कांग्रेस पार्टी के नेता बुद्धिहरण विश्वविद्यालय से पढ़कर आए हैं क्या ?
लेख:- रमेश खन्ना
वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस ने गीता प्रेस गोरखपुर को भारत सरकार द्वारा दिए गए गांधी शांति सम्मान का विरोध किया है । पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि गीता प्रेस को गांधी के नाम पर दिया गया शांति सम्मान ऐसा है मानों गोडसे और सावरकर को सम्मानित किया गया हो । इसके बाद कांग्रेस के नेताओं के बयान एक के बाद एक सामने आने शुरू हो गए ।
सभी गीता प्रेस को सम्मान का कड़ा विरोध करते नजर आए । आश्चर्य की बात है कि सोनिया राहुल और प्रियंका के नजदीकी जयराम रमेश के ट्वीट का समर्थन कुछ अन्य विपक्षी दल भी करने लगे । कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अभी तक भी पार्टी का पक्ष प्रस्तुत नहीं किया है ।
सौ वर्ष पुराने महान प्रतिष्ठान गीता प्रेस के बारे में अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है । इस संस्थान ने बगैर मुनाफे वाला सच्चा आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान उसी परंपरागत रूप में उपलब्ध कराया जैसा प्राचीनकाल से हम सुनते और लीलाओं में देखते आए हैं । जयदयाल गोयनका , हनुमान प्रसाद पोद्दार , राधेश्याम खेमका आदि महापुरुषों ने गीता प्रेस को अपने तप से सिंचित किया । नाथूराम गोडसे जैसे हत्यारे को गीता प्रेस के समकक्ष रखकर कांग्रेस ने जो पाप किया है , निःसंदेह वह पाप कांग्रेस के लिए ही अभिशाप बनेगा ।
यह कैसा कुटिल संयोग है कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के सूत्रधार जयराम रमेश ने एक तरफ तो सम्मान और गोडसे को जोड़ा तो दूसरी ओर से महान देशभक्त सावरकर को गोडसे के साथ बीच में घसीटा ? न जाने क्यों कांग्रेस के नेता बार बार अपने बौद्धिक दिवालियेपन का परिचय देते हैं ? मानों आवे का आवा ही गया गुदार हो चुका हो ।
या फिर पार्टी के कईं नेता बुद्धिहरण विश्वविद्यालय से पढ़कर आए हों ? दुर्भाग्य से पार्टी के शीर्ष नेताओं का सांस्कृतिक मूल्यों से इस कदर कटते जाना अफसोसनाक है । आश्चर्य की बात यह है कि मतलब न रखते हुए भी अन्य दलों के कईं नेता कांग्रेस के विवादित बयानों का समर्थन करने लगे हैं ।
संयोग देखिए । एक तरफ तो आदिपुरुष 📽️ फिल्म ने माथा गरम कर रखा है , दूसरी तरफ गीता प्रेस को बेवजह घसीटा जा रहा है । गीता प्रेस विशुद्ध धार्मिक साहित्य छापती है उसका गोडसे या सावरकर से क्या लेना देना ? गांधी जी की हत्या के बाद यदि हनुमान प्रसाद पोद्दार का नाम चर्चा में आया था , तो उन्हें पुलिस से क्लीन चिट भी मिल गई था ।
विशुद्ध रूप से नो लॉस नो प्रॉफिट के आधार पर देश में आध्यात्मिक क्रांति लाने वाले पोद्दार जी पर कांग्रेस की यह तौहमत बेहद चिंताजनक है । चुनाव में कांग्रेस यदि अपनी ऐसी बचकानी हरकतों से बहुमत पाना चाहती है तो खुदा खैर करे । सस्ता आध्यात्मिक साहित्य कल भी देश के लिए जरूरी था , आज तो और भी अधिक है , कल भी रहेगा । अच्छा हो यदि कांग्रेस इस सब से बाहर निकले । अन्यथा प्रमोद कृष्णम जैसे संत नेताओं से भी हाथ धो बैठेगी ?