थीम- वन्यजीव संरक्षण वित्त-. लोगों और ग्रह में निवेश
अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और समृद्ध पर्यावरण छोड़ सकें
वन्यजीवों और प्रकृति से हमारा संबंध केवल जीविका का नहीं बल्कि जीवन का : स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश। संयुक्त राष्ट्र विश्व वन्यजीव दिवस हमें वन्यजीवों और पौधों के महत्व को समझने और उनके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने का एक अवसर प्रदान करता है। इस दिन का उद्देश्य न केवल वन्यजीवों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को बढ़ावा देना है। बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाता है कि वन्यजीवों का संरक्षण हमारे जीवन के साथ.साथ इस पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस वर्ष विश्व वन्यजीव दिवस का विषय है.वन्यजीव संरक्षण वित्त-. लोगों और ग्रह में निवेशए जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम वित्तीय संसाधनों के माध्यम से वन्यजीवों के संरक्षण में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कहा किए वन्यजीवों और प्रकृति से हमारा संबंध केवल जीविका का नहीं बल्कि जीवन का भी है। यह केवल एक भौतिक या पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं हैए बल्कि यह हमारे आंतरिक शांति और संतुलन से जुड़ा हुआ है। जब हम वन्यजीवों की रक्षा करते हैंए तो हम इस पृथ्वी पर जीवन के उस दिव्य रूप का सम्मान करते हैं जिसे नियंता ने बनाया है। साथ ही उस नियंता का भी सम्मान करते हैं जिन्होंने हमें इसे सँभालने की जिम्मेदारी दी है।
स्वामी जी ने कहा कि वन्यजीवों का संरक्षण केवल हमारे बाहरी पर्यावरण की रक्षा करने के लिए नहीं हैए बल्कि यह हमारे अंदर की प्रकृति और मनुष्यत्व के प्रति जागरूकता का परिणाम है। यदि हम अपने भीतर के प्रकृति के साथ एकत्व स्थापित कर पाते हैंए तो हम बाहर की दुनिया को भी संरक्षित और सशक्त बना सकते हैं।
स्वामी चिदानंद जी ने यह भी कहा कि वन्यजीवों की रक्षा करने के साथ.साथ हमें मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी समझना होगा और यही हमारे आंतरिक और बाह्य जीवन के संतुलन को बनाए रखने का मार्ग है।
संयुक्त राष्ट्र का यह संदेश कि हमें वन्यजीव संरक्षण के लिए वित्तीय निवेश करने की आवश्यकता हैए एक बेहद महत्वपूर्ण पहलू है। लेकिन यह केवल बाहरी निवेश का मुद्दा नहीं है। जब हम किसी कार्य में निवेश करते हैंए तो वह केवल भौतिक रूप से ही नहींए बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी निवेश होना चाहिए इसलिये वन्यजीव संरक्षण को न केवल एक भौतिक प्रयास के रूप में देखा जायेए बल्कि एक आध्यात्मिक कर्तव्य के रूप में भी देखना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन ही सच्ची आध्यात्मिकता है। प्रकृति और वन्यजीवों का संरक्षण हमारे धर्म का हिस्सा है। हमारे पूर्वजों ने हमें यह सिखाया कि पृथ्वीए जलए वायुए अग्नि और आकाश इन सभी तत्वों का संतुलन बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। जब हम इनका संरक्षण करते हैंए तो हम वास्तव में उन धार्मिक शिक्षाओं का पालन कर रहे होते हैंए जो हमें जीवन की सच्ची समझ देती हैं।
हमारे समाज की प्रगति और विकास तभी संभव है जब हम सामूहिक रूप से वन्यजीवों और पर्यावरण के संरक्षण में योगदान करें। यह हमारे जीवन का हिस्सा है। हमें सिर्फ प्रकृति का उपयोग नहीं करना है, बल्कि हमें उसे संरक्षित भी करना है।
स्वामी जी ने सभी को प्रेरित किया कि हम अपने दैनिक जीवन में इन संवेदनशील जीवों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करें ताकि अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और समृद्ध पर्यावरण छोड़ सकें।


By Shashi Sharma

Working in journalism since 1985 as the first woman journalist of Uttarakhand. From 1989 for 36 years, he provided his strong services for India's top news agency PTI. Working for a long period of thirty-six years for PTI, he got his pen ironed on many important occasions, in which, by staying in Tehri for two months, positive reporting on Tehri Dam, which was in crisis of controversies, paved the way for construction with the power of his pen. Delivered.

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