religion,धर्म-कर्म और दर्शन -150

religion and philosophy- 150

 

🏵️नाथ संप्रदाय की कुलदेवी हैं माता हिंगलाज 🏵️

माता हिंगलाज को नाथ संप्रदाय की कुलदेवी माना गया है. नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति ‘आदिशंकर’ से हुई है. इसे भगवान शिव का अवतार माना गया है. क्योंकि भगवान शिव को ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘आरंभ’. भगवान शिव के बाद इस परंपरा में भगवान दत्तात्रेय का नाम आता है. दत्तात्रेय के बाद, सिद्ध गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने नाथ परंपरा को नई ऊंचाई तक पहुंचाया।

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नाथ संप्रदाय माता हिंगलाज को अपनी कुलदेवी मानता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, “भगवान शिव जब सती के पार्थिव देह लेकर तीनों लोकों में घूमने लगे, तो विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए. जिस-जिस स्थान पर सती के अंग गिरे, उन स्थानों को शक्तिपीठ कहा गया.” कहा जाता है कि देवी सती “हिंगलाज” के सिर वाला ब्रह्मरंध्र भाग हिंगोल नदी के पश्चिमी तट के किर्थर पर्वत की एक गुफा में गिरा था।

हिंगलाज माता का गुफा, कराची से 250 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम, लोही तहसील की घाटी में स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों से गुज़रना होता है. यह बलूचिस्तान के लासबेला ज़िले का हिस्सा है, और हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान का मध्य भाग है।

‘मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है। जहाँ एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है। बल्कि, एक छोटे आकार के सिंदूर से पुते शिला को हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है। शिला सिंदूर को संस्कृत में ‘हिंगुला’ कहते है.

हिंगलाज के आस-पास, गणेश, काली, गुरुगोरख नाथ, ब्रह्म कुध, तिर कुण्ड, गुरुनानक खाराओ, रामझरोखा बेठक, चोरसी पर्वत पर अनिल कुंड, चंद्र गोप, खारिवर और अघोर पूजा जैसे कई अन्य पूज्य स्थल हैं। पिछले तीन दशकों में इस स्थान की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है, और यह पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के लिए एक एकीकृत संदर्भ बिंदु बन गया है।

हिंगलाज यात्रा पाकिस्तान में सबसे बड़ी हिंदू तीर्थयात्रा है। वसंत के दौरान हिंगलाज यात्रा में 250,000 से अधिक लोग भाग लेते हैं. स्थानीय मुस्लिम भी हिंगलाज माता पर आस्था रखते हैं और मंदिर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। पाकिस्तानी मुसलमान, हिंगलाज मंदिर को “नानी का मंदिर” कहते हैं.

बाज़दफा देवी को ‘बीबी नानी’ (सम्मानित मातृ दादी) कहा जाता है। ‘बीबी नानी’ को Bactrian Goddess “नाना” के सादृश्य माना गया है. कुशान कालखंड के सिक्कों में उनकी आकृति उकेरी हुई दिखती है. कुशान काल (c. 30–c. 375 AD) में “नाना” की पश्चिम और मध्य एशिया में व्यापक रूप से पूजा जाती थी। इस प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए स्थानीय मुस्लिम जनजातियां, तीर्थयात्रा समूह में शामिल होती हैं. इस तीर्थयात्रा को “नानी की हज” कहते हैं।

*डॉ रमेश खन्ना*
*वरिष्ठ पत्रकार*
*हरीद्वार (उत्तराखंड)*

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