religion,धर्म-कर्म और दर्शन -54
religion and philosophy- 54
🏵️🌸 चण्डिका सहस्राक्षर मंत्र 🌸🏵️
चण्डिका सहस्राक्षर मंत्र अत्यन्त उग्र एवं प्रभावशाली है।
इसका तंत्रोक्त पाठ करने से महाभय, अकाल-मृत्यु, आर्थिक-हानि, अभिचारिक-क्रिया तथा असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है।
समस्त शत्रु व ग्रहों की कुदृष्टि से जातक की रक्षा होती है।
कार्य सिद्धि हेतु कम से कम 108 पाठ नित्य एक माह तक करने चाहिये ।
विशेष संकट में 11000 पाठ विधिपूर्वक सम्पन्न करें।
समस्त यम नियमों की जानकारी गुरुमुख से प्राप्त करनी चाहिये।
🌺 ध्यान:🌺
ॐ या चण्डी मधु-कैटभादी-दलनी या माहिषो-न्मुलनी, या धुम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड, मथनी या रक्त-बिजाशनी।
शक्ती-शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-दलनी, या सिद्धी-दांत्री परा सा देवी नव-कोटी-मुर्ती-संहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
🌺 विनियोग: 🌺
अस्य श्रीसर्व-महा-विधा-महा-राज्ञी-सप्तशती-मन्त्र रहस्याती-रहस्य-मयी, परा-शक्ती-श्रीमदाद्धा-भगवती-सिद्ध-चण्डी, सहस्राक्षरी-महा-विधाया:
श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ॠषि, गायत्र्या-नाना छन्दांसि,
नव कोटी-रुपा-श्रीमदाद्धा-भगवती सिद्ध-चण्डी देवता, श्रीमदाधा-भगवती-सिद्ध-चण्डी-प्रसादाद-खिलेष्टार्थे जपे पाठे विनियोग:।
ॠष्यादी न्यास:
श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा-ॠषियां, शिरसे नम: । गायात्र्यादी-नाना छन्दोभ्यौ नम: मुखे: । नव-कोटी-शक्ती-रुपा-श्रीमदाधा-भगवती-सिद्ध-चण्डी-प्रसादा-
अङ्ग न्यास :
ॐ श्री सहस्रारे। ॐ ह्रीं नमो माले।
ॐ क्लीं नमो नेत्र-युगले। ॐ एइं नम: हस्त-युगले।
ॐ श्री नम: हृदये। ॐ क्लीं नम: कटौ।
ॐ ह्रीं नम: जङ्घा-द्वये।
ॐ श्री नम: पादादी-सर्वाङ्गे।
ध्यान:
ॐ या चण्डी मधु-कैटभादी-दलनी या माहिषो-न्मुलनी, या धुम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड, मथनी या रक्त-बिजाशनी।
शक्ती-शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-दलनी, या सिद्धी-दांत्री परा सा देवी नव-कोटी-मुर्ती-संहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
इसका तंत्रोक्त पाठ करने से महाभय, अकाल-मृत्यु, आर्थिक-हानि, अभिचारिक-क्रिया तथा असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है।
समस्त शत्रु व ग्रहों की कुदृष्टि से जापक की रक्षा होती है
कार्य सिद्धि हेतु कम से कम 108 पाठ नित्य एक माह तक करने चाहिये । विशेष संकट में 11000 पाठ विधिपूर्वक सम्पन्न करें।
समस्त यम नियमों की जानकारी गुरुमुख से प्राप्त करनी चाहिये।
ध्यान:
ॐ या चण्डी मधु-कैटभादी-दलनी या माहिषो-न्मुलनी, या धुम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड, मथनी या रक्त-बिजाशनी।
शक्ती-शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-दलनी, या सिद्धी-दांत्री परा सा देवी नव-कोटी-मुर्ती-संहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
🌺 सहस्राक्षरी सिद्ध चण्डी महाविधा मंत्र🌺
विनियोगः ॐ अस्य सर्व-विज्ञान-महा-राज्ञी-सप्तशती रहस्याति-रहस्य-मयी-परा-शक्ति श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डिका-सहस्राक्षरी-महा-विद्या-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषि, गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्दांसि, नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवता, श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः
