट बंद होने के उपरांत समाप्त होती हैं। देश के साथ ही विदेशों से भी अनेक श्रद्धालु दर्शन करने हेतु उत्तराखंड में आगमन करते है।
यात्रा करने के लिए वर्षा ऋतु से पहले व बाद का समय सबसे अधिक उपयुक्त होता है क्योंकि वर्षा ऋतु में भूस्खलन, बादल फटना, बज्रपात इत्यादि जैसी समस्याओं की संभावना अधिक बनी रहती है। श्रद्धालुओं व पर्यटकों की सुरक्षा के दृष्टिगत शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ जाती है जिस हेतु शासनिक तौर पर अनेक प्रभावी कदम भी उठाये गए है।
इस वर्ष सकुशल यात्रा आरम्भ होने के उपरांत कुछ ही दिनों में श्रीकेदारनाथ यात्रा मार्ग पर लिनचोली से आगे भैरव व कुबेर ग्लेशियर पर एवलांच आने से यात्रा मार्ग पूर्ण रूप से बाधित हो गया। अन्य कोई वैकल्पिक मार्ग भी न होने के कारण हजारों श्रद्धालुओं को रुकना पड़ा, साथ ही मौसम की स्थिति भी सही नही थी जिससे श्रद्धालुओं को और भी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।
ऐसी स्थिति में SDRF ने युद्ध स्तर पर मोर्चा संभाल लिया गया, श्री मणिकांत मिश्रा, सेनानायक SDRF के दिशानिर्देश में अधिक से अधिक संख्या में SDRF बल को तैनात किया गया। अन्य इकाईयों के साथ समन्वय स्थापित करते हुए SDRF जवान खुद ही फावड़े और बेलचे उठाकर रास्ता बनाने निकल पड़े। बर्फ का पहाड़ SDRF के दृढ़ निश्चयिता से छोटा निकला, न दिन न रात, न ठंड न गर्मी, कोई नही था जो SDRF जवानों के हौंसलो की धार को कुंद कर सकता था।
SDRF जवानों ने फावड़ों बेल्चों से बर्फ काट-काट कर रास्ता बनाया, साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से रास्तों के किनारे रोप को भी बांधा जिससे फ़िसलन भरे रास्ते मे चलते समय उसका सहारा मिल सके।
श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो इसलिए SDRF जवानों द्वारा ऐसी विषम परिस्थितियों में 24 घंटों यात्रा मार्ग पर तैनात रहकर महिलाओं व बुजुर्गों को हाथ पकड़कर या पीठ पर बैठाकर साथ ही बच्चों को गोद में उठाकर रास्ता पार कराया गया। श्री केदारनाथ यात्रा मार्ग पर जहाँ SDRF के जवान खतरनाक पैदल मार्ग पर तीर्थयात्रियों का आवागमन करवा रहे है वही उनके खोए समान को खोजकर वापस लौटा रहे है।
उच्चतुंगता क्षेत्र में आने पर श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं जैसे सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना, बेहोश होना, अत्यधिक ठंड लगने से हाइपोथर्मिया इत्यादि का सामना करना पड़ता है। SDRF द्वारा ऐसी स्थिति में त्वरित कार्यवाही करते हुए प्रभावित श्रद्धालु को पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलिंडर, कॉन्संट्रेटर इत्यादि की सहायता से प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराते हुए स्ट्रैचर के माध्यम से बिना समय गंवाए प्राथमिक चिकित्सालय पहुँचा रहे है। यदि अस्पताल में भर्ती किसी श्रद्धालु को चिकित्सकों द्वारा हायर सेंटर रेफर किया जाता है तो SDRF जवानों द्वारा अपने कंधों पर हेलीपैड तक पहुँचाकर इनका जीवन सुरक्षित करने में संजीवनी का काम किया जा रहा है। श्रीकेदारनाथ के साथ-साथ SDRF द्वारा श्री बद्रीनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री में भी संवेदनशील स्थानों पर तैनात रहकर श्रद्धालुओं की सहज सुगम व सुरक्षित यात्रा हेतु पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा व समपर्ण के साथ कार्य किया जा रहा है। चाहे किसी अस्वस्थ/चोटिल श्रद्धालु का प्राथमिक उपचार हो, बुजुर्गों, दिव्यांगों, बच्चों को दर्शन कराना हो या VVIP आने पर सुरक्षात्मक रूप से अग्रणी भूमिका निभाना हो, SDRF ने हर जगह पर अपनी उपयोगिता को सिद्ध किया है व श्रद्धालुओं के हृदय में SDRF की सकारात्मक छवि बनाई है।
वर्ष 2023 में चारधाम यात्रा आरम्भ होने के उपरांत वर्तमान समय तक SDRF उत्तराखंड द्वारा कुल 86 अस्वस्थ/चोटिल को उपचार प्रदान कर उनके अनमोल जीवन को सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन सैकड़ो श्रद्धालुओं को दुर्गम रास्तों से पार कराया जा रहा है।
20 मई से सिखों के धाम कहे जाने वाले श्री हेमकुण्ड साहिब के कपाट खुलने के उपरान्त यात्रा आरम्भ होने पर श्रद्धालुओं के सुरक्षित आवागमन हेतु यात्रा मार्ग पर घांघरिया व श्री हेमकुण्ड साहिब में SDRF टीमों द्वारा तैनात रहकर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जा रहा है। विगत दिनों बर्फबारी के उपरान्त फिसलन भरे बर्फीले रास्तों पर यात्रियों की सुगम यात्रा हेतु SDRF द्वारा अनेकानेक सुरक्षात्मक उपाय अपनाए गए व दिन और रात समर्पित होकर कार्य किया गया।
वहीं बात करें कुमाऊं मण्डल की तो, माँ पूर्णागिरि मेले में SDRF द्वारा जहां एक ओर द्वारा यात्रियों की हर सम्भव मदद की जा रही है वही काली मंदिर के समीप धर्मशालाओं में आगजनी की घटना पर त्वरित कार्यवाही कर एक बड़ी दुर्घटना का न्यूनीकरण किया गया।वही SDRF द्वारा पिथौरागढ़ में आदि कैलाश यात्रा से लौट रहे यात्री जो भूस्खलन के कारण गर्भधार में फंस गए थे उनमें से 40 यात्रियों को अत्यंत विकट परिस्थितियों में सकुशल रेस्क्यू किया गया और अगले दिन लगभग 120 यात्रियों को रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थान पहुंचाया गया व एसडीआरएफ का यात्री सहायता और रेस्क्यू कार्य गतिमान है। और रहेगा।