पूर्वांचल उत्थान संस्था के सदस्य आचार्य उद्धव मिश्रा ने बताया कि हिंदू धर्म में जहां सिर्फ उगते हुए सूर्य को ही अर्घ्य देने का विधान है वहीं छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा अर्चना की जाती है.इसके पीछे मान्यता है कि डूबते समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ में होते हैं, और इस समय इनको अर्घ्य देने से जीवन में चल रही हर प्रकार की समस्या दूर होती है और मनोकामना पूर्ति होती है.

बताते चलें कि कार्तिक माह में छठ पूजा का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व सूर्य देव को समर्पित होता है. इस पर्व को महिलाएं संतान की खुशहाली और लंबी आयु के लिए रखती हैं. पूर्वांचल उत्थान संस्था, पूर्वांचल जन जागृति संस्था, पूर्वांचल महासभा, छठ पूजा आयोजन समिति, पूर्वांचल उत्थान सेवा समिति सहित अन्य पूर्वांचल की संस्थाओं तत्वावधान में छठ महापर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। हरिपुर कलां में गीता कुटीर घाट से लेकर हरकी पैड़ी, प्रेमनगर आश्रम, जटवाड़ा पुल बहादराबाद में गंगनहर पुल के समीप छठ घाट सहित कनखल के राधा रास बिहारी सहित अन्य घाटों की साफ सफाई की व्यवस्था को चाक चौबंद किया गया है।

  1.  छठ व्रतियों ने डूबते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान कर की, सुख शांति और समृद्धि की कामना

  2. गंगा घाटों पर दिखा उत्सव का नजारा, सड़कों पर उमड़ा आस्था और भक्ति का सैलाब

  3. पारंपरिक छठ गीतों की धून विभोर हुए श्रद्धालुजन

गुरुवार को तीसरे दिन पूर्वांचल समाज के लोगों डूबते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करने के साथ परिवार के सुख शांति और समृद्धि की कामना की।‌ गुरूवार को डूबते हुए सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करने के लिए पारंपरिक वेशभूषा में छठ का डाला लेकर छठ -व्रती अपने परिवार के साथ गंगा घाटों पर जुटे। गंगा जल में खड़े होकर सूर्य भगवान के अस्त होने का इंतजार किया। जैसे ही सूर्य अस्त हुए अर्घ्य प्रदान कर वापस घर लौटने लगे। शुक्रवार को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने तड़के घाटों पर जुटेंगे।

इस मौके पर आचार्य उद्धव मिश्रा बताते हैं कि हिंदू धर्म में हमेशा उगते हुए सूर्य को ही जल या अर्घ्य दिया जाता है, लेकिन छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है. छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है. इस दिन शाम के समय किसी तालाब या नदी में खड़े होकर डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है.

डूबते सूरज को अर्घ्य देने का मुख्य कारण यह भी है कि सूरज का ढलना जीवन के उस चरण को दर्शाता है जहां व्यक्ति की मेहनत और तपस्या का फल प्राप्ति का समय होता है. मान्यता है कि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संतुलन, शक्ति और ऊर्जा मिलती है. साथ ही, डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह भी दर्शाता है कि जीवन में हर उत्थान के बाद पतन होता है, और प्रत्येक पतन के बाद फिर से एक नया सवेरा होता है.सुबह का अर्घ्य शुक्रवार 8 नवंबर को दिया जाएगा. इसके बाद व्रत का पारण किया जाएगा.

छठ पूजा का महत्व बताते हुए पं भोगेन्द्र झा ने बताया कि छठ पर्व में सूर्य देव और छठी माता की पूजा की जाती है. सूर्य को जीवनदाता माना जाता है और छठी माता को संतान की देवी. इस पर्व के माध्यम से लोग इन देवताओं से अपने परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र की कामना करते हैं. छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है.

यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है और हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. छठ का व्रत बहुत कठिन होता है. व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं. साथ ही छठ पर्व सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है. इस पर्व के दौरान लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं. इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है.छठ पर्व, विशेषकर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है.

यह चार दिवसीय छठ व्रत सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है. इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से बहुत महत्व है. यह पर्व दीपावली के कुछ ही दिन बाद आता है. छठ पूजा का आरंभ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय की परंपरा के साथ हो जाता है.

यह पर्व 4 दिनों तक चलता है. दूसरे दिन खरना की रस्म पूरी की जाती है. छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है. छठ पूजा के चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो जाता है.

By Shashi Sharma

Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, he provided his strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got his pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of his pen. Delivered.

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