राजनीति का जातिकरण, कौन से युग में जी रहे हैं हम।

आलेख- वरिष्ठ पत्रकार रमेश खन्ना

 राजनीति का जातिकरण, स्वतंत्रता प्राप्ति के 77 वर्ष बाद भी भारत में यदि जातियों के आधार पर सीएम बनाए जा रहे हैं , जातियों के आधार पर केंद्र और प्रदेशों में मंत्री बनाए जा रहे हैं , संसद सदस्यों को जाति के आधार पर टिकट बांटे जा रहे हैं तो समझ लिए कि हम कौन सी सदी में रह रहे हैं, 21 वीं या फिर 16 वीं ?

यह किसी दल विशेष की नहीं , समस्त राजनैतिक दलों की कहानी है । आजादी से पहले न हिन्दू होता था , न मुसलमान बस स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहा देश होता था ।
आजादी मिली तो भी कुछ वर्षों तक हिन्दू मुसलमान नहीं था, धीरे धीरे छद्मवाद राजनीति पर इस कदर हावी हुआ कि मंडल भी आया , कमंडल भी आया और हिंदुओं के जातियों में टुकड़े करने वाले लालू , मुलायम , मायावती और नीतीश भी आ गए । अब तो मोदी हों या राहुल सभी मिलकर जाति जाति खेलने लगे हैं ।

तभी तो देखिए कहीं सैनी मुख्यमंत्री , कहीं यादव , कहीं आदिवासी तो कहीं कहीं मन मारकर ब्राह्मण सीएम । राजनीति में जो शब्द सर्वाधिक हावी हुए हैं , वे हैं जाट , गुर्जर , बनिया , राजपूत , दलित आदि आदि । जिस लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र में जिस जाति के अधिक वोट , उसका उतना ही दबदबा , उसी जाति का प्रत्याशी । भाड़ में जाए योग्यता , अब तो सब दलित , पिछड़े , आदिवासी आदि की राजनीति में मगन हैं ।

युवा , महिला , किसान आदि तो नारे हैं , सभी लगा रहे हैं , आप भी लगाइए । दरअसल भारतीय राजनीति में कितने भी प्रगतिशील और विकासवादी दल हों , चुनाव उन्हें भी जीतने हैं । जीतेंगे , लोगों के सपने तभी पूरे करेंगे । अब भारतीय राजनीति के चेहरे यदि जातिवादी हो चले हैं तो जातियों का प्रभाव तो पड़ेगा ही । आश्चर्य का विषय है कि स्वाधीनता मिलने के आठवें दशक में भी हम निकलने की बजाय जात पात में और उलझते जा रहे हैं ।

खैर ! अभी तो यही चलेगा वैसे राजनीति कोई शाश्वत सत्य नहीं , अपितु विशुद्ध रूप से मरणधर्मा है । टुकड़ा टुकड़ा समाज बना चुकी यह राजनीति भी एक दिन मरेगी , भारतीय समाज में जातियों के खेल से जरूर ऊब पैदा होगी , परंतु वह समय अभी दूर है ।

कभी न कभी भारतीय समाज ऐसा जरूर बनेगा जिसकी रुचि प्रगति में होगी , अध्यात्म में होगी , टेक्नोलॉजी में होगी , विकास ही विकास में होगी । नया भारत अपने समग्र रूप में उदित होगा ।
कभी तो जातियां गौण हो जाएंगी , मानवमात्र महत्वपूर्ण हो जाएगा । जी हां , आएगी , वह सुबह कभी तो आएगी ,जरूर आएगी ।👇-

आलेख में लेखक के विचार अपने हैं, पोर्टल का इससे कोई सरोकार नहीं।
संपादक

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