श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषिभ्यां नमः शिरसि,
गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्देभ्यो नमः मुखे,
नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवतायै नमः हृदि,
श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
महाविद्यान्यासः
ॐ श्रीं नमः सहस्रारे ।
ॐ हें नमः भाले।
क्लीं नमः नेत्र-युगले।
ॐ ऐं नमः कर्ण-द्वये।
ॐ सौं नमः नासा-पुट-द्वये।
ॐ ॐ नमो मुखे।
ॐ ह्रीं नमः कण्ठे।
ॐ श्रीं नमो हृदये।
ॐ ऐं नमो हस्त-युगे।
ॐ क्लें नमः उदरे।
ॐ सौं नमः कट्यां।
ॐ ऐं नमो गुह्ये।
ॐ क्लीं नमो जङ्घा-युगे।
ॐ ह्रीं नमो जानु-द्वये।
ॐ श्रीं नमः पादादि-सर्वांगे।।
ॐ या माया मधु-कैटभ-प्रमथनी, या माहिषोन्मूलनी, या धूम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड-दलनी, या रक्त-बीजाशनी। शक्तिः शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-मथनी, या सिद्ध-लक्ष्मी परा, सा देवी नव-कोटि-मूर्ति-सहिता, मां पातु विश्वेश्वरी।।
सहस्राक्षरी सिद्ध चण्डी महाविधा मंत्र
ॐ एइं श्रीं ह्रिसौ श्रीं एइं ह्रीं क्लीं सौ: सौ: ॐ एइं ह्रीं क्लीं श्रीं जय महा-लक्ष्मी, जगदाद्धे, विजये-सुरा-सुर त्रिभुवन-निदाने, दयांकुरे, सर्व देव-तेजो-रुपिणी, विरंच-संस्थिते, विधी-वरदे सच्चिदानन्दे, बिष्णु-देहाब्रिते, महा-मोहिनी, मधु-केटभादी-घोषिणी, नित्य-वरदान-तत्परे, महा-सुधाब्धी -वासिनी, महा-तेजो-धारिणी, सर्वाधारे, सर्व-कारण-कारीणे, अचिन्त्य रुपे, ईन्द्रादी-सकल-निर्जर-सेबिते, साम-गान-गायनपरिपुर्णोदय कारीणी, बिजये, जयन्ती, अपराजिते, सर्व-सुन्दरी, रक्तांशुके, सुर्य-कोटी-संकाशे, चन्द्र-कोटी-सुशितले अग्नी कोटी-दहन-शिले, यम-कोटी-क्रुरे, वायु कोट-वहन-शिले, ॐकार -नाद-बिन्दु-रुपिणी, निगमागम-भाग-दायिनी, महिषासुर-दलनी, धुम्र-लोचन-बध-परायणे, चण्ड-मुण्ड-शिरच्छेदिनी, रक्त-बिज-रुधिर-शोषिणी, रक्त-पान-प्रिये, योगिनी-भुत-बेताल भैरवादी-तुष्टी-बिधायिनी, शुम्भ-निशुम्भ-शिरच्छेदिनी, निखिलासुर-बल-खादीनी, त्रिदश-राज्यदायिनी, सर्व स्त्री रत्न-स्वरुपिणी, दिव्य-देहिनी, निर्गुणे, सगुणे-सदसद-रुप-धारिणी, सुर-वरदे, भक्त-त्राण-तत्परे, वहु-वरदे, सस्राक्षरे, अयुताक्षरे सप्त-कोटी-चामुण्डा-रुपिणी, नवकोटी-कात्यायनी-रुपे, अनेक लक्षालक्ष-स्वरुपे, ईन्द्राणी, ब्रह्माणी, रुद्राणी, ईशानी, भिमे, भ्रामरी, नारसींही, त्रि-शत-कोटी-देवते, अनन्त-कोटी-ब्रह्माण्ड-नायिके चतु-र्विशांती-मुनी-जन-संस्थिते, सर्व-ग्रन्थ-राज-विराजिते, महा-त्रिपुर-सुन्दरी कामेश-दयिते, करुणा रस-कल्लोलिनी, कल्प ब्रिक्षादी-स्थिते, चिन्ता-मणी-द्वय -मध्यावस्थिते, मणी-मन्दिरे निवासिनी, चापिनी, खड्गिनी, चक्रिणी, गदिनी, शङ्खिनी, पदमिनी, निखिल-भैरवादी-पते, समस्त-योगिनी परीवेष्ठिते, काली, कङ्काली, तोत्तलोत्तले, ज्वालामुखी, छिन्न-मस्तके, भुवनेस्वरी, त्रिपुर-लोक-जननी बिष्णु-वक्षस्थल-कारीणे, अजिते अमिते, अनुपम-चरिते, गर्भ -वासादी-दुखापहारिणी, मुक्ती-क्षेत्राधिष्ठायिनी, शिवे, शान्ते, कुमारी, सप्तदश शताक्षरे, चण्डी चामुण्डे महा-काली-महा-लक्ष्मी-महा-सरस्वती-त्री-विग्रहे प्रसिद प्रसिद, सर्व-मनोरथनी पुरय-पुरय, सर्वारिष्टान छेदय छेदय, सर्व-ग्रह-पिडा-ज्वराग्रे-भय बिध्वंसय बिध्वंसय, सर्व-त्रिभुवन-जातं वशय वशय, मोक्ष-मार्गाणी दर्शय दर्शय, ज्ञान-मार्ग प्रकाशय अज्ञान-तमो नाशय नाशय, धन धान्यादी-ब्रिद्धीं कुरु कुरु सर्व-कल्याणिनी कल्पय कल्पय, मां रक्ष रक्ष, सर्वापदभ्यो निस्तारय निस्तारय, बज्रं-शरिरं साधय साधय